जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार एवं इसके अधीनस्थ संगठन


झांकीहमारे देश का सिंचाई और विद्युत का इतिहास सन 1855 से शुरू होता है। उस समय इस विषय का दायित्व नवनिर्मित लोक निर्माण विभाग को सौंपा गया था। इन विभागों को भिन्न-भिन्न मन्त्रालयों में सम्मिलित किया जाता रहा और अन्ततोगत्वा सन 1985 में केन्द्रीय सरकार के मन्त्रालयों के पुनर्गठन में तत्कालीन सिंचाई और विद्युत मन्त्रालय को विभाजित कर दिया गया तथा सिंचाई विभाग को जल संसाधन मन्त्रालय के रूप में पुनर्गठित किया गया।

यह मन्त्रालय देश के जल संसाधनों के विकास एवं विनियमन के लिये नीतिगत मार्गदर्शी सिद्धान्त और कार्यक्रम तैयार करने के लिये जिम्मेदार हैं।

मन्त्रालय जिन कार्यों का निष्पादन कर रहा है वे इस प्रकार हैं:
1. जल संसाधन क्षेत्र में समग्र आयोजना, नीति निर्माण, समन्वय और मार्गदर्शन।
2. सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण और बहुद्देश्यीय परियोजनाओं (वृहद और मध्यम) का तकनीकी मार्गदर्शन, छानबीन, स्वीकृति और माॅनीटरन।
3. क्षेत्रीय विकास के लिये सामान्य आधार तन्त्रीय, तकनीकी और अनुसंधान सहयोग।
4. विशिष्ट परियोजनाओं के लिये विशेष केन्द्रीय वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना तथा विश्व बैंक और अन्य एजेंसियों से विदेशी वित्त प्राप्त करने में सहायता करना।
5. लघु सिंचाई और कमान क्षेत्र विकास के सम्बन्ध में समग्र नीति निर्माण, आयोजना और मार्गदर्शन, केन्द्र प्रायोजित योजनाओं का प्रशासन और माॅनीटरन तथा सहभागितापूर्ण सिंचाई प्रबंध को बढ़ाना।
6. भूजल संसाधन के विकास के लिये समग्र आयोजना, प्रयोज्य संसाधनों की स्थापना, दोहन की नीतियों का निर्माण तथा भूजल विकास में राज्य स्तरीय क्रियाकलापों पर निगाह रखना तथा उन्हें सहयोग देना।
7. राष्ट्रीय जल विकास परिप्रेक्ष्य का निर्माण तथा अन्तः बेसिन अन्तरण की सम्भावनाओं पर विचार करने के लिये विभिन्न बेसिनों/उप-बेसिनों के जल सन्तुलन का निर्धारण।
8. अन्तरराज्यीय नदियों से सम्बन्धित मतभेदों अथवा विवादों को हल करने के सम्बन्ध में समन्वयन, मध्यस्थता करना तथा इस काम को सुविधाजनक बनाना और कुछ मामलों में अन्तरराज्यीय परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर निगाह रखना।
9. नदियों के जल, जल संसाधन विकास परियोजनाओं तथा सिंधु जल संधि के प्रचालन के सम्बन्ध में पड़ोसी देशों के साथ वार्ता और विचार-विमर्श करना।
मन्त्रालय के अधीन निम्नलिखित सम्बद्ध/अधीनस्थ संगठन देश के जल संसाधनों से जुड़ी भिन्न-भिन्न समस्याओं के समाधान हेतु कार्य कर रहे हैं। जिनका संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार है:

बेतवा नदी बोर्ड


उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के मुख्य मन्त्रियों के बीच हुई बैठक में 22 जुलाई 1972 को बेतवा नदी के उपलब्ध जल संसाधनों का उपयोग करने का निर्णय लिया गया। इसके पश्चात 09 दिसम्बर, 1973 को हुई बैठक में उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश दोनों ने राज्यों में चल रही अन्तरराज्यीय परियोजनाओं के त्वरित, निर्बाध और कुशल निष्पादन हेतु एक त्रिपक्षीय नियन्त्रण बोर्ड स्थापित करने के लिये सहमति जतायी। बेतवा नदी बोर्ड, राजघाट बाँध और विद्युत गृह के निष्पादन हेतु संसद के एक अधिनियम द्वारा 1976 में बेतवा नदी बोर्ड का गठन किया गया। बेतवा नदी बोर्ड का मुख्यालय झाँसी में स्थित है।

केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्री इस बोर्ड के अध्यक्ष हैं तथा केन्द्रीय विद्युत मन्त्री, जल संसाधन राज्य मन्त्री तथा उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के मुख्य मन्त्री, वित्त प्रभारी. सिंचाई एवं विद्युत मन्त्री इसके सदस्य हैं।

बाँध तथा विद्युत गृह की लागत तथा लाभ को उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश दोनों राज्यों द्वारा बराबर बाँटा जाता है। इस परियोजना का खर्च, बोर्ड द्वारा उ.प्र. तथा म.प्र. से सहयोग स्वरूप प्राप्त फण्ड से स्थापित बेतवा नदी बोर्ड फण्ड में से किया जाता है। बाँध एवं विद्युत गृह (लोक कार्यों) के निर्माण का कार्य बेतवा नदी बोर्ड को सौंपा गया जबकि सम्बन्धित राज्य सरकारें अपने क्षेत्रों में नहर परियोजनाओं को निष्पादित कर रही हैं।

बाणसागर नियन्त्रण बोर्ड


बाणसागर नियन्त्रण बोर्ड, जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार के अधीनस्थ एक कार्यालय है जिसका सचिवालय रीवा (म.प्र.) में स्थित है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मुख्य मन्त्रियों के बीच अन्तरराज्यीय समझौते के आधार पर बाणसागर बाँध तथा सम्बन्धित कार्यों के सफल, मित्तव्ययी तथा शीघ्र निष्पादन के लिये जनवरी 1976 में बाणसागर बोर्ड का गठन किया गया था।

केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्री इस बोर्ड के अध्यक्ष हैं तथा राज्यों के जल संसाधन मन्त्री, केन्द्रीय ऊर्जा मन्त्री, मुख्य मन्त्री, तीनों राज्यों के प्रभारी सिंचाई और वित्त मन्त्री एवं प्रभारी विद्युत मन्त्री इसके सदस्य हैं। केन्द्रीय जल आयोग की अध्यक्षता में बनी कार्यकारी समिति बोर्ड के कार्यों का प्रबन्धन करती है।

ब्रह्मपुत्र बोर्ड


.ब्रह्मपुत्र बोर्ड जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है जिसकी स्थापना संसद के एक अधिनियम (अर्थात ब्रह्मपुत्र बोर्ड अधिनियम 1980) के तहत भारत सरकार द्वारा जल संसाधन मन्त्रालय के अधीन की गई थी। बोर्ड का मुख्यालय गुवाहाटी (असम) में स्थित है। ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ और तट-कटाव नियन्त्रण तथा तत्सम्बन्धी कार्यों के एकीकृत कार्यान्वयन के उद्देश्य से इस बोर्ड का गठन किया गया था। इसके कार्यक्षेत्र, पूर्वाेत्तर क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र तथा बराक घाटी में आने वाले सातों राज्यों का सम्पूर्ण क्षेत्र आता है।

इस बोर्ड के मुख्य कार्य कुछ इस प्रकार हैंः ब्रह्मपुत्र घाटी में सर्वेक्षण और जाँच करना तथा ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ और तट-कटाव के नियन्त्रण और जल निकासी में सुधार के लिये मास्टर प्लान तैयार करना, ब्रह्मपुत्र और बराक घाटी के जल संसाधनों के विकास को समुचित महत्त्व देना ताकि सिंचाई, जल विद्युत, नौ परिवहन और अन्य लाभकारी उद्देश्यों के लिये उनका उपयोग किया जा सके, सौंपे गए कार्यों में केन्द्र सरकार द्वारा अनुमोदित मास्टर प्लान में शामिल बाँधों तथा अन्य परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करना और केन्द्र सरकार द्वारा अनुमोदित परियोजनाओं का निर्माण एवं उनका रख-रखाव करना है।

केन्द्रीय भूजल बोर्ड


केन्द्रीय भूजल बोर्ड (सी.जी.डब्ल्यू.बी.) जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार के अधीनस्थ एक संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1970 में की गई थी। के. भू. ज. बोर्ड एक बहु-विषयक वैज्ञानिक संगठन है जिसका मुख्यालय फरीदाबाद में स्थित है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड के प्रमुख इसके अध्यक्ष हैं और इसके मुख्य चार स्कन्ध: (1) स्थायी प्रबन्धन एवं जन सम्पर्क; (2) सर्वेक्षण आकलन एवं माॅनीटरिंग; (3) समन्वेशी वेधन एवं सामग्री प्रबन्धन तथा (4) प्रशिक्षण एवं प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण हैं। देश में विभिन्न क्षेत्रीय गतिविधियों के लिये बोर्ड के 18 क्षेत्रीय कार्यालय हैं। प्रत्येक कार्यालय के प्रमुख क्षेत्रीय निदेशक होते हैं जिन्हें 17 इंजीनियरिंग प्रभागों और 11 राज्य इकाइयों के कार्यालयों का सहयोग प्राप्त होता है।

