5.1 प्रस्तावना : (Introduction)
5.1.1 प्रादेशिक समस्याएँ
राजस्थान के प्राकृतिक संसाधन बहुमूल्य है परन्तु अधिकतर क्षेत्र सूखा-ग्रस्त पहाड़ी एवं मरुस्थलीय है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण दिनों-दिन समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं; जैसे-
1. पर्यावरण का बिगड़ना
2. वन क्षेत्र का घटना
3. कृषि योग्य भूमि का क्षरण
4. भूमि का कटाव
5. भूजल का गिरता स्तर
6. बेरोजगारी एवं गरीबी
7. खाद्यान्न उत्पादन में अस्थिरता
5.1.2 राजकीय प्रयास
इन सभी प्रमुख समस्याओं के समाधान के लिये राजस्थान सरकार ने जल ग्रहण अवधारणा को ग्रामीण विकास का माध्यम बनाने के उद्देश्य से सूखा सम्भाव्य क्षेत्र विकास कार्यक्रम, मरुक्षेत्र विकास कार्यक्रम, आश्वासित रोजगार योजना एकीकृत बंजर भूमि विकास परियोजना, राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना कार्यक्रमों को लागू किया है।
जलग्रहण कार्यक्रम ग्रामीण समाज का, ग्रामीण समाज द्वारा एवं ग्रामीण समाज के लिये चलाया जाने वाला कार्यक्रम है जिसमें सरकारी तंत्र की भागीदारी सहयोगी, समन्वयक तथा उत्प्रेरक की होगी।
5.1.3 जलग्रहण क्षेत्र क्या है
जलग्रहण क्षेत्र भूमि की एक ऐसी इकाई है जिसका जल निकास एक ही बिन्दु/स्थान पर होता है। यह क्षेत्र कुछ हेक्टेयर से लेकर कई वर्ग किलोमीटर का हो सकता है। जलग्रहण क्षेत्र ही ग्रामीण विकास कार्यक्रम की नई इकाई है जिसका केंद्र बिन्दु ग्रामीण समाज है।
5.1.4 जलग्रहण क्षेत्र ही विकास की इकाई क्यों?
मिट्टी और पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का सीधा संबंध प्रशासनिक इकाइयों से न होकर जलग्रहण क्षेत्र से है। अतः प्राकृतिक संसाधनों के विकास कार्यक्रम को प्रशासनिक इकाइयों के स्थान पर जलग्रहण क्षेत्र के आधार पर लिया जाना अधिक तर्कसंगत एवं प्रभावी है।
5.1.5 जलग्रहण क्षेत्र का क्षेत्रफल
राजस्थान में जलग्रहण क्षेत्र के चयन के लिये “जलग्रहण एटलस” उपलब्ध है। इस एटलस में जिलेवार एवं पंचायत समितिवार नाम उपलब्ध है तथा प्रत्येक पंचायत समिति के नामों में मैक्रो एवं माइक्रो जलग्रहण क्षेत्रों का सीमांकन/रेखांकन वैज्ञानिक आधार पर किया गया है। साथ ही प्रत्येक पंचायत समिति के अन्तर्गत आने वाले विभिन्न मैक्रो जलग्रहण क्षेत्रों एवं उनके अधीन आने वाले माइक्रो जलग्रहण क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल एवं भू उपयोग विवरण भी तालिका के रूप में उपलब्ध कराया गया है। प्रत्येक माइक्रो जलग्रहण क्षेत्र का क्षेत्रफल कुछ हेक्टेयर से लेकर कई हजार हेक्टेयर तक का हो सकता है। प्रत्येक माइक्रो जलग्रहण क्षेत्र के उपचार हेतु प्राथमिकता निर्धारित है जिसके अनुसार जिन जलग्रहण क्षेत्रों में कृषि भूमि के उपलब्धता एवं निकास नालियों की सघनता अधिक है उन्हें उपचार में प्राथमिकता दी गई है। भारत सरकार के स्तर से वर्ष 2008-09 में जारी जलग्रहण क्षेत्र विकास हेतु काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार वैज्ञानिक आधार पर चयनित जलग्रहण क्षेत्रों को उपचार हेतु प्राथमिकता के आधार पर चयनित किया जाना है।
उक्त काॅमन मार्गदर्शिका के आने से पूर्व अर्थात 31 मार्च 2008 तक स्वीकृत एवं क्रियान्वित किये जा रहे जलग्रहण क्षेत्रों का क्षेत्रफल सामान्यतः 500 हेक्टेयर लिया जाता था। पूर्व में यह माना जाता था कि सामान्यतः एक गाँव का क्षेत्रफल 500 हेक्टेयर के आस-पास होता है तथा इसे पूर्व की हरियाली एवं वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका में उपचार हेतु इकाई माना गया था। समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत वास्तविक मैक्रो जलग्रहण क्षेत्र उपचार हेतु लिये जाते थे। प्रत्येक माइक्रो जलग्रहण क्षेत्र में गतिविधियों का क्रियान्वयन ऊपरी भाग से प्रारम्भ करते हुए निचले भाग की ओर किया जाता है। प्रत्येक जलग्रहण क्षेत्र में उपचार से पूर्व सर्वेक्षण किया तब जाकर जलग्रहण क्षेत्र की सीमा की पहचान/पुष्टि कर ली जाती है एवं जलग्रहण क्षेत्र के एटलस के नामों को उसी स्केल के राजस्व नामों के ऊपर (Superimpose) के बाद वास्तविक उपचार हेतु गतिविधियों की आयोजना की जाती है।
5.1.6 जलग्रहण विकास से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम
ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार
i. सूखा सम्भाव्य क्षेत्र विकास कार्यक्रम (डी.पी.ए.पी.)
ii. मरुक्षेत्र विकास कार्यक्रम (डी.डी.पी.)
iii. समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम (आई. डब्ल्यू.डी.पी.)
iv. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार
v. राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना (एन.डब्ल्यू.पी.)
5.1.7 कार्य क्रम के उद्देश्य
जलग्रहण विकास कार्यक्रम को भारत सरकार द्वारा लागू कई कार्यक्रमों में शामिल किया गया है। इनके उद्देश्य अलग-अलग हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के जलग्रहण विकास सम्बन्धी कार्यक्रमों के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-
क्र.सं |
कार्यक्रम |
उद्देश्य |
1. |
मरु विकास कार्यक्रम |
वनों का प्रसार करना, गर्म एवं ठंडे रेगिस्तान के प्रसार को रोकना। |
2. |
सूखासम्भाव्य क्षेत्र विकास |
अकृषि भूमि एवं जल निकास नालियों में मिट्टी व जल का संरक्षण, कृषि एवं वन, चारागाह, बागवानी, आदि का विकास तथा भूमि का दूसरे उपयोगी कार्यों हेतु विकास करना। |
3. |
समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम |
निजी स्वामित्व की कृषि भूमि, गाँव की सामूहिक भूमि एवं सरकारी भूमि के बंजर हिस्सों में मिट्टी व पानी का संरक्षण एवं चारागाह तथा वनों का विकास करना। |
इन कार्यक्रमों का प्राथमिक ध्येय मिट्टी एवं पानी का संरक्षण कर ज्यादा फसल उत्पादन करना है। इस ध्येय को पूरा करने हेतु जन भागीदारी को कार्यक्रम का अभिन्न अंग माना गया है। जिससे मिट्टी और पानी जैसी प्राकृतिक सम्पदा पर ग्रामीण समाज द्वारा अधिक ध्यान दिया जायेगा व जलग्रहण विकास कार्यक्रम में ग्रामीण समाज की रूचि बढ़ाने से निम्न उद्देश्यों को पूरा किया जा सकेगा-
1. गाँव के ग्रामीण समुदाय का आर्थिक विकास करना जो कि प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जलग्रहण विकास पर निर्भर करता है।
(अ) जलग्रहण क्षेत्र में पाये जाने वाले प्राकृतिक साधन जैसे- भूमि, पानी वनस्पति आदि का पूरा-पूरा उपयोग करना, इससे सूखे का विपरीत प्रभाव कम होगा एवं वातावरण का ह्रास रुकेगा।
(ब) ग्रामवासियों के लिये रोजगार सृजन होगा तथा सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति के साथ-साथ ग्रामीणों की आमदनी एवं बचत को बढ़ावा मिलेगा।
2. गाँव में पारिस्थितिकीय/पर्यावरण संतुलन बनाये रखने को बढावा देना
(अ) जलग्रहण क्षेत्र में सृजित सम्पत्तियों के संचालन, संधारण तथा उनके और विकास हेतु ग्रामीण समुदाय द्वारा लगातार प्रयास करना।
(ब) जलग्रहण क्षेत्र की समस्याओं के समाधान हेतु स्थानीय ज्ञान एवं मौजूदा साधनों को काम में लेकर सरल, आसान एवं सस्ती तकनीकों का विकास करना।
3. जलग्रहण क्षेत्र के गरीब, पिछड़े हुए एवं संसाधनहीन व्यक्तियों की सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति पर विशेष ध्यान देना।
