जल संसाधन विकास : भूविज्ञान


बाँध स्थल के चुनाव के लिये प्राथमिक विचार यह किया जाता है कि, क्या नदी जल आकृतिकी एक सम्भावित बाँध एवं परिणाम स्वरूप रोकी गई जल राशि को बाढ़ नियन्त्रण अथवा भंडारण आवश्यकता के अनुरूप धारण एवं भंडारण करने की क्षमता रखती है? अधिकांश बेहतरीन स्थल पूर्व में ही अन्योन्य परियोजनाओं में विकसित किये जा चुके हैं अतः अब उपयुक्त स्थल संख्या एवं उपादेयता के अनुसार सीमित हो गये हैं।

जल संसाधनों के विकास का अर्थ, सीधे-सीधे सामान्य नागरिक को जीवन जीने की बेहतर सुविधाओं, असीमित जल विद्युत ऊर्जा भंडार से सम्पन्न करना है। त्वरित विकास अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप 60% लोड फैक्टर के साथ यह लगभग 84000 मेगावाट होता है अर्थात ‘इन्सटाल्ट कैपेसिटी’ लगभग 1,48,700 मेगावाट है अतः देश में उपलब्ध जलविद्युत ऊर्जा की संभावना विश्व परिपेक्ष में पाँचवे स्थान पर है। कुल अन्तर्निहित शक्ति का अब तक हम लगभग 275 जल विद्युत ऊर्जा संयन्त्र लगा पाये हैं जिनमें लगभग 813 विद्युत ऊर्जा उत्पादन इकाइयां हैं।

सामान्यतया जल संसाधन के विकास हेतु बाँध विद्युत गृह एवं नहरें बनाई जाती हैं। इन अभियांत्रित वैशिष्टम भागों की संभाव्यता जानने के लिये स्थल विशेष की साधारण भूवैज्ञानिक परिस्थितियां जिसमें पृथ्वी की क्षेत्रीय तथा सतही संरचना से सम्बन्धित सूचनाएं महत्त्वपूर्ण होती हैं, जाननी होती हैं। किसी प्रस्तावित जल विद्युत परियोजना के विभिन्न अवयवों की तकनीकी संभाव्यता के भूतकनीकी आंकलन के लिये निम्न तीन स्तरों पर भूअभियांत्रिक अन्वेषण की आवश्यकता होती है।

1. प्रारम्भिक चरण (स्तर) अन्वेषण
2. निर्माण पूर्व चरण अन्वेषण
3. निर्माण चरण अन्वेषण।

परियोजना के निर्माण के पश्चात समय-समय पर परियोजना के हालात जानने हेतु अनुसंधान किये जाते हैं, इन्हें पश्च निर्माण चरण अन्वेषण कहा जाता है। इन सब अनुसंधानों का मकसद एक पूर्णतया सुरक्षित, सहज एवं कम से कम लागत में परियोजना अवयव तैयार करना एवं चलाना होता है।

प्रारम्भिक चरण अन्‍वेषण : इस स्तर में मुख्य उद्देश्य परियोजना स्थल का चुनाव करना होता है। इसके लिये 1,50,000 पैमाने पर क्षेत्र विशेष की स्थलाकृति जल विज्ञान, भूविज्ञान, भूसतह संरचना सम्बन्धी जानकारी भूकम्प सम्बन्धी जानकारी तथा परियोजना अवययों की व्यवस्था का प्रथम दृष्टया व्यवहारिकता ज्ञान करना होता है। इस हेतु कई सम्भाव्य स्थलों का गहन सर्वेक्षण किया जाता है तथा उनमें से सर्वश्रेष्ठ स्थल का चुनाव परियोजना बनाने के लिये आगे के अनुसंधानों हेतु चयनित किया जाता है। प्रारम्भिक रूप से सर्वश्रेष्ठ सम्भाग स्थल का चुनाव बाँध द्वारा भविष्य में लिये जाने वाले कार्यों यथा बाढ़ नियन्त्रण सिंचाई एवं जल आपूर्ति, विद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन, पर्यटन विकास, लाभित क्षेत्र की स्थिति आदि पर निर्भर करता है। बहुउद्देशीय परियोजना स्थल के चुनाव हेतु अभीष्ट से कुछ कम पर समझौता करके अनुकूलतम पारिस्थिति निर्वाचित की जाती है, क्योंकि एक या अधिक प्रस्तावित उपयोगों हेतु एक ही स्थल अनुकूलतम होने की सम्भावना न के बराबर है।