केन्द्रीय भूजल बोर्ड की प्रमुख गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं:
(क) भूजल प्रबन्धन अध्ययन, (ख) भू-भौतिकीय अध्ययन, (ग) जल गुणवत्ता विश्लेषण, (घ) भूजल संसाधन का आँकलन, (ड़) केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण, (च) राजीव गाँधी राष्ट्रीय भूजल प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, एवं (छ) जलविज्ञान परियोजना II (एच.पी.-II)

केन्द्रीय भूजल बोर्ड द्वारा आयोजित की जा रही प्रमुख गतिविधियों में सूक्ष्म स्तरीय भूजल प्रबन्धन अध्ययन, समन्वेशी वेधन कार्यक्रम, भूमि जल प्रेक्षण कूपों, जिसमें वृहत व्यास वाले कूपों तथा सोद्देश्य निर्मित वेधन/नलकूपों (पीजोमीटर) दोनों प्रकार के कूप सम्मिलित हैं, के नेटवर्क के माध्यम से भूजल स्तरों तथा जल गुणवत्ता की माॅनीटरिंग, कृत्रिम पुनर्भरण के लिये निरूपण योजनाओं का कार्यान्वयन तथा पुनर्भरण संवर्धन के लिये वर्षाजल संचयन आदि शामिल हैं। बोर्ड भूजल अवक्षय, समुद्री जल प्रवेश, भूमि जल संदूषण, सतही तथा भूमि जल का संयुग्मी प्रयोग, जल सन्तुलन इत्यादि जैसे जल विषयक विभिन्न पहलुओं पर भी विशेष अध्ययन करता है। बोर्ड अपने कार्यालय के तथा भूजल क्षेत्र की विभिन्न गतिविधियों में संलग्न केन्द्र एवं राज्य सरकारों के संगठनों के पदाधिकारियों के लिये विभिन्न क्षमता विकास कार्यक्रम भी आयोजित करता है।

बोर्ड जल संरक्षण तथा भूजल प्रबन्धन के महत्त्व पर जन जागरूकता अभियानों आदि का संचालन भी करता है।

केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला


केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला, जल संसाधन मन्त्रालय का एक सम्बद्ध कार्यालय है। नई दिल्ली स्थित यह संस्थान क्षेत्र तथा प्रयोगशाला अनुसंधान, भू-तकनीकी अभियान्त्रिकी में मूल एवं अनुप्रयुक्त अनुसंधान, कंक्रीट प्रौद्योगिकी, निर्माण सामग्री, जल गुणवत्ता, यंत्रीकरण एवं देश में सिंचाई एवं विद्युत के विकास पर सीधे प्रभाव डालने वाले सम्बन्धित पर्यावरणीय विषयों पर कार्य करता है तथा परियोजनाओं के लिये सलाहकार एवं परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है।

इस कार्यालय के कार्यक्षेत्र के तहत निम्नलिखित प्रमुख कार्य आते हैं: मृदा गतिकी, जिओ-टैक्सटाइल्स, मृदा रसायन और राॅकफिल प्रौद्योगिकी सहित मृदा यान्त्रिकी एवं नींव अभियान्त्रिकी। कंक्रीट प्रौद्योगिकी और ड्रिलिंग प्रौद्योगिकी यन्त्रीकरण सहित शैल यान्त्रिकी, अभियान्त्रिकी, भू-भौतिकी एवं संख्यात्मक माॅडलिंग कंक्रीट रसायन विज्ञान, इलैक्ट्राॅनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी।

केन्द्रीय जल आयोग


केन्द्रीय जल आयोग जल संसाधन के क्षेत्र में वर्ष 1945 से भारत के एक शीर्ष तकनीकी संगठन के रूप में कार्यरत है तथा वर्तमान समय में यह जल संसाधन मन्त्रालय के अन्तर्गत एक सम्बन्द्ध कार्यालय के रूप में कार्य कर रहा है। कन्द्रीय जल आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