(अ) भूमि एवं जल स्रोतों के विकास से प्राप्त फायदों एवं वित्तीय स्रोतों का क्षेत्र के ग्रामीणों में बराबर बँटवारा करना।
(ब) आमदनी बढ़ाने वाले स्रोतों का ज्यादा से ज्यादा विकास एवं मानवीय संसाधनों के विकास पर बल देना।
उपरोक्त नीति को लचीला रखना जरूरी है ताकि ग्रामीण समाज के परम्परागत ज्ञान एवं कौशल का समावेश कर समस्याओं पर विजय प्राप्त की जा सके।
5.1.8 कार्य प्रणाली
कार्यप्रणाली के अन्तर्गत योजना का उदय विकास की सबसे छोटी इकाई अर्थात गाँव से होगा। स्थानीय समस्याओं एवं परिस्थितियों की भिन्नता के कारण कार्यक्रम के योजना घटकों तथा उपचार विधियों में भिन्नता हो सकती है। कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिये यह आवश्यक है कि जिन लोगों के लिये यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है वे कार्यक्रम में पूर्ण रूचि लें एवं कार्यक्रम को समझें। सबसे अच्छा तरीका तो यह है कि ग्रामीण स्वयं अपने गाँव के विकास के लिये आवश्यकतानुसार योजना बनाएँ, जैसे खेत पर क्या फसल लेनी है, कहीं डोल बनानी है? इस योजना के अनुरूप ग्रामीण स्वयं कार्य कराएँगे व कार्यों के पूर्ण होने पर उनका संधारण व संचालन भी करेंगे।
5.1.9 कार्यक्रम के मुख्य तत्व
i. सामुदायिक संगठन एवं प्रशिक्षण
ii. जनसहभागिता
iii. कृषि योग्य भूमि पर संरक्षण एवं उत्पादन पद्धतियाँ
iv. अकृषि योग्य भूमि पर संरक्षण एवं उत्पादन पद्धतियाँ
v. नाला उपचार
vi. पशुधन विकास
vii. नर्सरी विकास
viii. आय वृद्धि हेतु अन्य घरेलू उत्पादन पद्धतियाँ
5.1.10 कार्यक्रम से जुड़ी चुनौतियाँ
i. समस्त लाभान्वितों की सहभागिता सुनिश्चित करना (जन आन्दोलन बनाना)
ii. क्रियान्वयन की परम्परागत सोच (ऊपर से नीचे) को बदलकर नई कार्य पद्धति लागू करना (नीचे से ऊपर)
iii. स्थानीय परम्परागत ज्ञान एवं नवीनतम वैज्ञानिक/अभियांत्रिकी तकनीक से स्थानीय समस्याओं का समाधान करना।
iv. कार्यक्रम से समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े हुए परिवारों अनुसूचित जातियों, एवं जन-जातियों को बराबर लाभ पहुँचाना।
v. कार्यक्रम द्वारा अर्जित संसाधनों एवं लाभों का बराबर बँटवारा।
vi. कार्यक्रम द्वारा निर्मित परिसम्पत्तियों का रख-रखाव।
5.2 परियोजना क्रियान्वयन एजेंसी द्वारा सम्पादित गतिविधियाँ (Activities to be implemented by the Project Implementation Agency PLA)
जलग्रहण विकास कार्यक्रम का समयबद्ध एवं बेहतर (उत्कृष्ट) क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिये पी.आई.ए. द्वारा निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कार्य निर्धारित समय अनुसार एवं प्रदत्त वर्षवार किस्तों में किये जाएँगे। उक्त प्रावधान 31 मार्च - 2008 से पूर्व स्वीकृत जलग्रहण क्षेत्र जो कि भारत सरकार द्वारा जारी नई काॅमन मार्गदर्शिकानुसार पुरानी मार्गदर्शिकाओं से ही क्रियान्वित किये जाएँगे, के लिये लागू रहेंगे।
क्र.सं. |
मार्गदर्शिका देय प्रावधान |
परियोजना काल में देय राशि |
वर्ष 1 |
वर्ष 2 |
वर्ष 3 |
वर्ष 4 |
वर्ष 5 |
1. |
ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार (हरियाली मार्गदर्शिका सूखा सम्भाव्य क्षेत्र विकास कार्यक्रम (डी.पी.ए.पी.) मरुक्षेत्र विकास कार्यक्रम (डी.डी.पी.) अश्वासित रोजगार योजना (ई.ए.एस.) समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम (आई.डब्ल्यू डी.पी.) |
100% |
15% |
30% |
30% |
15% |
10% |
2 |
कृषि मंत्रालय, भारत सरकार (वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना (एन.डब्ल्यू.डी.पी.) |
100% |
10% |
20% |
27.3% |
21.2% |
21.5% |
वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका के अनुसार राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना का क्रियान्वयन 10वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान कराया गया था अतः ऊपर दर्शाये प्रतिशत प्रावधान वर्तमान में 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि हेतु चयनित एवं क्रियान्वित किये जा रहे राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के जलग्रहण क्षेत्रों हेतु लागू नहीं होंगे। इस हेतु 1 अप्रैल 2008 से राज्य में लागू काॅमन मार्गदर्शिका में दर्शाये प्रावधान लागू होंगे जिसका कुल परियोजना अवधि हेतु विवरण निम्न प्रकार है।
बजट संघटक |
बजट की प्रतिशतता |
प्रशासनिक लागत |
10 |
निगरानी |
1 |
मूल्यांकन |
1 |
प्रारम्भिक चरण, निम्नलिखित सहित-प्रारम्भिक कार्यकलाप |
4 |
संस्थापन तथा क्षमता निर्माण |
5 |
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी.पी.आर.) |
1 |
वाटरशेड कार्य चरण - वाटरशेड विकास कार्य |
50 |
गरीबी रेखा से नीचे के (बी.पी.एल.) तथा भूमिहीन व्यक्तियों के लिये आजीविका सम्बंधी कार्यकलाप |
10 |
उत्पादन प्रणाली तथा अति लघु (माइक्रो) उद्यम |
13 |
समेकन चरण |
5 |
योग |
100 |
भारत सरकार की काॅमन मार्गदर्शिका में मैक्रो/माइक्रो जलग्रहण क्षेत्र के उपचार हेतु 4-7 वर्ष की परियोजना अवधि का उल्लेख किया गया है। विभिन्न वर्षों हेतु प्रावधान वास्तविक मांग एवं रणनीतिक कार्य योजना के आधार पर चिन्हित किए जा सकते हैं।
5.3 सर्वेक्षण (Survey)
सर्वेक्षण क्यों ?
जलग्रहण क्षेत्र की आधारभूत आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य योजना के विभिन्न उपचार कार्यक्रमों के क्रियान्वयन तथा परियोजना के प्रभाव का मूल्यांकन करने हेतु विभिन्न सर्वेक्षण किये जाते हैं जिससे जलग्रहण विकास परियोजना निर्माण के लिये क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, उपलब्ध संसाधन, जनसंख्या वनस्पति, पर्यावरण, उद्योग धंधों आदि से सम्बन्धित तथ्यों/आकड़ों को एकत्रित किया जा सके।
प्रमुख सर्वेक्षण निम्न हैं-
5.3.1 टोपोग्राफिकल (भौगोलिक स्थिति) सर्वेक्षण
जलग्रहण क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति की सही जानकारी हेतु यह सर्वेक्षण जरूरी होता है। इसके द्वारा क्षेत्र में कन्टूर (समोच्च) रेखा तथा नालों में चेकडैम, नाडी आदि के निर्माण हेतु सही स्थान का निर्धारण होता है।
5.3.2 मृदा सर्वेक्षण
क्षेत्र की भूमि की किस्म, बनावट तथा भविष्य में उसके उपयोग की जानकारी के लिये जरूरी होता है। इसका उपयोग भूमि संरक्षण, मृदा सुधार, उसकी उत्पादकता बढ़ाने की कार्य योजना बनाने में होता है।
5.3.3 जल संसाधन-जल विज्ञान सर्वेक्षण
जलग्रहण क्षेत्र की औसत वर्षा, उपलब्ध जल संसाधन, भूमिगत जल स्तर, जल की किस्म सतही प्रभाव की जानकारी हेतु जरूरी होता है। इसका उपयोग क्षेत्र के पशुओं, जन समुदाय एवं फसलों की जल की आवश्यकता एवं उपलब्धता के आधार पर कार्य योजना तैयार करने में होता है।
5.3.4 सामाजिक एवं आर्थिक सर्वेक्षण
क्षेत्र की जनसंख्या, ग्रामीणों की जाति/वर्ग, व्यवसाय, शैक्षणिक स्तर एवं आर्थिक स्तर की जानकारी हेतु जरूरी होता है। इसका उपयोग क्षेत्र के सभी वर्गों को नियमित रोजगार उपलब्ध कराने तथा क्षेत्र के समग्र विकास के लिये कार्य योजना तैयार करने में होता है।
5.3.5 वानस्पतिक सर्वेक्षण
जलग्रहण क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति की सही जानकारी हेतु यह सर्वेक्षण जरूरी होता है इसके द्वारा क्षेत्र में कन्टूर (समोच्च) रेखा तथा नालों में चेकडैम, नाडी आदि के निर्माण हेतु सही स्थान का निर्धारण होता है। औषधि प्रजातियों तथा क्षेत्र की वानस्पतिक कार्य योजना तैयार करने में होता है।
