जिस तरह से लुठियाग गाँव के ग्रामीणों ने 40 मीटर लम्बी और 18 मीटर चौड़ी झील का निर्माण किया इसी तरह ही लोग चाल-खाल का निर्माण करते थे। इस निर्माण में कहीं पर भी सीमेंट का इस्तेमाल नहीं है। इस चाल को जमीन के अन्दर खोदा गया है। बस इसी में बरसात का पानी एकत्रित होता है, जो निचले स्थानों के प्राकृतिक जलस्रोतों को तरोताजा रखने का यह अद्भुत तरीका लोक ज्ञान मेें ही मिलता है। जिसे लुठियाग गाँव के लोगों ने इतनी बड़ी चाल का निर्माण करके बता दिया कि जल संरक्षण में लोक ज्ञान ही महत्त्वपूर्ण है।
Rainwater Harvesting in Luthiyag village Uttarakhandउत्तराखण्ड में पानी के संरक्षण के लिये जलागम परियोजना, कृषि विकास कार्यक्रम, वन विभाग, पेयजल एवं सिंचाई विभाग, स्वजल आदि तमाम अन्य कार्यक्रम एवं विभाग हैं जिन्होंने जल संरक्षण की कोई खास तस्वीर इसलिये प्रस्तुत नहीं कर पाई कि उनके कार्यक्रम लोक सहभागिता के कम और व्यावसायिक अधिक थे। आज तक जल संरक्षण, पेयजल संकट का निवारण जैसी जो भी खबरें सामने आ रही हैं वे सभी लोक सहभागिता और लोक ज्ञान को मद्देनजर रखते हुए क्रियान्वित हुई है। जबकि बरसाती पानी के संग्रहण को सरकार की रेनवाटर हार्वेस्टिंग योजना आज तक परवान नहीं चढ़ पा रही है।
जल संरक्षण के जो भी उपादान सामने आ रहे हैं वे सभी बिना बजट के तो हैं ही मगर इन कार्यों में बखूबी से लोकसहभागिता और लोक ज्ञान का भरपूर उपयोग स्पष्ट नजर आ रहा है। लोग दान-चन्दा एवं श्रमदान से जल संरक्षण के कामों को क्रियान्वित कर रहे हैं। रुद्रप्रयाग जिले के जखोली ब्लाक अन्तर्गत लूठियाग गाँव के ग्रामीणों ने ऐसा कर दिखाया। बिना सरकारी मदद के पानी का संरक्षण कर सरकारी योजनाओं को आईना दिखाने का यह सफल प्रयास कर डाला।
यह कोई अजूबा नहीं बल्कि लुठियाग गाँव के ग्रामीणों ने एक झील को श्रमदान से बनाकर और उसमें 11 लाख लीटर बरसाती पानी का संग्रहण कर एक मिसाल पेश की है। झील लोग इस मायने में कह रहे हैं कि यह थोड़ी बड़ी है। मगर यह ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग पॉण्ड’ की कल्पना को साकार करती है। जबकि पहले लोग इसी लोक ज्ञान के अनुरूप जल संरक्षण करते थे।
जिस तरह से लुठियाग गाँव के ग्रामीणों ने 40 मीटर लम्बी और 18 मीटर चौड़ी झील का निर्माण किया इसी तरह ही लोग चाल-खाल का निर्माण करते थे। इस निर्माण में कहीं पर भी सीमेंट का इस्तेमाल नहीं है। इस चाल को जमीन के अन्दर खोदा गया है। बस इसी में बरसात का पानी एकत्रित होता है, जो निचले स्थानों के प्राकृतिक जलस्रोतों को तरोताजा रखने का यह अद्भुत तरीका लोक ज्ञान मेें ही मिलता है। जिसे लुठियाग गाँव के लोगों ने इतनी बड़ी चाल का निर्माण करके बता दिया कि जल संरक्षण में लोक ज्ञान ही महत्त्वपूर्ण है।
तीन वर्ष पहलेे रुद्रप्रयाग जनपद का लुठियाग गाँव बूँद-बूँद पानी के लिये मोहताज था, आज वहाँ हर घर को पूरे दिन पर्याप्त पानी ही नहीं मिल रहा है बल्कि साग-सब्जी की भी खूब पैदावार हो रही है। जो ग्रामीणों की आजीविका का भी जरिया बन गई है। लोग पहले सरकारी योजनाओं के भरोसे थे कि उनके गाँव में कोई स्वजल या अन्य पेयजल योजना बनेगी तो उनकी पेयजल की यह समस्या स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।
गाँव में सरकारी स्तर पर पेयजल की समस्या को दूर करने के लिये कई कार्य हुए हैं, परन्तु लुठियाग गाँव में पेयजल की समस्या तभी दूर हुई जब लोगों ने खुद ही जल संकट को दूर करने का निर्णय लिया है। उन्होंने अपने पूर्वजों के लोक ज्ञान को महत्त्व दिया और तीन वर्ष पहले गाँव से थोड़ा दूर यानि जहाँ से गाँव का जलागम क्षेत्र बनता है की जगह पर एक विशाल चाल का निर्माण कर डाला।
