रेगिस्तान जहां जल को तरसती मरूक्षेत्र की जमीन पर पानी अमृत तुल्य माना जाता है, आम गृहिणी-सी लगने वाली विमला कौशिक ने पानी की बूंद-बूंद बचाकर जन-जन में जल के संरक्षण की अलख जगाने का असाधारण एवं अनुकरणीय काम किया है। बीकानेर जिले के पचास से अधिक तालाबों की पुनः खुदाई कराकर उन्हें संरक्षित करने पर जहां ग्रामीण क्षेत्रों में आम जन को पीने के लिए पानी मुहैया हुआ, वही पशु धन को भी पानी की किल्लत से मुक्ति मिली है। उनके जल संरक्षण के प्रति समर्पित भाव के चलते ग्रामीण जन उन्हें पानी वाली बहिनजी के नाम से ही जानने-पहचानने लगे हैं। बीकानेर संभाग के जिले हनुमानगढ़ टाउन में जन्मी विमला पानी से अपने इस जुड़ाव की बात पूछने पर बताती हैं कि “इसके पीछे एक कहानी है। सूरतगढ़ (गंगानगर) के पास मेरे परिवार की खेतीबाड़ी थी। वहां सेम की समस्या के चलते खेतीबाड़ी की जमीन नष्ट हो गई। इससे निपटनेे के लिए ग्रामीणों को इकट्ठा कर उनसे चर्चा की तथा जिला कलेक्टर को ले जाकर सेम से उपजाऊ जमीन नष्ट हो जाने की स्थिति का मौका मुआवना कराया। यह पहला प्रयास था। इस प्रयास के चलते सेम का पानी जमीन से निकालने के लिए जिला कलेक्टर के माध्यम से एक प्रोजेक्ट बना जिससे उस क्षेत्र में उपजाऊ जमीन को सेम से नष्ट होने से बचाया जा सका। पानी को लेकर यह मेरी पहली लड़ाई थी, जो सफल रही।”
साठ वर्षीय विमला ने जिले के कुएं, बावड़ी, कुंड और टांके आदि के संरक्षण एवं जलचेतना अभियान को सफल बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बैठक, कार्यशालाएं और पदयात्राएं की। बीकानेर और उसके आसपास के करीब पचास से अधिक तालाबों की पुनः खुदाई कराकर जीर्णोंद्धार का सराहनीय कार्य किया।
बीकानेर क्षेत्र के गांव सुरधना की ददोलाई तालाब, गोगातलाई, जोगला में सादेलाई, जांगलू में मादोलाई, नोखडा में बडापार, टोंकला में विजय श्री खारिया पतावतान में मेघोलाई, बीकानोक में रामदास तालाई, झिंझिया तालाब, मोटावतान गांव में रामू दादा तलाई, किलचू, कल्याणसर, लालमदेसर, लाखासर, राणासर, पाबूसर, सुरजड़ा आदि गांवों में कुंड, टांके तथा पुराने तालाबों की पुनः खुदाई करवाने के कारण आज पानी के संरक्षण एवं संग्रहण के लिए ग्रामीणों को उपलब्ध हो सके हैं।
महिला हस्तशिल्प समिति के गठन एवं कार्य के संबंध में विमला ने बताया कि “विवाह के बाद में वो हनुमानगढ़ से बीकानेर आ गई। यहां भी पानी की उन दिनों काफी किल्लत थी। लेकिन उस समय मैं नेहरू युवा केन्द्र से जुड़ गई जहां दरी, खेस आदि बनाने की प्रेरणा मिली। घर पर ही इसके लिए एक सेंटर खोल कर काम शुरू कर दिया।
बीकानेर के तत्कालीन जिला कलेक्टर एस.के. खन्ना तथा विधायिका कान्ता खतूरिया ने काम की सराहना की और प्रोत्साहन दिया। बस उनके दिशा-निर्देश पर महिला हस्तशिल्प समिति का पंजीयन कराकर हस्तशिल्प एवं समाज के कार्य करने लगी। यह वर्ष 1985 की बात है। इस समिति ने पचास प्रशिक्षण केन्द्र चलाए। इनमें से चालीस प्रशिक्षण केन्द्र ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत थे। बाद में इनकी संख्या नब्बे तक हो गई। इन केन्द्रों पर सिलाई-बुनाई, हैंडीक्राफ्ट, पापड़-बड़ी, बैग आदि बनाने का प्रशिक्षण महिलाओं को दिया जाता था।
