जलपोत को विखण्डन हेतु तैयार करने की प्रक्रिया
सीसा विषाक्त होता है और यह बैटरियों, पेंट तथा मोटर, जनित्र, नलियाँ, केबल और अन्य वस्तुओं में हो सकता है। मानव स्वास्थ्य पर सीसे के कुप्रभावों की जानकारी काफी समय से अच्छी तरह जानी-पहचानी है। छोटे बच्चों पर सीसे का विषाक्त प्रभाव सर्वाधिक रूप से पड़ता है। लम्बे समय तक थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सीसे के सम्पर्क में आते रहने से पढ़ने-लिखने में स्थायी कुप्रभाव प्रकट हो सकता है तथा बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो सकती है और तंत्रिका विकास और शारीरिक विकास धीमी पड़ सकती है। जलपोत के ढाँचे और उसके घटक एवं अंगों के निष्कर्षण, जिससे पुनश्चक्रण, पुनरुपयोग और निपटारे के लिये सामग्रियाँ प्राप्त होती हैं, से निम्नलिखित कारणों से पर्यावरण में निकासियाँ हो सकती हैं:
- पोत को तोड़ने लगने के पूर्व उसे तैयार करने की प्रक्रियाओं की अपर्याप्तता
- तोड़ते वक्त पोत पर विद्यमान सामानों का संग्रह/हटाया/सुरक्षित न किया जाना
- सामानों के संग्रह, परिवहन और भण्डारण/निपटारे की प्रक्रियाओं की अपर्याप्तताएँ
कार्यविधियों और प्रक्रियाओं का स्वरूप ही ऐसा है कि उनसे जल, वायु और जमीन में उत्सर्जनों की सम्भावना रहती है। इसकी रोकथाम के लिये यह आवश्यक है निपटारे के लिये जहाज को डीकमीशन करने की प्रक्रिया के हर चरण पर विचार किया जाये ताकि हर स्तर पर सुधारात्मक कार्रवाइयों को अंजाम दिया जा सके।
डीकमिशनिंग और विखण्डन से जुड़े विशिष्ट उपायों के सुझावों से सम्बन्धित जिम्मेदारियों (देखें नीचे) को पर्यावरणीय प्रबन्ध योजना (अध्याय 6 भी देखें) में स्पष्ट रूप से पहचानना चाहिए।
विखण्डन के चरण
विखण्डन के लिये डीकमिशन करना एक चरणबद्ध प्रक्रिया है (जिसे तालिका 1 में समझाया गया है):
I. डीकमिशन करना और बेचना
II. विखण्डन प्रक्रिया
II. पुनरुपयोग, पुनश्चक्ररण और निपटारे के लिये छाँटना
ईएसएम के सिद्धान्तों के अनुपालन हेतु विखण्डन प्रक्रिया न केवल विखण्डन चरण (1) को ही प्रभावित नहीं करेगी, बल्कि नीचे दर्शाए अनुसार (नीचे की यह तालिका पूर्ण नहीं है) अन्य चरणों में की जाने वाली गतिविधियों के सम्बन्ध में भी कार्रवाई करनी पड़ सकती है।
तालिका 6 जलपोत को विखण्डन हेतु तैयार करने की प्रक्रिया | |||
कार्रवाइयाँ | 1 | 2 | 3 |
1. | पोत में विद्यमान खतरनाक/प्रदूषक कचरे की सूची तैयार करना | पोत में विद्यमान खतरनाक/प्रदूषक कचरे की सूची तैयार करना | |
2. | (हटाना/साफ करना - ईंधन और तेल सहित तरल पदार्थ); | हटाना/साफ करना - ईंधन और तेल सहित तरल पदार्थ | |
3. | सुरक्षित करना | सुरक्षित करना | |
4. | (उपकरणों को हटाना) | उपकरणों को हटाना | |
5. | खतरनाक/प्रदूषक सामानों को हटाना | ||
6. | विखण्डन | ||
7. | भण्डारण, पुनश्चक्रण और निपटारा | भण्डारण, पुनश्चक्रण और निपटारा |
1. पोत में विद्यमान खतरनाक/प्रदूषक कचरे की सूची तैयार करना
विखण्डन स्थल में आगमन के पूर्व, अथवा आगमन पर, जलपोत का सर्वेक्षण करके उसमें विद्यमान सामानों की सूची तैयार की जानी चाहिए। इस सर्वेक्षण में जलपोत में विद्यमान सभी प्रकार के कचरों को पहचाना जाएगा, उनका स्थान और मात्रा का पता लगाया जाएगा और इसके परिणामस्वरूप खतरनाक कचरे और अन्य कचरे की सूची तैयार होगी। कार्य के क्रम और प्रकार की योजना निश्चित करने के लिये भी जलपोत का सर्वेक्षण किया जा सकता है। मसलन, एसबेस्टोस युक्त ढाँचों को चिह्नित किया जा सकता है ताकि उन्हें हटाने का काम अधिक सुविधाजनक रूप से चल सके।
पोत में विद्यमान खतरनाक सामग्रियों की सूची बन जाने के बाद इस सूची के प्रत्येक खतरनाक वस्तु के लिये रासायनिक सुरक्षा डेटा शीट उपलब्ध कराए जाने चाहिए। खतरनाक रसायनों के लेबलिंग और भण्डरण के दौरान रसायनों के वर्गीकरण और लेबलिंग के लिये संयुक्त राज्य द्वारा विश्वव्यापी रूप से समायोजित प्रणाली का और खतरनाक सामानों के परिवहन के लिये संयुक्त राज्य संघ की सिफारिशों का पालन होना चाहिए। जलपोत विखण्डन से सम्बन्धित आईएलओ के अन्तरराष्ट्रीय उपकरणों का (संधियाँ, सिफारिशें, आचार संहिताएँ) और रासायनिक सुरक्षा के अन्य सूचना-स्रोतों का (अध्याय 6 भी देखें) भी उपयोग करना चाहिए।
2. हटाना/साफ करना - ईंधन और तेल सहित तरल पदार्थ
जलपोत को काटने के पूर्व उसे उस पर लगे रह गए सभी पदार्थों से साफ करना चाहिए। यह चरण 2 के पूर्व या सुविधा के सफाई स्टेशन में किया जा सकता है। कार्गो टैंक, बंकर और ईंधन टैंक, बिल्ज और ब्लास्ट कक्ष, मल-निकासी टैंक आदि की सफाई क्रम से की जानी चाहिए ताकि जलपोत विखण्डन के लिये साफ-सुथरे और सुरक्षित अवस्था में पहुँचे। सफाई स्टेशन के मलिन जल और उपयोग किये गए विलायकों को परिसीमित करके ठीक तरह से उपचारित करना चाहिए। जलपोत को काम करने के लिये सुरक्षित बनाने हेतु सभी ज्वलनशील तरलों और सामानों को हटा देना चाहिए। यह प्रक्रिया विखण्डन के दौरान हर स्तर पर की जाएगी (अगले अनुभाग को देखें)। हटाने के दौरान किये जाने वाली कार्रवाइयों में शामिल होने चाहिए गीला होने पर परिसीमन – जब सूख जाये, जलपोत के चारों ओर बूम लगाए जाने चाहिए – परिवहन का बन्दोबस्त (पम्प करना/पाइप द्वारा ले जाना, इत्यादि) जो छलके द्रवों के नियंत्रण के लिये आवश्यक होंगे।
3. सुरक्षित करना
यह सुनिश्चित करने केलिये कार्यप्रणालियाँ और परिचालन सुरक्षित तरीके से किये जाते हैं, जलपोत को सुरक्षित करने की प्रक्रिया आवश्यक है। इसके दो पहलू हैं:
- कक्ष, टंकियाँ आदि सभी क्षेत्रों तक सुरक्षित पहुँच और वहाँ साँस लेने योग्य वायु की उपस्थिति
- गरम काम के लिये सुरक्षित परिस्थितियाँ, जिनमें शामिल हैं सफाई/वातन, काटे जाने वाले भागों से विषाक्त या ज्वलनशील पेंटों को हटाना, काम शुरू करने पूर्व परीक्षण और मानिटरण।
4. उपकरणों को हटाना
उपभोग की वस्तुएँ और खुले पड़े उपकरण पहले हटाए जाते हैं। पुनरुपयोग के लायक घटक तब-तब हटाए जाते हैं जब उन तक पहुँचना सम्भव हो जाता है। फिश्चर, लंगर, जंजीर, इंजन के पुर्जे, नोदक आदि ऐसे घटक के उदाहरण हैं जिन्हें इस चरण में हटाया जाता है।
5. खतरनाक/प्रदूषक सामानों को हटाना
पूर्व तैयारित सूची में खतरनाक/प्रदूषक सामग्रियों (एसबेस्टोस युक्त सामग्रियाँ, पीसीबी युक्त सामग्रियाँ आदि) की पहचान की गई होगी। जैसे-जैसे इन सामग्रियों तक पहुँचना सम्भव होता जाएगा, उन्हें सावधानीपूर्वक हटाकर निपटाया जाएगा। जहाँ ये सामग्रियाँ आवरणों के अन्दर अथवा घटकों या ढाँचे में विद्यमान हों, हटाने का काम इन्हें तट पर लाने के पश्चात किया जा सकता है।
6. विखण्डन
काटने की सुरक्षित एवं व्यावहारिक पद्धति इस पर निर्भर करेगी कि कौन सी विधि अपनाई जाती है (शुष्क-घाट, बँधा हुआ, बीच किया हुआ)। एक वास्तविक विखण्डन सुविधा के लिये विशिष्ट योजना बनाई जानी चाहिए। इसके आधार पर हर पोत के लिये विशिष्ट विखण्डन योजना बनाई जानी चाहिए।
7. भण्डारण, पुनश्चक्रण और निपटारा
विखण्डन से प्राप्त होने वाली अपशिष्ट धारा को छाँटकर/पृथक्क करके पुनश्चक्रण और पुनर्प्रक्रियण हेतु सामग्रियाँ प्राप्त की जाती हैं। खतरनाक कचरे और अन्य कचरे को वर्तमान कानूनों और विनियमों के अनुसार भण्डारित करके उचित रूप से निपटाया जाना चाहिए।
विखण्डन सुविधा में जो कार्यविधियाँ अपनाई जानी चाहिए उन्हें तालिका 1 (विखण्डन के चरण 2 और 3) में दर्शाया गया है।
सम्भावित विषाक्त पदार्थों को पहचानना और उनके विमुक्तीकरण को रोकना
तालिका 3 उन पदार्थों को पहचाना गया है जो विखण्डन के दौरान आमतौर पर विमुक्त होती हैं और यह भी बताया गया है कि उनके बाहर निकलने की स्थिति में क्या-क्या चुनौतियाँ पेश आती हैं।
सम्भावित विमुक्तीकरण के स्रोत इस पर निर्भर करेंगे कि विखण्डन सुविधा में पहुँचते समय जलपोत की क्या स्थिति है। इसलिये विमुक्ति को रोकने के उपयोग पोत-विशिष्ट होने चाहिए और मात्र विखण्डन प्रक्रिया तक सीमित नहीं होने चाहिए (अध्याय 4.1 में चरण 1 से 4)।
पहचाने गए पदार्थों को हटाने की प्रक्रिया की आवश्यकताएँ
इस समय पोत विखण्डन प्रक्रिया के लिये कोई अन्तरराष्ट्रीय कानूनी ढाँचा उपलब्ध नहीं है। लेकिन ऐसे कई मानक, तौर-तरीके, विनियम और अन्तरराष्ट्रीय संधियाँ हैं जो पोत-विखण्डन प्रक्रियाओं के लिये प्रासंगिक हैं। इनका सम्बन्ध पर्यावरणीय विषयों, सुरक्षा के मुद्दों, स्वास्थ्य से जुड़े पहलुओं और व्यवसाय या सामान्य रोजगार के अधिकारों से हो सकता है।
4.2.1 धातुएँ
रद्दी धातुओं सहित विभिन्न पदार्थों की पुनर्प्राप्ति हेतु जलपोत को काटा जाता है। जलपोत से मिलने वाली रद्दी सामग्रियों का सबसे बड़ा अंश रद्दी इस्पात होता है। रद्दी धातुओं को मोटे तौर पर लौह भंगार, जिसका सबसे बड़ा भाग 'कार्बन इस्पात' होता है और गैर लौह भंगार, जिसमें विशिष्ट रुचि वाले भंगार होते हैं जिनका मूल्य बहुत अधिक होता है, के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