बाँध स्थल के चुनाव के लिये प्राथमिक विचार यह किया जाता है कि, क्या नदी जल आकृतिकी एक सम्भावित बाँध एवं परिणाम स्वरूप रोकी गई जल राशि को बाढ़ नियन्त्रण अथवा भंडारण आवश्यकता के अनुरूप धारण एवं भंडारण करने की क्षमता रखती है? अधिकांश बेहतरीन स्थल पूर्व में ही अन्योन्य परियोजनाओं में विकसित किये जा चुके हैं अतः अब उपयुक्त स्थल संख्या एवं उपादेयता के अनुसार सीमित हो गये हैं।

बाँध स्थल अनुसंधान में निम्न बिन्दु महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

1. स्थालाकृति नदी की एक संकरी घाटी होनी चाहिए जहाँ नदी के ओर-छोर पर दोनों अत्याधार आवश्यकता अनुसार काफी ऊँचे होने चाहिए। बाँध की चौड़ाई एवं ऊँचाई का अनुपात महत्त्वपूर्ण है।

2. एक अच्छे बाँध स्थल में संलग्न संरचनाओं जैसे स्पिल वे, विद्युत गृह तथा अन्य जल निकास की इकाइयों के निर्माण हेतु उपयुक्त जगह होनी चाहिए।

3. मृदा बाँध एवं कंक्रीट बाँध के लिये आवश्यकता एकदम भिन्न हैं।

4. बाँध की नींव तथा अन्त्याधार दोनों मजबूत जलरोध तथा भूस्खलन से मुक्त होने चाहिए ताकि निर्माण का बोझ वहन कर सकें।

5. बाँध स्थल किसी जीवित भ्रंश के नजदीक नहीं होना चाहिए।

6. सम्भावित स्थल का भूकम्पीय इतिहास ज्ञात किया जाना चाहिए।

7. परियोजना निर्माण सामग्री परियोजना स्थल से काफी नजदीक होनी चाहिए ताकि परियोजना लागत पर प्रतिकूल असर न पड़े।

8. पर्यावरण तथा विस्थापन के मुद्दे गंभीरता से देखे जाने चाहिए।

निमार्ण पूर्व चरण अन्‍वेषण : परियोजना स्थल के चुनाव के पश्चात उस स्थल पर निर्माण पूर्व चरण के अनुसंधान किये जाते हैं।

भूआकृतिकी सर्वेक्षण : परियोजना स्थल का भूआकृतिक सर्वेक्षण 1:1000 पैमाने पर 1 मी. से 2 मी. कन्टूर अन्तराल पर पर्याप्त संख्या में बैन्च मार्क/रेफरेन्स पिलर स्थापित करने के लिये किया जाता है। इस सर्वेक्षण को वायवीय फोटोग्राफ एवं सेटेलाइट चित्रों का प्रयोग करते हुए भी किया जाता है ताकि पूरी परियोजना का चित्र साकार हो सके।

भूवैज्ञानिक अन्‍वेषण : परियोजना स्थल व उसके आस-पास के क्षेत्र की चट्टानों के प्रकार एवं भूसंरचना जैसे एण्टीक्लाइन, सिनक्लाइन, फाल्ट, शियर सम्बन्धी अनुसंधान व मानचित्रण किये जाते हैं। बाँध अक्ष के साथ-साथ स्पिल वे, सुरंगों की लम्बाई तथा विद्युत गृह गह्वर के भूवैज्ञानिक सेक्शन तैयार किये जाते हैं। यह अध्ययन शैलों के प्रकार, उनकी व्यवस्था, ढाँचागत गुण चिन्हों, अपक्षयण एवं अपरदन को रेखांकित करती है। शैल समूह की भौतिक, यांत्रिक शक्ति तथा पारगम्यता सूचकांक, वेधन छिद्र, खोजी ड्रिफ्ट तथा पायलट सुरंगीकरण द्वारा ज्ञात किया जाता है।

(क) भूवैज्ञानिक मानचित्रण : 1:1000 पैमाने पर भूवैज्ञानिक संरचनात्मक गुण दोषों का रेखाचित्रण तथा मृदा व ऊपरी भार संस्तर व शैलों के सम्पर्क का व शैलो में अपरदन व अपक्षयण स्तर का मानचित्रण किया जाता है। इन सूचनाओं के आधार पर अपनी जानकारी को पुष्ट करने हेतु भूभौतिक व वेधन तकनीकों का सहारा लिया जाता है।

