जल की मात्रा एवं गुणवत्ता की गम्भीर समस्याओं को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने जल-प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 1974 ई. को अधिनियमित किया। तत्पश्चात इसी क्रम में जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम, 1975 ई. को भी अधिनियमित किया। इन अधिनियमों के प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिये सरकार ने इनमें समय-समय पर विभिन्न संशोधन किए, यथा जल उपकरण अधिनियम 1977 ई. तथा जल प्रदूषण नियंत्रण संशोधन 1988 है। इन अधिनियमों का मूलभूत उद्देश्य जल की गुणवत्ता को फिर से लौटाना तथा उसे स्वास्थ्यवर्द्धक बनाना है। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-
अधिनियम के उद्देश्य
1. जल प्रदूषण का निवारण एवं नियंत्रण,
2. जल की स्वास्थ्यवर्द्धक गुणवत्ता को बनाये रखना अथवा उसे पुनःस्थापित करना तथा
3. जल प्रदूषण के निवारण और नियंत्रण के उद्देश्य से केन्द्रीय एवं राज्य बोर्डों का गठन करना।
इस अधिनियम में प्रदूषण को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, जल का संदूूषण या उसके भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक गुणों से छेड़-छाड़ या जल स्रोतों में मल अथवा उद्योगों के स्राव को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिलाना अथवा बहाना, जिससे जल हानिकारक एवं प्राणघातक बन जाये, वह जल प्रदूषण कहलायेगा।
मल-जल या उद्योगों के बहिस्राव के जल में मिलने से यदि लोक स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाय अथवा जल घरेलू, वाणिज्यिक, कृषिक या औद्योगिक उपयोग के लायक नहीं रह जाये तथा वनस्पतियों, पशुओं और जलीय जीवों के जीवन और स्वास्थ्य पर उनका प्रतिकूल असर पड़े तो इसे भी जल का प्रदूषण कहेंगे।
बोर्डों का गठन, उनके कार्य एवं अधिकार
अधिनियम के अनुरूप केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पूर्णकालिक अथवा अंशकालिक अध्यक्ष भी हो सकते हैं। इनका मनोनयन क्रमशः केन्द्र या राज्य सरकार कर सकती हैं। दो राज्य सरकारों के बीच संयुक्त बोर्डों का गठन भी किया जा सकता है। अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के प्रभावक्षम कार्यान्वयन हेतु बोर्ड आवश्यकतानुरूप एक या उससे अधिक समितियों का गठन कर सकता है। अधिनियम की धारा 8 के अनुसार तीन महीनों के अन्तराल पर बोर्ड की बैठक अनिवार्य है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन अधिनियम की धारा 3 (तीन) के प्रावधानों के अनुरूप करने का उपबंध है। अधिनियम की धारा 4 के अनुसार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के गठन का उपबंध है। केन्द्रीय एवं राज्य बोर्ड के गठन में एकरूपता है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्य
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यक्षेत्रों का अधिनियम की धारा 16-ए में स्पष्ट प्रावधान है। इन प्रावधानों के अनुसार केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केन्द्र सरकार को जल प्रदूषण के निवारण एवं नियंत्रण की समस्याओं के सम्बन्ध में परामर्श देता है। वह केन्द्रीय एवं राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। यदि उनके बीच कोई विवाद हो तो वह उसे भी सुलझाता है। वह राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जल-प्रदूषण के निवारण और नियंत्रण के क्षेत्रों में अनुसंधान कार्यों को संचालित करने के निमित्त तकनीकी सहायता एवं मार्ग-दर्शन प्रदान करता है। प्रदूषण नियंत्रण के कार्यों में संलग्न व्यक्तियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है। जनसंचार के कार्यों में संलग्न व्यक्तियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है। जनसंचार माध्यमों के माध्यम से जल-प्रदूषण नियंत्रण के लिये व्यापक कार्यक्रम का आयोजन करता है। जल स्रोतों, झरनों और कूपों के लिये मानदण्ड निर्धारित कर सकता है तथा आवश्यकतानुसार मानदण्डों की पुनःपरख, पुनःसंशोधन भी करता है। मल-जल एवं औद्योगिक बहिस्रावों के उपचार एवं निस्तार के निमित्त नियमावली (manual), संहिता (codes) या निर्देशिका (guide) तैयार करता है। जल-प्रदूषण से सम्बन्धित तकनीकी एवं सांख्यिकी आँकड़ों के संग्रहण एवं प्रकाशन का कार्य करता है। किसी झरने, कूप या औद्योगिक बहिस्राव के नमूनों के विश्लेषण के लिये अलग प्रयोगशालाओं की स्थापना करता है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यक्षेत्र भी केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड की तरह ही हैं। अंतर इतना ही है कि इसका क्षेत्राधिकार राज्य की सीमा तक ही सीमित है।