खतरे
धातु के ढाँचों के निष्कर्षण का सबसे सामान तरीका टोर्च द्वारा काटना होता है जिससे अधिक छोटे हिस्से प्राप्त होते हैं जिनका आगे और उपचार होता है। काटने के दौरान बहुत अधिक वाष्प, धुआँ, कणिकीय सामग्रियाँ (मैंगनीज, निकेल, क्रोमियम, लोहा और सीसा सहित) और धातु के छोटे टुकड़े (मलबा) बनते हैं। इसके अलावा टोर्च से काटने की प्रक्रिया ‘गरम काम’ की कोटि में आती है और इसलिये इसके इर्द-गिर्द के परिवेश से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए।
धातु काटने के कारण होने वाले उत्सर्जनों में वायु प्रदूषक होने की अधिक सम्भावना है जो कर्मियों पर विषाक्त प्रभाव छोड़ सकते हैं और उनके स्वास्थ्य को खराब कर सकते हैं। इन उत्सर्जनों से बाहर की वायु की गुणवत्ता पर कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पड़ता। विखण्डन सुविधा को काटने के कामों के दौरान आवश्यक सुरक्षा उपायों की पहचान करनी चाहिए ताकि प्रदूषक पदार्थ फैल न सकें और कर्मियों की सुरक्षा की व्यवस्था की जा सके।
विखण्डन सुविधा के पास के समुद्र में पकड़ी गई धातु अंशों से दूषित मछलियों आदि को खाने से भी स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ सकते हैं। यह समस्या उन स्थलों के लिये विशेष महत्त्व रखता जहाँ विखण्डन सुविधाओं के पास ही कर्मचारी निवास करते हैं और समुद्र से प्राप्त भोजन अधिक मात्रा में खाया जाता है।
सावधानियाँ
किसी भी ‘गरम काम’ के पहले सतही लेपों का मूल्यांकन करना चाहिए और यदि वे ज्वलनशील प्रकार के हों तो उन्हें हटाना चाहिए (काटने की रेखा पर लगे अंशों को)। वे सभी स्थल जहाँ ‘गरम काम’ होने वाला हो, उन्हें काम शुरू करने के पूर्व ‘गरम काम के लिये सुरक्षित’ प्रमाणित किया जाना चाहिए। इसमें शामिल हैं अन्दरी भाग, बगल के स्थान जहाँ ज्वलनशील तरल या गैसें रखी हों, और स्थल से जुड़े भाग जहाँ पहले ईंधन रखा जाता हो।
कोई स्थल ‘गरम काम के लिये सुरक्षित’ तब माना जा सकता है जब उसमें ज्वलनशील वाष्पों या गैसों की मात्रा विस्फोटक सीमा के निचले स्तर के 10 प्रतिशत से कम हो। इसके अलावा खोखले धातु पात्रों को काटने के पूर्व पानी से भर देना चाहिए अथवा उनमें लगे ज्वलनशील पदार्थों को धोकर हटाना चाहिए तथा उन्हें वातित करना चाहिए और उनकी जाँच करनी चाहिए। प्रत्येक खोखली वस्तु के लिये पर्याप्त वातन (बहाव द्वारा) आवश्यक है ताकि काटने के दौरान उत्पन्न ताप से होने वाले फैलाव और इससे बढ़ता दाब निकल सके।
धातु काटने वाले कर्मियों को तेज रोशनी, प्रतिध्वनि, शोर और गरमी का सामना करना पड़ सकता है। इनसे बचने के लिये निजी सुरक्षा उपकरण (पीपीई) का उपयोग करना चाहिए जिनमें नेत्र रक्षक और शरीर के खुले अंगों के रक्षण हेतु लिबास शामिल हैं। पहने हुए कपड़े ज्वलनशील सामग्रियों से नहीं बने होने चाहिए और उन सभी वस्तुओं को जिनके कारण आग लगने की सम्भावना हो, उन्हें काटे जाने वाले वस्तु से दूर ले जाना चाहिए। जिन कर्मियों को ऊँचे स्तर के शोर में काम करना हो उन्हें उपयुक्त रक्षी उपकरणों का उपयोग करना चाहिए ताकि शोर का स्तर मान्य स्तर तक आ जाये।
कर्मचारी बिना वातन या श्वसन उपकरणों के धातु काटने के सामान्य काम कर सकते हैं बशर्ते कि यह बन्द स्थानों पर न किया जाये और काटी जाने वाली सतह पर विषाक्त लेप न लगे हों। धातु काटने के दौरान यदि पर्याप्त वातन का बन्दोबस्त करना सम्भव न हो तो कर्मियों के लिये नली द्वारा श्वसन की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके साथ ही बन्द स्थल के बाहर किसी अन्य व्यक्ति अन्दर काम कर रहे कर्मियों के सतत सम्पर्क में रहना चाहिए ताकि आपात स्थिति में उन तक तुरन्त मदद पहुँचाई जा सके। विषाक्त पदार्थों से लिपे हुए धातुओं को काटने वाले कर्मियों को स्थानीय एक्सोस्ट वातन या नली द्वारा श्वसन का उपयोग करना चाहिए।
अपशिष्टों का हस्तन
विखण्डन सुविधा रद्दी धातु को पुनश्चक्रित करने के विचार से उसे पुनःपिघलाने या ढलाई करने वाली कम्पनी को बेच सकती है या रद्दी धातु के ब्रोकर को। यह ध्यान देने लायक बात है कि लिपि हुई (कोटेड) रद्दी धातुओं को, जिन्हें पुनश्चक्रित न किया जाना हो, खतरनाक कचरे के रूप में निपटाया जाना चाहिए। जो पुनश्चक्रण योग्य धातु गैरधातु पदार्थों से मिला हो उसे श्रेडर या सेपरेटर के उपयोग से पुनर्प्राप्त किया जा सकता है। श्रेडिंग प्रक्रिया के बाद बची हुई पुनर्प्राप्त न की जा सकने वाली गैरधातु सामग्रियों को खतरनाक कचरे के रूप में निपटाया जाना चाहिए क्योंकि उनमें पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक पदार्थ हो सकते हैं, जैसे एसबेस्टोस या पीसीबी। विखण्डन सुविधा से पुनश्चक्रण हेतु निर्यात की गई रद्दी धातु में काफी मात्रा में लेप पदार्थ हो सकते हैं जो विषाक्त या खतरनाक प्रकृति के होते हैं। पुनर्प्रक्रियण के लिये रद्दी धातु प्राप्त करने वालों को प्रदूषण की रोकथाम के लिये कदम उठाने को प्रेरित करना चाहिए।
तांबा प्राप्त करने के लिये केबलों को जलाना अत्यन्त खतरनाक है और इसे रोकना चाहिए। प्रचालकों को केबलों से तांबा अन्य विधियों से प्राप्त करने की सलाह दी जाती है। केबलों के इन्सुलेशन को खतरनाक पदार्थ युक्त वस्तु माना जाना चाहिए या ऐसे पदार्थों से युक्त वस्तु जो निपटारे के दौरान खतरनाक पदार्थों को जन्म देते हैं (बेसेल अनुलग्नक 3, एच13) और इसी तरह उनका निपटारा होना चाहिए।
एनोड जहाज के पेटे में और टंकियों में लगे होते हैं और ये क्षरण और फाउलिंग रोकने का काम करते हैं। एनोड मुख्यतः एलुमीनियम (Al) और जिंक (Zn) के बने होते हैं, लेकिन उनमें अल्प मात्रा में अन्य धातु भी हो सकती हैं, जैसे तांबा (Cu), लोहा (Fe) और पारा (Hg)। समय निकलने के साथ-साथ एनोड का क्षरण होता रहता है और जलपोत के विखण्डन के लिये आने के समय उनमें जितनी धातु बची है यह पूर्व के इतिहास और उनके रख-रखाव पर निर्भर करेगा। इसकी सम्भावना अधिक है कि अधिकतर (साबुत) एनोडों को निकालकर पुनरुपयोग/पुनर्बिक्री के लिये भेज दिया जाएगा। जो एनोड बहुत अधिक क्षरित अवस्था में हों उन्हें खतरनाक कचरे के रूप में निपटाया जाएगा। एनोडों हटाने का काम अपने आप में मनुष्यों या पर्यावरण पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं डालेगा क्योंकि मिश्रधातु ठोस अवस्था में गैरविषाक्त होते हैं।
सीसा (Pb) विषाक्त होता है और यह बैटरियों, पेंट तथा मोटर, जनित्र, नलियाँ, केबल और अन्य वस्तुओं में हो सकता है। मानव स्वास्थ्य पर सीसे के कुप्रभावों की जानकारी काफी समय से अच्छी तरह जानी-पहचानी है। छोटे बच्चों पर सीसे का विषाक्त प्रभाव सर्वाधिक रूप से पड़ता है। लम्बे समय तक थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सीसे के सम्पर्क में आते रहने से पढ़ने-लिखने में स्थायी कुप्रभाव प्रकट हो सकता है तथा बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो सकती है और तंत्रिका विकास और शारीरिक विकास धीमी पड़ सकती है। वयस्कों में सीसे के सम्पर्क से बाह्य तंत्रिका तंत्र प्रभावित होती है जिससे श्रवण, दृष्टि और मांस-पेशियों का समायोजन को क्षति पहुँच सकती है। सीसा रक्त वाहिकाओं, गुर्दे, हृदय और जनन अंगों को भी क्षति पहुँचाता है।
लेड क्रोमेट (जो पेंट के रंजकों में विद्यमान रहता है) मनुष्यों और अन्य जीवों में कैंसर लाता है। वह भ्रूणों को भी नुकसान पहुँचा सकता है और निर्वीर्यता का कारण बन सकता है।
सीसा युक्त बैटरियों और पेंटों के अनुचित निपटारा स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये एक गम्भीर खतरा है।
पारा एक विषाक्त भारी धातु है जो दीर्घकाल तक बना रहता है। वह जैविक प्रक्रियाओं से जमा होता जाता है (बायोएक्युमेलेटिव) और एक प्रदूषक के रूप में वह तंत्रिका प्रणाली को प्रभावित करता है। जलपोतों में पारा तापमापियों, बिजली के स्विचों, रोशनी देने वाले बल्बों और फिटिंगों और द्युतियुक्त बत्तियों (लूमिनिसेंट लैंप) में होता है। यदि गलती से पारा कहीं गिर जाये तो उससे गम्भीर सीमा तक इस विषाक्त पदार्थ का एक्सपोशर हो सकता है। पारे से दूषित मछलियाँ खाना भी पारा एक्सपोशर का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। पारे को खतरनाक कचरे के रूप में निपटाया जाना चाहिए।
4.2.2 तेल और ईंधन
जलपोत में कहाँ होता है
जलपोत की नलियों और टंकियों में आमतौर पर थोड़ा-बहुत तेल, ईंधन, जलमल और अन्य अपशिष्ट तरल विद्यमान रहते हैं। ईंधन तेल जलपोत के हर भाग में समेकित टंकियों में और अलग खड़ी टंकियों में मिल सकता है। स्नेहन के लिये उपयोग किया जाने वाला तेल (लूब्रिकेटिंग ऑयल) कई प्रकार की टंकियों में हो सकता है जो उसके अलग-अलग उपयोग पर निर्भर करेगा। प्रणाली में उपयोग होने वाला तेल आमतौर पर इंजन कक्ष की सम्प टंकियों में रहता है, जबकि सिलिंडर तेल अलग टंकी में रखा हुआ हो सकता है। स्नेहन/प्रणाली तेल ड्रमों में भी रखा हो सकता है। पोत भंजन सुविधाओं में आने वाले टैंकरों में काफी मात्र में अवशिष्ट तेल हो सकता। इसके अलावा सभी टंकियों में कुछ स्तर तक अवसाद युक्त तरल होता है।
