जल प्रदूषण और उसकी रोकथाम

लेखक का मानना है कि जल प्रबन्धन के प्रति कभी सम्यक दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया और टुकड़े-टुकड़े में इसकी बात की जाती रही। गुणवत्ता और मात्रा की दृष्टि से जल स्रोतों के प्रबन्धन के लिए यह जरूरी है कि हम एक समन्वित संस्थागत व्यवस्था विकसित करें।

जहाँ तक जल स्रोतों की बात है भारत प्रचुरता वाला देश है। जहाँ एक ओर जगह-जगह बहती नदियाँ हैं वहीं मानसून, खासकर दक्षिण-पश्चिम मानसून से अच्छा खासा पानी मिलता है जो हमारे लिए साल की लगभग 75 प्रतिशत बारिश लाता है। नदियों के मुहानों से होकर लगभग देश का 91 प्रतिशत पानी बहता है। प्रकृति द्वारा इतनी बहुतायत में पानी देने के बावजूद पेयजल की समस्या आज हमारे लिए राष्ट्रीय चिन्ता का विषय बन गई है।

लम्बे समय से पेयजल इतनी आसानी से मिलता रहा है कि बहुत कम लोग इसकी बहुतायत में उपलब्धता को प्रकृति का चमत्कार मानते हैं। पानी की मात्रा और गुणवत्ता में आ रही गिरावट के लिए विभिन्न क्षेत्रों में इसकी बढ़ती मांग और विभिन्न स्रोतों से कचरे की निकासी को सीधा जिम्मेवार ठहराया जा सकता है। इनमें रिहायशी बस्तियों, उद्योगों और कृषि क्षेत्र की गतिविधियाँ भी शामिल हैं।

विश्व के विकसित देशों की तरह भारत भी तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है। इस शताब्दी के पहले 40 वर्षों के दौरान जहाँ शहरीकरण 12 प्रतिशत ही हुआ था वहीं 1991 की जनगणना के अनुसार यह 25.72 प्रतिशत तक पहुँच गया था। इस जनगणना के अनुसार शहरीकरण के अलावा तेजी से औद्योगिक बस्तियों का विकास भी एक गम्भीर विषय है। इस सबसे यानी जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि और शहरीकरण के फलस्वरूप बढ़ती हुई गतिविधियों से आज पानी एक दुर्लभ वस्तु बनता जा रहा है।

नदियों के अनियन्त्रित और बहुआयामी उपयोग के कारण पानी की कमी और प्रदूषण के दुष्प्रभाव अब दिखाई देने लगे हैं। इसलिए पानी की गुणवत्ता और उसके उपयोग की मात्रा के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए कुछ मापदण्ड तय करना जरूरी हो गया है।

जल प्रबन्ध


सतही जल, भूमिगत जल प्रबन्ध और दूषित जल निकासी की व्यवस्था के लिए केन्द्र और राज्य स्तर पर कई एजेन्सियाँ काम कर रही हैं। जल प्रबन्ध के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी केन्द्र सरकार की एजेन्सियाँ निम्नलिखित है:

1. जल संसाधन मन्त्रालय
- केन्द्रीय जल आयोग
- केन्द्रीय भूमिगत जल बोर्ड
- केन्द्र सिंचाई और बिजली बोर्ड

2. शहरी विकास मन्त्रालय
- केन्द्रीय स्वास्थ्य और पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन

3. ग्रामीण विकास मन्त्रालय

4. कृषि मन्त्रालय
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

5. पर्यावरण और वन मन्त्रालय
- केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड
- गंगा परियोजना निदेशालय/राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय
- पर्यावरणीय प्रभाव विवेचक शाखा

केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की भूमिका


जल की गुणवत्ता की देखरेख के लिए नदी प्रदूषण पर नजर रखना पहली शर्त है। इसी को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने प्रमुख नदियों और उनकी सहायक नदियों के कुछ हिस्से चुनकर जल की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए कुछ मापदण्ड तय किए हैं (सारणी-1) इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से बोर्ड प्रदूषण नियन्त्रण के लिए निम्न गतिविधियों से भी जुड़ा हुआ है।सारणी-1
केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण द्वारा ताजे पानी के विभिन्न उपयोगों के लिए निर्धारित प्राथमिक गुणवत्ता मापदण्ड

तत्व

*

*

*

*

*

1.