वर्तमान में समिति केवल पांच केंद्र ही चला रही है। समिति में 18 का स्टाफ है तथा 17 कर्मचारी सफाई कार्य हेतु अलग से कार्यरत हैं। नगर निगम बीकानेर के सहयोग से स्वच्छता मित्र योजना विगत् पांच वर्षों से तीन वार्डों में यह संस्था चला रही है। 6500 घरों के सामने सफाई कार्य किया जा रहा है। इस योजना में सफाई के प्रति घर का आर्थिक सहयोग नगर निगम द्वारा दिया जाता है। जनजागृति के अभाव में बीस रुपए प्रति घर का संग्रह पूरी तरह नहीं हो पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयंसहायता समूह हमारी समिति द्वारा चलाए जा रहे हैं।
वर्तमान में एक सौ स्वयंसहायता समूह क्रियाशील हैं। एक समूह में बीस महिलाएं होती हैं जो बीस रुपए प्रतिमाह इकठ्ठा करती हैं। फिर इस इकठ्ठी की गई राशि से समूह की महिला ऋण ले लेती है।
सामान्यतः खेत में बिजाई के समय यह ऋण लिया जाता है जो फसल के बिकने पर जमा करा दिया जाता है। जहां बैंक नहीं है उन ग्रामीण क्षेत्रों में संस्थान ने किसानों को ऋण दिलाने का काम भी किया है।
जल बिरादरी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह से संपर्क के बारे में पूछने पर वह कहती हैं कि “मुझे जब उनके काम की जानकारी मिली तो उन्हें पत्र लिखा और जल संरक्षण की दिशा में काम करने की अपनी इच्छा उन्हें बताई। उन्हीं दिनों जयपुर के निम्मी गांव में तरूण भारत संघ के द्वारा प्रथम राष्ट्रीय जल बिरादरी सम्मेलन का आयोजन होने वाला था तो राजेन्द्र जी ने मुझे इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए साथियों सहित आमंत्रित किया। मैं भाग लेने के लिए साथियों को लेकर वहां गई। इसी सम्मेलन में मुझे बीकानेर जल बिरादरी की अध्यक्ष चुना गया। तरूण भारत संघ के प्रयासों से निम्मी में न केवल तालाब बना बल्कि गुजरात से खेती की तकनीकी टीम बुलाकर प्रशिक्षण भी ग्रामीण जनों को दिया गया।”
जल बिरादरी के सम्मेलन से लौटने के बाद किए गए कार्यों के बारे में विमला बताती हैं कि “पहले गांवों में जाकर चौपालों में चर्चा की, फिर बीकानेर की विभिन्न तहसीलों में सूखाग्रस्त क्षेत्र को चिन्ह्ति करने के लिए सर्वे किया। पानी की सबसे गंभीर समस्या नोखा तहसील के जेगला एवं जांगलू गांवों में नजर आई। मैंने गांव के पुराने जोहड़ों (तालाबों) में जमा मिट्टी की खुदाई कर उन जलभराव को पूर्ववत् करने का निर्णय लिया। इसमें गांव के लोगों ने श्रमदान करना स्वीकार कर लिया। आर्थिक सहायता तरूण भारत संघ, कपार्ट एवं जन सहयोग से मिल गई। जब एक तालाब की कायापलट हो गई तो लोगों को भी बात समझ में आ गई और ग्रामीण जन स्वतः ही सहयोग के लिए जुड़ते गए। नोखा में पहला सम्मेलन जल बिरादरी का किया। राजेन्द्र जी इस सम्मेलन में आए। नोखा तहसील के डेढ़ हजार से अधिक लोगों ने इस सम्मेलन में भाग लिया। जांगलू में 33 प्रतिशत ग्रामीण सहयोग से तालाब की खुदाई कराई।”
