प्रकृति के बढ़ते दोहन और तेजी से बढ़ते प्रदूषण के कारण जलवायु परिवर्तन की घटनाएं तेजी से बढ़ती जा रही हैं। इसका प्रभाव पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता पर भी पड़ रहा है। तो वहीं मानव स्वास्थ्य, उद्योग, उर्जा सहित भूमि की उर्वरता भी इससे प्रभावित होगी। अधिक भूमि के मरुस्थलीकरण की चपेट में आने और लगातार मौसम बदलने से खाद्यान पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन से होने वाले जल संबंधी बदलाव विभिन्न स्थानों पर जल की समस्या को बढ़ा सकते हैं। इससे उन देशों में ज्यादा समस्या होगी, जो पहले से जल संकट का सामना कर रहे हैं या वहां जल की कमी है। जल के इस गहराते संकट की आशंका संयुक्त राष्ट्र जल विकास रिपोर्ट 2020 में जताई गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले सौ सालों में विश्व स्तर पर जल का उपयोग 6 गुना बढ़ा है, लेकिन अब दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ती जा ही है, जिस कारण जल संसाधनों पर दबाव भी बढ़ गया है। तो वहीं, आर्थिक विकास और जल की खपत के तरीकों में भी काफी बदलाव आया है, जिस कारण प्रति वर्ष जल का उपयोग लगभग 1 प्रतिशत की दर से लगातार बढ़ रहा है। रिपोर्ट में बताया गया कि पानी की अनियमित और अनिश्चित आपूर्ति के साथ-साथ, जलवायु परिवर्तन से वर्तमान में पानी की कमी वाले इलाकों की स्थिति और बिगड़ जाएगी। ऐसे में उन इलाकों को भी जल संकट का सामना करना पड़ सकता है, जहां अभी पानी प्रचूर मात्रा में है। पानी की कमी मौसम पर निर्भर करती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन से कई स्थानों पर पूरे वर्ष मौसम के अनुरूप पानी की उपलब्ध्ता में बदलाव होने की संभावना है।
नदियों, समुद्रों सहित विभिन्न जलस्रोतों में पानी का अपना एक तापमान होता है। पानी में कुछ ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जो पानी को साफ करते हैं। ऐसे में हम कई बार कहते हैं, इस नदी या तालाब के पानी में खुद को साफ करने की क्षमता होती है। पानी में ऑक्सीजन के कारण उसमें जलीय जीवों को जीवन सुगम होता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण पानी का तापमान बढ़ रहा है। इससे पानी में ऑक्सीजन कम हो रह है। ऑक्सीजन कम होने से जल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में साफ व ताजे पानी के जलाशयों की खुद को साफ करने की क्षमता कम होगी। जलवायु परिवर्तन के काण बाढ़ और सूखे की घटनाएं बढ़ेंगी। ज्यादा बाढ़ आने और ज्यादा सूखा पड़ने के कारण प्रदूषण तत्वों की अधिकता बढ़ेगी, जिससे जल प्रदूषण बढ़ेगा। इससे विभिन्न प्रकार की बीमारियो के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा।
जलवायु परिवर्तन के कारण वन और वनभूमि जैसी विभिन्न पर्यावरण प्रणालियां खतरे में हैं। जैव विविधता भी जल सहित विभिन्न पर्यावरण प्रणालियों पर निर्भर करती हैं। इन प्रणालियों को नुकसान पहुंचने से जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचेगा। रिपोर्ट में बताया गया कि जल से संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, जैसे जल शोधन, कार्बन उत्सर्जन कम करने और उसके भंडारण और प्राकृतिक बाढ़ सुरक्षा के साथ-साथ कृषि, मत्स्य पालन और पुनर्सृजन के लिए पानी की उपलब्ध्ता भी प्रभावित होगी। ज्यादातर विकासशील देश उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हैं, यहां जलवायु परिवर्तन का असर ज्यादा दिखेगा। छोटे द्विपों पर बसे देश आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के कारण ज्यादा प्रभावित होंगे। इसका प्रभाव देश की आर्थिक व सामाजिक स्थिति पर भी पड़ेगा। इससे मरुस्थलीकरण करण भी बढ़ सकता है। ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से पर्वतीय क्षेत्रों के जल संसाधनों और उनके आसपास के तराई क्षेत्रों पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका है। एक तरह से जल का भीषण संकट गहरा सकता है। इसके बचाव के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की तरीकों को अपनाना होगा। साथ ही मौसम के अनुरूप खुद को ढालना होगा। सतत विकास के माॅडलों को पर्यावरण और मौसम के अनुरूप ही बनाना होगा। मानवीय जीवनशैली में बदलाव के बलावा ग्रीनहाउस गैसों को तेजी से कम करने का प्रयास करना होगा। ज्यादा से ज्यादा जल संग्रहण के उपायों को अपनाना होगा।
संयुक्त राष्ट्र जल विकास रिपोर्ट 2020
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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