ऑक्सीजन, मिग्रा/1 न्यूनतम (घुली हुई)

6

5

4

4

-

2.

जैव रासायनिक ऑक्सीजन मिग्रा/1 अधिकतम

2

3

3

-

-

3.

कुल जैव तत्व** एमपीएन/100 मिग्रा अधिकतम

50

500

5,000

-

-

4.

पीएच मूल्य

6.5-8.5

6.5-8.5

6.9

6.5-8.5

6.5-8.5

5.

मुक्त अमोनिया (एन) मिग्रा/1 अधिकतम

-

-

-

1.2

-

6.

विद्युत संवाहकता माइक्रोओम/सेमी अधिकतम

-

-

-

-

2,250

7.

सोडियम सोखने का अनुपात अधिकतम

-

-

-

-

26

8.

बोरोन, मिग्रा/1 अधिकतम

-

-

-

-

2

*(क) पेयजल स्रोत, बिना शोधित लेकिन कीटाणु रहित किया हुआ, (ख) बाहर नहाने के काम आने वाले जल स्रोत (ग) पेयजल स्रोत कीटाणु रहित करने के बाद परम्परागत ढँग से शोधित (घ) वन्यजन्तु मछलियाँ पालने योग्य जल (ङ) सिंचाई, औद्योगिक प्रशीतन, नियन्त्रित बेकार पानी।

**यदि छोटे-छोटे जैविक तत्व निश्चित सीमा से अधिक मिलते हैं जल विश्लेषण के लिए विशेष तरीका अपनाया जाए। 20 प्रतिशत से अधिक नमूनों में इनकी संख्या निश्चित सीमा के अन्दर होनी चाहिए। किसी भी हालत में 5 प्रतिशत से अधिक नमूनों में इनकी संख्या निश्चित सीमा के चार गुना से अधिक नहीं होनी चाहिए। वर्ग ‘क’ श्रेणी के पानी में किसी भी तरीके का घरेलू या औद्योगिक कचरा नहीं मिलना चाहिए। वर्ग ‘ख’ और ‘ग’ श्रेणी के पानी को इस प्रकार शोधित करते रहना चाहिए कि गुणवत्ता के मानक बने रहें।

 


सारणी-2
देश की प्रमुख नदियों का विवरण

क्रम सं.

नदी

लम्बाई देश में (कि.मी.)

देश के अन्दर मुहाना क्षेत्र (वर्ग कि.मी.)

औसत सालाना निकास (मि.क्यूबिक मी.)

उद्गम

गंतव्य

1.

गंगा

2525

8,61404

4,93,400

गंगोत्री, उत्तर काशी (उ.प्र.)

बंगाल की खाड़ी

2.

सिन्धु

1270

3,21,290

41,955

मानसरोवर के पास की झील तिब्बत

अरब सागर

3.

गोदावरी

1465

3,12,812

105000

नासिक, महाराष्ट्र

बंगाल की खाड़ी

4.

कृष्णा

1400

2,58,948

67,675

महाबलेश्वर, महाराष्ट्र

बंगाल की खाड़ी

5.

ब्रह्मपुत्र

720

1,87,110

5,10,450

कैलाश पर्वत शृंखला, चीन

बंगाल की खाड़ी

6.

महानदी

857

1,41,600

66,640

रायपुर, म.प्र.

बंगाल की खाड़ी

7.

नर्मदा

1312

98,796

40,705

अमर कंटक, म.प्र.

अरब सागर

8.

कावेरी

800

87,900

20,950

कुर्ग, कर्नाटक

बंगाल की खाड़ी

9.

तापी

724

65,145

17,982

बेतूल, म.प्र.