बीकानेर की कोलायत तहसील क्षेत्र में पांच सौ टांकों का निर्माण तथा दस से अधिक तालाबों का पुनरूद्धार कराने वाली विमला देवी मात्र आठवीं तक ही पढ़ पाई थी परन्तु यह पढ़ाई उनके लिए कभी बाधक नहीं बनी। वह बताती हैं कि “कोलायत तहसील के नोखड़ा गांव में रमोलाई पुराने तालाब को साफ करा, इस क्षेत्र में पानी पदयात्राएं की जिससे तहसील के अनेक गांववालों ने पानी व तालाब के महत्व को जाना। मोटावता से नोखड़ा तक की पदयात्रा में 400 लोगों ने भाग लिया। यहां पांच तालाबों को खुदवाया। ये काम दो माह तक चला। तीन लाख रुपये व्यय हुए। इनमें से 33 प्रतिशत राशि जन सहयोग से मिली और शेष राशि तरूण भारत संघ के आर्थिक सहयोग से ली। जांगलू से जेगला, रायसर से देशनोक तथा मोटावता से नोखडा तक तीन पानी पदयात्राएं की। रामसर से देशनोक वाली पानी पदयात्रा में राजेन्द्र साथ में थे। इस यात्रा में ग्रामीण क्षेत्र में जनजागृति के लिए राजीव गांधी फाउंडेशन ने पांच लाख का सहयोग भी दिया था।”
जल संरक्षण के क्षेत्र में विमला देवी से उनकी भावी योजनाओं के बारे में पूछने पर वह एक बार गंभीर हो जाती हैं। फिर एक लंबी सांस छोड़कर कहती हैं कि “जल संरक्षण तथा तालाबों के पुनरूद्धार की योजनाएं तो ढेरों हैं। बीकानेर जिले में 500 तालाब हैं। इन सभी की स्थिति शोचनीय है। पुराने तालाबों का उद्धार तो योजना का प्रमुख लक्ष्य है ही, लेकिन मुख्य समस्या यह है कि वर्षा जल भी बिना रुके तालाब तक पूरा कैसे पहुंचे? सभी जगह कब्जे हो जाने से तालाब का आगोर क्षेत्र समाप्त-सा होता जा रहा है। जबकि आज वर्षा जल के अधिक से अधिक संग्रहण की जरूरत है। सरकारी स्तर पर इस ओर गंभीरता से अभी ध्यान नहीं दिया जा रहा है।”
विमला कौशिक को स्व. श्री देवी छाजेड स्मृति संस्थान द्वारा वर्ष 2007 में मातृ वंदना प्रतिभा सम्मान तथा रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान द्वारा वर्ष 208 के द्तीय पानी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वन एवं पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार के आर्थिक सहयोग के द्वारा जल संरक्षण एवं संवर्द्धन के प्रति जन जागृति हेतु बनाई जा रही फिल्म “आखिर कब” में भी विमला के कार्य को विस्तार से दिखाया गया है।
जल संरक्षण की अलख जगाती विमला कौशिक अभी भी रुकी नहीं हैं। उनका जन-जागरण, पदयात्राएं बराबर जारी हैं। जहां भी जब भी जरूरत पड़ती है- पानी वाली बहिन जी को गांव वाले याद करना नहीं भूलते। वह कहती हैं कि अभी तो काम हुआ नहीं है। अभी तो ये शुरुआत है। काम तो जनजागृति आने के बाद खुद-ब-खुद होगा। लोग अपनी जमीन-अपना पानी के लिए अब जाग रहे हैं।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
साठ वर्षीय विमला ने जिले के कुएं, बावड़ी, कुंड और टांके आदि के संरक्षण एवं जलचेतना अभियान को सफल बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बैठक, कार्यशालाएं और पदयात्राएं की। बीकानेर और उसके आसपास के करीब पचास से अधिक तालाबों की पुनः खुदाई कराकर जीर्णोंद्धार का सराहनीय कार्य किया।
बीकानेर क्षेत्र के गांव सुरधना की ददोलाई तालाब, गोगातलाई, जोगला में सादेलाई, जांगलू में मादोलाई, नोखडा में बडापार, टोंकला में विजय श्री खारिया पतावतान में मेघोलाई, बीकानोक में रामदास तालाई, झिंझिया तालाब, मोटावतान गांव में रामू दादा तलाई, किलचू, कल्याणसर, लालमदेसर, लाखासर, राणासर, पाबूसर, सुरजड़ा आदि गांवों में कुंड, टांके तथा पुराने तालाबों की पुनः खुदाई करवाने के कारण आज पानी के संरक्षण एवं संग्रहण के लिए ग्रामीणों को उपलब्ध हो सके हैं।