राज्य सरकारों की भूमिका
1. अधिनियम की धारा 20.2 में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग कर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सर्वेक्षण का काम कर सकता है। वह इस अधिनियम के अन्तर्गत कार्य करने के लिये राज्य सरकार से सूचना अथवा मापदण्ड प्राप्त कर सकता है।
2. अधिनियम की धारा 21(1)ए में प्रदत्त शक्ति के अनुसार, राज्य सरकार को सभी जल स्रोतों, कूपों या जल स्रोतों में प्रवाहित बहिस्रावों के नमूनों के विश्लेषण के लिये संग्रहण का अधिकार है।
3. अधिनियम की धारा 22.4 में प्रदत्त शक्ति का उपयोग कर बोर्ड किसी प्रस्वीकृत प्रयोगशाला से विश्लेषण संबंधित परिणामों एवं प्रतिवेदनों को प्राप्त कर सकता है।
4. अधिनियम की धारा 23.5 के अनुसार, राज्य सरकार, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निम्नलिखित कर्तव्यों के सम्पादनार्थ किसी भी स्थान में प्रवेश करने का अधिकार होता है।
(क) जिस पदार्थ को जलस्रोतों में छोड़ देने से उनके प्रवाह में रूकावट आए तथा वह जल के प्रदूषण को बढ़ाये, ऐसे किसी पदार्थ को जलस्रोतों में जान-बूझकर डालने का अधिकार किसी व्यक्ति को नहीं होगा।
(ख) कोई व्यक्ति जानबूझ कर जल स्रोतों में विष, मादक पदार्थ या प्रदूषण सामग्रियों को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से डालने का अधिकारी नहीं है। न ही उसे भूमि पर मल-जल प्रवाहित करने का हक है। ये प्रावधान अधिनियम की धारा 24.6 में है।
5. धारा 25.7 के प्रावधान
(क) किसी व्यक्ति को जल स्रोतों, कूपों या भूमि पर किसी प्रकार के मल-जल या बहिस्रावों को छोड़ने की अनुमति नहीं होगी। न ही उसे ऐसे उद्योगों एवं उपचार, निस्तार प्रणाली को स्थापित या संचालित करने की अनुमति होगी, जिनसे निकले बहिस्रावों से जल स्रोतों या भूमि के संदूषित होने की संभावना हो।
(ख) कोई व्यक्ति मल-जल की निकासी के लिये किसी नये निष्कासन मार्ग का उपयोग नहीं करेगा।
(ग) बोर्ड को उद्योगों द्वारा उपभोगित जल के बदले उपकर वसूलने का अधिकार होगा। बोर्ड को जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण उपकर अधिनियम 1977 ई. में प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए अपने संसाधनों में वृद्धि करने का अधिकार होगा।
अधिनियम के उल्लंघन के निमित्त दण्ड विधान
इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिये दण्ड का विधान किया गया है। यदि कोई व्यक्ति जल स्रोतों या कूपों में बहिस्रावों को बहाने संबंधी बोर्ड को सूचना नहीं देने का दोषी पाया गया तो उसे तीन माह के कारावास का दण्ड मिलेगा या उसे दस हजार रुपये का जुर्माना भरना होगा। विशेष परिस्थिति में उसे इन दोनों प्रकार के दण्डों से दण्डित किया जा सकता है। यदि दोषी व्यक्ति इस तरह की गलती जारी रखता है तो उसे प्रतिदिन 5,000 रुपये की दर से अतिरिक्त अर्थदण्ड भरना होगा।
जल स्रोतों, कूपों और भूमि पर प्रदूषक पदार्थों के बहिस्रावों को बहाने के प्रतिबन्ध के बावजूद यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तथा उद्योग को बंद करने, बिजली एवं जलापूर्ति बंद करने के बोर्ड के आदेश का उल्लंघन करता है तो उस व्यक्ति को डेढ़ वर्ष के कारावास का दण्ड या अर्थ-दण्ड अथवा दोनों दण्ड भुगतने पड़ सकते हैं। यदि इसके बाद आदेशों/निर्देशों या अधिनियम के प्रावधानों का उसके द्वारा उल्लंघन जारी रहा तो उसे प्रतिदिन 5,000 रुपये की दर से अर्थदण्ड देना होगा। यदि उल्लंघन की अवधि एक वर्ष से अधिक को पार कर जाती है तो उल्लंघनकर्ता को दो से सात वर्ष के कारावास का दण्ड मिलेगा। इसके साथ ही इस दोषी व्यक्ति का नाम सामाचार-पत्रों में भी प्रकाशित करा दिया जायेगा।
बोर्ड की सम्पत्ति को क्षति पहुँचाने, उसके कार्यों में अवरोध उत्पन्न करने, धारा-31 में वर्णित दुर्घटनाओं से सम्बन्धित बोर्ड को सूचना देने में असफल रहने अथवा गलत जानकारी देने या बोर्ड की सहमति प्राप्त करने के लिये गलत-बयानी करने की स्थिति में तीन माह के कारावास या दस हजार रुपये का जुर्माना अथवा दोनों दण्ड एक साथ भुगतने पड़ सकते हैं।
सम्पर्क
रवि रौशन कुमार, कल्पना चावला साइंस क्लब द्वारा- मोबिल काॅर्नर, मिर्जापुर, स्टेशन रोड, पो.-लालबाग, जिला-दरबंगा (बिहार) 846004, मो.-9234485065, ईमेल - raviraushan.kcscl@gmail.comkcsc.bihar@gmail.com
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