खम्बात की खाड़ी

10.

पेन्नार

597

55,213

3,238

चेन्ना केशव पहाडि़याँ, कर्नाटक

बंगाल की खाड़ी

11.

ब्राह्मणी

800

39,033

18,310

रांची, बिहार

बंगाल की खाड़ी

12.

माही

533

34,842

8,500

रतलाम, म.प्र.

खम्बात की खाड़ी

13.

साबरमती

300

21,674

3,200

अरावली पहाडि़याँ

खम्बात की खाड़ी

 


सारणी-3
नदियों के प्रदूषित भाग

नदी

प्रदूषित भाग

अपेक्षित श्रेणी

मौजूदा श्रेणी

नदी

प्रदूषित भाग

अपेक्षित श्रेणी

मौजूदा श्रेणी

यमुना

दिल्ली-इटावा

C

D, E

सतलुज

लुधियाना से हरिके तक

C

D, E

 

दिल्ली शहर, मथुरा और आगरा

B

D, E

सुवर्ण रेखा

हथिया बाँध से भारागोरा तक

C

D, E

चम्बल

नागदा और पोटा (15 कि.मी.)

C

D, E

गोदावरी

नासिक से नान्देड़ जिले तक

C

D, E

काली

मोदी नगर से गंगा में मिलने तक

C

D, E

 

नासिक और नान्देड़ शहर तक

B

D, E

हिंडन

सहारनपुर से यमुना में मिलने तक

D

E

 

मानचेरियल और रामगुन्डम से भद्राचलम तक

C

D

खान

इन्दौर शहर

C

E

 

 

 

 

 

इन्दौर जिला

C

E

कृष्णा

कराड से सांगली

C

D, E

शिप्रा

उज्जैन शहर

B

E

 

धूम बाँध से नरसारोवाडी

C

D

 

उज्जैन जिला

C

E

 

सहायक नदी नीरा से

 

 

दामोदर

धनबाब से हलदिया

C

D, E

 

नागार्जुन सागर तक और बाँध से रिपेला नदी के ऊपरी भाग तक

C

D

गोमती

लखनऊ से गंगा में मिलने तक

C

D, E

 

 

 

 

कावेरी

तला कावेरी से 5 कि.मी. मुसोर

A

C

भद्रा

उद्गम स्थल से भाद्र बाँध तक (कर्नाटक)

C

E

 

जिले तक यागची के सीमावर्ती क्षेत्र

C

 

 

 

 

 

 

के.आर.सागर बाँध से होगेन चक्काल

C

E

ब्राह्मणी

अंगुल नदी का कमलांगा से भुवन तक का भाग

C

D

 

पुगालुर से ग्रांड अनीकट तक

C

E

 

 

 

 

 

ग्रांड अनीकट से कुम्बाकोनम तक

C

E

तुंग

तिरथल्ली से भाद्र तक मिलने वाला भाग

B

C

कोलांग

नौगाव शहर (असम)

C

 

 

 

 

 

भोगदोइ

जोरहाट शहर (असम)

C

D

नर्मदा

जबलपुर शहर

B

B

बारक

सिल्चर शहर (असम)

C

 

तापी

नेपानगर जिले से ब्रह्मपुत्र तक

A

E

इम्फाल

इम्फाल शहर (मजीपुर)

C

D

बेतवा

मांडी द्वीप और विदिशा

C

D

सोबराह

अगरतला शहर (त्रिपुरा)

C

 

व्यास

मांडी के ऊपरी भाग से मांडी तक

A

C

साबरमती

अहमदाबाद से ठीक पहले और साबरमती आश्रम तक

B

E

 

मांडी के निचले भाग से हिमाचल तक

A

C

 

साबरमती आश्रम से वाऊथा तक

D

E

 

 

 

 

 


- भारतीय राष्ट्रीय जल संसाधन देखरेख कार्यक्रम के अन्तर्गत जल की गुणवत्ता खासकर नदी और झील जैसे ताजे पानी के स्रोतों पर नजर रखने के लिए देश भर में 480 केन्द्रों की स्थापना और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों के तहत पर्यावरण निगरानी व्यवस्था से जुड़ना।