खतरे
पेट्रोलियम और गैरपेट्रोलियम उत्पादों दोनों के ही पर्यावरण पर जाने-पहचाने कुप्रभाव होते हैं। तेल और ईंधन समुद्री जीवों पर जहरीला असर डाल सकता है और भौतिक रूप से पर्यावरण को (पक्षी, मछली, पौधे, आदि) दूषित कर सकता है। छलके हुए तेल से भी कुदरती संसाधनों पर संकट छा जाता है।
जलपोत में तेल और ईंधन का हस्तन करने वाले कर्मियों को मुख्य खतरा आग और विस्फोट से रहता है। यह भी ध्यान देना चाहिए कि तेल और ईंधन कुछ प्रकार के विषाक्त खतरें भी पेश करते हैं और यदि उन्हें गलत तरीके से हस्तन किया जाये तो कर्मियों का स्वास्थ्य खतरे में पड़ सकता है। तेल और ईंधन शरीर में श्वसन से और दूषित मछलियाँ खाने या दूषित जल पीने से प्रवेश करते हैं। बहुत अधिक परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद विषाक्त होते हैं और उनसे आग का खतरा भी रहता है।
कचरा हस्तन
तेल और ईंधन जिन्हें पोत से हटाया गया है, उन्हें सुरक्षित टंकियों में रखा जाना चाहिए और जिनमें रिसाव का पता लगाने, अधिक भरे जाने या क्षरण को रोकने की व्यवस्था हो और रिसे हुए तरलों के संग्रह की प्राणाली हो। मानिटरण में लेखा-जोखा रखना भी शामिल है। यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि स्थानीय/राष्ट्रीय विनियमों के अनुसार ज्वलनशील तरलों के उपयोग और भण्डारण के लिये सम्बन्धित प्राधिकरणों को सूचित करना आवश्यक होता है। विनियम अग्नि-सुरक्षा और वित्तीय जिम्मेदारियों पर भी लागू होंगे।
उपयोग किये गए तेल को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है वह अपरिष्कृत तेल या कृत्रिम साधनों से बना परिष्कृत तेल है जिसमें उपयोग के कारण भौतिक या रासायनिक दूषक पदार्थ आ गए हैं। उपयोग किये गए तेल को अन्य कचरे से नहीं मिलाया जाना चाहिए क्योंकि यदि ऐसा किया जाये तो उस सम्पूर्ण कचरे को खतरनाक कचरे के रूप में प्रबन्धित करना होगा। उपयोग किये गए तेलों को अलग टंकियों या पात्रों में रखना चाहिए जिन पर 'उपयोग किया गया तेल” लिखा होना चाहिए। उपयोग किये गए तेल के निपटारे की सबसे अच्छी और पर्यावरण की दृष्टि से उचित विधि पुनश्चक्रण है। उन तेल व तेलीय कचरे को जिन्हें खतरनाक कचरे के रूप में परिभाषित किया गया है क्योंकि वे खतरनाक कचरे की सूची में रखे गए हैं या उनमें खतरनाक कचरे के लक्षण पाये जाते हैं (जैसे जल्दी आग पकड़ना, क्षरण लाने वाले, अभिक्रियाशील (रिएक्टिव) या विषाक्त), खतरनाक कचरे के लिये निर्धारित राष्ट्रीय विनियमों के अनुसार प्रबन्धित करना चाहिए।
जलपोतों के विखण्डन के लिये स्थापित सुविधा को काफी मात्रा में तेलों का हस्तन करना पड़ सकता है। इसके लिये तेल के छिलकने की घटना से निपटने के लिये आपात योजना का होना जरूरी है जिसमें सूचना देने, पुनर्प्राप्त और सामान्यीकरण के लिये निर्देश होने चाहिए। इस योजना को विखण्डन सुविधा के लिये तैयार की गई आपात स्थिति और तैयारी योजना (सीपीपी) में समेकित करना चाहिए (देखें अध्याय 6.2)।
4.2.3 बिल्ज और बलास्ट जल
जलपोत में कहाँ होता है
बिल्ज जल ठहरा हुआ जल है जो सम्भावित रूप से प्रदूषणकारी तरलों से मिला हुआ है और जिसे जहाज के निम्नतम भीतरी भाग में जमा किया गया है (इस भाग को बिल्ज कहा जाता है)। बिल्ज जल जहाज में कहीं भी मिल सकता है और उसका परिमाण विखण्डन के दौरान बढ़ता जाता है क्योंकि वर्षाजल और विखण्डन प्रक्रिया के दौरान शीतलन और परिसीमन के लिये उपयोग किया गया जल उसमें इजाफा करता रहा है।
बलास्ट जल ताजा, नमकीन या खारा पानी होता है जिसे जहाज की स्थिरता बनाए रखने के लिये विभिन्न प्रचालनात्मक स्थितियों के अनुसार जहाज के भीतर लाया जाता है। सुरक्षित प्रचालन के लिये वह क्रान्तिम महत्त्व रखता है और वह कार्गो होल्ड में भारी मात्रा में विद्यमान रहता है क्योंकि पुराने जहाजों में इस स्थान को बलास्ट जल रखने के लिये उपयोग किया जाता है (और पुराने जहाज ही अधिकतर पुनश्चक्रण यार्डों में आते हैं)। अधिक नए पोतों में बलास्ट टंकियों को कार्गो स्थल से अलग-थलग किया गया होता है, लेकिन इनमें भी बुरे मौसम में कार्गो स्थलों में भी बलास्ट रखने की आवश्यकता पड़ सकती है। इसके अलावा खाली पोत को सुरक्षित रूप से चलाकर या खींचकर विखण्डन स्थल तक लाने के लिये उसमें भारी मात्रा में बलास्ट जल भरना आवश्यक है। बलास्ट जल जलपोत के हर भाग में विभिन्न टंकियों में विद्यमान रह सकता है। जलपोतों के बलास्ट जल के प्रबन्धन और नियंत्रण के लिये अन्तरराष्ट्रीय संधि आईएमओ द्वारा विकसित की जा रही है।
खतरे
कई बार बिल्ज जल को तेलीय अपशिष्ट कहा जाता है और वह बुरी तरह से तेल और कार्गों अवशेषों से दूषित होता है। उसमें अन्य प्रदूषणकारी तत्व भी होते हैं (जैसे, अकार्बनिक लवण, और संखिया (आर्सेनिक, तांबा, क्रोमियम, सीसा, पारा आदि धातु)। इसलिये बिल्ज जल काटने का काम करते समय तेल प्रदूषण का कारण बन सकता है।
बलास्ट जल में भी प्रदूषक तत्व हो सकते हैं, जैसे अवशिष्ट तेल, कार्गो होल्ड में रह गई चीजें, जैवनाशक, तेल और चिकनाई (ग्रीस), पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन और धातु (जैसे, लोहा, तांबा, क्रोमियम, निकेल और जिंक)। कार्गो टंकियों में जो बलास्ट जल होता है उसे मलिन बलास्ट जल कहा जाता है।
छिछले तटीय जलों से जलीय जीवों को भारी मात्रा में जल के साथ सात समन्दर पार ले जाने से नेरिटिक समुद्री जीवों के दुनिया भर में फैलने का खतरा रहता है। चूँकि बलास्ट जल खाड़ियों और नदी मुखों से लिये जाते हैं उनमें काफी संख्या में विविध प्रकार के जीव-जन्तु और जलीय पौधे होते हैं। बलास्ट टंकियों के तल में जमा अवसादों में जीवित जीव-जन्तु हो सकते हैं जो जलपोत के व्यापार इतिहास का प्रतिनिधित्व करेंगे।
जब जलपोत विखण्डन के लिये आते हैं, वे सामान्यतः बलास्ट जल से भरे होते हैं। यदि इस बलास्ट जल और अवसाद को तटीय समुद्रों में छोड़ा जाये तो अवांछित जीव-जन्तु भी तटीय समुद्र में घुस जाएँगे जिससे आसपास के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को और जैवविविधता को खतरा पैदा हो सकता है। बलास्ट जल में मानव रोगों के विषाणु और जीवाणु हो सकते हैं, इसलिये उनके कारण महामारियाँ फैल सकती हैं।
बलास्ट जल के माध्यम से आक्रामक जीव-जन्तुओं के फैलने के खतरे को सीमित करने के लिये आईएमो एसेम्बेली रिसोल्यूशन ए 868 (20): के अनुसार जहाज को डी-बलास्ट करना चाहिए: 'हानिकारक और रोगवाहक जलीय जीव-जन्तुओं के स्थानान्तरण को सीमित करने के लिये जलपोतों के बलास्ट जल के नियंत्रण एवं प्रबन्धन के लिये दिशा-निर्देश।” इसके अलावा अन्य विनियम भी लागू हो सकते हैं।
कचरा हस्तन
बिल्ज और बलास्ट जल को तट पर स्थित टंकियों में या वाष्पीकरण गर्तों में (केवल बलास्ट जल) ले जाया जा सकता है या सीधे समुद्र में छोड़ा जाता है। इनमें किस सीमा तक प्रदूषक हो सकते हैं इसके लिये विनियम बने हुए हैं। यह भी ध्यान दिया जाये कि मारपोल संधि के अनुलग्नक 1 में भी बलास्ट जल में तेल के अनुमत स्तरों से सम्बन्धित विनियम हैं।
कभी-कभी अपशिष्ट जल में प्रदूषक तत्वों की मात्रा घटने की आवश्यकता पड़ सकती है, जिसके बाद ही उसे छोड़ा जा सकता है, अन्यथा राष्ट्रीय विनियमों का उल्लंघन हो जाएगा।
4.2.4 पेंट और लेप (कोटिंग)
जलपोत में कहाँ होता है
जलपोत पर कई प्रकार के पेंट और लेप (कोटिंग) उत्पाद विद्यमान रहते हैं। इनका उपयोग बाहरी सतह पर और भीतरी भागों में हुआ होता है और इनके लक्षण ऐसे हो सकते हैं कि विखण्डन के दौरान विशेष सावधानियाँ बरतना आवश्यक हो जाता है। पेटे को उसके जीवनकाल में कई बार लीपा-पोता जाता है ताकि वह जंक लगने से बचा रह सके। रख-रखाव के लिये लगाया गया ताजा पेंट भी जलपोत पर मिल सकता है।
खतरे
पेंट जल्दी जल उठता है और उसमें विषाक्त यौगिक हो सकते हैं (पीसीबी, भारी धातु (जैसे, सीसा, बेरियम, कैडमियम, क्रोमियम, जिंक) और कीटनाशी)। धात्विक यौगिकों से युक्त पेंट का उपयोग जहाज की सतह को क्षरण से बचाने के लिये किया जाता है। ट्राइब्यूटाइल टिन (टीबीटी) और ओरगैनोटिन जैसे पीड़कनाशी दवाएँ अब भी पेटे के गीले भाग में लगाए जाते हैं ताकि फाउलिंग से सुरक्षा मिल सके।
विखण्डन के दौरान पेंट को हटाना तभी आवश्यक है जब उससे जहरीले यौगिकों के निकलने या आग लगने की सम्भावना हो। पेंट लगी सतहों को काटने के पूर्व कर्मीदल को जाँच-पड़ताल करके देख लेना चाहिए कि क्या पेंट आग पकड़ सकता है या विषाक्त वाष्प छोड़ सकता है। विषाक्त या ज्वलनशील पेंटो से लिपे इस्पात को काटने के बाद चिन्हित कर देना चाहिए। ज्वलनशील पेंट या लेप को नियंत्रित रूप से जलाकर हटाया जा सकता है। यदि यह विधि अपनाई जाये तो अग्निशमन की व्यवस्था करनी चाहिए।