5.3.6 पशुधन सर्वेक्षण
क्षेत्र में उपलब्ध कुल पशुधन, उनकी किस्म/नस्ल की जानकारी के लिये होता है। यह सर्वेक्षण पशुओं की नस्ल सुधार, उन्नत चारा उत्पादन, पशुओं के स्वास्थ्य एवं उपचार की कार्य योजना तैयार करने में सहायक सिद्ध होता है।
5.3.7 गौचर भूमि का सर्वेक्षण
क्षेत्र में उपलब्ध चारागाह व अकृषि पड़त भूमि की जानकारी, चारागाह विकास हेतु उपयुक्त। भूमि का चयन तथा उसमें उपलब्ध वनस्पति जैसे उन्नत घास, चारा व वृक्षों की प्रजातियों की जानकारी के लिये यह सर्वेक्षण किया जाता है।
5.4 आस्था मूलक कार्य (एन्ट्री बिन्दु गतिविधि) (Entry Point Activity)
ऐसा देखा गया है कि जब कोई बाहरी एजेंसी किसी गाँव के विकास कार्य करने जाती है, तब ग्रामीण उन्हें शक की नजर से देखते हैं। चूँकि समस्त कार्य जन सहभागिता से कराने हैं अतः ग्रामीणों का विश्वास जीतना बहुत आवश्यक हो जाता है। ऐसी स्थिति में यदि कार्यक्रम के प्रारम्भ में उनकी मुख्य समस्या की जानकारी प्राप्त कर जहाँ के सहयोग से स्थानीय संसाधन का उपयोग करते हुए समाधान खोजना अति आवश्यक है। अतः इन कार्यों को ग्रामीण समाज की जरूरत/आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। यह कार्य जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम से हटकर वे कार्य हैं जिनसे ग्रामीण समाज से सम्पर्क बनाया जाता है।
इस कार्य की जिम्मेदारी पी.आई.ए की है तथा यह उसका दायित्व है कि ग्राम सभा के माध्यम से ग्रामीण समाज की अति आवश्यक जरूरत की जानकारी प्राप्त कर वांछित कार्य को कम से कम समय में पूरा कर दें। इस कार्य से किसी विशेष व्यक्ति को लाभ न होकर पूरे जलग्रहण क्षेत्र के निवासियों को लाभ होता है तथा ग्रामीण समाज एवं पी.आई.ए. के सम्बन्ध प्रगाढ़ होते हैं।
आस्था मूलक कार्यों का उदाहरण
परियोजना क्रियान्वयन एजेंसी अपने कार्य कोष की राशि में से उन कार्यों में जिन्हें जलग्रहण समुदाय प्राथमिकता देता हो जैसे गाँव के मन्दिर/मस्जिद की मरम्मत, सभा भवन को सुधारना, सफाई कराना या पीने के पानी आदि के लिये खर्च कर सकती है, हालाँकि ये कार्य परियोजना कार्यों से सीधे सम्बन्ध नहीं रखते परन्तु ये कार्य गाँव में जलग्रहण विकास दल की साख बढ़ाने एवं ग्रामीण समुदाय से सम्बन्ध बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
5.5 सामुदायिक संगठन कार्यक्रम (Community Organisation Programme)
इस हेतु ग्रामीण समुदाय का वांछित दृष्टिकोण हासिल करके उनमें कार्यक्रम के प्रति जागरूकता पैदा करना, उनकी सहभागिता हासिल करके उनकी समस्यायें एवं आवश्यकता समझना एवं उनका समाधान करना। ग्रामीण विकास हेतु परियोजना बनाकर, ग्रामीण समुदाय को विभिन्न छोटे-छोटे समूहों में संगठित करके इन समूहों द्वारा कार्य करा कर वांछित लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। सामुदायिक संगठन के अन्तर्गत की जाने वाली गतिविधियों को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. वातावरण निर्माण करना
2. ग्रामीण सहभागिता से कार्यों का अभ्यास
3. अन्य राष्ट्रीय विकास कार्यक्रम
4. समुदाय को संगठित करना
5.5.1 वातावरण निर्माण
पिछली योजनाएँ/कार्यक्रम सरकारी आधार पर बनते रहे हैं तथा क्रियान्वित होते रहे हैं। उनमें जनसहभागिता/भागीदारी का हमेशा अभाव रहा है। किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि सबसे पहले सामाजिक माहौल तैयार किया जाए ताकि जन-सहभागिता हासिल की जा सके।
(अ) वातावरण निर्माण क्यों?
i. समाज के हर तबके के लोगों में मृदा व जल की उपयोगिता की जागरुकता पैदा करना।
ii. कार्यक्रम के बारे में जन समुदाय को जानकारी देने हेतु।
iii. कार्यक्रम के प्रति ग्रामीण समुदाय का सकारात्मक दृष्टिकोण प्राप्त कर उनका विश्वास जीतने हेतु।
iv. ग्रामीण समुदाय के हर तबके को कार्यक्रम से जोड़ने हेतु।
(ब) वातावरण निर्माण की पद्धति
बहुमाध्यमी दृष्टिकोण द्वारा जिसमें औपचारिक, परम्परागत और आधुनिक संचार माध्यमों का वातावरण निर्माण में उपयोग करते हैं।
(स) बहुमाध्यमी
1. प्रिन्ट माध्यम
यह वातावरण निर्माण का एक सशक्त हथियार है। इसके द्वारा कार्यक्रम की जानकारी देने वाले विभिन्न पोस्टरों, स्टीकरों, नारों, विज्ञापन बोर्डों एवं बिलों आदि का निर्माण कर जन समुदाय में वितरित किया जाना चाहिए। इनको घर-घर जाकर, स्कूलों में, मेलों में और गाँवों के अन्य सांस्कृतिक समारोहों में वितरित किया जाना चाहिए।
2. इलेक्ट्राॅनिक माध्यम
वर्तमान में इलेक्ट्राॅनिक माध्यम जनमानस को प्रभावित करने का एक सशक्त माध्यम है। अतः विकास कार्यक्रम के विभिन्न पहलुओं की स्लाइड्स विडियों कैसेट रोचक रूप में तैयार करके ग्रामीण समुदाय के बीच प्रदर्शन करना चाहिए। विशेष रूप से हाट, मेलों, ग्रामसभा आदि में प्रदर्शन करना चाहिए।
3. कला माध्यम
यह माध्यम ग्रामीण समुदाय का मनोरंजन कर विकास कार्यक्रम का संदेश पहुँचाता हुआ ‘एक पंथ दो काज’ का काम करता है। जन समुदाय को सार्वजनिक स्थान पर एकत्रित कर कठपुतली कार्यक्रम, नुक्कड़ नाटक आदि का समय-समय पर मंचन करना चाहिए।
इनके कार्यक्रमों की भाषा क्षेत्रीय एवं विषय प्रचलित कथाओं पर आधारित होने चाहिये। ये कार्यक्रम विकास कार्यक्रम की महत्ता बताने हेतु तथा जन समुदाय को उससे जोड़ने में प्रभावी रूप से सहायक सिद्ध होंगे। विशेष समय जैसे प्रचलित मेला, त्यौहार आदि पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करने चाहिए।
4. अन्य गतिविधियाँ
कुछ अन्य गतिविधियाँ भी वातावरण निर्माण हेतु महत्त्वपूर्ण हैं जैसे-
लोक सम्पर्क अभियान
गाँव के व्यक्तियों से व्यक्तिगत सम्पर्क कर उन्हें कार्यक्रम के प्रति जानकारी देना, उसकी महत्ता बताना, इससे होने वाले लाभ एवं विकास की जानकारी देकर उन्हें कार्यक्रम से जोड़ना व अन्य ग्रामीणों को भी इस कार्यक्रम से जोड़ने के लिये प्रेरित करना।
ग्रामसभा/पंचायत का सहयोग प्राप्त करना
ग्रामीण समुदाय में ग्रामसभा/पंचायत के द्वारा प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता आदि कार्यक्रम आयोजित कराने चाहिए। इन प्रतियोगिताओं के द्वारा विकास कार्यक्रम के लिये वातावरण निर्माण करने में सहायता मिलेगी।
प्रभात फेरी/रैली
गाँव में एक छोर से दूसरे छोर तक प्रभात फेरी/रैली निकाली जानी चाहिए और इनमें विकास कार्यक्रम के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करके नारों का उद्घोष करते हुए ग्रामीण समुदाय को इस कार्यक्रम से रूबरू जोड़ा चाहिए। जन अभियान के दौरान उपयोग में लिये जाने वाले नारे परिशिष्ट-1 पर है।
किसान मेला
ऐसे मेले भी आयोजित करने चाहिए जहाँ किसानों की समस्याओं का निदान हो सके, उन्हें नये ज्ञान के बारे में बताया जा सके। ऐसे मेलों में इस कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार करना चाहिए जिससे ग्रामीण समुदाय अधिकाधिक इन कार्यक्रमों के प्रति जागरुक हो सके।
प्रिन्ट मीडिया |
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया |
कला माध्यम |
अन्य गतिविधियाँ |
पोस्टर |
स्लाइड्स |
नुक्कड़/नाटक |
लोक सम्पर्क अभियान |
स्टीकर |
विडियो |
|
जन संसद |
नारे |
|
कठपुतली |
पंचायत |
विज्ञापन बोर्ड |
|
प्रदर्शनी |
जन यात्राएँ |
5.5.2 ग्रामीण सहभागिता से कार्यों का अभ्यास (पी.आर.ए.)
