जल स्रोत प्रबंधन के सफल प्रयास पर वैज्ञानिक मंथन

जल स्रोत प्रबंधन के सफल प्रयास पर वैज्ञानिक मंथन
जल स्रोत प्रबंधन के सफल प्रयास पर वैज्ञानिक मंथन

28 सितंबर को उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क) देहरादून द्वारा  ‘जल शिक्षा कार्यक्रम के तहत  ‘जल स्रोत प्रबंधन के सफल प्रयास' (बेस्ट प्रैक्टिसेज इन वाटर रिसोर्स मैनेजमेंटः पार्ट 2 - ग्राउंड वाटर)’ विषय पर ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया  गया।  इस दौरान  यूसर्क की निदेशक प्रोफेसर (डॉ) अनीता रावत ने उपस्थिति  सभी लोगो को संबोधित करते हुए कहा कि जल के महत्व को देखते हुए यूसर्क हर महीने जल संरक्षण, जल प्रबंधन, जल गुणवत्ता पर  आधारित  कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है।

जिसमें  में आज ‘‘वाटर एजुकेशन लेक्चर सीरीज’’ के तहत  दूसरा  ऑनलाइन  कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। जहां प्रोफेसर रावत ने अपने सम्बोधन में कहा कि जल  एक महत्वपूर्ण तत्व है।  जिसके बिना पृथ्वी पर जीवन सम्भव नहीं है। उन्होंने कहा वर्ष 2050 तक जल की मांग 50 प्रतिशत बढ़ जायेगी। इसीलिए भविष्य की जल आवश्यकता के अनुरूप सभी को कम्युनिटी पार्टीशिपेशन के माध्यम से विभिन्न प्रकार के छोटे-छोट़े जल स्रोतों का संवर्धन व संरक्षण प्राथमिकता से करना होगा।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए यूसर्क के वैज्ञानिक तथा कार्यक्रम समन्वयक डॉ भवतोष शर्मा ने कहा कि पर्वतीय भाग जल स्रोतों के पुनर्जीवन, संरक्षण, स्वच्छता तथा संवर्द्धन  के लिए  सामाजिक सहभागिता के साथ कार्य करना होगा तथा जल संरक्षण की स्थानीय परम्परागत विधियों को अपनाना होगा। जल संरक्षण तथा वर्षाजल संचयन का कार्य अपने-अपने घर एवं गांवों से ही शुरवात करनी होगी। तभी समाज में सभी की सहभागिता से बढ़ती हुई जल की मांग को पूरा किया जा सकेगा।

वही तकनीकी सत्र में  रिलायंस  फाउंडेशन उत्तराखण्ड के परियोजना निदेशक कमलेश गुरूरानी ने  ‘‘सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से पर्वतीय भाग में जल संरक्षण’’ विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि रिलाइंस फाउंडेशन ने उत्तराखंड  के उत्तकाशी एवं रूद्रप्रयाग जनपदों में सामूहिक भागीदारी के माध्यम से विभिन्न प्रकार के रिचार्ज सरचनाएँ  बनायी गयी है  जिनके द्वारा वर्षाजल को एकत्रित करके भूजल को रिचार्ज कर उसमें वृद्धि की गयी। उन्होंने कहा संस्थागत विकास के द्वारा जल प्रबंधन एवं जल संरक्षण संबंधी कार्योंं को किया गया है  जिसकी नियमित माॅनीटरिंग करते हुये ग्राउंड वाटर में वृद्धि का सफल प्रयोग किया गया है जिसको अन्य पर्वतीय भूभाग में भी अपनाया जा रहा है।

कार्यक्रम में तकनीकी सत्र में अगला सम्बोधन  बैस्ट प्रेक्टिसेज इन वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट इन इंडिया: ग्राउंड वाटर’’ विषय पर राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रूड़की (जलशक्ति मंत्रालय, भारत सरकार) के वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा पर्यावरणीय जल विज्ञान डिवीजन के हैड डा0 राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय ने'  दिया। इस दौरान  उन्होंने  कहा  कि  प्रकृति में जलचक्र, जल संसाधनों के सतत प्रबंधन में चुनौतियां, वर्षा की कमी तथा उसका असमान वितरण, कृत्रिम  भूजल  रिचार्ज, एक्वीफर्स के द्वारा भूजल रिचार्ज, भूजल स्रोतों के भूविज्ञान आदि पर विस्तारपूर्वक बताया। उन्होंने कहा कि  देश के विभिन्न भूभागों में वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण विभिन्न रिचार्ज संरचनाओं को क्षेत्र की आवश्यकता के तहत बनाये जाने की जरूरत है।  कार्यक्रम के अंतिम सत्र में  प्रतिभागियों  ने  इन विषयों से उपजे सवालों को दूर करने के लिए  विशेषज्ञों से कई प्रश्न पूछे।      

कार्यक्रम में यूसर्क के वैज्ञानिक डॉ मंजू सुंदरियाल, डॉ राजेंद्र सिंह राणा, डॉ भवतोष शर्मा तथा डा0 राजेश सिंह,  डा0 ओमकार सिंह, डा0 सोमवीर सिंह, श्री संजय गुप्ता, आईसीटी टीम के उमेश चन्द्र, ओम् जोशी, राजदीप जंग, शिवानी पोखरियाल सहित डॉ दीपक खोलिया, डॉ अवनीश चैहान, डा0 विपिन सती, श्रीमती मीनाक्षी अरोरा,
राधिका सूद सहित विभिन्न शिक्षण संस्थाओं के स्नातक, स्नातकोत्तर स्तर के विद्यार्थियों, शिक्षकों, स्मार्ट ईको क्लब प्रभारियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम में कुल 122 प्रतिभागियों द्वारा प्रतिभाग किया गया।

Path Alias

/articles/jala-saraota-parabandhana-kae-saphala-parayaasa-para-vaaijanaanaika-manthana

Post By: Shivendra
×