जहाँ काटा जा रहा हो उससे 10 सेंटीमीटर की दूरी तक विषाक्त पेंट या लेप को हटा देना चाहिए। यदि हटाना सम्भव न हो, तो काटने का काम करते समय कर्मियों को श्वसन उपकरण जैसे नली द्वारा हवा पहुँचना, मिलना चाहिए। पेंट और लेप हटाने के लिये सामान्यतः तीन विधियाँ अपनाई जाती हैं:
- रासायनिक स्ट्रिपिंग। विलायकों का प्रयोग। ध्यान दें कि विलायक अपने आप में खतरनाक प्रकृति के होते हैं और उनका उपयोग और निपटारा चुनौतीपूर्ण होता है।
- घर्षणयुक्त विस्फोटन। सतह को घर्षणकारी तत्वों से (धातुमल, बजरी या इस्पात की महीन गोलियाँ) विस्फोटित किया जाता है। विस्फोटन में उच्च दाब वाले उपकरणों का उपयोग होता है और यदि उपकरण अच्छी स्थिति में न हो या उसका प्रयोग ठीक तरह से न किया जाये तो दुर्घटना की सम्भावना रहेगी। दाब वाले उपकरणों/औजारों की समय-समय पर जाँच होनी चाहिए। कर्मियों की त्वचा, आँखें और श्रवण इन्द्रिय को चोट लगने की सम्भावना रहती है। यदि घर्षणशील विस्फोटन की सामग्री में खतरनाक लेप लगा हो या वह धातुमल से बना हो जिसमें संखिया, सीसा या कैड्मियम हो, तो वह खतरनाक कचरा है।
- यांत्रिक तरीके से हटाना। पावर औजार या तापीय औजार उपयोग किये जा सकते हैं। यदि पेंट में पीसीबी हो तो तापीय विधि नहीं अपनाई जानी चाहिए।
उपर्युक्त विधियों से उत्सर्जन भी हो सकते हैं जो चिन्ता के विषय हैं। वे कैंसर भी ला सकते हैं। पेंट हटाते समय अपशिष्ट पदार्थ श्वसन मार्ग से शरीर में घुसते हैं। पेंट हटाते समय बहुत सारा खतरनाक कचरा भी बन जाता है।
इस्पात की चादरों के माध्यम से विखण्डन सुविधा अधिकांश पेंट और लेप को पुनर्प्रक्रियण संयंत्रों को निर्यातित करेगा। अतः पेंट और लेप से प्रदूषक तत्वों के उत्सर्जन से जुड़ी चुनौतियाँ पुनर्प्रक्रियण संयंत्र को स्थानान्तरित हो जाती हैं जहाँ उनसे निपटना अधिक सरल होगा। इस्पात की चादरों में लेबल लगाए जाएँ तो पुनर्प्रक्रियण संयंत्र को वायु उत्सर्जनों को नियंत्रित करने के लिये कदम उठाना आसान हो जाएगा।
पीसीबी-युक्त सामग्रियों के स्थानीयकरण और हस्तन के लिये अनुभाग 4.2.6 देखें।
ट्राइब्यूटाइल टिन (टीबीटी) एक ओर्गेनोमेटालिक पदार्थ है जिसका उपयोग ऐंटीफाउंलिंग पेंट बनाने में होता है। वह बहुत ही कम मात्रा में रहने पर भी (एक नैनोग्राम से भी कम प्रति लीटर) विपरीत प्रभाव डाल सकता है, इसलिये उसे जलीय पर्यावरण के सबसे विषाक्त पदार्थों में से एक माना जाता है। इस विश्व के अधिकांश भागों में कड़ाई से नियंत्रित किया जाता है। जब किसी जलपोत को बीच किया जाता है, तो जलपोत का पेटा (हल) तट के सीधे सम्पर्क में आएगा और कुछ ऐंटीफाउलिंग पदार्थ निकलकर जमीन पर लग जाएगा। जब ऐसा बारबार होगा तो तट के अवसादों में इनकी उच्च सान्द्रता बन सकती है। यह ऐंटीफाउलिंग पदार्थ अवसाद में निक्षेपित होता जाएगा या लहरों द्वारा बहाकर ले जाया जाएगा जिससे समुद्री पर्यावरण का प्रदूषण हो जाएगा।
ध्यान दें कि ऐंटीफाउलिंग लेप में टीबीटी के उपयोग पर (पूर्ण) प्रतिबन्ध 2008 तक आ जाएगा (सन्दर्भ आईएमओ का 'हानिकारक ऐंटीफाउलिंग प्रणालियों के नियंत्रण हेतु अन्तरराष्ट्रीय संधि')।
आइसोसाइनेट का उपयोग स्प्रे पेंटिंग और पोलीयूरेथेन की कोटिंग लगाते समय उपयोग होता है और यह गरम काम के दौरान उत्सर्जित हो सकता है। इसके सम्पर्क में आने से श्वसन रोग और दमा हो सकता है। जलपोत विखण्डन के दौरान यह कितनी मात्रा में उत्पन्न होता है, यह ज्ञात नहीं है।
कचरा हस्तन
इन प्रक्रियाओं से निकला कचरा पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकता है। पेंट और लेप हटाने के दौरान जो अवशिष्ट बनते हैं उन्हें खतरनाक कचरा माना जाना चाहिए और तदनुसार उनका निपटारा होना चाहिए। विखण्डन सुविधा की कचरा प्रबन्ध योजना में इसके लिये कार्यविधियाँ निश्चित की जानी चाहिए। योजना में सतह से बहने वाले जल के कारण होने वाले प्रदूषण को न्यूनतम रखने के लिये भी श्रेष्ठ प्रबन्ध विधियाँ पहचानी जानी चाहिए।
कचरा प्रबन्धन योजना हर सुविधा के लिये अलग प्रकार की होगी क्यों प्रत्येक सुविधा आकार, स्थान, जलविज्ञान, जलवायु, पर्यावरणीय स्थिति आदि की दृष्टि से दूसरी सुविधाओं से भिन्न होती है। पेंट हटाते समय बनने वाला कचरे को (विलायक, धातुमल, विलायक-युक्त कपड़े, घर्षणशील अवशेष, पेंट के छीलन) खतरनाक कचरे के रूप में परिभाषित किया गया है क्योंकि वे खतरनाक कचरे की सूची में रखे गए हैं या उनमें खतरनाक कचरे के लक्षण पाये जाते हैं (जैसे जल्दी आग पकड़ना, क्षरण लाना, अभिक्रियाशीलता (रिएक्टिव) या विषाक्तता), इसलिये खतरनाक कचरे के लिये निर्धारित राष्ट्रीय विनियमों के अनुसार उनका प्रबन्धन होना चाहिए।
4.2.5 एसबेस्टोस
जलपोत में कहाँ होता है
एसबेस्टोस युक्त सामग्री (एसीएम) तापीय प्रणाली के ऊष्मारोधन में और सतह बनाने वाली सामग्रियों में हो सकती है। आमतौर पर इंजन कक्ष में अधिकांश एसबेस्टोस होता है। उसके कुछ अन्य अनुप्रयोग भी हैं। सामान्यतः एसीएम दिख जाते हैं लेकिन वे एसबेस्टोस-मुक्त सामग्रियों के नीचे भी हो सकते हैं।
खतरे
एसबेस्टोस कुदरती रूप से मिलने वाला खनिज है और उसके कारण पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचता, फिर भी वह स्वास्थ्य के लिये एक मुख्य खतरा है। जब एसीएम खराब हो जाता है या विचलित किया जाता है, तो एसबेस्टोस बहुत ही महीन रेशों में टूटता है जो हवा में काफी समय तक बने रहते हैं और विखण्डन सुविधा में काम कर रहे कर्मी और आसपास रह रहे लोग उसे साँस के साथ भीतर खींच सकते हैं। सबसे खतरनाक एसबेस्टोस रेशे वे होते हैं जो कोरी आँखों को दिखाई नहीं देते। साँस के साथ फेफडों में पहुँचकर वे वहाँ जमा होते जाते हैं और दीर्घकाल तक बने रहते हैं। अधिक मात्रा में एसबेस्टोस रेशे साँस द्वारा अन्दर खींचने से फेफड़ों का कैंसर, मेसोथेलियोमा (छाती और पेट की परतों का कैंसर) और एसबेस्टोसिस (फेफड़ों में स्थायी दाग बनना जिससे मृत्यु हो सकती है) बीमारियाँ हो सकती हैं। फेफड़ों के कैंसर और मेसोथेलियोमा का खतरा फेफड़े में जमा रेशों की मात्रा के अनुपात में अधिक होता है। इन रोगों के लक्षण एक्सपोशर के बहुत सालों बाद प्रकट होते हैं। एसबेस्टोस से सम्बन्धित रोगों के रोगी अपने काम के दौरान बहुत अधिक मात्रा में एसबेस्टोस के सम्पर्क में आये हैं।
कचरा हस्तन
एसबेस्टोस को बेसेल संधि के अनुलग्नक 8 (सूची अ) में शामिल किया गया है और इसलिये वह एक खतरनाक अपशिष्ट पदार्थ है। इसलिये एसबेस्टोस का पुनरुपयोग या पुनश्चक्रण नहीं किया जाना चाहिए। एसबेस्टोस के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभाव इतने गम्भीर हैं कि अधिकतम सावधानी बरतना आवश्यक है। इसमें शामिल है जलपोत से एसबेस्टोस निकालते समय कर्मियों की सुरक्षा की ओर ध्यान देना, एसबेस्टोस के निपटारे को सुरक्षित करना और निकाले गए एसबेस्टोस को दुबारा बाजार में बेचे जाने को रोकना। यदि राष्ट्रीय आवश्यकताएँ इनकी ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देतीं, तो विखण्डन सुविधा को यह सिफारिश दी जाती है कि वह अपनी कचरा प्रबन्धन योजना में एसबेस्टोस निपटारा योजना को स्थान दे। इसमें जलपोत की सामान सूची योजना के लिये आवश्यकताएँ निश्चित करना ताकि एसबेस्टोस को स्थानीयकृत किया जा सके, तथा निकाले जाने के पहले ही पता लग सके कि उसकी मात्रा कितनी है और वह कहाँ-कहाँ है। इसके साथ ही योजना में हटाने का काम करने वाले कर्मियों के लिये पीपीई की पहचान की जानी चाहिए और हटाने और निपटारे की कार्यविधियाँ भी निश्चित की जानी चाहिए। किसी सीमा तक एक्सपोशर अनुमत यह स्थानीय विनियमों पर निर्भर करेगा। एसबेस्टोस के हस्तन को अभिलेख रखकर और नमूने लेकर मानिटर करना चाहिए। विखण्डन सुविधा को सलाह दी जाती है कि वह एसबेस्टोस को बाजार में दुबारा बेचने से परहेज करे। यह आवश्यक है कि एसबेस्टोस को हटाने के पहले और हटाते वक्त उसे नम रखा जाये, ताकि उसके रेशे हवा में न उड़ें। एसबेस्टोस हटाने का काम हमेशा दो लोगों को मिलकर करना चाहिए: एक व्यक्ति सुनिश्चित करेगा कि हटाने के पहले एसबेस्टोस नम है और दूसरा हटाने का काम करेगा।
मानिटरन में वायु-निरीक्षण गतिविधियाँ भी शामिल होनी चाहिए जिन्हें उन स्थलों पर किया जाना चाहिए जहाँ एसबेस्टोस का हस्तन हो रहा है। लेखा-जोखा रखने के काम में माप-तौल लेने का काम शामिल होना चाहिए ताकि एसबेस्टोस के प्रति कर्मियों के एक्सपोशर को मानिटर किया जा सके। एसबेस्टोस को हटाने का काम उन्हीं कर्मियों द्वारा किया जाना चाहिए जिन्हें इस तरह का काम करने का विशेष प्रशिक्षण मिला है। जहाँ एकाधिक जलपोत-विखण्डन यार्ड नजदीक-नजदीक हों, ये प्रशिक्षित कर्मी बारी-बारी से इन सब यार्डों में एसबेस्टोस-सम्बन्धी काम निपटा सकते हैं। एसबेस्टोस हटाने और उसका निपटारा करने में संलग्न कर्मियों को उचित श्वसन यंत्र और रक्षी कपड़ों, जैसे ओवरऑल, सिर ढँकने वाले वस्त्र, दस्ताने, चेहरा ढँकने वाले शील्ड या गोगल्स और पैरों पर जूते का उपयोग करना चाहिए। विखण्डन सुविधा को कर्मियों को स्वच्छतापूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए, जैसे डीकोंटैमिनेशन क्षेत्र (उपकरण कक्ष, स्नानगृह और साफ-सुथरे कमरे) और भोजन कक्ष।