टिहरी और रुद्रप्रयाग जिले की सीमा पर बसा चिरबिटिया-लूठियाग गाँव सबसे अधिक ऊँचाई वाला गाँव है। समुद्र तल से 2170 मीटर की ऊँचाई पर होने से गाँव में पानी का मुख्य स्रोत वर्ष 1991 के भूकम्प में ध्वस्त हो गया था। 104 परिवारों वाले इस गाँव में एक स्रोत ही बचा था, जो बरसात के चार माह को छोड़कर अन्य महीनों में सूख जाता था। ऐसे में ग्रामीण ढाई से तीन किमी दूर से अपने लिये पानी जुटा रहे थे।
वर्ष 2014 में ग्रामीणों ने राज राजेश्वरी ग्राम कृषक समिति का गठन कर गाँव के हर घर के लिये पर्याप्त पानी जुटाने का संकल्प लिया। संकल्प के तहत विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून 2014) पर 104 परिवारों की महिलाओं के साथ अन्य ग्रामीण गैती, फावड़ा, कुदाल, सब्बल लेकर पेयजल स्रोत से लगभग सवा किमी ऊपर जंगल क्षेत्र में पहुँचे। यहाँ चाल, खाल (छोटी झील) बनाने का कार्य शुरू किया गया।
लगभग एक माह की कड़ी मेहनत के बाद ग्रामीणों ने 40 मीटर लम्बी और 18 मीटर चौड़ी झील का निर्माण किया। तब खूब बारिश होने से चाल-खाल में काफी पानी एकत्रित हुआ, तो लोगों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई कि उनकी मेहनत रंग लाई है। उन्हें विश्वास था कि जब यह चाल एक बार पानी से भर जाएगी उसके बाद तो उनके गाँव के प्राकृतिक जल धारे पुनर्जीवित हो उठेंगे।
आज इस पूरे क्षेत्र में इस चाल के निर्माण से खेती की जमीन में अच्छी नमी मिल रही है साथ ही पेयजल स्रोतों के सुर खुल गए हैं। वर्ष 2015 में झील में लगभग पाँच लाख लीटर पानी जमा होने से गाँव के पेयजल स्रोत भी रिचार्ज होने शुरू हो गए। स्रोत से सटे अन्य नम स्थलों पर भी स्रोत फूटने लगे और वर्ष 2016 में झील में आठ लाख लीटर पानी एकत्रित हो गया। इसके बाद रिलायंस फाउंडेशन की मदद से ग्रामीणों ने स्रोत के समीप 50 हजार और 22 हजार लीटर क्षमता के दो स्टोरेज टैंक का निर्माण कराया। टैंक से गाँव के 104 घरों तक 5340 मीटर पाइप लाइन बिछाई गई, जिससे सभी घरों को पानी मिलने लगा। लाइन की देखरेख के लिये भी ग्रामीणों ने अपने खर्चे पर व्यवस्था की है।
झील में इस वक्त 11 लाख लीटर पानी संग्रहित है, जिससे गाँव के सभी परिवारों को पर्याप्त पानी मिल रहा है। साथ ही स्टोरेज टैंक भी ओवरफ्लो हो रहे हैं। समिति के अध्यक्ष कुंवर सिंह कैंतुरा, रूप सिंह कैंतुरा, खजानी देवी, अनीता देवी, बसंती देवी ने बताया कि 2014 तक उन्हें बूँद-बूँद पानी के लिये तरसना पड़ता था, लेकिन आज उनके घरों में पर्याप्त पानी है। घरों में साग-भाजी की खूब पैदावार हो रही है, जो ग्रामीणों की आजीविका का भी जरिया बन गई है।
पिछले दो वर्ष से हम विश्व पर्यावरण दिवस प्रहरी झील में मनाते आ रहे हैं। झील को विस्तार देकर बरसाती पानी के संरक्षण के लिये आगे भी कार्य किया जाएगा। आज गाँव के 204 परिवार झील से पर्याप्त पानी ले रहे हैं।
-सीता देवी, ग्राम प्रधान लुठियाग
पानी के संरक्षण के क्षेत्र में लुठियाग ने एक नई मिसाल पेश की है। इस गाँव से जिले के अन्य गाँवों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए, ताकि पानी के संरक्षण में हम प्रदेश ही नहीं देश में नया मुकाम हासिल कर सके।
-मंगेश घिल्डियाल, जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग
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Post By: Editorial Team