उसकी ठहाके भरी हँसी में हैवानियत झलक रही थी। उसने मुझे घूरा और बोला - “क्या तुम नहीं जानना चाहते कि तुम्हारी सेहत का यह हाल कैसे हुआ?”
मेरे भीतर उत्तर देने मात्र की भी शक्ति शेष नहीं थी। मैंने अपनी गर्दन हिला दी। वह बोला - “तुम्हें पता है कि तुम मनुष्यों की सबसे बड़ी ग़लती क्या है?' मैं तुम्हें बताता हूँ। तुम मनुष्यों ने अपने पास उपलब्ध जल संसाधनों का मूल्य नहीं समझा और अपनी धरती पर उपलब्ध जल संसाधनों के भण्डारों को बचाने के बजाय उन्हें प्रदूषित करते रहे।
वह एक बार फिर जोर से हँसा और बोला- “प्रसन्न मुद्रा में शायद तुम लोग इसी तरह अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हो। परन्तु अब इस धरती पर यह हँसी फिर कभी नहीं गूँजेगी। तुम भी कुछ ही दिन और जीवित रह पाओगे। तुम्हारी मृत्यु के साथ ही इस धरती से मनुष्य जाति का अस्तित्त्व सदैव के लिये समाप्त हो जाएगा और फिर इस पूरी धरती पर हमारा एक छत्र राज होगा, “हमारा अधिकार”, सूखी बंजर धरती पर सिर्फ हमारा अधिकार! हा हा हा ! ! ! ...
वह मुझसे पुनः बोला - “परन्तु तुम्हारे मरने से पहले मैं तुम्हें तुम्हारे सर्वनाश की कहानी, तुम्हारी उस मूर्खता के विषय में अवश्य बताऊँगा, जिसने तुम्हारे अस्तित्व को ही धरती से समाप्त कर दिया।”
उस पीले आँखों वाले जीव ने कहा - “मैं हूँ इस पृथ्वी का नया सम्राट!...मेरे जन्मदाता ने पृथ्वी के जल को प्रदूषित करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है। इस कार्य को पूरा करने के लिये मेरे सभी भाइयों ने अथक प्रयास किये हैं। हमें जैसे ही मौका मिलता है हम स्वच्छ जल के साथ मिलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं। और मूर्खों तुम्हें यह भी बता दूँ कि इसमें सबसे बड़ा सहयोग धरती वासियों का रहा है जिन्हें आज तक यह बात समझ में नहीं आई है कि अगर हम अपने स्वच्छ जल में प्रदूषित जल मिलाएँगे तो अनजाने ही तुम हमें कितना सहयोग करोगे। करो!!! करो!!! खूब करो ऐसी ग़लतियाँ, इसी प्रकार हम अपनी ताकत से तुम देशवासियों का जीना दूभर कर देगें। हा हा हा हा!!!..
देखते हैं, फिर तुम अपनी प्यास कैसे बुझाओगे।
और हाँ, एक बात और बता दूँ। यह कार्य हमने तुम्हें बेवकूफ़ बनाकर कुछ सालों पहले ही शुरू कर दिया था। आज हम सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे हैं, बढ़ते जा रहे हैं! तुम्हारे जितने भी शुद्ध जल के भण्डार थे अब उनमें से अधिकतर पर हमारा कब्ज़ा है। अरे तुम्हें तो यह भी नहीं मालूम कि तुम्हारे सतही जल के साथ-साथ हमने भूजल पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया है।
तुम्हारी पावन पवित्र नदियाँ अब हमारे कब्जे में हैं और क्यूँ न हो हमने उनका मिलन गन्दे नालों के पानी के साथ जो करा दिया है। और पता है तुम्हारे देश में तो भूजलस्तर का भी बुरा हाल है।
