पानी और सामाजिक चिंताओं के प्रति विशेष लगाव के कारण श्री पवन गर्ग रायपुर स्थित एक गैर-सरकारी संगठन “रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग एण्ड वाटर मैनेजमेंट सोसायटी” के तहत अपने प्रयास शुरु करने के लिए उत्साहित हुए।
पवन भूजल वैज्ञानिक हैं, जो आज उद्योग भी संभाल रहे हैं। `वास्तव में यह किसी व्यक्ति की लगन ही हो सकती है, जिससे वह ऊपर की मंजिल तक पहुंच सकता है और यही मैं अपने जीवन में तलाश भी रहा था´, ऐसा पवन जी का कहना था। रायपुर में भूजल पर 60 प्रतिशत से ज्यादा की निर्भरता है और लगभग सभी घरों में बोरवेल लगे हैं। बड़े पैमाने पर जमीन के नीचे का पानी निकाले जाने से भूजल का स्तर लगातार नीचे गिरता गया। इस स्थिति में लोगों को पानी की खोज में जमीन के नीचे 500 फीट तक की खुदाई करनी पड़ी है।
पवन ने वर्षा जल संग्रहण के प्रति जागरूकता फैलाई और धीरे-धीरे लोगों को वर्षा जल संग्रहण के फायदों का एहसास होने लगा तो वे इसे अपनाते चले गए। सन् 2001 में बोरवेल के पानी में काफी सुधार आया और इससे भूजल का स्तर ऊपर उठा और पानी की गुणवत्ता भी बढ़ी। इसके बाद उन्होंने 30 अन्य लोगों को वर्षा जल संग्रहण व्यवस्था का सुझाव दिया।
श्री पवन मुख्यत: छत में वर्षा जल संग्रहण के काम में जुटे हैं। चार भूजल वैज्ञानिक और 10 कुशल और अकुशल श्रमिक इनकी संस्था में काम करते हैं।
इस व्यवस्था में काफी सरल तकनीकी से छत के पानी को पाइप के जरिए नीचे ले जाया जाता है और फिर इस पाइप का मुख बोरवेल में डाल दिया जाता है जिससे पानी फिल्टर माध्यम से भूजल में पहुंचता रहता है और इस प्रकार भूजल का सीधे पुनर्भरण होता है। प्रत्येक 1200 वर्ग फीट क्षेत्र में एक फिल्टर का उपयोग किया जाता है। औसतन ये एक वर्ष में 300- 400 स्थलों में इस तकनीकी का क्रियान्वयन करते हैं।
पवन ने हमें यह बताया कि `गर्मियों में इसकी ज्यादा मांग होती है क्योंकि इस समय तक भूजल का स्तर नीचे सरक जाता है और बोरवेल के पानी में कमी होने लगती है´। पवन चाहते हैं कि आने वाले दिनों में लोग सामने आएं और ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल संग्रहण करें। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें: श्री पवन गर्गरूफ टॉप वॉटर हार्वेस्टिंग एण्ड वॉटर मैनेजमेंट सोसायटी मेनरोड, शंकर नगर, रायपुर- 492001 फोन : 0771- 421271 वेबसाइट: www.roofwaterharvesting.com
रामकरण भड़ाना एक गुज्जर परिवार से हैं। लेकिन वे अन्य लोगों की तरह भेड़-पालन का काम नहीं करते हैं। ये अपने गांव में सामाजिक कार्य करने वाले एक कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। ये वृक्ष और तालाब की पूजा को महत्व देते हुए तालाबों के निर्माण कार्यों में जुटे रहे हैं। आज ये तालाबों, पेड़- पौधों, चारागाह, सार्वजनिक स्थलों के बेहतर प्रबंधन में जुटे हुए हैं।
किशन लाल ने प्रौढ़ शिक्षा हासिल करने के छः वर्ष बाद ग्राम संस्था के सचिव के रूप में 16 हेक्टेयर जमीन पर वृक्षारोपण कार्य का समन्वय कराया। 1998 में अपने गांव में एक स्टापडैम का निर्माण कराया। यह उनके प्रेरणा का फल ही है कि तलाई गांव सूखे की चपेट से मुक्त है, जबकि आसपास के गांव अभी भी सूखे को झेल रहे हैं।
हमीर भाई ग्राम विकास मंडल की स्थापना (1997) से ही इसके अध्यक्ष हैं। इनके कुशल नेतृत्व में मण्डल ने छह जल संरक्षण संरचनाओं को उपयोगकर्ताओं के 30 फीसदी सहयोग से निर्माण कराया है। जल संरक्षण से गांव में पिछले दो वर्षों के दौरान मूंगफली की अच्छी खेती हुई है और इसकी उत्पादकता में 0.8 टन प्रति हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। जल संरक्षण द्वारा 150 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।
इन्होंने जनजातीय लोगों को एकजुट करके उन्हें अपने वनों की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया। यह गांव जहां पहले रबी फसल की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी वहां अब फसलें लहलहा रही हैं। यह सब पक्का बंधा की रचना के बाद संभव हो सका, जिससे नाले फिर से जिंदा हो गए। गेहूं की उत्पादकता को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