महिला हस्तशिल्प समिति के गठन एवं कार्य के संबंध में विमला ने बताया कि “विवाह के बाद में वो हनुमानगढ़ से बीकानेर आ गई। यहां भी पानी की उन दिनों काफी किल्लत थी। लेकिन उस समय मैं नेहरू युवा केन्द्र से जुड़ गई जहां दरी, खेस आदि बनाने की प्रेरणा मिली। घर पर ही इसके लिए एक सेंटर खोल कर काम शुरू कर दिया।
बीकानेर के तत्कालीन जिला कलेक्टर एस.के. खन्ना तथा विधायिका कान्ता खतूरिया ने काम की सराहना की और प्रोत्साहन दिया। बस उनके दिशा-निर्देश पर महिला हस्तशिल्प समिति का पंजीयन कराकर हस्तशिल्प एवं समाज के कार्य करने लगी। यह वर्ष 1985 की बात है। इस समिति ने पचास प्रशिक्षण केन्द्र चलाए। इनमें से चालीस प्रशिक्षण केन्द्र ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत थे। बाद में इनकी संख्या नब्बे तक हो गई। इन केन्द्रों पर सिलाई-बुनाई, हैंडीक्राफ्ट, पापड़-बड़ी, बैग आदि बनाने का प्रशिक्षण महिलाओं को दिया जाता था।
वर्तमान में समिति केवल पांच केंद्र ही चला रही है। समिति में 18 का स्टाफ है तथा 17 कर्मचारी सफाई कार्य हेतु अलग से कार्यरत हैं। नगर निगम बीकानेर के सहयोग से स्वच्छता मित्र योजना विगत् पांच वर्षों से तीन वार्डों में यह संस्था चला रही है। 6500 घरों के सामने सफाई कार्य किया जा रहा है। इस योजना में सफाई के प्रति घर का आर्थिक सहयोग नगर निगम द्वारा दिया जाता है। जनजागृति के अभाव में बीस रुपए प्रति घर का संग्रह पूरी तरह नहीं हो पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयंसहायता समूह हमारी समिति द्वारा चलाए जा रहे हैं।
वर्तमान में एक सौ स्वयंसहायता समूह क्रियाशील हैं। एक समूह में बीस महिलाएं होती हैं जो बीस रुपए प्रतिमाह इकठ्ठा करती हैं। फिर इस इकठ्ठी की गई राशि से समूह की महिला ऋण ले लेती है।
सामान्यतः खेत में बिजाई के समय यह ऋण लिया जाता है जो फसल के बिकने पर जमा करा दिया जाता है। जहां बैंक नहीं है उन ग्रामीण क्षेत्रों में संस्थान ने किसानों को ऋण दिलाने का काम भी किया है।
जल बिरादरी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह से संपर्क के बारे में पूछने पर वह कहती हैं कि “मुझे जब उनके काम की जानकारी मिली तो उन्हें पत्र लिखा और जल संरक्षण की दिशा में काम करने की अपनी इच्छा उन्हें बताई। उन्हीं दिनों जयपुर के निम्मी गांव में तरूण भारत संघ के द्वारा प्रथम राष्ट्रीय जल बिरादरी सम्मेलन का आयोजन होने वाला था तो राजेन्द्र जी ने मुझे इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए साथियों सहित आमंत्रित किया। मैं भाग लेने के लिए साथियों को लेकर वहां गई। इसी सम्मेलन में मुझे बीकानेर जल बिरादरी की अध्यक्ष चुना गया। तरूण भारत संघ के प्रयासों से निम्मी में न केवल तालाब बना बल्कि गुजरात से खेती की तकनीकी टीम बुलाकर प्रशिक्षण भी ग्रामीण जनों को दिया गया।”
जल बिरादरी के सम्मेलन से लौटने के बाद किए गए कार्यों के बारे में विमला बताती हैं कि “पहले गांवों में जाकर चौपालों में चर्चा की, फिर बीकानेर की विभिन्न तहसीलों में सूखाग्रस्त क्षेत्र को चिन्ह्ति करने के लिए सर्वे किया। पानी की सबसे गंभीर समस्या नोखा तहसील के जेगला एवं जांगलू गांवों में नजर आई। मैंने गांव के पुराने जोहड़ों (तालाबों) में जमा मिट्टी की खुदाई कर उन जलभराव को पूर्ववत् करने का निर्णय लिया। इसमें गांव के लोगों ने श्रमदान करना स्वीकार कर लिया। आर्थिक सहायता तरूण भारत संघ, कपार्ट एवं जन सहयोग से मिल गई। जब एक तालाब की कायापलट हो गई तो लोगों को भी बात समझ में आ गई और ग्रामीण जन स्वतः ही सहयोग के लिए जुड़ते गए। नोखा में पहला सम्मेलन जल बिरादरी का किया। राजेन्द्र जी इस सम्मेलन में आए। नोखा तहसील के डेढ़ हजार से अधिक लोगों ने इस सम्मेलन में भाग लिया। जांगलू में 33 प्रतिशत ग्रामीण सहयोग से तालाब की खुदाई कराई।”