यदि जलपोत पर विद्यमान वस्तुओं की सूची जिसमें एसबेस्टोस के बारे में जानकारी हो, उपलब्ध न हो, तो जलपोत का सर्वेक्षण कराकर एसबेस्टोस की उपस्थिति का पता लगा लेना चाहिए। इस सर्वेक्षण में एसीएम कहाँ हैं, किस तरह के हैं और कितनी मात्रा में हैं (स्थान, पहचान, मात्रा) इन सब बातों का पता लगाना चाहिए। एसबेस्टोस का पता लगाने के लिये नमूने एकत्र करने के स्थान पर सभी संदिग्ध वस्तु के सम्बन्ध में यह मान लेना चाहिए कि वह एसीएम है।
जलपोत में जितने भी एसीएम हों उन सबको हटाने के बाद ही ऐसी गतिविधियाँ शुरू की जानी चाहिए जो इनको विचलित कर सकता हो।
एसबेस्टोस को निष्कर्षण स्थल से निपटारे के स्थल तक ले जाने के लिये लेबल लगे हुए और ढक्कन वाले रिसाव-रोधी पात्रों की आवश्यकता होगी। आमतौर पर एसबेस्टोस को लैंडफिल में जमीन में गाढ़कर निपटाया जाता है।
4.2.6 पीसीबी
जलपोत में कहाँ होता है
पीसीबी तरल और ठोस अवस्था में उपकरणों और सामग्रियों में पूरे जलपोत में मिल सकती है। चूँकि पीसीबी के नमूने लेना और उनका निर्धारण करना कठिन प्रक्रिया है, एक ग्रे सूची तैयार की गई है जिसमें उन सभी सामग्रियों और उपकरणों को रखा गया है जिनमें पीसीबी होने की सम्भावना है।
सम्भावित पीसीबी-युक्त सामग्रियों की ग्रे सूची | |
- केबल इन्सुलेशन | - तेल, जो निम्नलिखित में भी हो सकता है |
- रबड़ और फेल्ट गास्केट | बिजली के उपकरण और मोटर, लंगर |
- तापीय ऊष्मारोधन सामान | घिरनी और हाइड्रोलिक प्रणालियाँ |
जिसमें फाइबरग्लास, फेल्ट, फोम और कोर्क भी शामिल हैं | - मशीनरी और अन्य ठोस सतह का सतही सन्दूषण |
- ट्रानसफोर्मर, केपैसिटर (जिसमें इलेक्ट्रोनिक उपकरणों में स्थित ट्रान्सफोर्मर, केपैसिटर भी शामिल हैं।) | - तेल-आधारित पेंट |
- वोल्टेज नियंत्रक, स्विच, | - कॉल्किंग |
रीक्लोसर, बुशिंग और | - रबड़ आइसोलेशन माउंट |
इलेक्टोरमैगनेट | - फाउंडेशन माउंट |
- एधेसिव और टेप | - पाइप हैंगर |
- प्लास्टिसाइसर | - लाइट बलास्ट |
खतरे
पीसीबी विषाक्त पदार्थ होते हैं और वे परिवेश में लम्बे समय के लिये बने रहते हैं और यह जानी-मानी बात है कि उनके कारण स्वास्थ्य पर अनेक प्रकार के विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। कैंसर लाने वाले अधिकांश पीसीबी जैविक प्रक्रियाओं से शरीर में जमा होते जाने की प्रवृत्ति दर्शाते हैं। पीसीबी शरीर में साँस के जरिए, मुँह के जरिए या त्वचा के माध्यम से प्रवेश करती है। पीसीबी को गरम करने पर उत्पन्न होने वाले रसायन (पोलीक्लोरिनेटेड डाइबेनजोफुरान और पोलीक्लोरिनेटेड डाइबेन्जो-पी-डाइओक्सिन) विशेष चिन्ता के विषय हैं क्योंकि वे पीसीबी से भी अधिक विषाक्तता रखते हैं।
कचरा हस्तन
पीसीबी या पीसीबी-युक्त सामग्रियों को हटाने या उसका निपटारा करने वाले कर्मियों को निजी रक्षी कपड़े या श्वसन या त्वचा के माध्यम से एक्सपोशर से रक्षा प्रदान करने वाले उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए। पीसीबी-युक्त सामग्रियों को हटाने और उनके निपटारे का काम उन्हीं कर्मियों द्वारा किया जाना चाहिए जिन्हें इस तरह का काम करने का विशेष प्रशिक्षण मिला है। जहाँ एकाधिक जलपोत-विखण्डन यार्ड नजदीक-नजदीक हों, ये प्रशिक्षित कर्मी बारी-बारी से इन सब यार्डों में पीसीबी-सम्बन्धी काम निपटा सकते हैं।
यूएसए में नए विनियम बन जाने के फलस्वरूप पीसीबी का उत्पादन 1979 में बन्द कर दिया गया। यूरोप में अधिकांश देशों ने पीसीबी बनाना 1980 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में (1978-1980) निषिद्ध कर दिया और पीसीबी के उपयोग को बन्द करने के विनियम बना दिये गए हैं। विश्वव्यापी स्तर पर पीसीबी के उपयोग को बन्द करने का अभियान जारी है। पीसीबी का अन्तरराष्ट्रीय व्यापार रोटरडैम संधि और स्टोकहोम संधि द्वारा विनियमित होता है।
बेसेल संधि ने जिस कचरे में पीसीबी 50 मिलीग्राम/किलो या उससे अधिक मात्रा में हो, उसे खतरनाक कचरा माना है। एहतियात के तौर पर यह उचित रहेगा कि सभी ज्ञात और सम्भावित पीसीबी और पीसीबी-युक्त सामग्रियों को हटाया जाये, या नमूने लेकर इनका रासायनिक विश्लेषण कराया जाये और यदि पीसीबी का स्तर निर्धारित स्तर से अधिक हो, तो इन सब सामग्रियों को स्टोकहोम संधि की धारा 6 में निर्धारित कसौटियों के अनुसार निपटाया जाये।
स्टोकहोम संधि की धारा 6 में यह बात कही गई है:
ढेर लगाए गए सामानों और कचरों से उत्सर्जनों को रोकने के उपाय
1. यह सुनिश्चित करने के लिये कि उन ढेरियों को जिनमें अनुलग्नक अ या अनुलग्नक आ में शामिल किये गए रसायनों और कचरों का अस्तित्व हो सकता है, जिनमें वे उत्पाद और वस्तु भी शामिल हैं जो अपशिष्ट पदार्थ बनने पर अनुलग्नक अ, आ और इ में शामिल किये गए रसायनों से युक्त हो सकते हैं, उन सब प्रकार की ढेरियों को इस तरह प्रबन्धित किया जाये ताकि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा हो, प्रत्यक्ष पक्ष निम्नलिखित कार्य करेगा:
(अ) निम्नलिखित की पहचान करने के लिये उचित रणनीतियाँ विकसित करेगा:
(1) ऐसी ढेरियाँ जिनमें अनुलग्नक अ या अनुलग्न आ में शामिल रसायन हों; और
(2) उपयोग किये जा रहे ऐसे उत्पाद और वस्तु तथा अपशिष्ट पदार्थ जिनमें अनुलग्नक अ, आ और इ में शामिल रसायन या तो हैं या इनसे दूषित हैं;
(आ) उपपैरा (अ) में उल्लिखित रणनीति का उपयोग करके जहाँ तक सम्भव हो उस हद तक ऐसी ढेरियों को पहचाने जिनमें अनुलग्नक अ या अनुलग्नक आ में शामिल रसायन हैं या उनसे दूषित हैं;
(इ) ढेरियों को, जैसा उचित हो, किसी सुरक्षित, कार्यक्षम और पर्यावरण की दृष्टि से उचित रूप से प्रबन्धित करना। अनुलग्नक अ या अनुलग्नक आ में शामिल रसायनों की ढेरियों को, जब उन्हें अनुलग्नक अ के किसी अपवाद के तहत उपयोग नहीं किया जा सकता हो, या अनुलग्नक आ के किसी अपवाद के तहत उपयोग नहीं किया जा सकता हो, उन ढेरियों को छोड़कर जिन्हें धारा 3 के पैरा 2 के तहत निर्यातित किया जा सकता है, कचरा माना जाएगा और उनका प्रबन्ध उपपैरा (ई) के अनुसार किया जाएगा;
(ई) ऐसे उचित उपाय किये जाएँ ताकि इस तरह के कचरे, जिनमें वे उत्पाद और वस्तुएँ भी शामिल हैं जो कचरा बन गए हैं, का:
(1) पर्यावरण की दृष्टि से उचित रूप से हस्तन, संग्रह, परिवहन और भण्डारण किया जाये;
(2) निपटारा इस तरह से किया जाये कि उनमें विद्यमान परसिस्टेंट ऑर्गेनिक प्रदूषक अंश नष्ट हो जाये या अनपलट रूप से परिवर्तित हो जाये ताकि वह परसिस्टेंट ऑर्गेनिक प्रदूषकों के लक्षण नहीं दर्शाए या यदि इस तरह उसे नष्ट करना या अनपलट रूप से परिवर्तित करना पर्यावरणीय दृष्टि से उचित न हो या इनमें परसिस्टेंट ऑर्गेनिक प्रदूषकों का अंश बहुत ही थोड़ा हो, तो इन्हें अन्य रीति से निपटाए जाये और ऐसा करते हुए अन्तरराष्ट्रीय नियमों, मानकों और दिशा-निर्देशों का ध्यान रखा जाये, जिनमें वे भी शामिल हैं जिन्हें पैर 2 के तहत विकसित किया गया है और खतरनाक कचरे के प्रबन्धन की संगत विश्वव्यापी और क्षेत्रीय व्यवस्थाओं को भी ध्यान में रखा जाये।
(3) इस तरह निपटारे की अनुमति न जाये जिससे परसिस्टेंट ऑर्गेनिक प्रदूषकों की पुनर्प्राप्ति, पुनश्चक्रण, सीधा उपयोग या वैकलिपक उपयोग सम्भव हो सके; और
(4) बिना अन्तरराष्ट्रीय नियमों, मानकों और दिशा-निर्देशों को ध्यान में लिये बगैर अन्तरराष्ट्रीय सीमाओं के पार परिवहन न किया जाये;
(उ) अनुलग्न अ, आ या इ में उल्लिखित रसायनों द्वारा दूषित स्थलों की पहचान करने के लिये उचित रणनीतियाँ विकसित करने का प्रयास करे; यदि इस स्थलों को सुधारने का काम हाथ में लिया जाये तो इसे पर्यावरण की दृष्टि से उचित रूप से किया जाये।
2. पक्षों की सभा (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज) खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के सीमापार स्थानान्तरण और निपटारे को नियंत्रित करने वाली बेसेल संधि के उचित निकायों के साथ निकट रूप से सहयोग करते हुए, अन्य बातों के साथ निम्नलिखित को भी अंजाम देगी:
(a) नष्ट करने या अनपलट परिवर्तन के आवश्यक स्तर निर्धारित करना जो यह सुनिश्चित करने के लिये जरूरी हैं कि अनुलग्नक ई के पैरा 1 में उल्लिखित परसिस्टेंट ऑर्गेनिक प्रदूषकों के लक्षण प्रकट न हो;
(b) यह पता लगाना कि उनकी दृष्टि में ऊपर उल्लिखित पर्यावरणीय दृष्टि से उचित निपटारे से उनका तात्पर्य क्या है; और
(c) अनुलग्नक अ, आ और ई में उल्लिखित रसायनों के सान्द्रता स्तर निर्धारित करने की दिशा में सहयोग करना ताकि पैरा 1(ई)(2) में उल्लिखित निम्न परसिस्टेंट ऑर्गेनिक प्रदूषक अंश को परिभाषित किया जा सके।