ज्यादातर राज्यों में भूजलस्तर 200 फुट से नीचे चला गया है। जिन राज्यों में इससे ऊपर स्तर पर जल मिल जाता है तो वह हमारी जाति का होता है प्रदूषित जल! तुम लोग समझते हो कि तुम खूब तरक्की कर रहे हो, नए-नए उद्योग लगा रहे हो, पर हम तुम्हारी इस उपलब्धता से बेहद खुश हैं क्योंकि इस सब के साथ-साथ हमारा परिवार भी तेज गति से बढ़ रहा है। अरे मुर्खों तुम एक नया उद्योग लगाते हो तो पता है जब उसकी मंजूरी के समय तुम्हारे MOU साइन होते हैं और उनमें कहा जाता है कि तुम प्रदूषित पानी को ट्रीट करके ही छोड़ोगे तो हमें बहुत चिन्ता हो जाती है कि अब हमारे परिवार की बढ़ोत्तरी कैसे होगी? कैसे हम इस प्रदूषित जल को स्वच्छ जल में मिलाएँ? ताकि पानी पीने वाला हर व्यक्ति प्रदूषित जल पीकर इस दुनिया से चल बसे और यह धरती हमारे लिये खाली हो जाये। लेकिन जब हम देखते हैं कि वह उद्योगपति ठीक वैसा ही कर रहा है जैसा हम चाहते हैं। वह अपने भ्रष्ट अफसरों को रिश्वत देकर उद्योगों से निकला प्रदूषित जल सीधे सतहों एवं भूजल के स्वच्छ जल में मिला रहा है तो हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। हम नाच उठते हैं, हमारे यहाँ जश्न मनाया जाता है। और पता नहीं कब कुर्सी पर बैठे-बैठे मुझे नींद आ गई और मैं सो गया।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो मुझे अपने कमरे में कुछ खुसुर-फुसुर की आवाजें सुनाई दीं। मैं अपने कान उसी ओर लगाकर ध्यान से सुनने लगा तब उन जीवों में से एक ने कहा....अरे भाई आयरन तुमने सुना आजकल हमारे एक भाई फ्लोराइड ने भारत में कैसी धूम मचा रखी है। सभी राज्यों में घूमता रहता है और बिहार, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, उड़ीसा, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि राज्य तो उसे इतने पसन्द आये कि इन राज्यों में तो उसने अपने लिये आलीशान मकान भी बनवा लिये ताकि आराम से पूरे राज्य में भ्रमण करके रात में सो सके। वह तो यार बड़ा खुश है। उसने बताया कि मैंने तो अब तक हजारों लोगों को अपाहिज बना दिया है और सैकड़ों को चर्म रोग दे दिया है और अभी तो मुझे इन सभी राज्यों को बर्बाद करना है हा हा हा!!!...
तभी आयरन ने मायूस सा होकर जवाब दिया हाँ यार, फ्लोराइड के तो मजे हैं एकदम से पेयजल में घुल-मिल जाता है और किसी को पता भी नहीं चलता। परन्तु हमें यह सौभाग्य जरा धीरे-धीरे प्राप्त होता है। अभी एक दो राज्य ही हैं जहाँ हम अपनी धाक जमा पाये हैं। वैसे हम भी कुछ कम नहीं हैं। बस हमारी मात्रा पेयजल में 1 मिलीग्रा./ली. से अधिक होने दो (जो कि हम इस बढ़ते औद्योगीकरण में जल्द ही प्राप्त कर लेंगे)। तब देखना हम इन राज्यों में रहने वाले लोगों के जीवन पर कैसा प्रभाव डालते हैं। हम तो इन्हें चैन से जीने नहीं देंगें।
उनके इस वार्तालाप को सुनकर मेरे तो होश ही उड़ गए और तब सारी घटनाएँ एक-एक करके मेरी आँखों के आगे आने लगी कैसे, हम लोग पौधों में, कपड़े धोने में, सफाई इत्यादि में साफ पानी का इस्तेमाल करके उसे प्रदूषित करते जा रहे हैं? और अनजाने में ही प्रदूषित जल के भण्डारों को बढ़ावा दे रहे हैं। यहाँ तक कि हमें वर्षाजल को संग्रहित करने के तरीके पता होते हुए भी इस ओर कुछ ध्यान नहीं दे रहे हैं।
प्यारे दोस्तों, मैं आप सबको आगाह करना चाहता हूँ कि बचा सको तो अपने जल को बचा लो, क्योंकि: जल है तो कल है, यही जल की झल है।
निशित सिंधल,
17 भागीरथी कुंज
रुड़की
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