अधिकतर ऐसा होता है कि गाँव की योजना बनाते समय ग्रामीणों की भागीदारी नहीं हो पाती व क्रियान्वयन पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाता है क्योंकि यह ग्रामीण समुदाय की दृष्टि से उपयोगी नहीं होता। अतः ग्रामीण समुदाय की समस्याओं व अन्य जानकारी का ग्रामीणों द्वारा पता लगाने की विधि ही ग्रामीण सहभागिता से कार्यों का अभ्यास (पी.आर.ए.) कहलाती है।
यह बाहर से आने वालों को गाँव की पद्धति को समझने में सहायता करती है। जलग्रहण विकास कार्यक्रम में चयनित गाँवों के ग्रामीण समुदाय की प्राथमिकताओं को समझना अति आवश्यक है।
अ. पी.आर.ए. क्यों आवश्यक है?
i. लोगों को जलग्रहण विकास हेतु किये जाने वाले कार्यों में भागीदार बनाना।
ii. जलग्रहण क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, उनकी वर्तमान स्थिति तथा उनके लगातार बिगड़ने के सम्बन्ध में जानकारी एकत्रित करने के लिये।
iii. ग्रामीण समुदाय से विचार विमर्श द्वारा उनके प्रत्यक्ष ज्ञान एवं प्राथमिकताओं को समझने के लिये।
iv. जलग्रहण विकास गतिविधियों को स्थानीय आवश्यकता के अनुरूप योजनाबद्ध करने के लिये। पी.आर.ए. के मुख्य सिद्धांत यह है कि गाँव की जानकारी गाँव वासियों से ही प्राप्त करना व पिछले अनुभवों से सीखना।
पी.आर.ए. हेतु निम्न पर कार्यवाही करते हुए उनकी प्राथमिकता एवं उपलब्ध धन राशि को ध्यान में रखते हुए कार्य योजना का निर्माण करना।
(अ) भूमि एवं जल संसाधन मानचित्रण
(ब) जल समस्या
(स) वनस्पति एवं पशु-पालन
(द) मानव संसाधन
5.5.3 अन्य राष्ट्रीय विकास एवं सामाजिक कार्य
समुदाय को संगठित करने के लिये लघु बचत, अंध्रता निवारण, परिवार, कल्याण, साक्षरता अभियान, पल्स पोलियो अभियान तथा अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों के लिये शिविर आयोजित किये जा सकते हैं। साक्षरता अभियान के तहत उन प्रशिक्षणार्थियों को जिन्होंने जिला साक्षरता समिति या पी.आई.ए. द्वारा आयोजित परीक्षा पास कर ली हो।
5.5.4 समुदाय को संगठित करना
एक जैसी समस्या/जरूरत वाले व्यक्तियों को छोटे-छोटे समूह में संगठित करना ही सामुदायिक संगठन है। जलग्रहण विकास कार्यक्रम की सफलता के लिये समुदाय को संगठित करना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके माध्यम से ही ग्रामीण समुदाय को विकास की नई अवधारणा से जोड़ सकते हैं।
(अ) समुदाय को संगठित करने के लाभ
i. ग्रामीण समाज की कार्यक्रम में भागीदारी सुनिश्चित होती है।
ii. स्थानीय परम्परागत ज्ञान तथा कौशल का उपयोग होता है।
iii. कार्यक्रम के प्रभाव का स्थायित्व बना रहता है।
iii. कम लागत व अल्प अवधि में क्रियान्वयन हो जाता है।
(ब) सामुदायिक संगठन के अंतर्गत क्या करें?
i. जलग्रहण क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण समाज के लोगों को ऐसे स्थान पर जहाँ जलग्रहण विकास कार्यक्रम अपनाकर बहुत अच्छा कार्य हुआ है तथा जिसे देखकर ग्रामीण प्रेरणा पा सके वहाँ ले जाना।
ii. जन चेतना जाग्रत करने के लिये जलग्रहण क्षेत्र स्तर एवं जिला स्तर पर कार्यशाला, सेमीनार, प्रभात फेरी, कठपुतली शो आदि आयोजित किये जा सकते हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य ग्रामीण समाज को जलग्रहण विकास कार्यों की नई प्रणाली से अवगत कराना है एवं साथ-साथ कार्यक्रम के फायदों के बारे में जानकारी देकर संगठित करना भी है।
iii. जलग्रहण क्षेत्र में जन सहयोग एवं जन सहभागिता से संसाधनों की मेपिंग उनकी वर्तमान स्थिति तथा सुधार के लिये उठाये जाने वाले कार्यों की समझ विकसित करने हेतु जन सहभागिता से कार्यों का अभ्यास करना आवश्यक है।
iv. जलग्रहण विकास दल द्वारा जलग्रहण संस्था, उपयोगकर्ता समूह, स्वयं सहायक समूह व जलग्रहण क्षेत्र कमेटी का गठन करना। इस बारे में विस्तृत जानकारी अगले अध्याय (संस्थागत व्यवस्थाएँ) में वर्णित की गई है।
5.6 प्रशिक्षण (Training)
जलग्रहण विकास कार्यक्रम की विभिन्न गतिविधियों को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने हेतु क्षेत्र के उपभोक्ताओं, जलग्रहण सचिव एवं स्वयं-सेवकों और जलग्रहण विकास दल को प्रशिक्षण देने का कार्य इसमें शामिल है।
5.6.1 जलग्रहण कमेटी हेतु प्रशिक्षण
i. सामूहिक कार्य व बैठकें आयोजित करना।
ii. सिविल कार्य करवाना एवं उनका हिसाब रखना।
iii. अभिलेख संधारण।
iv. पंचायती राज संस्थाओं, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण एवं सरकारी विभागों के प्रशासनिक एवं हिसाब संधारण के तरीके।
5.6.2 उपभोक्ताओं एवं स्वयं सहायक समूह हेतु प्रशिक्षण
i. उपभोक्ताओं के खेतों में मिट्टी व पानी के संरक्षण की विधियाँ
ii. सामुदायिक निजी/सिविल कार्य
iii. कृषि/उद्यान एवं बागवानी/सामाजिक वानिकी/पेड़ लगाने की विधियाँ
iv. सामूहिक निजी पौधशालाएँ स्थापित करना
v. पशुपालन एवं प्रबंध
vi. चारा व घास प्रबंध
vii. मछली पालन, संवर्द्धन एवं भूमि के अन्य उपयोग यह सभी प्रशिक्षण कार्यक्रम ग्राम जिला स्तर पर समय-समय पर आयोजित किये जायेंगे जिसमें जलग्रहण संस्था एवं जलग्रहण कमेटी की भागीदारी आवश्यक है। इनके अलावा उपभोक्ता समूहों, स्वयं सहायक समूहों एवं स्वयं सेवकों का प्रशिक्षण ग्राम स्तर पर जलग्रहण विकास दल के सदस्यों द्वारा किया जायेगा।
5.7 संस्थागत व्यवस्थाएँ (Institutional Arrangements)
जलग्रहण विकास कार्यक्रम के अंतर्गत विशाल पूँजी निवेश एवं कार्यक्रम के फैलाव को ध्यान में रखते हुये इसे जन सहभागिता का कार्यक्रम बनाने के उद्देश्य से इस कार्य के परम्परागत सरकारी विभागों के अलावा क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवी संस्थाओं, अर्द्ध सरकारी संस्थानों, निजी संस्थानों लाभान्वित सदस्यों आदि का सहयोग लेना आवश्यक है। अतः जलग्रहण विकास कार्यक्रम में एक सुनिश्चित संस्थागत व्यवस्था की गई है।
राष्ट्रीय स्तर (ग्रामीण विकास मंत्रालय एवं कृषि मंत्रालय, भारत सरकार)
i. ग्रामीण विकास कृषि मंत्रालय जलग्रहण विकास कार्यक्रमों हेतु राशि आवंटित करता है।
ii. जलग्रहण विकास कार्यक्रम किस जिले व पंचायत समिति में क्रियान्वित किये जाएँगे इसकी अधिसूची ग्रामीण विकास मंत्रालय कृषि मंत्रालय द्वारा दी जाती है।
iii. ग्रामीण विकास मंत्रालय कृषि मंत्रालय द्वारा जलग्रहण विकास योजनाओं के कार्यों का योजना के दौरान एवं योजना के पूर्ण हो जाने के बाद मूल्यांकन करने हेतु गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं की नियुक्ति का कार्य किया जाता है।
राज्य स्तर पर (आययुक्तालय जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण-काॅमन मार्गदर्शिकानुसार वर्तमान में गठित राज्य नोडल एजेंसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का कार्यालय)
i. कार्यकारी विभागों, कृषि विश्वविधालय, स्वयंसेवी संस्थानों एवं प्रशिक्षण संस्थानों में समन्वय सुनिश्चित करने के लिये राज्य स्तर पर पृथक से जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग कार्यरत है।
