जल संरक्षण की अनूठी मिसाल झूला-चकरी हैंडपंप

jal sanrakshan ki anuthi misal jhula-chakari handpump
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राजस्थान में गहराते जल संकट के दौर में पानी के विवेकपूर्ण दोहन एवं मितव्ययितापूर्ण उपयोग के प्रयासों को गति प्रदान की जा रही है। जल संरक्षण की दृष्टि से राज्य के बूंदी जिले की कुछ शिक्षण संस्थाओं में स्थापित किए गए हैंडपंप एवं जलापूर्ति सिस्टम को न केवल जल संरक्षण, बल्कि ऊर्जा संरक्षण की दृष्टि से भी एक अनूठी मिसाल के रूप में देखा जा रहा है। यहां के कई विद्यालयों में स्थापित पारंपरिक हैंडपंपों में आंशिक तकनीकी परिवर्तन करके उन्हें मोडिफाइड किया गया है। कई स्कूलों में बच्चों के झूला-चकरी जैसे मनोरंजन के साधनों को ही वाटरपंप उपकरणों के रूप में तैयार किया गया है।प्रारंभिक दौर में बूंदी जिले की दो दर्जन से अधिक शिक्षण संस्थाओं में ये अनूठे हैंडपंप तथा वाटर सिस्टम स्थापित किए गए हैं। इनमें कहीं मल्टी-टेप हैंडपंप लगे हैं तो कहीं मेरी गो राउण्ड वाटर प्ले-पंप, कहीं सीसा सिस्टम से जलापूर्ति की व्यवस्था की गई है, तो कहीं पर फोर्स लिफ्ट सिस्टम लगाया गया है। इन विविध प्रकार के हैंडपंपों तथा वाटर सिस्टम उपकरणों को तैयार किया है जिला जल एवं स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम के जिला परियोजना समन्वयक चन्द्रशेखर शर्मा ने, जो पिछले पांच वर्षों से बूंदी जिले में संपूर्ण स्वच्छता अभियान तथा शाला जल स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम में नियमित कार्यों के अलावा नवाचारों तथा नित नए अन्वेषणों को अमलीजामा पहनाने के कार्यों को भी समर्पित भाव से अंजाम देने में जुटे हैं। यूं तो श्री शर्मा भूगोल विषय में अधि-स्नातक हैं परंतु अपने घर-परिवार में होने वाले लोहे-लकड़ी के फर्नीचर निर्माण के परंपरागत कार्यों से उन्हें प्रारंभ से मैकेनिकल कार्यों की प्रेरणा एवं दक्षता हासिल हुई। उन्होंने अपने बुद्धि कौशल, मैकेनिक माइंड एवं जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण नए प्रकार के वाटर पंपों को इजाद किया है जिन्हें देखने के लिए राज्य के अन्य जिलों से संस्थान प्रबंधन अधिकारी एवं विशेषज्ञ यहां आने लगे हैं।

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मल्टी-टेप हैंडपंप


विद्यालयों में संचालित मध्याह्न भोजन (मिड-डे-मील) कार्यक्रम के तहत सभी बच्चे एक साथ भोजन करते हैं और भोजनोपरांत एक साथ हाथ धोने, थाली मांजने एवं पानी पीने के लिए दौड़ पड़ते हैं। विद्यालयों में प्रायः एक ही हैंडपंप होता है और पानी की टंकियां होती ही नहीं। एकमात्र हैंडपंप पर कई सारे बच्चों को एक साथ पानी पीने, हाथ धोने और थाली मांजने आदि कार्यों में लगने वाले समय की बचत करने तथा इस समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए श्री चन्द्रशेखर ने एक छोटा मल्टी-टेप यंत्र तैयार किया है।

क्या है मल्टी-टेप


परंपरागत हैंडपंप के वाटर टैंक में थोड़ा-सा बदलाव करते हुए पुराने वाटर चेम्बर के स्थान पर नया मल्टी-टेप वाटर चेम्बर स्थापित किया जाता है। मल्टी-टेप वाटर चेम्बर पूर्णतः जंगरोधी लोहे से बनाया गया है। इसकी एक खास विशेषता यह भी है कि इसमें कहीं भी रबड़ का वाशर या आयॅल सील नहीं लगी है। फिर भी पानी कहीं से भी लीक नहीं होता। मल्टी-टेप वाटर चेम्बर की लागत मात्र साढ़े तीन हजार रुपए आती है, जिसे बहुत आसान तरीके से स्थापित कर दिया जाता है।