पवन भूजल वैज्ञानिक हैं, जो आज उद्योग भी संभाल रहे हैं। `वास्तव में यह किसी व्यक्ति की लगन ही हो सकती है, जिससे वह ऊपर की मंजिल तक पहुंच सकता है और यही मैं अपने जीवन में तलाश भी रहा था´, ऐसा पवन जी का कहना था। रायपुर में भूजल पर 60 प्रतिशत से ज्यादा की निर्भरता है और लगभग सभी घरों में बोरवेल लगे हैं। बड़े पैमाने पर जमीन के नीचे का पानी निकाले जाने से भूजल का स्तर लगातार नीचे गिरता गया। इस स्थिति में लोगों को पानी की खोज में जमीन के नीचे 500 फीट तक की खुदाई करनी पड़ी है।
पवन ने वर्षा जल संग्रहण के प्रति जागरूकता फैलाई और धीरे-धीरे लोगों को वर्षा जल संग्रहण के फायदों का एहसास होने लगा तो वे इसे अपनाते चले गए। सन् 2001 में बोरवेल के पानी में काफी सुधार आया और इससे भूजल का स्तर ऊपर उठा और पानी की गुणवत्ता भी बढ़ी। इसके बाद उन्होंने 30 अन्य लोगों को वर्षा जल संग्रहण व्यवस्था का सुझाव दिया।
श्री पवन मुख्यत: छत में वर्षा जल संग्रहण के काम में जुटे हैं। चार भूजल वैज्ञानिक और 10 कुशल और अकुशल श्रमिक इनकी संस्था में काम करते हैं।
इस व्यवस्था में काफी सरल तकनीकी से छत के पानी को पाइप के जरिए नीचे ले जाया जाता है और फिर इस पाइप का मुख बोरवेल में डाल दिया जाता है जिससे पानी फिल्टर माध्यम से भूजल में पहुंचता रहता है और इस प्रकार भूजल का सीधे पुनर्भरण होता है। प्रत्येक 1200 वर्ग फीट क्षेत्र में एक फिल्टर का उपयोग किया जाता है। औसतन ये एक वर्ष में 300- 400 स्थलों में इस तकनीकी का क्रियान्वयन करते हैं।
पवन ने हमें यह बताया कि `गर्मियों में इसकी ज्यादा मांग होती है क्योंकि इस समय तक भूजल का स्तर नीचे सरक जाता है और बोरवेल के पानी में कमी होने लगती है´। पवन चाहते हैं कि आने वाले दिनों में लोग सामने आएं और ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल संग्रहण करें। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें: श्री पवन गर्गरूफ टॉप वॉटर हार्वेस्टिंग एण्ड वॉटर मैनेजमेंट सोसायटी मेनरोड, शंकर नगर, रायपुर- 492001 फोन : 0771- 421271 वेबसाइट: www.roofwaterharvesting.com
रामकरण भडाना
लापोड़िया गांव जयपुर, राजस्थानरामकरण भड़ाना एक गुज्जर परिवार से हैं। लेकिन वे अन्य लोगों की तरह भेड़-पालन का काम नहीं करते हैं। ये अपने गांव में सामाजिक कार्य करने वाले एक कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। ये वृक्ष और तालाब की पूजा को महत्व देते हुए तालाबों के निर्माण कार्यों में जुटे रहे हैं। आज ये तालाबों, पेड़- पौधों, चारागाह, सार्वजनिक स्थलों के बेहतर प्रबंधन में जुटे हुए हैं।
किशन लाल बढ़ेरा
तलाई गांव, उदयपुरराजस्थानकिशन लाल ने प्रौढ़ शिक्षा हासिल करने के छः वर्ष बाद ग्राम संस्था के सचिव के रूप में 16 हेक्टेयर जमीन पर वृक्षारोपण कार्य का समन्वय कराया। 1998 में अपने गांव में एक स्टापडैम का निर्माण कराया। यह उनके प्रेरणा का फल ही है कि तलाई गांव सूखे की चपेट से मुक्त है, जबकि आसपास के गांव अभी भी सूखे को झेल रहे हैं।
हमीर भाई वसरा
जूनी फोट गांवजिला-जाम नगर,गुजरातहमीर भाई ग्राम विकास मंडल की स्थापना (1997) से ही इसके अध्यक्ष हैं। इनके कुशल नेतृत्व में मण्डल ने छह जल संरक्षण संरचनाओं को उपयोगकर्ताओं के 30 फीसदी सहयोग से निर्माण कराया है। जल संरक्षण से गांव में पिछले दो वर्षों के दौरान मूंगफली की अच्छी खेती हुई है और इसकी उत्पादकता में 0.8 टन प्रति हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। जल संरक्षण द्वारा 150 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।
बाबू सिंह
डोंगरिया टोला, जिला- शहडोलमध्य प्रदेशइन्होंने जनजातीय लोगों को एकजुट करके उन्हें अपने वनों की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया। यह गांव जहां पहले रबी फसल की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी वहां अब फसलें लहलहा रही हैं। यह सब पक्का बंधा की रचना के बाद संभव हो सका, जिससे नाले फिर से जिंदा हो गए। गेहूं की उत्पादकता को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
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