दिल्ली जल बोर्ड करता है साफ पानी की सप्लाई का दावा, लेकिन सभी ट्यूबवेलों के सैंपल भी नहीं लिए जाते
दिल्ली जल बोर्ड स्वच्छ पानी सप्लाई करने का बढ़-चढ़कर दावा करता रहा है। लेकिन उसका खुद का आंकड़ा ही उसके दावे को झुठला रहा है। जी हां, जल बोर्ड की टेक्निकल कोर कमेटी की रिपोर्ट दावे पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।
कोर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक साल भर में दिल्ली के विभिन्न इलाकों के ट्यूबवेल से 3700 सैंपल एकत्र किए गए जबकि राजधानी में दिल्ली जल बोर्ड के कुल 4200 ट्यूबवेल हैं। यानी साल भर में बोर्ड अपने भी ट्यूबवेल के पानी तक की जांच नहीं करवा पाया है। जबकि कम से कम हर तीन माह में सैंपल जांच जरूरी है।
जलबोर्ड सूत्र के मुताबिक मौजूदा व्यवस्था में जितनी सैंपल ले लिया जाता वही काफी है क्योंकि उनके पास पर्याप्त संख्या में स्टॉफ नहीं है। उनके मुताबिक इस काम के लिए अनुबंध पर कुछ कर्मचारियों की भर्ती की गई है लेकिन अब भी नाकाफी है। इसके अलावा 57 सालों से पाइपलाइन नहीं बदली गई है और खराब वॉल्व व पुरानी पाइपलाइन कारण 40 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है।
इतना ही नहीं कई जगह सीवर के साथ-साथ जल बोर्ड की पाइपलाइन के लीकेज की शिकायतें भी अक्सर मिलती रहती है। कैग रिपोर्ट में भी साफ-साफ शब्दों में कहा गया है कि सरकार गुणवत्ता को लेकर जो भी दावे कर रही है, उनमें से एक पर भी खरी नहीं उतर पा रही है।
कैग के मुताबिक सरकार के अंतर्गत आने वाले जल बोर्ड के सारे दावे हकीकत से परे हैं। बता दें कि दिल्ली के 75 फीसद घरों में ही जलबोर्ड की कनेक्शन लगी हुई है जबकि बाकी घरों में बोरवेल्स या टैंकर के जरिए पानी पहुंचता है। दिल्ली के कुल क्षेत्र के 54 फीसदी क्षेत्र में ही जल बोर्ड का कनेक्शन है।
इस संबंध में जब दिल्ली जल बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की तो उन्होंने इस तरह की दिक्कतें होने की बात स्वीकार की लेकिन साथ ही यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि दिल्ली में पानी के निजीकरण का काम शुरू हो चुका है, जल्द इस तरह की समस्या समाप्त हो जाएगी। उन्होंने मालवीयनगर, वसंत विहार और महरौली स्थित भूमिगत जलाशयों को निजी हाथों में सौंप दिया है।
हालांकि जल बोर्ड के अधिकारी के इस जवाब पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सिटीजेंस फ्रंट फॉर डेमोक्रेसी के संयोजक एस.ए.नकवी के मुताबिक अधिकारी के जवाब से साफ पता चलता है कि वह अभी की व्यवस्था पर बात करने से कतरा रहे हैं और भविष्य की योजना की बात कर जनता को लॉलीपॉप थमाना चाहते हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या निजीकरण ही इसका सॉल्यूशन है। नकवी के मुताबिक दिल्ली के लोग निजीकरण का स्वाद बिजली मसले पर चख चुके हैं और उन्हें अंदेशा है कि कहीं बिजली की मार की तरह पानी की मार भी उन पर न पड़नी शुरू हो जाए।
दिल्ली जल बोर्ड के दावे को राजधानी में हुई मौतें भी झुठला रही हैं। हाल ही में दिल्ली की एनसीईआरटी कॉलोनी व रजोकरी में दूषित पानी पीने से जिस तरह तीन व्यक्ति की मौत हुई और सैकड़ों की संख्या में लोग अस्पताल में भर्ती हुए, उसके बाद जल बोर्ड के शुद्धता के दावे कहीं नहीं टिकती। मेडिकल रिपोर्ट में भी दूषित पानी की पुष्टि हो चुकी है।