पीसीबी या पीसीबी-युक्त सामानों को उचित पात्रों में रखकर इन पात्रों को ढँकना चाहिए और उन पर लेबल चिपकाना चाहिए। पीसीब-युक्त कचरे के अस्थायी भण्डराण स्थलों की फर्श पर ऐसा आवरण होना चाहिए जो पसीबी के पारगमन को रोक सकता हो और जो छलकने की स्थिति में पर्याप्त परिसीमन के लिये अवकाश देता हो, तथा छत और दीवारें इस तरह होनी चाहिए कि वे वर्षाजल के कचरे तक पहुँचने न दें और उनमें फर्श पर अन्यत्र कोई नालियाँ नहीं होनी चाहिए जिनके जरिए तरल पदार्थ बाहर निकल सकें। निपटारे की आवश्यकता स्रोत और सान्द्रता के प्रकारानुसार अलग-अलग हो सकती है।
4.2.7 अन्य अपशिष्ट पदार्थ
विकिरण स्रोत। जलपोत में रेडियोधर्मी सामग्री तरल स्तर सूचकों, धुएँ का पता लगाने वाले उपकरणों और आपात सूचना-पट्टिकाओं में हो सकती है। इन स्रोतों से निम्न स्तर का रेडियोधर्मी खतरा उत्पन्न होगा, लेकिन इस तरह के कचरे के निपटारे को सख्ती से नियंत्रित किया जाता है। आयनीकृत करने वाला विकिरण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये खतरनाक है और गम्भीर प्रकार के कैंसर ला सकता है और/या आनुवंशिक सामग्री को नुकसान पहुँचा सकता है जो भावी पीढ़ियों को जोखिम में डाल देगा। रेडियोधर्मी कचरे के उत्सर्जन से जनसमुदाय को विकिरण की चपेट में ले सकता है और इसलिये उससे बचना चाहिए।
ईमारती लकड़ी फर्नीचर, दीवारें और लकड़ी के भागों में मिल सकती है और उनमें परिरक्षी रसायन (प्रिसरवेटिव) या पेंट हो सकता है जो पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं। इमारती लकड़ी को राष्ट्रीय विनियमनों के अनुसार उपचारित करना चाहिए और यह काम अनुमोदित कचरा कम्पनियों को करना चाहिए।
पोलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) का उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादों औ र अनुप्रयोगों में होता है और वह सामान्यतः केबलों, फर्श के आवरणों और अलग-अलग प्रकार की प्लास्टिक की युक्तियों में विद्यमान रहता है। पीवीसी उत्पादों में 50 प्रतिशत से अधिक क्लोरीन हो सकता है और उनमें पर्यावरण के लिये खतरनाक अन्य पदार्थ हो सकते हैं। जब पीवीसी को जलाया जाता है, तो ऑक्सीजन की उपलब्धि और अग्नि की विशेषताओं के अनुसार जटिल प्रकार के वाष्प और गैस निकलते हैं। इनमें कार्बन मोनोक्साइड और डाइओक्सिन भी शामिल हैं। सच तो यह है कि खुले में जलाने से विषाक्त गैसें बनती हैं और इसलिये इसे निषिद्ध किया जाना चाहिए। इसके अलावा पीवीसी इसलिये भी चिन्ता का विषय है क्योंकि उसमें क्लोरीन होता है। पीवीसी को जलाने पर भारी मात्रा में हाइड्रोजन क्लोराइड गैस उत्पन्न होती है। फेफड़े में पहुँचकर यह गैस जल में मिलकर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में बदल जाती है।
बैटरियों में सीसा, कैडमियम और निकल जैसी भारी धातुएँ होती हैं। लेड-एसिड बैटरियों में गन्धक का अम्ल होता है जो क्षरण और गम्भीर जलन का कारण बन सकता है। बैटरियाँ टॉर्चों में, मोबाइल रेडियो में और बिजली के उपकरणों में हो सकती हैं, लेकिन सबसे अधिक मात्रा में बैटरियाँ (लेड-एसिड बैटरियाँ) रेडियो एप्लिकेशनों, इंटरकोम, अग्नि अलार्म, इमरजेंसी स्टार्ट उपकरण और लाइफबोटों में मिलती हैं। ठीक-ठाक अवस्था में मिली बैटरियों को भण्डारित किया जाता है और पुनरुपयोग के लिये बेचा जाता है। सीसा काफी मूल्यवान वस्तु है और केवल इस कारण से बैटरियाँ पुनश्चक्रित होती हैं चाहे वे जिस भी अवस्था में हों। यदि बैटरियाँ क्षतिग्रस्त नहीं हुई हैं, तो उनका पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। किन्तु यदि उनका भण्डारण और निपटारा ठीक तरह से नहीं किया गया तो वे मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचा सकती हैं।
फ्रेयोन क्लोरोफ्लोरोकार्बनों (सीएफसी) के लिये डू पोंट का व्यापारनाम (ट्रेड नेम)। ये क्लोरीन, फ्लोरीन और कार्बन से बने यौगिक होते हैं। सीएफसी विष रहित, गैर-ज्वलनशील यौगिक होते हैं जो क्षोभमण्डल में स्थिर रहते हैं, लेकिन समतापमण्डल में पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से विघटित होकर ओजोन परत को नुकसान पहुँचा सकते हैं। सीएफसी का उपयोग शीतलक, विलायक और फोम फूँकने के लिये होता है। माना जाता है कि विश्व भर में उत्सर्जित सीएफसी का 10 प्रतिशत जलपोतों में विद्यमान सीएफसी होती है। अमेरिका, कनाडा और स्कैंडिनेवियन देशों ने 1970 के अन्तिम वर्षों में एयरोसोल-स्प्रे कनस्तरों में सीएफसी भरने की प्रथा को गैरकानूनी करा दिया। वर्ष 1987 में 27 देशों ने मोंड्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये जो ओजोन को नुकसान करने वाले पदार्थों को कम करने के लिये एक अन्तरराष्ट्रीय संधि है। इसके कई संशोधन हो चुके हैं और इनके कारण अगले कुछ दशकों में सीएफसी, कुछ प्रकार के क्लोरीन-युक्त विलायक और हैलोन (आग बुझाने के लिये उपयोग किये जाने वाले रसायन) का निर्माण और उपयोग बन्द हो जाएगा। इन उत्पादों और उनके उपयोग से सम्बन्धित प्रतिबन्धों का जिक्र मारपोल (अनुलग्न 6) में भी हुआ है।
अन्य रसायन
विशेष हस्तन की माँग करने वाले अन्य रसायनों/पदार्थों/घटकों में शामिल हैं:
1. ऐंटीफ्रीस तरल
2. विलायक/थिनर
3. बैटरी इलेक्ट्रोलाइट
4. इवैपोरेटर डोसिंग और डी-स्केलिंग अम्ल
5. क्षरण मन्दक
6. सम्पीड़ित गैसें (एसिटेलीन, प्रोपेन और ब्यूटेन)
7. मारपोल में उल्लिखित प्लास्टिक
8. बोयलर/जल उपचारण रसायन
9. मिट्टी का तेल/वाइट स्पिरिट
10. एंटीफ्रीस यौगिक
11. इंजन एडिटिव
12. अग्नि मन्दक
13. विभिन्न प्रकार के रसायन, जैसे एल्कोहोल, मिथिलेटेड स्पिरिट, एपोक्सी रेसिन, आदि।
उपर्युक्त रसायन/पदार्थ/घटक पर्यावरण पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं। बाजार में इनकी माँग रहती है और इसलिये इन्हें बेचा जाता है। इन मार्गदर्शक सिद्धान्तों में इनकी विशेषताओं पर आगे चर्चा नहीं की गई है।
4.3 मानिटरण
जहाँ सुपरिभाषित उत्सर्जन विनियम लागू किये जाते हों, कार्यक्षम मानिटरण के लिये इन विनियमों के अनुपालक की पुष्टि करना मात्र पर्याप्त है। जहाँ इस तरह के विनियम न हों, वहाँ मानिटरण के लिये उचित रणनीति इस विभाग में और अध्याय 4.4 में वर्णित सिफारिशों को अपनाया जा सकता है।
उत्सर्जन
जलपोत विखण्डन के दौरान जो उत्सर्जन होंगे उन्हें चार प्रमुख वर्गों में बाँटा जा सकता है:
1. जमीन और अवसाद का उत्सर्जन
2. जल का उत्सर्जन
3. हवा का उत्सर्जन
4. शोर/कम्पन
प्रत्येक वर्ग के सामान्यतम उत्सर्जनों का ब्यौरा नीचे दिया गया है। इन उत्सर्जनों के स्रोतों के बारे में जानकारी तालिका 3 में दी गई है।
- जमीन और जल का उत्सर्जन:
ईंधन तेल; स्नेहन तेल; हाइड्रोलिट तरल; दूषित जल; कार्गो अवशेष; धातुमल; पीसीबी युक्त सामग्री; भारी धातुएँ; हानिकारक जलीय तत्व; पेंट और लेप जिनमें विषाक्त यौगिक, विकिरण स्रोत और एसबेस्टोस-युक्त पदार्थ हों
- हवा का उत्सर्जन:
एसबेस्टोस-युक्त पदार्थ, पीसीबी-युक्त पदार्थ (पीसीबी को गरम करने पर डाइऑक्सिन निकलते हैं); वाष्पशील ऑर्गेनिक यौगिक (वीओसी); कणीकीय सामग्री (जिनमें अन्य पदार्थों के साथ काटने के दौरान प्रकट हुआ सीसा या अन्य धातुएँ हो सकती हैं), विषाक्त वाष्प
इन उत्सर्जनों का प्रमाण निश्चित करना कठिन है क्योंकि वे कई प्रकार के कारकों पर निर्भर करते हैं। लेकिन इनको तुलनात्मक रूप से परिमाणित करने की कोशिश की गई है। इन पदार्थों का क्रमांकन उत्सर्जित परिमाण के आधार पर की गई है और यह उनके कारण होने वाले जोखिमों का क्रमांकन नहीं है:
1. धातु के महीन टुकड़े
2. तेल और ईंधन
3. बिल्ज और बलास्ट जल
4. पेंट और लेप (कोटिंग)
5. पीसीबी
इर्द-गिर्द का परिवेश
इर्द-गिर्द स्थित जमीन/भूजल, समुद्री जल/अवसाद और हवा के मानिटरण के लिये और शोर/कम्पन जो भी पर्यावरण को प्रभावित कर सकता है, के मानिटरण के लिये मानिटरण कार्यक्रम स्थापित करना चाहिए। मानिटरण कार्यक्रम का उद्देश्य होगा जलपोत विखण्डन सुविधा के इर्द-गिर्द के परिवेश की स्थिति का पता लगाना।
मानिटरण कार्यक्रम के फलस्वरूप सम्बन्धित स्थल के इर्द-गिर्द के पर्यावरण में आये रासायनिक, जैविक और भौतिक परिवर्तन स्पष्ट होने चाहिए। ये परिवर्तन कुदरती घटनाओं/परिवर्तनों के परिणाम भी हो सकते हैं, लेकिन अधिकतर वे मानव क्रियाकलापों के परिणाम होते हैं।
पर्यावरण में आये परिवर्तनों को स्पष्ट करने के लिये यह आवश्यक होगा कि सम्बन्धित स्थल को विचलित करने के पूर्व एक पृष्ठभूमीय अध्ययन किया जाये। यदि जलपोत विखण्डन सुविधा पहले से ही विद्यमान हो और उस स्थल के बारे में पूर्वस्थिति के आँकड़े प्राप्त करना सम्भव न हो, तो अन्य अविचलित स्थलों के आँकड़ों को तुलना हेतु उपयोग करना चाहिए। एक अच्छा तुलनात्मक स्थल प्रदूषण स्रोतों से जितना दूर हो उतना दूर स्थित होगा और उसका भौगोलिक और जलवायवीय स्थितियों का तुलना किये जाये तो स्थल के जैसी ही होगी।
