जल का जीवन से गहरा सम्बन्ध है। सृष्टि के पंच तत्वों में जल का महत्वपूर्ण स्थान है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन की उत्पत्ति जल के द्वारा ही हुई है। जल मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है। मनुष्य के शरीर में जल बहुतायात में पाया जाता है। शरीर में जैविक क्रियाएं जल के द्वारा सम्पन्न होती है। जल शरीर के तापमान को बनाए रखता है। साथ ही अनुपयोगी, विषैले अवयवों को शरीर से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शरीर में जल 70 प्रतिशत पाया जाता है।
जल प्रकृति के द्वारा अदभुत वरदान है। जल ऐसा अवयव है जो पृथ्वी में छिपे हुए तत्वों को बाहर ला देता है। जल महान विलायक है। विश्व में जल ऐसा पदार्थ है जो तीनों अवस्थाओं में जैसे ठोस, द्रव एवं गैस में पाया जाता है। ठोस अवस्था में हिमखण्डों, बर्फ के पहाड़ों, द्रव अवस्था में झरनों, तालाबों, नदियों, तथा गैस अवस्था में भाप के रूप में पाया जाता है। जल में औषधीय गुण विद्यमान होते हैं। जल का पर्याप्त मात्रा में सेवन करने से मानसिक, शारीरिक थकान, तनाव से मुक्ति मिलती है। सुबह सोकर उठने पर जल के सेवन करने से रक्त चाप (विशेषकर उच्च) तथा कब्ज ठीक रहता है। स्पाइनल कोर्ड में डिस्क को मुलायम और स्पोन्जी बनाने के लिए जल का अधिक मात्रा में सेवन करना लाभप्रद होता है। जुकाम होने पर नासिका से जल को अन्दर ले जाए, फिर बाहर निकाल दे। ऐसा कई बार करने से जुकाम में लाभ पहुँचता है। बहुत अधिक बुखार होने पर ठण्डे पानी से स्नान कराने पर बुखार कम हो जाता है। जल त्वचा को मुलायम रखने में सहायक है।
रासायनिक दृष्टि से जल आक्सीजन और हाइड्रोजन का मिश्रण (1ः2 में) होता है। इसका अणुसूत्र H2O है। जल की संरचना में दो हाइड्रोजन परमाणु आक्सीजन परमाणु से सहसंयोजक बन्ध (Covalent Bond) द्वारा जुड़े रहते हैं। जल का अणुभार 18 है। शुद्ध जल रंगहीन, गन्धहीन हेाता है। जल मीठा होता है। जल में लवण (नमक) की मात्रा बढने पर जल नमकीन हो जाता है। रंगीन लवणों की उपस्थिति के कारण जल रंगीन हो जाता है। कुछ पदार्थों की गन्ध के कारण पानी में भी गन्ध आ जाती है। जल में अधिकतर पदार्थ घुलनशील होते हैं। इसी कारण जल को महान विलायक कहते हैं।
हाइड्रोजन परमाणु के पास एक इलैक्ट्रान होता है। आक्सीजन परमाणु पर छः इलैक्ट्रान होते हें। आक्सीजन के छः इलैक्ट्रान में से एक-एक इलैक्ट्रान हाइड्रोजन परमाणु के साथ साझा कर सहसंयोजक बन्ध बनाते हैं।
भौतिक अवस्था
पदार्थ ठोस, द्रव या गैस अवस्था में पाया जाता है। यह इस तथ्य पर निर्भर करता है कि पदार्थ का अणुभार कितना है ? यदि अधिक होगा तब पदार्थ ठोस होगा। यदि कम होगा तो द्रव होगा। यदि पदार्थ का अणुभार बहुत कम होगा तो गैस अवस्था में होगा हाइड्रोजन का अणुभार दो होता है। अतः यह गैस अवस्था में होगा। कार्बन डाईआक्साइड (CO2) का अणुभार 44 है। अतः यह गैस है। कार्बन डाई सल्फाइड (CS2) अणुभार 76 है, अतः द्रव है। कार्बन परमाणु आपस में जुड़कर ग्रेफ्राइट और हीरा बनाते हैं। इनमें परमाणुओं की संख्या असंख्य है, (निश्चित नहीं है) अतः अणुभार भी अधिक होता है। इस कारण ठोस है। इसके अतिरिक्त और पदार्थ हाइड्रोजन बन्ध प्रदर्शित करता है। तो असंख्य अणु आपस में जुड जाते हैं। जिससे उनका अणुभार बढ जाता है और पदार्थ द्रव या ठोस अवस्था में पाया जाता है। जल के अणु का अणुभार 18 है। यह गैस होनी चाहिए। परन्तु ऐसा नहीं है। जल के अणु अंतर अणुक हाइड्रोजन बन्ध प्रदर्शित करते हैं। जिससे बहुत से अणु आपस में जुड़े रहते हैं। अणुओं की संख्या निश्चित नहीं है। इस कारण जल द्रव अवस्था में पाया जाता है। अणुभार एक अणु का लेते हैं।