कॉम्पटरोलर एंड ऑडिटर जनरल (कैग) ने भी दिल्ली जल बोर्ड की मॉनिटरिंग पर सवाल खड़े किए हैं। कैंग के मुताबिक दिल्ली में असंशोधित जल की कोई कमी नहीं है, कमी है तो केवल उसकी मॉनिटरिंग में। मॉनिटरिंग किस तरह हो रही है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है पिछले तीन वर्षों में 40 फीसदी से भी कम बिल जारी किया गया। रेगुलर मॉनिटरिंग नहीं होने की बात कर बताया गया है कि जल बोर्ड के पास कुल 9 जल संशोधन संयंत्र हैं लेकिन इनमें से केवल छह ही काम कर रहे हैं। इन संयंत्रों से केवल 690 मिलियन पानी का उत्पादन हो रहा जबकि जरूरत 1025 मिलियन गैलन की है। इसके अलावा जो जल संशोधन संयंत्र काम कर भी रहे हैं वो न्यूनतम क्षमता पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा 1994 में यमुना नदी पर दो बांध बनाए जाने थे, लेकिन 18 वर्ष बीत जाने के बावजूद निर्माण कार्य तक नहीं हो पाया है शुरू। हालांकि इस प्रोजेक्ट पर दिल्ली सरकार कर चुकी है 214 करोड़ रुपए खर्च।
1. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के 25 फीसदी लोगों को करना पड़ रहा है महज तीन लीटर पानी से गुजारा, जबकि औसत मानक 172 लीटर प्रति व्यक्ति है।
2. 32.53 लाख लोगों को नहीं मिल पा रहा जल बोर्ड का पानी, जबकि सरकार दावा करती है कि इस सबों को टैंकरों से कराया जा रहा पानी मुहैया।
3. सरकार का दावा कि 1000.94 मिलियन गैलन पानी उन लोगों को टैंकरों से जल बोर्ड का पानी पहुंचाया जाता है जहां जल बोर्ड की पाइप लाइन नहीं बिछी हुई है।
4. सरकार के इस दावे को भी अगर सच मान लिया जाए तो भी जनसंख्या के लिहाज से यह प्रति व्यक्ति 3.82 लीटर ही बैठता है। इतने कम पानी में गुजारा संभव नहीं है यानी दिल्ली के लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं।
1100 मीलियन गैलन प्रति दिन की आवश्यकता
835 मीलियन गैलन प्रति दिन होती है सप्लाई
835 मीलियन गैलन में से 100 मीलियन गैलन ग्राउंड वाटर से जबकि 735 मीलियन गैलन सरफेस वाटर से उपलब्ध होता है। बाकी बचे 265 मीलियन गैलन पानी के लिए दिल्लीवासियों को ग्राउंड वाटर पर ही निर्भर रहना पड़ता है जबकि यह भी सच्चाई है कि दिल्ली में भूजल का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया गया है लेकिन जरूरत को पूरा करने के लिए लोग-अपने इलाकों में बोरिंग करा रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में अभी जहां 3,584 मीलियन क्यूबिक मीटर कच्चे पानी की जरूरत होती है। वहीं 2021 तक 5,822 मीलियन क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। दिल्ली की जनसंख्या व क्षेत्रफल के लिहाज से देखा जाए तो 11,297 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर बैठता है। पिछले तीन सालों में 30 लाख जनसंख्या बढ़ी है। गौरतलब है कि वाटर कनेक्शन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 1994 में जहां 8,09,768 कनेक्शन थे, वहीं 13 फरवरी 2013 तक यह संख्या बढ़कर 19,47,654 तक पहुंच गई है यानी इस दौरान 11, 37,886 नए कनेक्शन लगे।
