जल स्तर ऊपर उठाने के लिये छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में एक साल के भीतर करीब दो सौ करोड़ रुपए खर्च कर राजाडेरा और बेलोरा में बड़े जलाशय बनाए गए। इसी मकसद से कुछ गाँवों में एक दर्जन एनीकट भी बनाए गए। अफसरों ने दावा किया गया था कि इसके बाद यहाँ का जलस्तर ऊपर उठेगा, लेकिन इसके उलट जिले में जलस्तर 5 मीटर तक नीचे चला गया है।
पीएचई विभाग के अनुसार धमतरी जिले में पिछले चार महीने में जलस्तर में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है। मगर लोड ब्लाक जहाँ सबसे ज्यादा जलाशय और एनीकट बने हुए हैं, वहाँ दिसम्बर माह में जलस्तर 19.40 मीटर था, जो अब 23.11 मीटर नीचे चला गया है। इसी तरह, धमतरी का जलस्तर 19 मीटर से 23.90 मीटर तक पहुँच गया है।
जल-संरक्षण से जुड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने से पहले अधिकारी कहते नहीं थकते थे कि भविष्य में यदि सूखा आया भी तो इलाके में कभी पेयजल का संकट या निस्तारी की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। मगर इसी साल आये सूखे ने अधिकारियों के दावों की कलई खोल दी है। दूसरी तरफ, बड़ी-बड़ी योजनाओं का कोई खास फायदा आम लोगों को मिलता नहीं दिख रहा है। सिंचाई की बात तो दूर है, यहाँ तक कि गाँव-के-गाँव पानी की चन्द बूँदों के लिये संघर्ष करते हुए दिख रहे हैं। अहम बात है कि इसी जिले में गंगरेल सहित चार बड़े बाँधों के होने के बावजूद यह हाल है।
वहीं, सिंचाई विभाग की लापरवाही के चलते ग्राम मेघा, दरगहन, साहनीखार, बुटेका, मारागाँव, धौंराभाठा, सिलौटी, खट्टी और परसुलीडीह में बनाया गया एनीकट में पानी सूख गया है। इसके कारण तटीय गाँवों का भूजलस्तर लगातार गिर रहा है। लिहाजा पेयजल संकट के चलते सूखे से निजात दिलाने का दावा करने वाली योजनाएँ कठघरे में हैं। इसी साल की भीषण गर्मी में जिले के 300 हैण्डपम्प बन्द हो गए हैं। इसके अलावा 246 स्पॉट सोर्स योजना में 20 योजना ठप्प पड़ गई है।
इलाके में भीषण पेयजल संकट को देखते हुए 15 अप्रैल से गंगरेल बाँध से महानदी मुख्य नहर में पानी छोड़ा जा रहा है। अब तक करीब 3.941 टीएमसी पानी पेयजल और निस्तारी के लिये दिया जा चुका है। सिंचाई विभाग के अनुसार 14 मई की स्थिति में गंगरेल बाँध में उपयोगी पानी 6.602 टीएमसी पानी शेष बचा है। बीते साल की अपेक्षा इस साल 14 टीएमसी पानी कम है।
कांग्रेस विधायक गुरूमुख सिंह होरा ने एनीकट के निर्माण कार्यों में बरती गई अनियमितताओं और करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी इनका फायदा नहीं मिलने का मुद्दा पिछले विधानसभा सत्र के दौरान उठाया था। वहीं, कांग्रेस के पूर्व विधायक लेखराम साहू का आरोप है कि सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने कई एनीकट ऐसे गाँवों में बना दिया है, जहाँ तकनीकी रूप से पानी रुकता ही नहीं हैं। पीएचई के कार्यपालन अभियन्ता बताते हैं कि मानसून के कारण जलस्रोत सूख गए हैं। फिर भी विभिन्न स्रोतों के माध्यम से पानी की आपूर्ति की जा रही है। वहीं, सिंचाई विभाग के कार्यपालन अभियन्ता डीके श्रीवास्तव बताते हैं कि दरगहन समेत कई एनीकटों में पानी है। निस्तारी के लिये भी पानी दिया जा रहा है। बारिश के अभाव में कुछ एनीकट सूख गए हैं।
उधर कोयला खदानें खींच रही जमीन का पानी
