जल संरक्षण में बालको की पहल


अब तो ग्रीष्म ऋतु की शुरूआत होते ही शहरों और गांवों में पानी के लिए हाहाकार मच जाता है। इस वर्ष भोपाल जैसे सूखा एवं जल समस्या से पीड़ित देश के अनेक हिस्सों में पानी के लिए लोगों के बीच झगड़े हुए। कुछ को तो जल समस्या की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। ये घटनाएं स्पष्ट रूप से इस बात की ओर संकेत है कि यदि हम अब भी न चेते तो फिर पछतावे के लिए भी समय न होगा।

बालको की छवि सदैव ही एक जिम्मेदार उद्योग की रही है। निजीकरण के बाद तो यह छवि और भी पुख्ता हुई है। इसका कारण यह है कि तकनीकी और आर्थिक विकास के साथ ही बालको ने स्वयं को सामाजिक और मानवीय पहलुओं से जोड़े रखा है। निजीकरण के बाद बालको ने स्वयं का विस्तार तो किया ही औद्योगिक स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं पर्यावरण और सामुदायिक विकास पर भी भरपूर ध्यान दिया है। अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार बालको की सफलता की कहानी कहते हैं।

यह बताना लाजिमी होगा कि पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में बालको ने वर्ष 2008-09 में आसपास एवं खदान क्षेत्रों में 1,83,000 पौधे रोपे वहीं 'प्रोजेक्ट ग्रीनर बालको' के अंतर्गत वर्ष 2009 में 1 लाख पौधे रोपने का अभियान संचालित किया है जिसमें अनेक स्वयंसेवी, धार्मिक, सामाजिक, शैक्षणिक संगठन और आम नागरिक बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।

वाटर हार्वेस्टिंग के लिए वर्ष 2009 में तालाब निर्माण परियोजना का संचालन बालको प्रबंधन का एक और महत्वपूर्ण अभियान है। छत्तीसगढ़ शासन और कोरबा जिला प्रशासन की योजना में सहयोग करते हुए बालको ने अपने कोरबा स्थित संयंत्र के समीप ग्राम भदरापारा में क्षेत्र के बड़े एवं गहरे तालाब निर्माण का निर्माण कराया है जिसे गांव के नागरिकों ने हाथोंहाथ लिया है।

तालाब बन जाने से पानी की समस्या झेल रहे ग्रामवासियों के चहरों की रौनक देखते ही बनती है। क्षेत्रीय पार्षद नारायण यादव ग्रामवासियों की ओर से बालको प्रबंधन के प्रति आभार जताते हुए बताते हैं कि गर्मी के दिनों में नागरिकों को तालाब पर ही निर्भर रहना पड़ता है। व्यवस्थित तालाब के निर्माण से 26 और 27 नंबर वार्ड के सभी नागरिकों को भरपूर सुविधा मिल रही है।

लगभग साढ़े तीन दशकों से भदरापारा में अंबेडकर चौक के समीप निवासरत नोहरलाल टंडन बताते हैं कि भदरापारा का बालको निर्मित तालाब आज ग्रामवासियों की निस्तारी का सबसे बड़ा सहारा बन गया है। बालको के काम से पूरा गांव खुश है। बी.एससी. के 21 वर्षीय छात्र मुकेश कुमार ओग्रे का जन्म ही भदरापारा में हुआ है। वे बताते हैं कि क्षेत्र के कुओं और अन्य स्त्रोतों में जल स्तर बढ़ने में बालको निर्मित भदरापारा तालाब का महत्वपूर्ण योगदान है।

इससे क्षेत्र के नागरिकों की पानी की समस्या हल हो गई है। आम नागरिकों की भलाई के लिए बालको प्रबंधन ने उत्कृष्ट कार्य किया है। कुछ ऐसा ही मानना है कि रामकुमार साहू का। वे बताते हैं कि जब बालको ने तालाब का निर्माण नहीं कराया था तब जल की आपूर्ति टैंकर से की जाती थी। टैंकर से पानी लेने में लोगों के बीच खूब फसाद होते थे। तालाब बन जाने से इन पर लगाम कस गई है। जल संवर्धन की दृष्टि से बालको की मुहीम अत्यंत सराहनीय है।

लगभग दो दशकों से भदरापारा की निवासी गिरनदास की धर्मपत्नी रामबाई बताती हैं कि बालको की पहल से पूर्व तालाब वाले स्थान पर छोटे-छोटे गढ्ढे थे जिसमें भरने वाला पानी ही क्षेत्र के लोगों की निस्तारी का साधन था। यहां काफी गंदगी भी थी परंतु बालको के तालाब निर्माण से इन सब समस्याओं से निजात मिल गई है। तालाब निर्माण से ग्रामवासी बहुत खुश हैं। भदरापारा निवासी बंशीदास, गुड्डी बाई और टिकैतिन बाई भी समवेत स्वर से कहती हैं कि तालाब निर्माण से सभी को फायदा हुआ है।

तालाब निर्माण, हरियाली के लिए पौधारोपण आदि कार्य पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में बालको प्रबंधन की कटिबध्दता के द्योतक हैं। प्रबंधन द्वारा अपनी परियोजनाओं में ऐसी अत्याधुनिक प्रणालियां स्थापनाकी गई हैं जिससे वायु और जल में प्रदूषकों की मात्रा मानक स्तर से भी कम पर रखने में मदद मिलती है। प्रबंधन का विश्वास है कि इन सतत प्रयासों से पर्यावरणीय असंतुलन को नियंत्रित करने में काफी मदद मिलेगी।

(लेखकः वेदान्त समूह की कोरबा स्थित इकाई बालको में कारपोरेट कम्युनिकेशंस विभाग में सेवारत हैं)
 
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