ii. भारत सरकार द्वारा जारी नवीन काॅमन के मार्गदर्शिकानुसार राज्य स्तर पर राज्य नोडल एजेंसी का गठन किया गया है जिसकी अध्यक्षता अतिरिक्त मुख्य सचिव (विकास) द्वारा की जानी है तथा उक्त नोडल एजेंसी के सदस्य सचिव एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी, आयुक्त जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण घोषित किये गये हैं।
iii. आयुक्तालय जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग को राज्य नोडल एजेंसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का कार्यालय घोषित किया गया है।
iv. कमेटी के सदस्यों में विभिन्न संबद्ध विभागों के प्रमुख शासन सचिव, शासन सचिव विभागाध्यक्ष, कृषि विश्व विद्यालय, अनुसंधान संस्थान, गैर सरकारी संस्था इत्यादि के प्रतिनिधि भी सम्मिलित किये गये हैं। उक्त नोडल एजेंसी का कार्य राज्य में चल रहे समस्त जलग्रहण विकास कार्यक्रमों की नियमित समीक्षा करने के साथ-साथ योजना से सम्बन्धित नीतिगत निर्देश प्रदान करना है।
जिलास्तर पर (ग्रामीण विकास प्रकोष्ठ)
i. जिला परिषद स्तर पर ग्रामीण विकास प्रकोष्ठ इस कार्यक्रम का क्रियान्वयन करता है।
ii. जलग्रहण क्षेत्र विकास योजना का अनुमोदन करता है।
iii. योजना क्रियान्वयन समितियों का चयन करता है।
iv. कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु धनराशि सीधे ही भारत सरकार/राज्य सरकार से प्राप्त करता परियोजना क्रियान्वयन कमेटी, जलग्रहण विकास दल और ग्राम स्तरीय जलग्रहण विकास समिति पर पूर्ण प्रशासनिक एवं वित्तीय नियंत्रण होता है।
v. हिसाब रखने, सामुदायिक संस्था अभियान, कृषक प्रशिक्षण एवं क्षेत्र के दौरे आदि के बारे में प्रपत्र 7 मापदंड तय करता है।
vi. इस हेतु जिला स्तर पर जिला जलग्रहण विकास समिति एवं जिला दर निर्धारण समिति कार्यरत है जो कार्यक्रम की समीक्षा के साथ-साथ नीतिगत सपोर्ट उपलब्ध कराती है। इस कमेटी के अध्यक्ष जिला प्रमुख, जिला परिषद होते हैं।
vii. अधिशाषी अभियन्ता (भू-संसाधन) ग्रामीण विकास प्रकोष्ठ एवं परियोजना अधिकारी (अभियांत्रिकी) जिला परिषद उक्त समितियों के सदस्य सचिव होते हैं।
परियोजना क्रियान्वयन एजेंसी
परियोजना क्रियान्वयन एजेंसी जिला स्तर पर बनी ऐसी स्वयंसेवी संस्था/अन्य संस्था है जो जलग्रहण विकास का कार्य हाथ में लेने को तैयार हो। अन्य संस्था में विश्व विद्यालय, कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, निगम, सहकारी/सार्वजनिक बैंक, निजी वाणिज्यिक संस्था एवं पंचायतीराज संस्थाएँ आदि शामिल हैं।
एजेंसी के कार्य
i. ग्राम पंचायतों को जन सहयोग लेने हेतु प्रोत्साहित करना।
ii. ग्रामीण सहभागिता से कार्य करवाना।
iii. जन सहयोग से जलग्रहण विकास योजनाएँ बनाना।
iv. सामुदायिक संगठन, बनाना, प्रशिक्षण दिलवाना, तकनीकी सलाह देना, जलग्रहण विकास कार्यों का संधारण करना।
v. पूरी योजना क्रियान्वयन का प्रबंध करना।
vi. योजना क्रियान्वयन की जाँच एवं मूल्यांकन करना।
vii. योजना पूर्ण हो जाने पर उसके संचालन, संधारण और सृजित सम्पतियों का और विकास करना।
जलग्रहण विकास दल (डब्ल्यू. डी.टी.)
प्रत्येक परियोजना क्रियान्वयन एजेंसी अपने कार्य करवाने हेतु जलग्रहण विकास दल का गठन है।
i. पूर्व की मार्गदर्शिका जैसे हरियाली अनुसार संचालित जलग्रहण क्षेत्रों हेतु इस दल के निम्नलिखित सदस्य विभिन्न अनुशासनों से लिये जाते हैं।
ii. इस दल में कम से कम चार सदस्य होते हैं, इसमें एक-एक सदस्य पौध विज्ञान, पशु विज्ञान, सिविल/कृषि अभियांत्रिकी एवं सामाजिक विज्ञान से होता है।
iii. दल के वरिष्ठ सदस्य को दल का नेता मनोनीत किया जाता है।
iv. प्रत्येक जलग्रहण विकास दल 10-12 जलग्रहण विकास योजनाओं का क्रियान्वयन करता है।
v. जलग्रहण विकासदल को निर्धारित मापदंड के अनुसार प्रशासनिक व्यय देय होता है। यह व्यय जलग्रहण विकास योजना के लिये निर्धारित व्यय में से किया जाता है।
vi. काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण विकास दल में मुख्यतः कृषि, मृदा विज्ञान जल प्रबंधन, सामाजिक संगठन तथा संस्थागत निर्माण में व्यापक जानकारी और अनुभव रखने वाले कम से कम 4 सदस्य शामिल किये जाने का उल्लेख किया गया है तथा कम से कम 1 सदस्य महिला का होना भी वर्णित है।
vii. जलग्रहण विकास दल के सदस्यों के पास व्यावसायिक डिग्री होनी चाहिए, शैक्षणिक योग्यता में क्षेत्रीय अनुभव को ध्यान में रखते हुए राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी द्वारा छूट प्रदान की जा सकती है।
5.8 जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम में जनसहभागिता (Participation in the Watershed Development Programme)
पूर्व में जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत मिट्टी और पानी के संरक्षण के उपायों को अलग-अलग क्षेत्रों में, खण्ड-खण्ड पद्धति अपनाते हुए क्रियान्वित किया जाता था योजना को प्रदेश या केन्द्र स्तर पर मंजूर कर निचले स्तर पर लाकर क्रियान्वित कराने की विधि अपनाई जाती थी। संक्षेप में अभी तक योजना के क्रियान्वयन का दायित्व उन लोगों को सौंपा गया जो योजना से लाभान्वित (ग्रामीण समुदाय) नहीं थे।
इस प्रक्रिया के कारण ग्रामीण समुदाय भावनात्मक रूप से योजना से जुड़ नहीं पाया और उसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके। अब यह महसूस किया गया कि जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम की सफलता तभी सुनिश्चित की जा सकती हैं जब लाभान्वित समाज/व्यक्ति को योजना के विभिन्न पक्षों को जोड़ा जाए।
5.9 संस्थागत व्यवस्थाओं में जनसहभागिता क्यों? (Why Participation in Institutional Arrangement)
i. अनुपयुक्त प्रशासनिक प्रबंध के प्रभाव को कम करने के लिये।
ii. आवश्यकताओं एवं समस्याओं के कारण जानने, उनकी पहचान करने और उनकी महत्ता एवं वरीयता मालूम करने के लिये।
iii. पारंपरिक तकनीकी ज्ञान के उपयोग के लिये जाति आधारित ग्रामीण शक्तियों के प्रभाव, भू-स्वामियों तथा भूमिहीनों के बीच अंतर व धनवानों तथा निर्धनों के साथ किये जाने वाले भेद-भाव को कम करने के लिये।
iv. पूर्ण किये गये निर्माण कार्यों का संचालन रख-रखाव स्वयं उपभोक्ता द्वारा करने के लिये।
v. स्वामित्व का अहसास विकसित करने हेतु।
5.10 कार्यक्रम क्रियान्वयन हेतु विभिन्न समूहों का गठन (Formation of Different Groups for Programme Implementation)
जन सहभागिता के माध्यम से जलग्रहण विकास कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु चयनित जलग्रहण क्षेत्र में निम्न समूह गठित किये जाने का प्रावधान है।
i. उपभोक्ता समूह
ii. स्वयं सहायक समूह
iii.bजलग्रहण संस्था
iv. जलग्रहण कमेटी
v. जलग्रहण सचिव एवं स्वयं सेवक
5.10.1 उपभोक्ता समूह
अ. उपभोक्ता समूह क्या है?
