जलाशयों, मधुमक्खियों और पौधों तक को मिलने लगा है ‘लीगल पर्सन’ का दर्जा

सुखना झील
सुखना झील

ऐसा लगता है कि हमने बिना पानी, बिना हवा, और बिना जमीन के जीना सीख लिया हो। कब और कैसे हमारे जमीन का पानी दूर होता चला गया? कब और कैसे हमारी नदियाँ बीमार और मरने लगी हैं? कब और कैसे हमें पोषण देने वाली हवा जहरीली हो गई? क्या हमने कभी इसकी परवाह की। अंधाधुंध दोहन और शोषण से कराहती धरती तरह-तरह से अपना दर्द बयां करती रही। पर इंसान कहाँ सुनने को तैयार है। धरती की संकट में डालने का परिणाम यह है कि आज इंसान खुद संकट में है।

सुखना झील को “कानूनी व्यक्ति या संस्था” (legal person) का दर्जा

भारत का एक बहुत ही सुंदर शहर है चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा दो राज्यों की राजधानी और अपने आप में केंद्र शासित प्रदेश है चंडीगढ़। तीन प्रदेशों की सरकारों का मुख्यालय है चंडीगढ़। हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित, चंडीगढ़ शहर की शान है - तीन किमी वर्ग क्षेत्रफल में फैली सुखना झील। पर आज सुखना झील संकट में है। इसका एक बड़ा हिस्सा अतिक्रमण की चपेट में है। पानी देने वाले फर्स्ट-आर्डर स्ट्रीम यानी गाड़-गधेरे अतिक्रमण और लापरवाही की वजह से झील में पूरा पानी नहीं पहुंचा पा रहे हैं। जल-संग्रहण क्षेत्र यानी कैचमेंट में अनियमित, गैर-कानूनी, भूमाफियाओं के बेधड़क निर्माण से सुखना झील की सांसें उखड़ने लगी थीं। ऐसे में झील को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने वेंटिलेटर उपलब्ध कराया है। माननीय उच्च न्यायालय ने सुखना झील के आसपास अतिक्रमण को बढ़ावा देने के लिए पंजाब और हरियाणा दोनों सरकारों पर 100-100 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। और इसके केचमेंट एरिया में हुए निर्माणों को ध्वस्त करने का आदेश दिया है। अपने ऐतिहासिक फैसले में माननीय न्यायालय ने सुखना झील को “कानूनी व्यक्ति या संस्था” (legal person) का दर्जा जारी किया है। अब सुखना झील को “जीवित व्यक्ति के समान अधिकार, कर्तव्य और दायित्व” (living entity) मिल गए हैं।

मधुमक्खी, हमिंग बर्ड और तितली को करीडबैट के नागरिक के रूप में मान्यता

सुदूर अमेरिकी महाद्वीप के मध्य में स्थित कोस्टारिका से भी एक सुखद खबर आई है। कोस्टारिका के एक शहर करीडबैट में एक अच्छी परंपरा की शुरुआत की गई है। यहां मधुमक्खियों पौधों और पेड़ो को भी नागरिकता प्रदान की गई है। इस शहर के मेयर रहे इडगर मोरा कहते हैं कि यह विचार एक कहानी से हमें आया। इसमें कहा गया था कि शहरों में लोग प्रकृति के बचाव के बारे में तब बहुत बातें करते हैं जब उससे दूर होते हैं। पर जब अपने आसपास के पर्यावरण को संरक्षित करने की बात आती है तो वह लापरवाह हो जाते हैं। मोरा कहते हैं कि शहर को जीवंत और खूबसूरत रखने में फूलों की बड़ी भूमिका है और फूल का मतलब परागण की मुख्य भूमिका है। इसलिए हर मधुमक्खी, हमिंग बर्ड और तितली को करीडबैट के नागरिक के रूप में मान्यता दी गई है। यह जीव परागण के सबसे बड़े वालंटियर हैं। मेयर कहते हैं कि हम धीरे-धीरे शहर की हर गली को बायोकॉरिडोर में बदलने और हर मोहल्ले को पारिस्थितिकी तंत्र में बदलने के लिए कटिबद्ध हैं। इसीलिए हमें इन जीवों से संबंध बनाना जरूरी है।

वांगनुई नदी को जीवित इंसान का दर्जा

न्यूजीलैंड से नदियों की बचाने की राह में कुछ वर्षों पहले एक बड़ी अच्छी खबर आई थी। न्यूजीलैंड की वांगनुई नदी को जीवित इंसान का दर्जा दिया गया है। यह सब मुमकिन हो पाया क्योंकि न्यूजीलैंड का माओरी आदिवासी समुदाय इसके लिए करीब दशकों से लड़ाई लड़ रहा है। माओरी समुदाय की मान्यता में वांगनुई उनकी पूर्वज है और वह इसकी संतान हैं। वांगनुई न्यूजीलैंड की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसको इंसान की तरह या इंसान के जैसे अधिकार मिलने का मतलब यह है कि इस नदी को कोई प्रदूषित नहीं कर सकता। यहाँ तक कि कोई इस नदी गाली भी नहीं दे सकता। अगर किसी ने ऐसा किया तो इसका मतलब यह होगा कि वह माओरी समुदाय को नुकसान पहुंचा रहा है, और उस पर आपराधिक कानूनों के तहत अभियोग चलेगा।

गंगा और यमुना को ‘जीवित इंसान’ का दर्जा ?

मार्च 2017 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने भी गंगा और यमुना को ‘जीवित इंसान’ का दर्जा देने का आदेश दिया। नदियों को वही अधिकार दिए जो एक इंसान को संविधान देता है। यह सही है कि भारत के करोड़ों लोग जीवनदायिनी गंगा को मां मानते हैं, और यही माननीय उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश का आधार बना। लेकिन फिलहाल तो माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर स्टे ले आई है उत्तराखंड सरकार।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश से शुरू हुई पानी-पर्यावरण को भी संवैधानिक मान्यता के विस्तार की पहल धरती के विनाश को थामने की दिशा में अहम साबित हो सकती है। यही सीख हमको कोस्टारिका, न्यूजीलैंड और उत्तराखंड उच्चन्यायालय के आदेशों में भी मिलता है। क्या हम इसको समझने को तैयार हैं?

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