यह आयोग बाढ़ नियन्त्रण, सिंचाई, पेयजल आपूर्ति तथा जल विद्युत उत्पादन और जल विद्युत विकास के लिये राज्य सरकारों के परामर्श से पूरे देश में जल संसाधनों के नियन्त्रण, संरक्षण और उनके उपयोग की योजनाओं को शुरू करने, इनको समन्वित करने तथा आगे की कार्रवाई करने के लिये सामान्य रूप में उत्तरदायी है। आयोग के कार्यों को तीन स्कन्धों: (1) अभिकल्प एवं अनुसंधान स्कन्ध; (2) नदी प्रबंधन स्कन्ध तथा (3) जल नियोजन एवं परियोजना स्कन्ध के मध्य विभाजित किया गया है।

केन्द्रीय जल आयोग का मानव संसाधन प्रबन्धन/विकास, वित्तीय प्रबन्धन, प्रशिक्षण तथा प्रशासनिक मामलों से सम्बन्धित कार्य एक पृथक मानव संसाधन प्रबंधन यूनिट देखती है जिसकी अध्यक्षता एक मुख्य अभियन्ता द्वारा की जाती है। पुणे स्थित राष्ट्रीय जल अकादमी केन्द्र तथा राज्य के सेवारत अभियन्ताओं को अध्यक्ष के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन के तहत प्रशिक्षण देने का कार्य करती है। कुल मिलाकर नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में 18 यूनिट तथा पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर 13 संगठन कार्यरत हैं।

केन्द्रीय जल एवं विद्युत अनुसंधानशाला


केन्द्रीय जल एवं विद्युत अनुसंधानशाला, पुणे की स्थापना सन 1916 में बंबई प्रेसीडेंसी के एक विशेष सिंचाई विभाग के रूप में हुई थी। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा प्राप्त यह संस्थान जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार के अधीनस्थ एक संस्थान है जो जल से सम्बन्धित विभिन्न परियोजनाओं, ऊर्जा संसाधन विकास एवं जलवाहित परिवहन द्रविक अनुसंधान के क्षेत्र में सुविज्ञता एवं अनुसंधान निष्कर्षों का आदान-प्रदान, तथा अनुसंधान कार्मिकों के प्रशिक्षण के साथ-साथ अनुसंधान गतिविधियों में सहायता एवं प्रोत्साहन प्रदान करता है।

सी.डब्ल्यू.पी.आर.एस. द्वारा जटिल समस्याओं के समाधान में अपनायी जाने वाली प्रणाली विज्ञान में भौतिक/गणितीय माॅडल, क्षेत्र अन्वेषण, डेस्क अध्ययन या इनका सम्मिश्रण शामिल है। सी.डब्ल्यू.पी.आर.एस. स्थल आँकड़ा संग्रहण, भूकम्पीय परावर्तन एवं अपवर्तन सर्वेक्षण के प्रयोग से स्थल अन्वेषण, स्थल विशिष्ट भूकम्पीय पैरामीटर का मूल्यांकन तथा जल के नमूनों एवं सिविल अभियान्त्रिकी सामग्री में जाँच सम्बन्धी कार्य करता है। विभिन्न प्रकार के प्रवाह/धारा मीटर का अंशांकन करना भी इसके कार्याें में सम्मिलित है। संस्थान ने नदी एवं तटीय अभियान्त्रिक समस्याओं के समाधान के लिये सुदूर संवेदन तकनीक के प्रयोग में उल्लेखनीय प्रगति की है।

यह संस्थान अपनी अनेकों गतिविधियों में राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय ग्राहकों को अद्भुत अनुसंधान एवं विकास सम्बन्धी सेवाएं मुहैया करा रहा है।

फरक्का बैराज परियोजना


.फरक्का बैराज परियोजना जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार के अधीनस्थ एक संगठन है जिसका मुख्यालय पश्चिम बंगाल के फरक्का में स्थित है। इसकी स्थापना सन 1975 में भागीरथी - हुगली नदी प्रणाली की क्षेत्र व्यवस्था एवं नौगम्यता का सुधार करते हुए कोलकाता बन्दरगाह की सुरक्षा एवं रख-रखाव के उद्देश्य से की गई थी।

फरक्का बैराज परियोजना के अध्यक्ष इसके महाप्रबंधक हैं। इसके तीन सर्किल तथा एक समन्वय इकाई है जिसके अध्यक्ष अधीक्षण अभियन्ता हैं तथा दस प्रभाग हैं जिसके प्रमुख कार्यपालक अभियन्ता हैं। फरक्का बैराज परियोजना संगठन को परियोजना के निम्न प्रमुख घटकों के निष्पादन का काम सौंपा गया है:

1. रेल-एवं-सड़क सहित गंगा नदी पर 2245 मीटर लम्बा एक बैराज, आवश्यक नदी प्रशिक्षण कार्य तथा दाईं तरफ एक मुख्य विनियंत्रक।
2. भागीरथी नदी पर जांगीपुर में 213 मीटर लम्बा एक बाँध और इसकी बगल में एक नौसंचालन लाक।
3. फरक्का बाँध से दाएँ मुख्य विनियन्त्रक से निकलने वाले 1133 क्यूमेक (40000 क्यूसेक) क्षमता वाली 38.38 किलोमीटर लम्बी पोषक नहर।
4. जलावरोध (लाक), जलावरोध नहर, शेल्टर बेसिन, नौसंचालन प्रकाश एवं अन्य अवसंरचनाएँ।
5. फरक्का बाँध के 33.79 किलोमीटर बाएँ प्रवाह बंध और जांगीपुर बैराज के 16.31 किलोमीटर बाएँ प्रवाह बंध।
6. पोषक नहर पर दो सड़क सह रेल पुल एवं दो सड़क पुल।
7. मुर्शिदाबाद एवं मालदा दोनों जिलों के विभिन्न स्थानों पर अनेक विनियन्त्रक।
8. पोषक नहर के आर डी 48.0 पर बागमारी साइफन।
9. फरक्का बैराज परियोजना का विस्तार प्रति प्रवाह में दियारा सहित राजमहल तक (फरक्का बैराज से 40 किलोमीटर) तथा अनुप्रवाह में जालंगी (फरक्का बैराज से 80 किलोमीटर) तक कर दिया गया है ताकि कटाव-विरोधी सुरक्षा कार्य किए जा सकें।

गंगा बाढ़ नियन्त्रण आयोग


गंगा बाढ़ नियन्त्रण आयोग (जी.एफ.सी.सी) जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार के अधीनस्थ एक कार्यालय है जिसकी स्थापना सन 1972 में भारत सरकार के संकल्प सं. एफ.सी.सी. 47(3)/72 दि.18/4/1972 द्वारा गंगा बेसिन राज्यों में बाढ़ की समस्या के निदान एवं उसके प्रबन्धन के लिये की गई थी। आयोग का मुख्यालय पटना में स्थित है। माननीय जल संसाधन मन्त्री, भारत सरकार इस परिषद के अध्यक्ष हैं तथा बेसिन राज्यों के मुख्य मन्त्री या उनके प्रतिनिधि एवं सदस्य योजना आयोग इसके सदस्य हैं।

इस आयोग को मुख्यतः गंगा बेसिन में नदी प्रणाली के बाढ़ प्रबंधन से सम्बन्धित व्यापक योजनाओं को तैयार करने, विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन का चरणबद्ध/क्रमबद्ध कार्यक्रम तैयार करने, विभिन्न बाढ़ प्रबन्धन योजनाओं की माॅनीटरिंग, निष्पादन मूल्यांकन करने, सड़क तथा रेल पुलों के तहत आने वाले जलमार्गों की उपयुक्तता की समीक्षा करने तथा पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उ.प्र., उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल तथा राजस्थान बेसिन राज्यों को बाढ़ प्रबन्धन सम्बन्धी तकनीकी दिशा-निर्देश देने का कार्य सौंपा गया है। यह आयोग गंगा बेसिन में बाढ़ प्रबन्धन योजनाओं के तकनीकी-आर्थिक परीक्षण का कार्य भी करता है।

राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान


राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, जल संसाधन मन्त्रालय के अन्तर्गत भारत सरकार की एक सोसायटी है जिसकी स्थापना सन 1978 में रुड़की (उत्तराखण्ड) में की गई थी। भारत सरकार, जल संसाधन मन्त्रालय द्वारा पूर्णतः वित्तपोषित यह संस्थान जलविज्ञान और जल संसाधन विकास के क्षेत्र में मौलिक, अनुप्रयुक्त एवं नीतिगत अनुसंधान कार्य कर रहा है:

1. जलविज्ञान के सभी पहलुओं पर वैज्ञानिक कार्यों को करने में सहायता देने के साथ-साथ व्यवस्थित रूप से इनका क्रमबद्ध समन्वय तथा प्रसार करना।
2. जलविज्ञान के क्षेत्र में अन्य राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग तथा समन्वय स्थापित करना।
3. समिति के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये एक अनुसंधान तथा संदर्भ पुस्तकालय की स्थापना, उसका रख-रखाव करना तथा उसमें पुस्तकें, समीक्षाएं, पत्रिकाएं तथा अन्य सुसंगत प्रकाशन उपलब्ध कराना।
4. वे सभी कार्य करना जिनके लिये संस्थान की स्थापना की गई है तथा जिन्हें समिति अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आवश्यक, प्रासंगिक और उचित समझती है।
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान जलविज्ञान तथा जल संसाधन के क्षेत्र में भारत की एक शीर्ष संस्था है। संस्थान कम्प्यूटर, प्रयोगशाला तथा क्षेत्रोन्मुख अध्ययनों को करने के लिये पूर्णरूप से साधन सम्पन्न एवं सक्षम है।

राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान ने देश के विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट जलविज्ञानीय समस्याओं के निराकरण के लिये बेलगाँव, काकीनाडा, जम्मू तथा सागर में चार क्षेत्रीय केन्द्र और पटना तथा गुवाहाटी में दो बाढ़ प्रबंधन अध्ययन केन्द्र स्थापित किए हैं।

नर्मदा नियन्त्रण प्राधिकरण


नर्मदा जल विवाद अधिकरण के अन्तिम आदेश के खण्ड - XIV के तहत दिए गए निर्णय के अनुसरण में भारत सरकार ने नर्मदा जल योजना बनाई थी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ अधिकरण के निर्णयों और निर्देशों के समुचित कार्यान्वयन के लिये सन 1980 में नर्मदा नियन्त्रण प्राधिकरण का गठन किया गया। प्राधिकरण का मुख्यालय इन्दौर में स्थित है।

नर्मदा नियन्त्रण प्राधिकरण (एन.सी.ए.) को निम्नलिखित के सम्बन्ध में अधिकरण के आदेशों के कार्यान्वयन के लिये शक्तियाँ प्रदान की गई हैं:

(1) नर्मदा जल भण्डारण, आबंटन, नियमन तथा नियन्त्रण; (2) सरदार सरोवर परियोजना से विद्युत लाभ का बँटवारा; (3) मध्य प्रदेश द्वारा जल का नियमित छोड़ा जाना; (4) सरदार सरोवर परियोजना के अन्तर्गत सम्भावित डूब भूमि तथा सम्पत्ति का सम्बन्धित परियोजना के लिये अधिग्रहण करना (5) लागत का बँटवारा आदि।

सचिव, जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार इस प्राधिकरण के अध्यक्ष हैं। केन्द्रीय ऊर्जा, पर्यावरण एवं अधिकारिता तथा जनजातीय मामले के मन्त्रालयों के सचिव, चारों पक्षकार राज्यों के मुख्य सचिव, केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त एक कार्यकारी सदस्य और तीन पूर्णकालिक सदस्य तथा पक्षकार राज्यों द्वारा नामित चार अंशकालिक सदस्य इसके सदस्य हैं।

नेशनल प्रोजेक्ट्स कन्सट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड


देश के आर्थिक विकास के लिये आवश्यक आधारभूत सुविधाएँ मुहैया करवाने हेतु नेशनल प्रोजेक्ट्स कन्सट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एन.पी.सी.सी.) फरीदाबाद की स्थापना एक प्रमुख निर्माण कम्पनी के रूप में सन 1957 में की गई थी। एन.पी.सी.सी. लिमिटेड जल संसाधन मन्त्रालय के अधीन भारत सरकार का एक उद्यम है जो कि नहर, बाँध, सिंचाई व नदी घाटी परियोजनाओं, बैराजों जल एवं तापीय विद्युत परियोजनाओं, औद्योगिक संरचनाओं, सड़कों, पुलों, भवनों, अस्पतालों, फ्लाई ओवरों तथा हवाई पट्टियों आदि के निर्माण कार्यों को उत्कृष्टता एवं गुणवत्ता के साथ पूरा कर रहा है। आज एन.पी.सी.सी. को निर्माण के सभी क्षेत्रों का सुदीर्घ अनुभव प्राप्त है और वह समस्त भावी परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा कर सकता है। एन.पी.सी.सी. लि. भारत तथा विदेश में प्रोजेक्टों के निर्माण के सन्दर्भ में अन्तरराष्ट्रीय निर्माण एवं परामर्शदात्री कम्पनियों के साथ भी सहकार्य तथा अनुबंध कर रहा है।

राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण


राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण की स्थापना जल संसाधन मन्त्रालय के अधीन सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत जुलाई, 1982 में एक पंजीकृत सोसाइटी के रूप में (एन.डब्ल्यू.डी.ए.) की गई थी। भारत सरकार द्वारा पूर्णतः वित्तपोषित इस स्वायत्त शासी निकाय का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है।