मानिटरण स्टेशन का चुनाव, नमूने लेने की बारम्बारता और मानिटर किये जाने वाले प्राचलों का चयन ये सब स्थल-विशिष्ट होंगे और उस स्थल की हाइड्रोलॉजी और जलवायवीय विशिष्टिताओं पर निर्भर होंगे। नमूने लेने की विधि को इष्टतम बनाने के लिये समय-समय पर मानिटरण कार्यक्रम में छोटे-मोटे परिवर्तन करना जरूरी हो सकता है। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि उस स्थल में स्थित अन्य प्रदूषक उद्योगों और गतिविधियों के प्रभावों की भी समीक्षा की जाये क्योंकि ये भी मानिटरण स्टेशनों में प्रदूषण स्तर को प्रभावित कर सकते हैं।
सम्बन्धित प्राचलों के लिये नमूने लेने और उनके विश्लेषण के लिये प्राधिकृत मानक (या कम-से-कम राष्ट्रीय मानक) होने चाहिए। मानक जिस चीज के नमूने लिये जा रहे हों उसके लिये विशिष्ट होते हैं (जैसे मृदा, अवसाद, जल या हवा) और उनमें विस्तृत कार्यविधियों का उल्लेख रहता है, जैसे नमूने लेने की विधि, नमूने लेने के उपकरण, उपकरणों का अंकन (कैलिबेरेशन), रासायनिक विश्लेषण और खोज स्तर। अन्य पदार्थों के विश्लेषण के लिये भी मानक और आव्यूह (मैट्रेसीस) हैं। नमूने लेने और उनका विश्लेषण करने की विधियों का ठीक तरह से पालन होना चाहिए अन्यथा प्राप्त परिणाम परस्पर तुलनीय नहीं रहेंगे। इसी कारण से रासायनिक विश्लेषणों के लिये प्राधिकृत प्रयोगशालाओं का ही उपयोग होना चाहिए।
सभी मानिटरण कार्यक्रम स्थल विशिष्ट होने चाहिए। लेकिन ऐसे कुछ तत्व जिनका समावेश सभी मानिटरण कार्यक्रमों में होना चाहिए। आगे के अनुभागों में इस तरह के मानिटरण कार्यक्रमों की सामान्य विषयवस्तु को स्पष्ट किया गया है।
अवसाद/मृदा
अवसाद (पानी के नीचे स्थित मृदा) और मृदा के लिये मानिटरण कार्यक्रम में शामिल होने चाहिए नमूने निकालने के स्थलों की पहचान; नमूने निकालने की गहराई; नमूने निकालने की विधि; चुने गए प्रावचल; नमूनों के संग्रह और विश्लेषण की विधियाँ और नमूने निकालने और रिपोर्ट भेजने की बारम्बारता।
अवसाद और मृदा के नमूने विशेष कोरर का उपयोग करके लिये जाते हैं और कोर को बाद में टुकड़ों में बाँटा जाता है। अवसादों के लिये इससे पता चलता है कि स्थायी तत्वों या उन तत्वों के लिये जिनकी क्षरण दर ज्ञात हो, इस क्षेत्र में पहले का भार क्या था, तथा मृदा नमूनों से यह पता चलता है कि प्रदूषक तत्व कितने फैल चुके हैं। समुद्री अवसाद का कालक्रम निश्चित करने के लिये सीसे (Pb210) का अक्सर उपयोग होता है क्योंकि उसकी क्षरण दर ज्ञात है।
जलपोत विखण्डन स्थलों से जो घटक आमतौर पर मृदा और/या अवसाद में छोड़े जाते हैं उनमें शामिल हैं हाइड्रोकार्बन, भारी धातुएँ, पीसीबी, जैवनाशक (उदाहरण, टीबीटी) और कार्गो अवशेष। मानिटरण योजना में इन सबको शामिल करना चाहिए। स्थल-विशिष्ट जरूरतों के अनुरूप समायोजन आवश्यक होगा।
अवसादों के नमूने लेते समय यह जरूरी है कि साथ-साथ भौतिक लक्षणों (जैसे हवा का वेग और दिशा, जलधारा, लहरों की क्रियाएँ, इत्यादि) को भी अभिलिखित किया जाये, क्यों ये परखे गए पदार्थों की सान्द्रता को प्रभावित कर सकते हैं। मृदा के अन्वेषणों में स्थानीय भूविज्ञान और हाइड्रोलॉजी का ज्ञान आवश्यक है।
नियमित रासायनिक अन्वेषण के अलावा, समुद्री अवसाद में विद्यमान जैव समुदायों का उपयोग भी प्रदूषण सूचकों के रूप में किया जाता है, क्योंकि ये लम्बे समय तक स्थिर रहते हैं। कोई एक या एक से अधिक जातियों का प्रदूषक तत्वों (जीव-जन्तु जैविक प्रक्रियाओं से खतरनाक यौगिकों को अपने शरीर में जमा करते जाते हैं) के लिये अन्वेषण किया जाता है जिससे भोज्य पदार्थों की गुणवत्ता का आकलन हो सकता है (जमीन पर यह फसलों की गुणवत्ता के अन्वेषण से किया जाता है)।
जल/समुद्र जल
जल के लिये मानिटरण कार्यक्रम में शामिल होने चाहिए नमूने निकालने के स्थलों की पहचान; नमूने निकालने की गहराई; नमूने निकालने की विधि; चुने गए प्रावचल; नमूनों के संग्रह और विश्लेषण की विधियाँ; और नमूने निकालने और रिपोर्ट भेजने की बारम्बारता।
विश्लेषण के लिये सुझाए गए प्राचल हैं: हाइड्रोकार्बन, भारी धातुएँ, पीसीबी, जैवनाशक (उदाहरण टीबीटी) और कार्गो अवशेष। पीएच और तापमान को भी मानिटर करना चाहिए। ये प्राचल जलाशय में विद्यमान रासायनिक यौगिकों की अवस्था को प्रभावित करते हैं।
झील, नदी या समुद्र से निश्चित गहराई से जल संग्रह उपकरण (उपकरण का प्रकार नमूने लेने की विधि पर निर्भर करेगा) की मदद से नमूने लिये जाते हैं।
यदि स्थल के निकट पहले से ही कुएँ न हों, तो भूजल के अन्वेषण के लिये कुएँ खोदने की आवश्यकता पड़ सकती है।
जल के अन्वेषण से प्राप्त परिणामों की व्याख्या करते समय स्थानीय हाइड्रोलॉजी (मीठे जल के अन्वेषणओं के लिये) हाइग्रोग्राफी (समुद्री जल के लिये), जैसे धाराएँ, तापमान/लवणीयता प्रोफाइल और ज्वार-भाटे की विशेषताएँ, का कुछ ज्ञान उपयोगी है।
हवा
हवा की गुणवत्ता के मानिटरण के लिये जो कार्यक्रम बनाया जाये उसमें शामिल होने चाहिए मानिटरण स्टेशन, प्राचल, प्रत्येक प्राचल के लिये ननूने लेने की विधि, विश्लेषण विधि और रिपोर्टिंग।
मानिटरण स्टेशन जलपोत विखण्डन स्थल के निकटतम मानव बस्ती में होना चाहिए, या अधिक अच्छा यह रहेगा कि उसे जलपोत विखण्डन स्थल से हवा के बहने की दिशा में निकटतम मानव बस्ती में रखा जाये। शुरू में निम्नलिखित प्राचलों को मानिटर करना चाहिए: वाष्पशील ऑर्गेनिक यौगिक (वीओसी), कणिकीय सामग्री, धातु (कणिकीय और गैसीय रूपों में), एसबेस्टोस के रेशे, पीसीबी और डाइऑक्सिन। लेकिन इसे बाद में पहले के मापनों और स्थानीय हवा के सामान्य मूल्यांकन के आधार पर परिवर्ती किया जा सकता है।
नमूने लेते समय वर्तमान जलवायवीय स्थितियों का उल्लेख करना बहुत जरूरी है क्योंकि ये वायु की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। इसलिये जलवायु का मानिटरण करने के लिये एक स्टेशन स्थापित करना चाहिए, यदि ऐसा स्टेशन निकट में हवा के बहने के दिशा में और वही निक्षेपण भार वाले इलाके में कहीं न हो।
शोर/कम्पन
विखण्डन से जुड़े विभिन्न प्रकार के चालू कामों से शोर और कम्पन पैदा होंगे।
शोर और कम्पन के लिये मानिटरण कार्यक्रम में शामिल होने चाहिए, मानिटरण स्टेशनों का स्थान, मापन की विस्तृत कार्यविधियाँ, मापन लेने और रिपोर्ट करने की बारम्बारता।
शोर और कम्पन के मानिटरण के लिये स्थापित स्टेशन को जलपोत विखण्डन सुविधा के निकटतम मानव बस्ती में रखना चाहिए।
जलवायवीय स्थितियों को भी रिकॉर्ड करना चाहिए क्योंकि ये शोर के फैलने को प्रभावित करती हैं। अधिकतम शोर जलपोत विखण्डन स्थल से हवा के बहने के दिशा में स्थित निकटतम मानिटरण स्टेशन में रिकॉर्ड किया जाएगा।
उस क्षेत्र में विद्यमान शोर के अन्य स्रोतों (जैसे, यातायात, उद्योग) के प्रभाव का मूल्यांकन होना चाहिए क्योंकि मानिटरण स्थल में शोर के स्तर को ये प्रभावित करते हैं।
4.4 मानक/सीमा निर्धारण
स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे – खतरनाक कचरे के सम्पर्क में आने को नियंत्रित करना
जलपोत विखण्डन सुविधा के ईएसएम हेतु यह जरूरी है कि विशिष्ट स्वास्थ्य खतरों को जन्म देने वाले उत्सर्जनों को सुविचारित एक्सपोशन नियंत्रण रणनीति के तहत परिसीमित किया जाये। इसके लिये खतरनाक कचरे के एक्सपोशर के सन्दर्भ स्तर पर सहमति आवश्यक है और इसका मानिटरण होना चाहिए और पोत-भंजन गतिविधियों के दौरान एक्सपोशन के खतरों को सावधानीपूर्वक मानिटर करना चाहिए।
(अ) सन्दर्भ स्तर - एक्सपोशर घटाने हेतु वांछित स्तर
शुरुआत तो यही होना चाहिए कि खतरनाक पदार्थों और कचरे का एक्सपोशर ही न हो या उसे न्यूनतम रखा जाये। किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से एक्सपोशर को पूर्णतः रोकना सम्भव नहीं होता है और थोड़े-बहुत एक्सपोशर होकर ही रहता है।
ऐसे में स्थानीय विनियमन या अन्तरराष्ट्रीय मानक अनुमत स्तर के एक्सपोशर तय करने में उपयोगी हो सकते हैं। क्योंकि हर देश के अपने कानून होते हैं, एक्सपोशर के सन्दर्भ स्तर देश-देश में भिन्न होंगे। कानूनी या सुरक्षित स्तर का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
कानूनी सीमाओं का विकल्प बहुधा जोखिम मूल्यांकन का विषय बन जाता है। एक्सपोशर का अनुमत जोखिम क्या है? जोखिम की परिभाषा है एक्सपोशर के स्तर और उसके (परिमाण में बदले) परिणामों का गुणनफल।
(आ) एक्सपोशर मूल्यांकन
कचरा नियंत्रण रणनीति तैयार करने के पूर्व जलपोत विखण्डन सुविधा में विभिन्न कचरा धाराओं से सम्बन्धित एक्सपोशर जोखिमों का सामान्य मूल्यांकन कर लेना चाहिए। नीचे दिया गया फ्लो चार्ट एक्सपोशर जोखिमों का मूल्यांकन करने में मददगार साबित हो सकता है (देखें चित्र 4)।
(इ) एक्सपोशर नियंत्रण रणनीति