जलग्रहण विकास कार्यक्रम से जुड़े प्रत्येक कार्य/गतिविधि से लाभान्वित एवं प्रभावित व्यक्तियों के समूह।
मुख्यतः छः प्रकार के समूह बनाये जाते हैः
1. निजी भूमि पर भूमि मृदा सम्बन्धित विकास क्रियाएँ जैसे कन्टर बंडिग हेतु
2. निजी सार्वजनिक भूमि पर जल सम्बन्धित विकास क्रियाएँ जैसे खडीन टांका हेतु
3. सार्वजनिक जमीन पर वानस्पतिक क्रियाएँ जैसे चारागाह विकास हेतु
4. निजी भूमि पर फसल सम्बन्धित विकास क्रियाएँ जैसे-
(1) फसल प्रदर्शन हेतु
(2) बागवानी हेतु
5. पशुधन विकास क्रियाएँ
6. नाला उपचार सम्बन्धी विभिन्न क्रियाएँ जैसे चेकडैम एनिकट आदि
ब. उपभोक्ता समूह का गठन
जलग्रहण विकास दल के सदस्य उपभोक्ता समूह का गठन कराएँगे। समूह का गठन निम्न प्रकार से किया जाएगाः-
i. समस्या पीड़ित व्यक्तियों के साथ बैठक आयोजित करना।
ii. समस्या के प्रभाव से अवगत कराकर उनके दायित्व का बोध कराना।
iii. उन्हें ऐसे स्थानों का भ्रमण कराना जहाँ समस्या का समाधान प्रदर्शित होता हो।
iv. उनमें इतना आत्मविश्वास पैदा करना ताकि वे अपना कार्य स्वयं कर सके।
v. समस्या के समाधान हेतु उपचार विधि की पहचान करना, ट्रेनिंग व कार्य योजना तैयार करना।
vi. उपरोक्त विधि अपना कर प्रत्येक कार्य/उपचार से प्रभावित (लाभान्वित) व्यक्तियों के छोटे-छोटे समूह बनाना।
उदाहरण
1. जल रिसाव तालाब निर्माण के निम्न समूह बनेंगे
i. तालाब के बनाने से लाभान्वित व्यक्तियों का समूह जिनके कुओं का जल स्तर बढ़ गया हो।
ii. तालाब के बनाने से जिन कृषकों की जमीनें डूब गई हो।
iii. गरीब संसाधनहीन किसान जो अपनी पानी की आवश्यकता क्षेत्र में स्थित कुओं से पूरी करते हो।
iv. निचले क्षेत्र के वे किसान जो जल रिसाव तालाब बनने के पूर्व इस पानी का फायदा उठा रहे हो, तालाब बन जाने के कारण पानी न मिलने से नुकसान होगा।
2. एनिकट निर्माण से लाभान्वितों का समूह
3. बागवानी कार्य में इच्छुक व्यक्तियों का समूह
स. उपभोक्ता समूह किस प्रकार सहायक हैं?
i. उपभोक्ता ही अपनी समस्या अधिक जानता है अतः उसका उपचार करने में वह सहायक हैं उचित कहावत भी है ‘पहनने वाले को ही मालूम है कि जूता कहाँ चुभता है’ अर्थात अभियांत्रिकी कार्यों की रूप-रेखा के तकनीकी विवरण या वन के पेड़ो की किस्म का चुनाव या चारे की फसल आदि के बारे में उपभोक्ता समूह ही समझता है और उपभोक्ता समूह स्वयं उचित निर्णय ले सकता है।
ii. उपभोक्ता की सहभागिता होने से क्या मिलने में आसानी होगी।
iii. उपभोक्ता द्वारा क्रियान्वयन से कार्य की गुणवत्ता भी बेहतर होगी क्योंकि लाभान्वित भी वही हैं अतः वह कार्य अच्छा सम्पन्न कराएगा।
iv. उपभोक्ता समूह सदस्यों को इस बात के लिये राजी करना कि वे कार्यों के पूर्ण हो जाने पर उन्हें अपने अधिकार में लेकर उनकी देखभाल करेंगे।
द. उपभोक्ता समूह की सफलता के मापदण्ड
i. जलग्रहण क्षेत्र के करीब 50 प्रतिशत परिवार एक उपभोक्ता समूह के सदस्य होने चाहिये।
ii. जलग्रहण क्षेत्र के करीब 80 प्रतिशत कार्य गतिविधियाँ उपभोक्ता समूह द्वारा पूरी की जानी चाहिये।
iii. उपभोक्ता समूह के कम से कम 80 प्रतिशत सदस्य महीने में एक बार नियमित रूप से मिलें व आपस में सलाह कर निर्णय लें।
iv. उपभोक्ता समूह में 80 प्रतिशत सदस्य ऐसे होने चाहिये, जिन्होंने योजना के विभिन्न कार्यों के क्रियान्वयन हेतु नकद, सामान या श्रमदान अपने हिस्से के रूप में लगाया हो।
v. उपभोक्ता समूह के 80 प्रतिशत सदस्य नियमित रूप से अपने लेखे जलग्रहण विकास कमेटी एवं जलग्रहण विकास कमेटी एवं जलग्रहण विकास दल को प्रेरित करते हो।
vi. उपभोक्ता समूह के 80 प्रतिशत सदस्य सामुदायिक भूमि पर किये गये विकास कार्यों के संचालन एवं उनकी देखभाल का कार्य अपने हाथ में लें।
(द) उपभोक्ता समूह के कर्तव्य एवं अधिकार
i. योजना के सारे कार्य उपभोक्ता समूहों द्वारा किये जाएँगे।
ii. योजना से प्राप्त होने वाले लाभ समूह के सभी सदस्यों को बराबर मिलना चाहिये।
iii. यदि कार्य करने में समूह के सदस्यों में मतभेद हो तो उसे आपस में वार्ता कर दूर कर लेना चाहिये।
iv. प्रत्येक विकास गतिविधि से लाभ तुरंत लेने, बाद में लेने या लगातार लेने एवं उनके लिये देय अंशदान के संबंध में उपभोक्ता समूह स्वयं निर्णय ले सकता है।
v. क्षेत्र में क्रियान्वित किये जाने वाले प्रत्येक कार्य गतिविधि के लिये समयबद्ध कार्यक्रम उसके लागत अनुमान, रूपरेखा एवं उसे क्रियान्वयन की कार्य विधि आदि की कार्य योजना जलग्रहण विकास दल के सदस्यों की मदद से बनाएँगे व इन कार्य योजनाओं को जलग्रहण कमेटी को प्रेरित करेंगे।
vi. कार्यों के पूर्ण हो जाने पर उन्हें अपने अधिकार में लेकर उनकी देखभाल/संधारण करना।
vii. प्रत्येक उपभोक्ता समूह उनके द्वारा क्रियान्वित प्रत्येक कार्य/गतिविधि का हिसाब रखेंगे व जलग्रहण कमेटी की मदद से बिल बनाने का कार्य करेंगे।
viii. प्रत्येक समूह एक रजिस्टर बनाकर उसमें उपभोक्ता का नाम, उसके द्वारा दी गई श्रम एवं सामग्री व उसकी कीमत दर्ज करेगा।
5.10.2 स्वयं सहायक समूह (Self help Groups)
अ. स्वयं सहायक समूह क्या है?
आय मूलक गतिविधियों से जुड़े व समान उद्देश्य वाले व्यक्तियों के विभिन्न समूह।
ब. स्वयं सहायक समूह का गठन
जलग्रहण विकास दल, जनसहभागिता अभ्यास (पी.आर.ए.) प्रक्रिया की मदद से आय मूलक गतिविधियों का चयन कर प्रत्येक गतिविधि/समूह विशेष हेतु स्वयं सहायता समूह का गठन करेगा जैसेः-
कृषि श्रमिक
नर्सरी
दुग्ध उद्योग
कृषक
महिलायें व कुटरी उद्योग
कृषक
रस्सी उद्योग
सब्जी बेचने वाले
टोकरी उद्योग
अनुसूचित जाति/जन जाति
अल्प बचत - अन्य समान उद्देश्य के कार्य करने वालों के अलग-अलग समूह
स. स्वयं सहायक समूह को आर्थिक सहायता कहाँ से?
जलग्रहण विकास दल परियोजना खाते की राशि (रिवोल्विंग कोष) में से रुपये 1,00 0,00/- को उपयुक्त। अंशदान (रुपये 10,000 तक) के रूप में प्रत्येक स्वयं सहायता समूह को आगे बढ़ने हेतु अग्रिम देगा।
यह राशि इन समूहों से 6 माहवारी किश्तों में वसूल की जाएगी व वापस उसी समूह या अन्य समूह में निवेश की जाएगी।
परियोजना के अंतिम वर्ष में इस राशि को कार्यमद के उपयोग में लिया जाएगा।
द. स्वयं सहायता समूह के कर्तव्य एवं अधिकार
स्वयं सहायक समूह का मुख्य कार्य अपने समूह के सदस्यों के पास और मौजूद संसाधनों से बचत कराकर अपने दूसरे ज़रूरतमंद सदस्यों को अग्रिम देना।
प्रत्येक स्वयं सहायक समूह आमदनी बढ़ाने वाली गतिविधियों को बढ़ाने हेतु रूपये 10,000 तक जलग्रहण विकास दल के रिवाल्विंग कोष में से अंशदान के रूप में ले सकता है।
प्रत्येक स्वयं सहायक समूह उनके द्वारा कराई गई गतिविधि का हिसाब अलग से रखेगा।
य. स्वयं सहायक समूह की सफलता के मापदण्ड
जलग्रहण क्षेत्र के करीब 50 प्रतिशत वे व्यक्ति जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जलग्रहण क्षेत्र पर निर्भर है, उनको स्वयं सहायक समूह का सदस्य बनाना।
स्वयं सहायक समूह के करीब 80 प्रतिशत सदस्यों द्वारा-
महीने में कम से कम एक बार मिलकर आपस में वार्ता कर निर्णय लेना।
क्षेत्र में सृजित 50 प्रतिशत संसाधनों का व्यवसाय सदस्यों द्वारा आपस में करना।
करीब 80 प्रतिशत बकाया राशि को समय पर वसूली करना।
हिसाब का पूरी तरह से संधारण करना।
र. समूह बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें-
समूह छोटे हों।
समूह का गठन, आय बढ़ाने वाले कार्य एवं समस्या के आधार पर हो।
समूह में एक समान हैसियत व समस्या वाले व्यक्ति हो।
समूह के सदस्य सामूहिक रूप से कार्य करने व योजना बनाने हेतु अच्छी तरह से अभ्यस्त हो।
ल. समूह कैसे बनाएँ?