दिल्ली जल बोर्ड स्वच्छ पानी सप्लाई करने का बढ़-चढ़कर दावा करता रहा है। लेकिन उसका खुद का आंकड़ा ही उसके दावे को झुठला रहा है। जी हां, जल बोर्ड की टेक्निकल कोर कमेटी की रिपोर्ट दावे पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।
कोर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक साल भर में दिल्ली के विभिन्न इलाकों के ट्यूबवेल से 3700 सैंपल एकत्र किए गए जबकि राजधानी में दिल्ली जल बोर्ड के कुल 4200 ट्यूबवेल हैं। यानी साल भर में बोर्ड अपने भी ट्यूबवेल के पानी तक की जांच नहीं करवा पाया है। जबकि कम से कम हर तीन माह में सैंपल जांच जरूरी है।
जलबोर्ड सूत्र के मुताबिक मौजूदा व्यवस्था में जितनी सैंपल ले लिया जाता वही काफी है क्योंकि उनके पास पर्याप्त संख्या में स्टॉफ नहीं है। उनके मुताबिक इस काम के लिए अनुबंध पर कुछ कर्मचारियों की भर्ती की गई है लेकिन अब भी नाकाफी है। इसके अलावा 57 सालों से पाइपलाइन नहीं बदली गई है और खराब वॉल्व व पुरानी पाइपलाइन कारण 40 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है।
इतना ही नहीं कई जगह सीवर के साथ-साथ जल बोर्ड की पाइपलाइन के लीकेज की शिकायतें भी अक्सर मिलती रहती है। कैग रिपोर्ट में भी साफ-साफ शब्दों में कहा गया है कि सरकार गुणवत्ता को लेकर जो भी दावे कर रही है, उनमें से एक पर भी खरी नहीं उतर पा रही है।
कैग के मुताबिक सरकार के अंतर्गत आने वाले जल बोर्ड के सारे दावे हकीकत से परे हैं। बता दें कि दिल्ली के 75 फीसद घरों में ही जलबोर्ड की कनेक्शन लगी हुई है जबकि बाकी घरों में बोरवेल्स या टैंकर के जरिए पानी पहुंचता है। दिल्ली के कुल क्षेत्र के 54 फीसदी क्षेत्र में ही जल बोर्ड का कनेक्शन है।
इस संबंध में जब दिल्ली जल बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की तो उन्होंने इस तरह की दिक्कतें होने की बात स्वीकार की लेकिन साथ ही यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि दिल्ली में पानी के निजीकरण का काम शुरू हो चुका है, जल्द इस तरह की समस्या समाप्त हो जाएगी। उन्होंने मालवीयनगर, वसंत विहार और महरौली स्थित भूमिगत जलाशयों को निजी हाथों में सौंप दिया है।
हालांकि जल बोर्ड के अधिकारी के इस जवाब पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सिटीजेंस फ्रंट फॉर डेमोक्रेसी के संयोजक एस.ए.नकवी के मुताबिक अधिकारी के जवाब से साफ पता चलता है कि वह अभी की व्यवस्था पर बात करने से कतरा रहे हैं और भविष्य की योजना की बात कर जनता को लॉलीपॉप थमाना चाहते हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या निजीकरण ही इसका सॉल्यूशन है। नकवी के मुताबिक दिल्ली के लोग निजीकरण का स्वाद बिजली मसले पर चख चुके हैं और उन्हें अंदेशा है कि कहीं बिजली की मार की तरह पानी की मार भी उन पर न पड़नी शुरू हो जाए।
शुद्धता के दावे झुठलाती मौतें
दिल्ली जल बोर्ड के दावे को राजधानी में हुई मौतें भी झुठला रही हैं। हाल ही में दिल्ली की एनसीईआरटी कॉलोनी व रजोकरी में दूषित पानी पीने से जिस तरह तीन व्यक्ति की मौत हुई और सैकड़ों की संख्या में लोग अस्पताल में भर्ती हुए, उसके बाद जल बोर्ड के शुद्धता के दावे कहीं नहीं टिकती। मेडिकल रिपोर्ट में भी दूषित पानी की पुष्टि हो चुकी है।