- भूमिगत जल की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए 21 समस्याग्रस्त क्षेत्रों में 134 केन्द्रों की स्थापना।

- तटीय क्षेत्रों में 173 स्थानों पर जल गुणवत्ता की निगरानी और पूरे तटीय क्षेत्र के जल स्रोतों का खाका तैयार करना।

- नदियों के मुहानों का सर्वेक्षण करना। (सारणी-2) ताकि प्रदूषण की वर्तमान स्थिति और सम्भावना का पता लग सके और आवश्यक कार्यवाही के बारे में निर्णय लिया जा सके (सारणी-3)। इस तरह के सर्वेक्षणों से ही ‘गंगा कार्य योजना’ और ‘राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना’ तैयार करने में मदद मिली है।

- गंगा परियोजना निदेशालय द्वारा नदी के प्रदूषित भाग का पता लगाने और गंगा कार्ययोजना के तहत जल गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए उठाए जा रहे कदमों के प्रभाव का पता लगाना।

- विभिन्न उद्योगों से होने वाले प्रदूषण की सम्भावना का विस्तृत अध्ययन करना और राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्डों द्वारा लागू किए जाने वाले गुणवत्ता के न्यूनतम मानकों को तय करना।

- पर्यावरण और वन मन्त्रालय की परियोजना के प्रभाव खासकर जल गुणवत्ता पर होने वाले असर के अध्ययन में मदद करना।

जल गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कुछ चुनौतियाँ:

- जल निकासी की खराब स्थिति
- जल-मल निकासी और उसके सतही पानी में मिलने पर कोई नियन्त्रण नहीं होना।
- प्रदूषण को आत्मसात करने की पानी की प्रवृत्ति का लाभ उठाने के लिए समुचित बहाव न मिलना।
- स्थानीय निकायों के पास धन की कमी और ढाँचागत सुविधाओं का न होना।
- भूमि का गलत उपयोग।
-उद्योगों से निकलने वाले कचरे को शोषित करने के लिए पाइपलाइन तकनीक के संचालन और रख-रखाव की समस्या।
- लघु उद्योगों के पास आधुनिक तकनीक का न होना।
- दोषी औद्योगिक इकाइयों को दण्ड देने में न्यायिक प्रक्रिया में देरी।

प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय


- तकनीकी-आर्थिक व्यावहारिकता को देखते हुए स्रोत पर ही प्रदूषण को नियन्त्रित करना।
- पानी को आत्मसात करने की प्रवृत्ति का भरपूर लाभ उठाते हुए प्रदूषण नियन्त्रण पर खर्च कम करना।
- कृषि और उद्योगों में बेकार पानी के पुनरुपयोग को बढ़ावा देना।
- उद्योगों की स्थापना के लिए स्थान के विवेकपूर्ण चयन से प्रदूषण नियन्त्रण की आवश्यकताओं में कमी लाना।
- जल संरक्षण क उद्देश्य से पानी के प्रयोग और दूषित जल की निकासी के सम्बन्ध में कड़ा अनुशासन लागू करना।
- नदियों के बहाव पर निगरानी रखना।

संस्थागत उपाय


अभी तक जल प्रबन्ध के विभिन्न पहलुओं के प्रति सम्यक दृष्टिकोण न अपनाकर इसे कई टुकड़ों में देखा गया है लेकिन जल स्रोतों की गुणवत्ता और मात्रा दोनों को बनाए रखने के लिए एक समन्वित संस्थागत व्यवस्था तैयार करना जरूरी है। यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि जल संसाधन से सम्बन्धित मुद्दे अब राजनैतिक सीमाओं को लाँघ चुके हैं और जल प्रबन्ध केवल राज्य का विषय नहीं रह गया है।

(लेखक केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, दिल्ली के अध्यक्ष हैं।)

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