प्रदेश के कोरबा खदान क्षेत्र के इर्द-गिर्द 40 गाँवों में रोजी रोटी कमाने से ज्यादा दो बाल्टी पानी की चिन्ता सताती है। इस क्षेत्र में पानी की समस्या का अब तक स्थायी समाधान न होने से यह समस्या विकराल होती जा रही है। गर्मी बढ़ते ही भूजल स्तर गिरने लगता है और फिर टैंकरों के सहारे प्यास बुझानी पड़ती है।
जल संकट कोयला खदानों के आसपास काफी गम्भीर हो गया है। इन ग्रामों में पानी का स्तर पाताल लोक में पहुँच गया है। गाँव में लगे हैण्डपम्प सूख रहे हैं। कई ग्रामों में 400 फीट बोर करने के बाद भी पानी नहीं मिल रहा है। इससे ग्रामीण परेशान हैं। सबसे गम्भीर कोयला खदान के आसपास बसे गाँवों की हैं। तालाब के साथ हैण्डपम्प भी सूख गए हैं। 44 गाँवों में टैंकर के पानी से प्यास बुझाई जा रही है। टैंकर से पानी की सप्लाई होती है। गाँवों में 24 घंटे में एक बार ही टैंकर आता है, जो जरूरत से हिसाब से नाकाफी है। भिलाई बाजार नरेन्द्र प्रसाद ने बताया कि कोयला खदान के कारण गाँव का भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है और इसे रोकने के लिये अभी तक ठोस उपाय नहीं किये गए हैं।
पड़ताल करने पर यहाँ के दो दर्जन से अधिक गाँवों में पानी की समस्या विकराल होती जा रही है।एसईसीएल कुसमुंडा खदान से प्रभावित ग्राम चुनचुनी, पंडरीपानी, कन्हैयाभाठा, गेवरा बस्ती वार्ड 56, पाली, सोनपुरी, खैरभवना, भलपहरी, कनबेरी, तेलसरा, शान्तिनगर, नरइबोध, पड़निया, बाता, चैनपुर, खोडरी और जटराज, गेवरा परियोजना से प्रभावित रलिया, अमगाँव, नरइबोध, भठोरा, बाहनपाट, बतारी और सरइसिंगार, दीपका से प्रभावित मलगाँव, झिंगटपुर, सुआभोड़ी, हरदीबाजार, रतिजा, बेलटिकरी बसाहट और सिरकी में टैंकर के जरिए पानी दिया जा रहा है। एनटीपीसी प्रशासन भी इंदिरानगर, जमनीपाली, सेमीपाली, सुमेधा, चोरभट्ठी, गोपालपुर, लाटा, प्रगतिनगर, धनरास, पुरेना, बंचर हुंकरा और जेंजरा में टैंकर से पानी की आपूर्ति कर रहा है।
गाँव में टैंकर के आने का कोई समय नहीं है। पानी लेने के लिये परिवार के एक सदस्य की नजर गाँव में आने वाले टैंकर पर रहती है। टैंकर आते ही ग्रामीण बाल्टी, घड़ा और हावला लेकर निकल पड़ते हैं। लिहाजा जल आपूर्ति की पूरी व्यवस्था प्रभावित हो गई है। जल संकट से जूझ रहे गाँव के लोग प्रशासन को आवेदन देकर पानी की माँग करते हैं। प्रशासन आवेदन पर विचार करता है, इसके बाद इलाके में जल संकट की समस्या होने पर टैंकर भेजने के लिये एसईसीएल या एनटीपीसी का आदेश देता है।
दूसरी तरफ, कोरबा के एसडीएम बीरेन्द्र बहादुर पंचभाई बताते हैं कि कोयला खदानों के आसपास स्थित ग्रामों में पेयजल की समस्या है। लगभग 31 गाँवों में टैंकर से पानी की आपूर्ति की जा रही है। कुछ ग्रामों में एनटीपीसी पानी दे रहा है। वर्षा ऋतु तक पानी टैंकर से दी जाएगी। इस बारे में कोरबा के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के एसके चन्द्रा का कहना है कि खदानों की गहराई और क्षेत्रफल अधिक होने से हर साल भूजल स्तर नीचे गिरता है। इससे हैण्डपम्प सूख जाते हैं। इसलिये पानी की समस्या हो जाती है। जाहिर है कि प्रशासनिक अमला जल संकट को मौसम से जोड़कर देखता है, जबकि हकीकत यह है कि कोरबा जैसे कोयला खदानों वाले इलाके में कम्पनियों द्वारा किये जा रहे पानी के उपयोग से रहवासी इलाकों में जल संकट की समस्या पैदा हुई है।
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Post By: RuralWater