कैग ने भी उठाए हैं सवाल
कॉम्पटरोलर एंड ऑडिटर जनरल (कैग) ने भी दिल्ली जल बोर्ड की मॉनिटरिंग पर सवाल खड़े किए हैं। कैंग के मुताबिक दिल्ली में असंशोधित जल की कोई कमी नहीं है, कमी है तो केवल उसकी मॉनिटरिंग में। मॉनिटरिंग किस तरह हो रही है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है पिछले तीन वर्षों में 40 फीसदी से भी कम बिल जारी किया गया। रेगुलर मॉनिटरिंग नहीं होने की बात कर बताया गया है कि जल बोर्ड के पास कुल 9 जल संशोधन संयंत्र हैं लेकिन इनमें से केवल छह ही काम कर रहे हैं। इन संयंत्रों से केवल 690 मिलियन पानी का उत्पादन हो रहा जबकि जरूरत 1025 मिलियन गैलन की है। इसके अलावा जो जल संशोधन संयंत्र काम कर भी रहे हैं वो न्यूनतम क्षमता पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा 1994 में यमुना नदी पर दो बांध बनाए जाने थे, लेकिन 18 वर्ष बीत जाने के बावजूद निर्माण कार्य तक नहीं हो पाया है शुरू। हालांकि इस प्रोजेक्ट पर दिल्ली सरकार कर चुकी है 214 करोड़ रुपए खर्च।
जल बोर्ड के और भी है कई खोखले दावे
1. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के 25 फीसदी लोगों को करना पड़ रहा है महज तीन लीटर पानी से गुजारा, जबकि औसत मानक 172 लीटर प्रति व्यक्ति है।
2. 32.53 लाख लोगों को नहीं मिल पा रहा जल बोर्ड का पानी, जबकि सरकार दावा करती है कि इस सबों को टैंकरों से कराया जा रहा पानी मुहैया।
3. सरकार का दावा कि 1000.94 मिलियन गैलन पानी उन लोगों को टैंकरों से जल बोर्ड का पानी पहुंचाया जाता है जहां जल बोर्ड की पाइप लाइन नहीं बिछी हुई है।
4. सरकार के इस दावे को भी अगर सच मान लिया जाए तो भी जनसंख्या के लिहाज से यह प्रति व्यक्ति 3.82 लीटर ही बैठता है। इतने कम पानी में गुजारा संभव नहीं है यानी दिल्ली के लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं।
मांग और सप्लाई में अंतर है बड़ा
1100 मीलियन गैलन प्रति दिन की आवश्यकता
835 मीलियन गैलन प्रति दिन होती है सप्लाई
835 मीलियन गैलन में से 100 मीलियन गैलन ग्राउंड वाटर से जबकि 735 मीलियन गैलन सरफेस वाटर से उपलब्ध होता है। बाकी बचे 265 मीलियन गैलन पानी के लिए दिल्लीवासियों को ग्राउंड वाटर पर ही निर्भर रहना पड़ता है जबकि यह भी सच्चाई है कि दिल्ली में भूजल का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया गया है लेकिन जरूरत को पूरा करने के लिए लोग-अपने इलाकों में बोरिंग करा रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में अभी जहां 3,584 मीलियन क्यूबिक मीटर कच्चे पानी की जरूरत होती है। वहीं 2021 तक 5,822 मीलियन क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। दिल्ली की जनसंख्या व क्षेत्रफल के लिहाज से देखा जाए तो 11,297 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर बैठता है। पिछले तीन सालों में 30 लाख जनसंख्या बढ़ी है। गौरतलब है कि वाटर कनेक्शन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 1994 में जहां 8,09,768 कनेक्शन थे, वहीं 13 फरवरी 2013 तक यह संख्या बढ़कर 19,47,654 तक पहुंच गई है यानी इस दौरान 11, 37,886 नए कनेक्शन लगे।
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