(ख) भूकम्‍पीय मूल्‍यांकन : क्षेत्र की भूकम्पीय अंतनिर्हित शक्ति पैदा कर सकने वाले परिच्छेद तथा भूकम्पीय उत्पत्ति स्तर ज्ञात किये जाते हैं।

(ग) भूभौतिक अन्‍वेषण : उपरिभार एवं शैल के संस्पर्श तल, भ्रंश उपस्थिति स्थल, शियर जोन एवं अन्य भूवैज्ञानिक संरचनाएं तथा डायनामिक टेस्ट से मौड्यूल्स वेल्यू तथा उससे रॉक मास क्वालिटी निकालने हेतु भूभौतिक सर्वेक्षण किये जाते हैं। वेधन क्रोड भी स्टेटिक मौडयूल्स वेल्यू ज्ञात करने हेतु अल्ट्रासोनिक लॉगिंग द्वारा स्कैन किये जाते हैं।

(घ) वेधन व छोटी सुरंग द्वारा अधिसतह अन्‍वेषण : उपरिभार व शैल संस्पर्श तल की गहराई, अपक्षयण स्थिति, भ्रंश व संभंग क्षेत्र एवं शियर जोन व तनाव शून्य स्थितियों की शैल सीमा तथा सुरंग संरेखण के ऊपर स्थित शैल/ऊपरिभार आवरण इत्यादि ज्ञात करने हेतु कई वेधन छिद्र करने की योजना बनाई जाती है। वेधन क्रोडों का ध्‍यानपूर्वक अध्ययन किया जाता है एवं प्रयोगशाला परीक्षण हेतु नमूने लिये जाते है।

(ड़.) प्रयोगशाला परीक्षण : वेधनछिद्रों से प्राप्‍त क्रोडों को स्वस्थान में शैलों में व्याप्त विभिन्न गुण दोषों के परीक्षण हेतु भूतकनीकी प्रयोगशाला में विभिन्न भौतिक एवं यांत्रिक गुणों के विभिन्न परीक्षणों से गुजारा जाता है। इस तरह से विशिष्ट गुरुत्व, लचीलापन, तन्यता, सूखी एवं गीली स्थितियों में तनाव सम्बन्धी, फूलने सम्बन्धी तथा कठोरता को ज्ञात किया जा सकता है।

(च) स्‍वस्‍थान परीक्षण : प्रयोगशाला परीक्षण से प्राप्त आधार आंकड़ों को शैलों के स्वस्थान पर होने की वास्तविक परिस्थितियों से तुलनात्मक रूप से गणना कर खुदाई के पूर्व एवं पश्चात, विशेषकर अधो सतहिक संरचनाओं के सम्बन्ध में बारम्बार भार सहने की क्षमता व तन्यता सीमा की गणना की पुष्टि की जाती है।

(छ) स्‍वस्‍थान पारगम्‍यता परीक्षण : शैल समूह की पारगम्यता को जोकि या तो शैल कणों (ग्रेन्यूल्स) अथवा भ्रंश व चटक (फ्रैक्चर) की वजह से होती है, एन एक्स माप के वेधन छिद्र को वांछित गहराई तक ले जाकर मापा जा सकता है। यह नींव व अन्त्याधार की जल अपारगम्यता जानने हेतु जरूरी है। वेधन छिद्रों में मापित जल डालकर एवं अन्य तरीकों से शैलों का स्वस्थान में परीक्षण किया जाता है। इस तरह से विरूपण गुण, पारगम्यता तथा स्वस्थान तनाव की गणना की जा सकती है।

वास्तविक भूवैज्ञानिक परिस्थितियां, अपक्षयण सीमा व तनाव मुक्त शैल स्थितियों की सीमा ज्ञात करने हेतु बाँध सीट व स्पिल वे संरचना में खोजी गुफाएं एवं मार्गदर्शी पतली सुरंगों की योजना बनाई जाती है। इनका थ्री डी मानचित्रण 1:200 पैमाने पर किया जाता है। इस सूचना से अनुपयोगी शैल को काटकर फेकने तथा उपयोगी शैल जिसमें परियोजना संरचना बनायी जा सकती है की वास्तविक सीमा का दुरूह अनुमान लगाया जाता है।