इस अभिकरण के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं:
(क) देश में जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिये वैज्ञानिक विकास को उन्नत करना। (ख) तत्कालीन सिंचाई मन्त्रालय (अब जल संसाधन मन्त्रालय) तथा केन्द्रीय जल आयोग द्वारा जल संसाधनों के विकास के लिये तैयार राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के भाग, प्रायद्वीपीय नदी विकास और हिमालयी नदी विकास घटकों के प्रस्तावों की व्यवहार्यता स्थापित करने के लिये सम्भावित जलाशय स्थलों और परस्पर जोड़ने वाले सम्पर्कों का विस्तृत सर्वेक्षण और अन्वेषण करना। (ग) निकट भविष्य में बेसिन राज्यों की उचित आवश्यकताओं को पूर्ण करने के पश्चात जिन विभिन्न प्रायद्वीपीय एवं हिमालयी नदी प्रणालियों के जल को अन्य बेसिनों/राज्यों को हस्तांतरित किया जा सकता है, उनमें जल की मात्रा का विस्तृत अध्ययन करना। (घ) प्रायद्वीपीय एवं हिमालयी नदी विकास के विभिन्न घटकों की व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करना। (ड.) उपर्युक्त उद्देश्य की प्राप्ति के लिये ऐसे अन्य कार्य करना जिन्हें समिति आवश्यक आनुशंगिक, पूरक अथवा प्रेरक समझे।

राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण ने, प्रायद्वीपीय घटक के अन्तर्गत सभी 137 बेसिनों/उपबेसिनों के आँकड़ों का संग्रह और 52 अभिज्ञात डाइवर्जन बिन्दुओं (3 अतिरिक्त अध्ययन सहित), 58 जलाशय अध्ययन, 1 अतिरिक्त अध्ययन सहित 18 सम्पर्कों के स्थलाकृतिक अध्ययन और सभी 18 व्यवहार्यता पूर्व रिपोर्टें पूरी कर ली हैं।

एनडब्ल्यूडीए ने प्रायद्वीपीय घटक के अन्तर्गत सर्वेक्षण और अन्वेषण करने तथा व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने के लिये 16 जल हस्तांतरण सम्पर्कों की पहचान की है।

सरदार सरोवर निर्माण सलाहकार समिति


सरदार सरोवर निर्माण सलाहकार समिति (एस.एस.सी.ए.सी.) का गठन सन 1980 में भारत सरकार द्वारा नर्मदा जल विवाद अधिकरण के दिशा-निर्देशों के अनुसरण में किया गया। समिति का सचिवालय वडोदरा में स्थित है तथा सचिव जल संसाधन मन्त्रालय इस समिति के अध्यक्ष हैं।

समिति के प्रमुख कार्य निम्नवत हैं:


1. परियोजना अनुमानों की जाँच करना और सम्बन्धित सरकार की प्रशासनिक मंजूरी के लिये सिफारिशें करना।
2. किसी भी पक्षकार राज्य द्वारा इसे भेजी गई तकनीकी विशेषताओं और डिजाइनों की जाँच करना और जहाँ कहीं आवश्यक हो विशेषज्ञों के साथ परामर्श करना।
3. परियोजना घटकों के निर्माण के कार्यक्रम को इष्टतम परिणामों की बात को ध्यान में रखते हुए समन्वित ढंग से अन्तिम रूप देना।
4. अनुमोदित कार्यक्रम के अनुसार निर्माण कार्यों के लिये निधियों की आवश्यकता की जाँच करना।
5. परियोजना के प्रभावी निष्पादन के लिये परियोजना अधिकारियों को तकनीकी और वित्तीय-दोनों प्रकार के अधिकारों के प्रत्यायोजन के लिये सिफारिश करना।
6. विभिन्न श्रेणियों के निर्माण कार्यों के लिये विशिष्टियों को अन्तिम रूप देना।
7. ऐसे उप-अनुमानों और संविदाओं की जाँच करना जिनकी लागत परियोजना अधिकारियों को प्रत्यायोजित अधिकारों से बढ़कर हैं।
8. भौतिक और वित्तीय-दोनों प्रकार की प्रगति की समीक्षा करना और निर्माण कार्यों में तेजी लाने के लिये उपाय सुझाना।