समूह चर्चा व पी.आर.ए. अभ्यास के दौरान समान सोच वाले व्यक्तियों को पहचानें
उन्हें एकत्रित करें।
उनका ध्यान समस्या आवश्यकता पर केन्द्रित करें।
उनके अलग-अलग समूह बनाएँ।
प्रत्येक समूह को विकास हेतु प्रोत्साहित करें।
5.10.3 जलग्रहण संस्था (Water Association)
पूर्व में जारी जन सहभागिता मार्गदर्शिका में इसका उल्लेख किया गया है परन्तु वर्तमान में भारत सरकार द्वारा जारी नई काॅमन मार्गदर्शिका में इसका उल्लेख नहीं है। जलग्रहण संस्था की अवधारणा जलग्रहण क्षेत्र में आने वाले समस्त लाभार्थियों को सम्मिलित करते हुए एक सभा का स्वरूप दिए जाने के उद्देश्य से की गई थी।
अ. उद्देश्य
स्वयं सेवक दल एवं उपभोक्ता दल के सदस्य एक साथ बैठकर जलग्रहण विकास कार्यक्रम से संबंधित समस्याओं पर विचार विमर्श कर सकें।
ब. संस्था का गठन
स्वयं सहायक समूह/उपभोक्ता समूह जब संगठित हो जाएँ तब जलग्रहण विकास दल को सभी स्वयं सहायक समूह एवं उपभोक्ता समूह/ग्राम सभा के सदस्यों की एक सभा बुलानी चाहिये। इस सभा का नाम जलग्रहण संस्था होगा। इस तरह से बनी जलग्रहण संस्था को एक सोसायटी के रूप में सोसायटी कानून के अन्तर्गत पंजीकृत कराना होगा।
स. जलग्रहण संस्था के अध्यक्ष का चुनाव
जलग्रहण संस्था अपने अध्यक्ष का चुनाव (चुनाव प्रक्रिया या आम सहमति से) करेगी जो कार्यालय कर्मचारियों एवं जलग्रहण कमेटी से अलग होगा।
द. जलग्रहण संस्था के कार्य एवं अधिकार
जलग्रहण संस्था स्वयं अपनी कार्यविधि निर्धारित करेगी।
जलग्रहण कमेटी का गठन, संस्था अपने सदस्यों को कमेटी के सदस्यों के रूप में मनोनीत करने के लिये आसान नियम बनाएगी।
जरूरत के अनुसार अपनी बैठक आयोजित कर सकती है। वर्ष में दो बार कार्यक्रम के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में बैठक आयोजित करना जरूरी है।
जलग्रहण संस्था को परियोजनाओं के उपभोक्ताओं से अंशदान आदि लेने का अधिकार प्राप्त
जलग्रहण कमेटी द्वारा प्रेरित योजना की रूप-रेखा जलग्रहण विकास दल की सिफारिश से जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण को स्वीकृति एवं राशि के आवंटन हेतु प्रेरित करना।
जलग्रहण कार्यक्रम का पूरा पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण।
योजना समाप्त हो जाने पर भी सृजित परिसम्पत्तियों का संचालन एवं संधारण करना व इन कार्यों हेतु कितने स्थाई कर्मचारी रखना है, का अधिकार।
5.10.4 जलग्रहण कमेटी (Water Committee)
जलग्रहण कमेटी का गठन जलग्रहण संस्था द्वारा किया जाएगा।
इस कमेटी पर जलग्रहण संस्था का नियंत्रण होगा।
इस कमेटी का एक अध्यक्ष होगा जिसका फैसला कमेटी स्वयं करेगी।
कमेटी में महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य व गडरिया समूह आदि के सदस्य शामिल किये जाएँगे।
(अ) जलग्रहण कमेटी का सदस्य कौन बन सकता है?
उपभोक्ता समूह के 4-5 सदस्य।
स्वयं सहायक समूह के 4 सदस्य।
ग्राम पंचायत के 2-3 सदस्य।
एक सदस्य जलग्रहण विकास दल से जलग्रहण संस्था अपने सदस्यों (उपभोक्ता समूह/स्वयं सहायक समूह) को क्रमवार जलग्रहण कमेटी के सदस्य के रूप में मनोनीत करने के लिये सरल एवं आसान नियम स्वयं बनाएगी।
(ब) कमेटी के कार्य एवं अधिकार
जलग्रहण संस्था द्वारा आवंटित सभी कार्य।
जलग्रहण सचिव एवं 2-3 स्वयं सेवकों की नियुक्ति व इनका वेतन किस रूप में देना है, वेतन के रूप में मानदेय के रूप में, का निर्णय लेना।
किसी भी राष्ट्रीयकृत सहकारी बैंक की स्थानीय शाखा में अपने नाम से परियोजना खाता खुलवाना।
खाते से राशि जलग्रहण कमेटी के अध्यक्ष, सचिव एवं जलग्रहण विकास दल के सदस्यों के हस्ताक्षरों के बाद निकाली जाएगी।
जलग्रहण परियोजना खाते में राशि आवंटन हेतु प्रार्थना पत्र जलग्रहण कमेटी के अध्यक्ष एवं सचिव के हस्ताक्षर से जलग्रहण विकास दल की मदद से जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण को प्रेरित करना।
बैंक की स्थानीय शाखा में जलग्रहण विकास कोष के नाम से एक अलग खाता खोलना, जो सामूहिक रूप से जलग्रहण संस्था के अध्यक्ष, जलग्रहण कमेटी एवं जलग्रहण विकास दल के नेता द्वारा चलाया जाएगा।
उपभोक्ताओं से सेवा शुल्क/अंशदान लेना व उसे विकास कोष में जमा कराना।
उपभोक्ताओं समूह द्वारा प्राप्त प्रत्येक कार्य/गतिविधि की कार्य योजना को जलग्रहण विकास दल के परामर्श से योजना बनाकर जलग्रहण संस्था को प्रेरित करना।
जलग्रहण विकास कार्यों में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना।
कार्यों की नपती एवं उनके हिसाब/बिल की जाँच करना व निरीक्षण पश्चात ही इनके भुगतान का अनुमोदन करना।
क्रियान्वित कार्य की अच्छी किस्म व लेखों के सही संधारण की ज़िम्मेदारी लेना।
यह सुनिश्चित करना कि उनके द्वारा किये कार्यों एवं उनके हिसाब के लेखों का संधारण जिला परिषद/जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा निर्धारित प्रपत्रों में किया गया है।
जलग्रहण सचिव एवं स्वयं सेवक
अ. सचिव कौन बन सकता है?
व्यक्ति उसी गाँव का या आस-पास के गाँव का हो।
जो व्यक्ति योजना काल तक उसी गाँव में रह सके।
शिक्षा में स्नातक डिग्री को प्राथमिकता है।
ब. स्वयं सेवक कौन बन सकता है?