बीकानेर की कोलायत तहसील क्षेत्र में पांच सौ टांकों का निर्माण तथा दस से अधिक तालाबों का पुनरूद्धार कराने वाली विमला देवी मात्र आठवीं तक ही पढ़ पाई थी परन्तु यह पढ़ाई उनके लिए कभी बाधक नहीं बनी। वह बताती हैं कि “कोलायत तहसील के नोखड़ा गांव में रमोलाई पुराने तालाब को साफ करा, इस क्षेत्र में पानी पदयात्राएं की जिससे तहसील के अनेक गांववालों ने पानी व तालाब के महत्व को जाना। मोटावता से नोखड़ा तक की पदयात्रा में 400 लोगों ने भाग लिया। यहां पांच तालाबों को खुदवाया। ये काम दो माह तक चला। तीन लाख रुपये व्यय हुए। इनमें से 33 प्रतिशत राशि जन सहयोग से मिली और शेष राशि तरूण भारत संघ के आर्थिक सहयोग से ली। जांगलू से जेगला, रायसर से देशनोक तथा मोटावता से नोखडा तक तीन पानी पदयात्राएं की। रामसर से देशनोक वाली पानी पदयात्रा में राजेन्द्र साथ में थे। इस यात्रा में ग्रामीण क्षेत्र में जनजागृति के लिए राजीव गांधी फाउंडेशन ने पांच लाख का सहयोग भी दिया था।”
जल संरक्षण के क्षेत्र में विमला देवी से उनकी भावी योजनाओं के बारे में पूछने पर वह एक बार गंभीर हो जाती हैं। फिर एक लंबी सांस छोड़कर कहती हैं कि “जल संरक्षण तथा तालाबों के पुनरूद्धार की योजनाएं तो ढेरों हैं। बीकानेर जिले में 500 तालाब हैं। इन सभी की स्थिति शोचनीय है। पुराने तालाबों का उद्धार तो योजना का प्रमुख लक्ष्य है ही, लेकिन मुख्य समस्या यह है कि वर्षा जल भी बिना रुके तालाब तक पूरा कैसे पहुंचे? सभी जगह कब्जे हो जाने से तालाब का आगोर क्षेत्र समाप्त-सा होता जा रहा है। जबकि आज वर्षा जल के अधिक से अधिक संग्रहण की जरूरत है। सरकारी स्तर पर इस ओर गंभीरता से अभी ध्यान नहीं दिया जा रहा है।”
विमला कौशिक को स्व. श्री देवी छाजेड स्मृति संस्थान द्वारा वर्ष 2007 में मातृ वंदना प्रतिभा सम्मान तथा रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान द्वारा वर्ष 208 के द्तीय पानी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वन एवं पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार के आर्थिक सहयोग के द्वारा जल संरक्षण एवं संवर्द्धन के प्रति जन जागृति हेतु बनाई जा रही फिल्म “आखिर कब” में भी विमला के कार्य को विस्तार से दिखाया गया है।
जल संरक्षण की अलख जगाती विमला कौशिक अभी भी रुकी नहीं हैं। उनका जन-जागरण, पदयात्राएं बराबर जारी हैं। जहां भी जब भी जरूरत पड़ती है- पानी वाली बहिन जी को गांव वाले याद करना नहीं भूलते। वह कहती हैं कि अभी तो काम हुआ नहीं है। अभी तो ये शुरुआत है। काम तो जनजागृति आने के बाद खुद-ब-खुद होगा। लोग अपनी जमीन-अपना पानी के लिए अब जाग रहे हैं।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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Post By: Shivendra