जल संसाधन के प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी

जिस प्रकार पृथ्वी पांच भौतिक तत्वों से मिलकर बनी है- जल, जमीन, वायु, अग्नि और आकाश उसी तरह पृथ्वी में रहने वाले मानव के लिए तीन चीजें आवश्यक है जल, जंगल एवं जमीन। जल के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसके लिए हमें कुएँ, बावड़ी, तालाब एवं नदियों से निरंतर बहने वाली जल राशि तथा पर्यावरण के संतुलन के लिए वनों के संरक्षण की अत्यंत आवश्यकता है। धरती की सुरक्षा मृदा की कटाई रोककर, सूखा, बाढ़, तापमान, उर्वरता एवं अधिक से अधिक वृक्ष लगाकर ही संभव है। भूमिगत जल का पुनर्भरण करके जल संरक्षण एवं सूखे से मुक्ति पाई जा सकती है।

हमारी पृथ्वी में पानी की कमी नहीं है। दुनिया भर में एक वर्ष में कुल 10 से 12 हजार एम.एच.एम. पानी बरसता है। एक एम.एच.एम. का अर्थ है एक मिलियन (दस लाख) जबकि 400 एम.एच.एम. पानी भारत में बरसता है जिसमें 230 एम.एच.एम. वाष्प बन कर उड़ जाता है, एवं 110 एम.एच.एम. नदियों में बह जाता है और 60 एम.एच.एम. सतह पर रहता है। यही पानी भूजल के स्तर को बढ़ाता है। भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 50 लीटर पानी का उपयोग करता है जबकि प्रकृति हमें 60 एम.एच.एम. पानी देती है। हमारे सामने समस्या पानी से ज्यादा उसके संचयन की है। हमें पारम्परिक शैली को अपनाने से पानी संचयन में सफलता मिलेगी।

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