उपरोक्त सूचनाओं के आधार पर बाँध एवं संलग्न संरचनाओं को बनाने का तरीका निर्धारित करने वाले निम्न तत्व संख्यात्मक रूप से, जैसे शैल प्रकार, शैल संरचना, अपरदन व अपक्षयण, पारगम्यता, संरचनात्मक विच्छेद व भूयांत्रिक गुण, परिकल्प अभियन्ताओं को उपलब्ध कराये जाते हैं ताकि मितव्ययिता पूर्वक सुरक्षित संरचना बनायी जा सके। नींव व उसके ऊपर डाले गए अधिभार व भावी खतरे के परिदृश्य की घटनाएं, संयुक्त रूप से उन परिस्थितियों एवं/अथवा घटनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसके लिये आँकड़ों के सक्षम व्यवहारिक उपयोग से समर्थ परिकल्प की रचना की जाती है जिससे कि विश्वसनीयता की सीमा निर्धारित की जा सके तथा सम्भावित आकस्मिक विपत्ति या तबाही के खतरे को टाला जा सके।

यदि निर्माण पूर्व चरण के भू अभियांत्रिक अन्वेषण विस्तृत रूप से किये जायें तो निर्माण चरण में ‘भूवैज्ञानिक आश्चर्य’ की संभावना को पूर्ण रूप से नकारा जा सकता है। एक मोटे नियमानुसार परियोजना लागत का 2% धन भूतकनीकी अन्वेषणों पर खर्च किया जाना चाहिए।

(III) निर्माण चरण अन्‍वेषण : वास्तविक शैल समूह संरचना को ज्ञात करने के लिये भूअभियांत्रिक अन्वेषण, परियोजना संरचनाओं के निर्माण के समय भी जारी रहते हैं। नींव गुणवत्ता में, भूवैज्ञानिक कारणों से एवं शैल संरचनात्मक अवययों में, परिवर्तन पाये जाने पर नींव की योग्यता श्रेणी के अनुसार यदि आवश्यकता हो तो परिकल्पना में सूक्ष्म परिवर्तन किये जा सकते हैं।

भूसतह भूवैज्ञानिक मानचित्रण : किसी भी बाँध/स्पिल वे एवं अन्य भूसतह पर बनने वाली संरचना के लिये नींव का 1:100/200 पैमाने पर मानचित्रण ( 2 मी. × 2 मी. की ग्रिड बनाकर) किया जाता है। अभियांत्रिक भूवैज्ञानिक नींव की स्थिति को परखते हैं तथा नींव की मरम्मत/सुदृढ़ीकरण की योजना बनाते हैं। राक मास तथा करटेन ग्राउट, बाँध की सीट के नीचे पानी अन्दर आने से रोकने के लिये बनाया जाता है तथा मरम्मत में शियर क्षेत्रों का डेन्टल उपचार एवं सुदृढ़ीकरण किया जाता है।

अधोसतह भूवैज्ञानिक मानचित्रण : भूवैज्ञानिक तथा संरचनात्‍मक अवयवों की विस्‍तृत भूवैज्ञानिक सूचनाओं को 1:100/200 पैमाने पर त्रिआयामी भूवैज्ञानिक लॉग, भौल समूह गुणवत्ता (राक मास क्वालिटी), शैल का जरूरत से ज्यादा टूटना (ओवर ब्रेक), भूसंरचना पर निर्भर असफल जलीय क्षेत्र इत्यादि दिखाते हैं। इससे रॉक मास पैरामीटर जैसे क्यू वैल्यू, सरंगीकरण क्वालिटी इंडैक्स, आर एम आर (राक मास रेटिंग), आर क्यू डी (राक क्वालिटी डेजिगनेशन) आदि निर्धारित किये जाते हैं। खुदाई के दौरान स्थान विशेष का शैल समूह व्यवहार (राक मास विहेवियर), जाँचा परखा जाता है तथा उसके आधार पर सुदृढ़ीकरण सुझाव दिये जाते हैं।

उक्त के अलावा परियोजना स्थल पर बाँध एवं पावर हाउस में समय बीतने के साथ साथ साधारण रख-रखाव की दिशा इंगित करने वाले यंत्र लगाये जाते हैं। बाँध जनित भविष्य के सरोवर स्थल का अध्ययन किया जाता है, उसमें कोई कमी आदि होने पर उसका जलभराव से पहले ही इलाज कर लिया जाता है। आस-पास के भूस्खलन क्षेत्रों का अध्ययन व उपचार कर लिया जाता है। बाँध बनने एवं जलराशि भरने के फलस्वरूप बढ़े भार से क्षेत्र में माइक्रो साइसमिक परिवर्तन प्रभावों का अनुमान लगाया जाता है।

सम्पर्क


कौमुदी जोशी
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, भुवनेश्वर


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