तुंगभद्रा बोर्ड


तुंगभद्रा बोर्ड को भारत के राष्ट्रपति द्वारा आन्ध्र प्रदेश राज्य अधिनियम 1953 के खण्ड 66 के उपखण्ड (4) के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए तुंगभद्रा परियोजना को पूरा करने और इसके संचालन तथा रख-रखाव के लिये गठित किया गया था। बोर्ड सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन तथा जलाशयों से अन्य प्रयोगों के लिये जल का विनियमन कर रहा है।

बोर्ड में भारत सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक राज्यों तथा भारत सरकार प्रत्येक से एक-एक प्रतिनिधि शामिल है। अपने कार्यों के संचालन के लिये बोर्ड स्वयं नियम बनाता है। कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश सरकार समान अनुपात में निधि प्रदान करते हैं तथा समान अनुपातों के अनुसार अनेक पदों के लिये स्टाफ भी नियुक्त करते हैं।

राज्यों को नहर अनुसार जल के वितरण के लिये राज्य सरकारों के परामर्श से तुंगभद्रा बोर्ड द्वारा प्रत्येक वर्ष कार्य तालिका बनाई जाती है और जल वर्ष के दौरान समय-समय पर इसकी समीक्षा की जाती है। कार्य तालिका पर हुई सहमति के अनुसार जल का विनियमन किया जाता है।

ऊपरी यमुना नदी बोर्ड


ऊपरी यमुना नदी बोर्ड जल संसाधन मन्त्रालय भारत सरकार के तहत एक अधीनस्थ कार्यालय है जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इस बोर्ड का गठन सन 1995 में केन्द्र सरकार के एक संकल्प के द्वारा किया गया। इस बोर्ड के अध्यक्ष केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्री हैं तथा बेसिन राज्यों के मुख्य मन्त्री इसके सदस्य हैं।

बोर्ड के कार्यों में ऊपरी यमुना बेसिन में जल प्रबन्धन सम्बन्धी सभी पहलू शामिल हैं अर्थात जल बँटवारे पर एम.ओ.यू. का कार्यान्वयन जल आबंटन, जल लेखा एवं आँकड़ा भण्डारण, सतही एवं भूजल की गुणवत्ता की माॅनीटरिंग एवं उन्नयन, भूजल दोहन का नियन्त्रण, बेसिन में सभी परियोजनाओें के निर्माण में समन्वय, सभी परियोजनाओं का संयुक्त प्रचालन, वाटरशेड विकास और आवाह क्षेत्र तथा उपचारी योजनाएँ आदि शामिल हैं।

वाप्कोस लिमिटेड


जल एवं विद्युत परामर्शी सेवाएं (भारत) लिमिटेड (डब्ल्यू.ए.पी.सी.ओ.एस.) जल संसाधन मन्त्रालय के अधीन भारत सरकार का एक ‘मिनी रत्न’ उपक्रम है जोकि एक शीर्षस्थ अन्तरराष्ट्रीय परामर्शी संगठन है। इस संगठन की स्थापना 26 जून, 1969 को कम्पनी अधिनियम 1956 के तहत की गई थी। यह संगठन जल संसाधन, विद्युत तथा आधारभूत तन्त्र विकास के क्षेत्र में भारत तथा विदेशों में परामर्शी सेवाएँ प्रदान कर रहा है।

वाप्कोस के पास समर्पित व्यावसायिकों का एक सुगठित दल उपलब्ध है और इसे संगत क्षेत्रों में कार्यरत राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर के संगठनों का पूर्ण समर्थन प्राप्त है।

वाप्कोस एक आई.एस.ओ. 9001:2000 प्रमाणित उपक्रम है जो विश्वभर में फैले अपने ग्राहकों को स्टेट-आॅफ-द-आर्ट प्रौद्योगिकी, किफायती समाधान तथा परियोजनाओं के यथासमय क्रियान्वयन व सुपुर्दगी सुनिश्चित करने का पूर्ण प्रयास करता है। वाप्कोस ने 40 से भी अधिक देशों द्वारा सौंपे गए अनेकों कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया है तथा वर्तमान समय में वह भारत के साथ-साथ अफगानिस्तान, भूटान कम्बोडिया, लाओस मोजाम्बीक, म्यांमार तथा नेपाल में परामर्शी सेवाएं प्रदान कर रहा है।

स्त्रोत: जल संसाधन मन्त्रालय की वर्ष 2009-10 की वार्षिक रिपोर्ट तथा सम्बन्धित संगठनों की वेबसाइट पर उपलब्ध सामग्री।

सम्पर्क : प्रदीप कुमार उनियाल
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की

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