जब एक्सपोशर के स्तर कानूनी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें कम करके कानूनी स्तरों तक लाने के प्रयास होने चाहिए। इसके अलावा जब यह देखा जाये एक्सपोशर स्तर कानूनी स्तरों के नीचे रहने पर भी कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरे देखे जा रहे हैं, तब भी इन खतरों को न्यूनतम रखने के लिये पर्याप्त उपाय किये जाने चाहिए।
स्थानीय कानूनी विनियम कह सकते हैं कि जलपोत विखण्डन सुविधा के प्रबन्धक उचित उपायों की सूची बनाएँ और उन्हें क्रियान्वित करें। इसे बेतरतीब ढंग से नहीं करना चाहिए। मापनों के ‘स्तरों’ में एक स्पष्ट वरियता-क्रम रहता है। उपायों का मूल्यांकन और अमलीकरण इस वरियता-क्रम के अनुसार होना चाहिए।
नियंत्रण के स्तर
उपाय स्रोत के जितने निकट हो सके वहाँ लागू किये जाने चाहिए। स्रोत पर कंट्रोल उपाय प्रथम स्तर का उपाय है। इससे कम स्तर की अनुमति तभी दी जानी चाहिए जब इससे ऊँचे स्तर की प्राप्ति या तो असम्भव हो या अव्यावहारिक हो।
जिन कंट्रोल उपायों पर विचार होना चाहिए वे ये हैं:
प्रथम स्तर | स्रोत पर किये गए उपाय |
द्वितीय स्तर | विभाजन और अलग करना |
तीसरा स्तर | निजी रक्षी उपकरण (पीपीई) का उपयोग |
एक्सपोशन नियंत्रण उपाय निश्चित करते समय जो प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए उसे विधिवत चित्र 5 में दर्शाया गया है। खतरनाक कचरे से निपटते समय एक्सपोशर नियंत्रण उपाय
Text for above figure
English | Hindi |
Access exposure (see fig 4) | एक्सपोशर का मूल्यांकन करें (देखें चित्र 4) |
Has the limit value been exceeded (Is there a health risk? | क्या सीमा मान (लिमिट वैल्यू) का उल्लंघन हुआ है (क्या कोई स्वास्थ्य जोखिम है?) |
No | नहीं |
Yes | हाँ |
No additional protective measure required | कोई अतिरिक्त रक्षात्मक कदम आवश्यक नहीं |
-Establish hazard zones - List of exposed workforce | - खतरा क्षेत्र स्थापित करें - एक्सपोस हुए कर्मियों की सूची बनाएँ |
Are measures at the source feasible | स्रोत पर कार्रवाई साध्य है? |
Is compartmentalization and isolation feasible and useful? | क्या परिसीमन और अलग-थलग करना साध्य और उपयोगी है? |
Take appropriate measures | उचित उपाय करें |
Implementation of appropriate Personal Protective Equipment (PPE) | निजी रक्षी उपकरण (पीपीई) उपलब्ध कराएँ |
4.5 घटनाएँ, दुर्घटनाएँ और आकस्मिक स्थितियों के लिये तैयारी
घटनाओं, दुर्घटनाओं और आकस्मिक स्थितियों के लिये अलग कार्यविधियाँ, अर्थात आपात स्थिति तैयारी योजना (सीपीपी), पर्यावरणीय प्रबन्धन प्रणाली (देखें अध्याय 6.2) के अन्तर्गत बनाई जानी चाहिए। सीपीपी बनाते वक्त युनेप/ओसीएचए के 'राष्ट्रीय आपात स्थिति योजना विकास के लिये दिशा-निर्देश' देख लेना लाभदायक रहेगा। उपर्युक्त दिशा-निर्देश के अनुसार किसी भी पर्यावरणी आपात स्थिति योजना में निम्नलिखित सूचनाएँ होनी चाहिए:
(1) प्राधिकरणों, भाग लेने वाले अभिकरणों अनुक्रिया (रिस्पोंस) टीम और प्रदूषण घटना के समन्वयकों और/या जो उसके लिये जिम्मेदार हैं, को दायित्व और जिम्मेदारियों का बँटवारा;
(2) अन्य आपात स्थिति योजनाओं के साथ सम्बन्ध;
(3) एक रिपोर्टिंग प्रणाली जो प्रदूषण घटना के होते ही सूचना भेजने की व्यवस्था करेगी;
(4) योजना के क्रियान्वयन के लिये एक केन्द्रीय बिन्दु की स्थापना जो समन्वयन और निर्देश जारी करने का काम करेगा।
(5) अनुक्रियात्मक गतिविधियाँ; इनमें हमेशा ये चार चरण होने चाहिए:
1. पता लगाना और चेतावनी देना
2. मूल्यांकित, अधिसूचन और योजना लागू करना
3. परिसीमन और जवाबी कार्रवाई
4. सफाई और निपटारा
(6) योजना के क्रियान्वयन में मदद देने के लिये उपलब्ध कुशलताओं और अनुक्रिया संसाधनों की पहचान;
(7) कुछ प्रकार के प्रदूषकों के हस्तन, उपचार या निपटारे पर लागू होने वाले आपातकालीन प्रावधानों के बारे में निर्देश (सम्भावित उत्सर्जनों के सर्वेक्षण पर आधारित, जलपोत विखण्डन सुविधाओं से सामान्यतः निकलने वाले उत्सर्जनों की सूची के लिये तालिका 3 देखें);
(8) यदि आवश्यक हो तो स्थानीय समुदाय से सम्पर्क; और
(9) समर्थक कदम, जैसे जनसाधारण को सूचना देने के लिये कार्यविधियाँ, पर्यवेक्षण, घटना के बाद रिपोर्ट जारी करना, योजना की समीक्षा और सुधार, योजना को समय-समय पर आजमाकर देखना।
आपातकालीन अनुवर्तन
जलपोत विखण्डन सुविधाओं में जहाज तोड़ने की गतिविधियों के दौरान कई प्रकार की घटनाएँ और दुर्घटनाएँ हो सकती हैं जो विभिन्न प्रकार के नुकसान कर सकते हैं। उदाहरण के लिये काटने के काम के दौरान तेल अवशेष और वाष्प आग या विस्फोट ला सकते हैं, या गिरती वस्तुओं के कारण शरीर कट सकता है या अन्य प्रकार की चोटें लग सकती हैं।
इन स्थलों के लिये श्रेष्ठ होगा कि वे सम्भावित घटनाओं और दुर्घटनाओं के लिये एक सर्वेक्षण कराएँ। इसके आधार पर घटनाओं, चोटों और आपात स्थितियों के अनुवर्तन हेतु एक योजना बनाई जानी चाहिए। आपात स्थितियों के अनुवर्तन (रिसपोंस) में निम्नलिखित की व्यवस्था की जानी चाहिए:
1. प्रचालन के दौरान कर्मियों का एक्सपोशर न्यूनतम रखना चाहिए
2. दूषित स्थलों को साफ करके यदि आवश्यक हो तो रोगाणुमुक्त कर देना चाहिए
3. पर्यावरण पर प्रभाव को जहाँ तक हो सके कम रखना चाहिए
विभिन्न प्रकार की आपात स्थितियों के लिये लिखित कार्यविधियाँ तैयार की जानी चाहिए और सभी कर्मियों को आपात स्थिति में अनुवर्तन के मामले में प्रशिक्षण देना चाहिए। आपात स्थिति में अनुवर्तन के लिये आवश्यक सभी उपकरण आसानी से उपलब्ध रहने चाहिए। जहाँ तक खतरनाक छलकों का सवाल है, उनके सम्बन्ध में सफाई और अग्नि-शमन गतिविधियाँ विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर्मियों द्वारा की जानी चाहिए।
चोटों का अनुवर्तन
सम्भावित चोटों या खतरनाक पदार्थों के एक्सपोशर के सर्वेक्षण के बाद इनके लिये अनुवर्तन करने से सम्बन्धित कार्यविधि तैयार की जानी चाहिए। सभी कर्मियों इस अनुवर्तन का न्यूनतम प्रशिक्षण मिलना चाहिए, जिसमें निम्नलिखित बातों का समावेश होना चाहिए:
1. तात्कालिक प्राथमिक उपचार, जैसे आँखों को पानी से धोना, घावों और त्वचा को धोना, पट्टी बाँधना
2. निर्धारित व्यक्ति को तुरन्त सूचना देना
3. यदि सम्भव हो, उस वस्तु को रखना और उसके स्रोत सम्बन्ध विवरण देना ताकि सम्भावित खतरे को पहचाना जा सके
4. चिकित्सा कर्मी से तुरन्त अतिरिक्त चिकित्सा देख-रेख
5. चिकित्सकीय पर्यवेक्षण
6. घटना का अभिलेखन
7. उचित उपायात्मक कार्रवाई हेतु जाँच, निर्धारण और कार्यान्वयन।
यह बहुत जरूरी है कि घटना की रिपोर्ट करने की प्रक्रिया सीधी-सादी हो अन्यथा लोग रिपोर्ट करने से हिचकिचाएँगे।
छलकावों का अनुवर्तन
सामान्यतः छलकाव होने पर दूषित स्थल की साफ-सफाई ही पर्याप्त होती है। लेकिन कुछ प्रकार के पदार्थों के लिये आसपास के क्षेत्र से लोगों को तुरन्त हटाना आवश्यक होगा।
छलकाव के बाद सफाई करने की प्रक्रिया, जिसमें सुरक्षित हस्तन और रक्षी कपड़े भी शामिल हो, विकसित की जानी चाहिए। छलकाव के बाद सफाई की एक सामान्य कार्यविधि का उदाहरण तालिका 7 में दिया गया है।
तालिका 7 छलकाव के बाद सफाई के लिये एक सामान्य कार्यविधि
कार्रवाई संख्या | |
1 | दूषित क्षेत्र से सभी लोगों को हटाना |
2 | एक्सपोस हुए कर्मी की आँखों और खुली त्वचा की सफाई |
3 | निर्धारित व्यक्ति को सूचित करें |
4 | छलकाव के प्रकार का पता लगाएँ |
5 | घायल कर्मी के लिये प्राथमिक देख-रेख और चिकित्सकीय देख-रेख की व्यवस्था करें |
6 | उस क्षेत्र को घेर दें ताकि और लोग एक्सपोस न हों |
7 | सफाई में लगे कर्मियों को पर्याप्त रक्षी वस्त्र उपलब्ध कराएँ |
8 | छलकाव को फैलने से रोकें |
9 | यदि आवश्यक हो तो दूषित क्षेत्र को उदासीन या रोगाणुमुक्त बनाएँ |
10 | छलके पदार्थ को इकट्ठा करके उचित थैलियों या पात्रों में जमा करें |
11 | उपयोग किये गए उपकरणों और कर्मियों के रक्षी कपड़ों को उदासीन करें, रोगाणुमुक्त करें और धोएँ |
12 | घायल कर्मियों का लेखा-जोखा लें। यदि आवश्यक हो, तो तुरन्त चिकित्सकीय मदद की माँग करें। |
13 | कार्यक्रम का मानिटरिंग और फोलोअप |
14 | रिपोर्टिंग |
रिपोर्टिंग
सभी कर्मियों को आपातकालीन अनुक्रियाओं में प्रशिक्षित करना चाहिए और उन्हें घटनाओं और दुर्घटनाओं की तुरन्त सूचना देने की प्रक्रियाओं की जानकारी होनी चाहिए। इन रिपोर्टों में निम्नलिखित सूचनाएँ होनी चाहिए:
1. घटना और दुर्घटना की प्रकृति
2. कहाँ और कब हुई
3. कौन से कर्मी सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं
4. अन्य उपयोगी जानकारी
यह जरूरी है कि रिपोर्टिंग की प्रक्रिया सरल और सुपरिभाषित हो, अन्यथा लोग रिपोर्टिंग से कतराएँगे।
सभी घटनाओं और दुर्घटनाओं की जाँच अधिकृत व्यक्तियों द्वारा होनी चाहिए ताकि उनके कारणों का पता लगाया जा सके और भविष्य में उनके दुबारा होने को रोकने के लिये कदम उठाये जा सकें। सभी अभिलेखों को रखना चाहिए।
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