यंत्र की खासियत


इस हैंडपंप की विशेषता है कि एक बच्चा हैंडपंप चलाता है और एक साथ 7 से 10 बच्चे अपनी प्यास बुझा सकते हैं, क्योंकि इसमें इतनी संख्या में ही टूटियां लगी होती हैं जो सभी एक साथ चलती हैं। इसका वाटर चेम्बर पूरा भर जाने पर अतिरिक्त पानी शौचालय अथवा पेयजल हेतु छत पर रखी किसी टंकी में 30 फीट ऊपर तक टुल्लु-पंप के बिना ही ऊपर चढ़ जाता है और वाटर चेम्बर में 15 लीटर पानी हमेशा भरा रहता है। वह पानी उन छोटे बच्चों को हमेशा मिलता रहता है जो हैंडपंप नहीं चला सकते।

सर्व शिक्षा अभियान के तहत शाला जल एवं स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम के तहत जिले में दर्जन भर स्कूलों में मल्टी-टेप हैंडपंप स्थापित हैं। बूंदी जिला मुख्यालय पर कलक्ट्रेट परिसर स्थित नॉलेज पार्क में नवागंतुकों एवं सैलानियों के अवलोकनार्थ भी मल्टी-टेप हैंडपंप लगाया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के दर्जन भर विद्यालयों में ये नए प्रकार के हैंडपंप लगाए गए हैं।

मेरी गो राउण्ड वाटर प्ले-पंप


यह हैंडपंप एक प्रकार का मेरी गो राउण्ड आकार का चकरी झूला है जिसे बच्चे आसानी से गोल-गोल घूमा सकते हैं। उस पर बैठ कर झूला झूलते हैं और कुछ बच्चे इसे चलाते हैं। दिखने में तो यह सिर्फ झूला लगता है लेकिन इस झूले के ठीक नीचे की ओर एक बोरिंग होता है। यह बोरिंग लगभग 250 से 350 फीट तक गहरा होता है। इस बोरिंग में जहां तक जल स्तर होता है, वहां तक सवा इंची पाइप नीचे उतारे जाते हैं।

ऐसे करता है काम


बोरिंग के अंदर सवा इंच पाइप में हैंडपंप वाली 12 एमएम की रॉड भी डाली जाती है। इस रॉड का कनेक्शन झूले में लगे गियर बॉक्स में किया जाता है। जब झूला गोल-गोल घूमता है तब गियर बॉक्स 12 एमएम की रॉड को ऊपर-नीचे करते हैं। उससे पाइपों में पानी आता है और पास ही जमीन से 20 फीट ऊंची टंकी में पानी चला जाता है। टंकी भर जाने की स्थिति में अतिरिक्त पानी पुनः भूमि में उसी बोरिंग में वापस चला जाता है, जिससे उसका दुरुपयोग नहीं होता। इस झूले में विद्युत ऊर्जा की खपत नहीं होती, बल्कि बच्चों के खेलने में खर्च होने वाली ऊर्जा का ही इसमें उपयोग होता है। खेल-खेल में बोरिंग का पानी ऊपर रखी टंकी में पहुंच जाता है और बच्चों को इसका पता भी नहीं चल पाता।

देश में पहला प्रयोग


इस प्ले-पंप के निर्माता चन्द्रशेखर शर्मा ने बताया कि साधारण हैंडपंप पर एक समय में एक ही बच्चा पानी पी सकता है, लेकिन इसको टंकी के साथ जोड़ने पर अधिक बच्चे भी एक साथ पानी पी सकते हैं। आवश्यकता है मात्र एक टंकी लगाने की और टंकी के नीचे कई सारे नल लगाने की। उन्होंने बताया कि मेरी गो राउंड प्ले-पंप का झूला 35 हजार रुपए की लागत का है। बोरिंग, पाइप रॉड, हैंडपंप और टंकी आदि की कीमत अलग है। अभी इस तरह के प्ले-पंप केवल अफ्रीका में लगे हैं। भारत में पहला पंप प्रायौगिक तौर पर बूंदी जिला मुख्यालय के समीपस्थ ग्राम रामगंज बालाजी स्थित राजकीय माध्यमिक स्कूल में लगाया गया है। इसके अलावा बंधा के खेड़ा एवं मूंडघसा (हिंडोली) तथा जयपुर जिले के गोपालपुरा (देवरी) ग्राम के विद्यालय में इस प्रकार के प्ले-पंप लगाए गए हैं जो बालकों के लिए मनोरजंन के साथ-साथ बड़ों के लिए आकर्षण का केंद्र और जल सरंक्षण के उपायों की मिसाल हैं। निश्चित रूप से यह प्ले-पंप ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों के लिए बहुत उपयोगी है, क्योंकि गांवों में प्रायः बिजली की समस्या बनी ही रहती है। ऐसे में बिना बिजली का साधन यह प्ले-पंप बहुत कारगर उपाय सिद्ध हो रहा है।