व्यक्ति उसी गाँव का हो व सामुदायिक नेताओं को विचार धारा देने वाला हो।
तीन स्वयं सेवकों में एक महिला, एक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति का व्यक्ति एवं एक अन्य समुदाय का व्यक्ति होगा।
स. सचिव एवं स्वयं सेवकों की नियुक्ति
जलग्रहण कमेटी, जलग्रहण विकास दल के नेता की मदद से निर्धारित योग्यता वाले व्यक्तियों में सचिव एवं स्वयं सेवकों की नियुक्ति हेतु प्रार्थना पत्र आमंत्रित करेगी।
जलग्रहण कमेटी प्राप्त प्रार्थना पत्र की जाँच कर योग्य व्यक्तियों को साक्षात्कार हेतु बुलाएगी एवं सचिव तथा स्वयं सेवकों की नियुक्ति का निर्णय लेगी।
जलग्रहण कमेटी सचिव एवं स्वयं सेवकों को दिये जाने वाले भत्तों के बारे में स्वयं निर्णय लेगी कि कितनी राशि देनी है व उसके रूप में देना है। वेतन के रूप में या विशेष कार्यों हेतु निर्धारित मानदेय के रूप में।
द. सचिव एवं स्वयं सेवक का कार्य भत्ता
जलग्रहण विकास दल द्वारा सचिव एवं स्वयं सेवक का संस्थापन व्यय परियोजना के प्रशासनिक व्यय से दिया जाएगा। सचिव एवं स्वयं सेवक के संस्थापन व्यय की परियोजना काल तक की सीमा रूपये 96,000/- है।
स. सचिव/स्वयं सेवक के कार्य
जलग्रहण संस्था एवं जलग्रहण कमेटी की बैठक बुलाने के लिये जिम्मेवार होगा एवं इनमें हुए निर्णयों का क्रियान्वयन कराएगा।
जलग्रहण संस्था एवं जलग्रहण कमेटी के अभिलेख एवं हिसाब का संधारण करेगा।
योजना के कार्यों पर किये जाने वाले खर्चे के रूपये 1000/- तक की स्वीकृति।
स्वयं सेवक, उपभोक्ता समूह/स्वयं सहायक समूह द्वारा किये कार्यों के हिसाब के संचालन के जिम्मेवार होंगे।
सचिव कार्यों के हिसाब की जाँच कर कमेटी को प्रस्तुत करेगा।
उपभोक्ता समूह एवं स्वयं सहायक समूह को भी हिसाब रखने में मदद करेगा।
5.11 काॅमन मार्गदर्शिकानुसार संस्थागत व्यवस्थाएँ (Institutional Arrangement as per common Guidelines)
राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी, जिला स्तर पर जिला जलग्रहण विकास इकाई जिनमें बहुसंकाय के विषय विशेषज्ञ सम्मिलित होंगे तथा परियोजना क्रियान्वयन संस्था के स्तर पर पूर्व में उल्लेखित न्यूनतम 4 सदस्यीय जलग्रहण विकास दल के गठन के अतिरिक्त प्रत्येक जलग्रहण क्षेत्र में ग्राम स्तर पर निम्नानुसार संस्थागत व्यवस्थाएँ कराए जाने का उल्लेख काॅमन मार्गदर्शिका में किया गया है। प्रत्येक विद्यार्थी को काॅमन मार्गदर्शिका के हिन्दी संस्करण का सघन अध्ययन करना हितकर होगा।
5.11.1 स्वयं सहायता समूह
जलग्रहण समिति (डब्ल्यू.सी.), जलग्रहण विकास दल की सहायता से गरीब, छोटे तथा सीमान्त किसानों के परिवारों, भूमिहीन/सम्पतिहीन गरीब, खेतिहर मजदूरों, महिलाओं, चरवाहों, तथा अनुसूचित जाति/अनुसुचित जनजाति के व्यक्तियों में से जलग्रहण क्षेत्र में स्वयं सहायता समूह गठित करेगी। ये समूह समान पहचान तथा हित वाले समरूप समूह होंगे, जो अपनी जीविका के लिये जलग्रहण क्षेत्र पर निर्भर हैं। प्रत्येक स्वयं सहायता समूह को नोडल मंत्रालय द्वारा निर्धारित की जाने वाली राशि की परिक्रामी निधि उपलब्ध करायी जाएगी।
5.11.2 उपभोक्ता समूह
जलग्रहण समिति (डब्ल्यू.सी.) जलग्रहण विकास दल की सहायता से जलग्रहण क्षेत्र में प्रयोक्ता समूह भी गठित करेगी। ये प्रत्येक कार्य/कार्यकलाप से अत्यधिक प्रभावित व्यक्तियों के समनुरुप समूह होंगे और इनमें जलग्रहण क्षेत्र में भूमि-जोत रखने वाले व्यक्ति शामिल होंगे। प्रत्येक उपभोक्ता समूह में वे लोग शामिल होंगे जिन्हें जलग्रहण सम्बन्धी किसी विशिष्ट कार्य का कार्यकलाप से प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होने की सम्भावना है।
5.11.3 जलग्रहण समिति (डब्ल्यू.सी.)
ग्राम सभा जलग्रहण विकास दल की तकनीकी सहायता से वाटरशेड परियोजना करने के लिये गाँव में जलग्रहण समिति (डब्ल्यू.सी.) गठित करेगी। जलग्रहण समिति को रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1860 के अन्तर्गत पंजीकृत कराया जाना होगा। ग्राम सभा गाँव के किसी सुयोग्य व्यक्ति को जलग्रहण समिति के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित नियुक्त कर सकती है। जलग्रहण समिति का सचिव जलग्रहण समिति का वैतनिक कार्यकर्ता होगा। जलग्रहण समिति में कम से कम 10 सदस्य होंगे, जिनमें से आधे सदस्य गाँव में स्वयं सहायता समूहों तथा उपभोक्ताओं समूहों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातीय समुदाय, महिलाओं तथा भूमिहीन व्यक्तियों के प्रतिनिधि होंगे। जलग्रहण विकास दल का एक सदस्य जलग्रहण समिति में भी प्रतिनिधि के रूप में शामिल होगा। जहाँ एक पंचायत में एक से अधिक गाँव शामिल हों, वहाँ वे सम्बन्धित गाँव में जलग्रहण विकास परियोजना के प्रबंधन हेतु प्रत्येक गाँव के लिये एक पृथक उप-समिति गठित करेंगे। जहाँ एक जलग्रहण परियोजना में एक से अधिक पंचायतें शामिल होंगी, वहाँ प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिये अलग से समितियाँ गठित की जाएँगी। जलग्रहण समिति को किराए पर एक स्वतंत्र कार्यालय स्थान उपलब्ध कराया जाएगा।
जलग्रहण समिति जलग्रहण परियोजनाओं के लिये निधियाँ प्राप्त करने हेतु एक पृथक बैंक खाता खोलेगी और इस निधि को अपने कार्यकलापों को करने के लिये उपयोग में लाएगी।
5.11.4 सचिव, जलग्रहण समिति
ग्राम जलग्रहण समिति (डब्ल्यू.सी.) के सचिव का चयन ग्राम सभा की बैठक में किया जाएगा। यह व्यक्ति एक स्वतंत्र वेतनभोगी कार्यकर्ता होगा जो पंचायत सचिव से अलग एवं पृथक होगा।
5.13 सारांश (Summary)
जलग्रहण क्षेत्र भूमि की एक ऐसी इकाई है जिसका जल निकास एक ही बिन्दु स्थान पर होता है। यह क्षेत्र कुछ हेक्टेयर से लेकर कई वर्ग किलोमीटर का हो सकता है। जलग्रहण क्षेत्र में मिट्टी व जल से सम्बन्धित विकास मूल रूप से किया जाता है। जलग्रहण विकास के मुख्य तत्व सामूहिक संगठन एवं प्रशिक्षण, जन सहभागिता, कृषि योग्य भूमि पर संरक्षण एवं उत्पादन पद्धतियाँ, अकृषि योग्य भूमि पर संरक्षण एवं उत्पादन पद्धतियाँ, नाला उपचार, पशुधन विकास आदि है। कार्य सम्पादन जन सहभागिता से किया जाता है।
5.14 संदर्भ सामग्री (Reference material)
1. जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन।
2. बारानी क्षेत्रों की राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना हेतु जारी वरसा-7 मार्गदर्शिका।
3. भू एवं जल संरक्षण-प्रायोगिक मार्गदर्शिका शृंखला-3 श्री एस.सी. महनोत एवं श्री पी.के. सिंह।
4. प्रशिक्षण पुस्तिका-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
5. जलग्रहण मार्गदर्शिका-संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा निर्देश-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
6. जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
7. राजस्थान में जलग्रहण विकास गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
8. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिये जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल।
9. वाटरशेड मैनेजमेन्ट-श्री वी.वी धुवनारायण, श्री जी. शास्त्री, भी. वी.एस. पटनायक।
10. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास-दिशा निर्देशिका।
11. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास-हरियाली मार्गदर्शिका।
12. Compendium of Circulars जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
13. विभिन्न परिपत्र-राज्य सरकार/जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग।
14. जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी स्वयं सहायता समूह मार्गदर्शिका।
15. वर्मी कम्पोस्ट-जैविक कृषि का आधार (प्रशिक्षण पुस्तिका) श्री मनजीत सिंह, श्री शुभकरण सिंह, अर्पण सेवा संस्थान, उदयपुर।
16. इन्दिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री-जलग्रहण प्रकोष्ठ।
17. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका।
18. जलग्रहण का अविरत विकास-श्री आर.सी.एल.मीणा।
19. प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा विकसित सामग्री।
20. भारत सरकार द्वारा जलग्रहण विकास हेतु जारी नवीन काॅमन मार्गदर्शिका।
जलग्रहण विकास - सिद्धांत एवं रणनीति, अप्रैल 2010 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) |
|
1 |
|
2 |
मिट्टी एवं जल संरक्षणः परिभाषा, महत्त्व एवं समस्याएँ उपचार के विकल्प |
3 |
प्राकृतिक संसाधन विकासः वर्तमान स्थिति, बढ़ती जनसंख्या एवं सम्बद्ध समस्याएँ |
4 |
|
5 |
|
6 |
|
7 |
जलग्रहण विकास में संस्थागत व्यवस्थाएँःसमूहों, संस्थाओं का गठन एवं स्थानीय नेतृत्व की पहचान |
8 |
जलग्रहण विकासः दक्षता, वृद्धि, प्रशिक्षण एवं सामुदायिक संगठन |
9 |
जलग्रण प्रबंधनः सतत विकास एवं समग्र विकास, अवधारणा, महत्त्व एवं सिद्धांत |
10 |
|
11 |
TAGS |
development of catchment area in rural rajasthan in hindi, demarcation of catchment areas in hindi, deserts of state in hindi, drought in state in hindi, unemployment in state in hindi, economic development of villages in hindi, population blast in hindi |
/articles/jalagarahana-vaikaasa-kayaa-kayaon-kaaisae-padadhatai-evan-parainaama