सीसा सिस्टम पंप


यह एक परंपरागत झूला है जो उद्यानों में देखने को मिलता है। इस झूले पर दोनों ओर 5-5 बच्चे बैठकर झूला झूलते हैं। इस झूले के नीचे 300 से 350 फीट गहरा बोरिंग खुदवाया जाता है। उस बोरिंग में सवा इंच का पाइप व 12 एमएम की रॉड डाली जाती है। रॉड का कनेक्शन झूले से कर दिया जाता है। इस पर जैसे ही बच्चे झूला झूलते हैं तो यह ऊपर-नीचे होता है और 12 एमएम की रॉड भी ऊपर-नीचे होती है। इस प्रक्रिया से बोरिंग का पानी पाइपों से होता हुआ जमीन से 20-25 फीट ऊंचाई पर रखी टंकी में चढ़ जाता है। टंकी के पानी को नीचे लगी टोंटियों के माध्यम से बच्चे काम में ले लेते हैं। इस सिस्टम में भी बच्चों को खेलने में बेकार चली जाने वाली ऊर्जा का शानदार उपयोग हो जाता है। इस सिस्टम में झूले की लागत 20 हजार रुपये आती है। बोरिंग, पाइप एवं रॉड आदि पर होने वाला व्यय अलग से होता है। पेयजल के लिए सीसा सिस्टम की स्थापना बूंदी जिले में गुढागोकुलपुरा (हिंडोली), मैणा (नैनवां) एवं मान सिंह का झौंपड़ा (तालेडा) में तथा उदयपुर जिले के डबोक ब्लॉक के दो ग्रामों में नमूना बतौर की गई है।

फोर्स लिफ्ट सिस्टम


अन्वेषक श्री चन्द्रशेखर ने बताया कि पहली बार इस सिस्टम का इजाद भी उन्होंने ही किया है। इस सिस्टम में परंपरागत हैंडपंपों में लगे वाटर चेम्बर को हटाकर नया फोर्स लिफ्ट वॉल्व युक्त वाटर चेम्बर फिट किया गया है। चेम्बर के आगे एक पाइप लगा होता है जिसमें एनआरवी तथा वॉल्व व नल लगाया जाता है जिन्हें एक अलग पाइप से ऊंचाई पर रखी टंकी से जोड़ दिया जाता है। इस सिस्टम में बच्चे जब हैंडपंप के लीवर को ऊपर-नीचे चलाते हैं तब चाहे तो पानी हैंडपंप पर लगे नल से भर सकते हैं और यदि टंकी भरना चाहे तो चेम्बर के पास लगे वॉल्व को बंद कर देने से पानी ऊंचाई पर रखी टंकी में अपने आप चला जाता है। इस सिस्टम में एक समय में दो से चार व्यक्ति पानी पी सकते हैं, बर्तन धो सकते हैं। साथ ही जमीन से 20-25 फीट ऊंचाई पर रखी टंकी को भी टुल्लू-पंप के बिना ही भर सकते हैं। यह सिस्टम परंपरागत हैंडपंप पर ही स्थापित किया जाता है, जिसमें नए वाटर चेम्बर की लागत साढ़े तीन हजार रुपये बैठती है। बूंदी जिले में यह सिस्टम रजवास, मानपुरिया (तालेडा) तथा संस्कृत विद्यालय हिंडोली में एवं बांसवाड़ा जिले के दो ग्रामों के सरकारी स्कूलों में नमूना बतौर लगाए गए हैं।

अन्वेषणकर्ता हुए सम्मानित


जल एवं ऊर्जा सरंक्षण के इन नवाचारी उपकरणों के अन्वेषक तथा स्थापितकर्ता सर्व शिक्षा अभियान में शाला जल एवं स्वच्छता शिक्षा कार्यक्रम के जिला परियोजना समन्वयक श्री चंद्रशेखर शर्मा को बूंदी जिला प्रशासन ने दो बार वर्ष 2007 एवं 2009 में जिला स्तर पर सम्मानित किया है।

निश्चित रूप से जल संकट के दौर में पानी के विवेकपूर्ण उपयोग तथा पानी बचाओ, बिजली बचाओ के संदेशों को चरितार्थ करते हुए ये अनूठे नवाचारी हैंडपंप एवं वाटर सिस्टम एक मिसाल के तौर पर देखे जा रहे हैं। इस प्रकार के उपकरणों को न केवल राज्य के अन्य जिलों बल्कि देश के पानी एवं बिजली की समस्या से ग्रसित ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में स्थापित किया जा सकता है।

(लेखक बूंदी में सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी हैं।)
ई-मेल cprbun@hotmail.com

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