विलेयता
जो यौगिक जल के साथ हाइड्रोजन बन्ध बनाने की क्षमता रखते हैं वे जल में घुलनशील होते हैं और जो हाइड्रोजन बन्ध बनाने की क्षमता नहीं रखते हैं वे जल में अघुलनशील होते हैं। जैसे एल्डीहाइड, जल में विलेय है क्योंकि वे जल के साथ हाइड्रोजन बंध बनाते हैं। जैसे एल्कोहल जल में विलेय है क्योंकि वे अन्तर अणुक हाइड्रोजन बन्ध बनाते हैं। बेन्जीन, टोलबीन, नेप्थलीन हाइड्रोजन बन्ध जल के साथ नहीं बनाते हैं अतः जल में अविलेय है। ऐसे यौगिक जिनमें कई हाइड्रोक्सिल समूह होते हैं वे भी जल में घुलनशील होते हैं। जैसे ग्लूकोज, चीनी, क्योंकि ये भी हाइड्रोजन बन्ध बनाते हैं तथा जल में विलेय हैं।
वे यौगिक जो अन्तरा आण्विक हाइड्रोजन बन्ध दर्शाते हैं जल में कम घुलनशील या अघुलनशील होते हैं। जो अन्तरा आणुविक हाइड्रोजन बन्ध दर्शाते है, वे अधिक घुलनशील होते हैं (जैसे आर्थो सेलीसिलिक अम्ल कम विलेय होते हैं। जब कि मेटा या पेरासेलीसिलिक अम्ल अधिक विलेय होते हैं) क्योंकि जल के साथ अन्तर आण्विक हाइड्रोजन बन्ध दर्शाते हैं जबकि आर्थो सेलीसिलिक अम्ल चीलेशन प्रदर्शित करता है।
वाष्पन उष्मा
किसी पदार्थ के एक ग्राम मोल द्रव को वाष्प में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को वाष्पन उष्मा कहते हैं। यदि किसी यौगिक में हाइड्रोजन बन्ध उपस्थित होते हैं तो इस यौगिक की वाष्पन ऊष्मा अधिक होगी, क्योंकि पहले ऊर्जा हाइड्रोजन बन्ध तोडने में लगानी होगी। फिर ऊर्जा द्रव को वाष्प में परिवर्तित करेगी। जल और एल्कोहल हाइड्रोजन बन्ध दर्शाते हैं अतः कम वाष्पशील है या इनकी वाष्पन ऊष्मा अधिक है। जब कि ऐसीटोन, ईथर हाइड्रोजन बन्ध नहीं दर्शाते अतः कम ऊर्जा पर वाष्प में परिवर्तित हो जाते हैं। इनकी वाष्पन उष्मा कम होगी अतः ये वाष्पशील है।
क्रिस्टल संरचना
हाइड्रोजन बन्ध दिशात्मक होते हैं। अतः जो अणु हाइड्रोजन बन्ध दर्शाते हैं। वे अणु अपने को इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं। जिससे उनके मध्य प्रबलतम हाइड्रोजन बन्ध बने। ऐसे यौगिक विशेष प्रकार की क्रिस्टल संरचना बनाते हैं। जैसे HCN रेखीय, CH3OH, HCOOH टेढ़ी- मेढ़ी (ZIG-ZAG) NH4H बुर्टजाइट, जल चतुष्फलकीय संरचना प्रदर्शित करते हैं।
द्रवों की श्यानता
द्रवों में हाइड्रोजन बन्धों के कारण उनकी विभिन्न सतहों के अणुओं के मध्य लगने वाला आकर्षण बल बढ जाता है। जिससे द्रवों की श्यानता में वृद्धि हो जाती है।
जल | मिथाइल एल्कोहल | डाईमिथायल ईथर | |
श्यानता (मिली पायस) | 10.05 | 5.97 | 2.33 |
क्वथनांक और गलनांक
किसी द्रव का क्वथनांक वह ताप बिन्दु है जिस पर उस द्रव का वाष्प दाब वायुमण्डलीय दाब के बराबर होगा। इस बिन्दु पर द्रव गैस में परिवर्तित होगा। इसकी प्रकार गलनांक किसी ठोस का वह ताप बिन्दु है जिस पर ठोस बिना अपघटित हुए द्रव में परिवर्तित होता है। ठोस को द्रव में तथा द्रव को गैस में परिवर्तित करने के लिए अणुओं को उष्मा द्वारा दूर किया जाता है। अणुओं के मध्य जितना अधिक अन्तरा आण्विक बल होगा उतनी अधिक ऊर्जा उन अणुओं को पृथक करने के लिए आवश्यक होगी जिससे उनके गलनांक तथा क्वथनांक अधिक होगें।
हाइड्रोजन बन्ध युक्त यौगिकों में अणुओं का संगुणन (ASSOCIATION) होता है, जिससे अणुओं के मध्य प्रबल आकर्षण बल उत्पन्न होता है। इन बलों को तोडने के लिए अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होगी। अतः हाइड्रोजन बन्ध यौगिकों के गलनांक और क्वथनांक अधिक होगें। जल का क्वथनांक 100 डिग्री सें. होता है। जल में प्रत्येक आॅक्सीजन परमाणु दो हाइड्रोजन परमाणुओं से सहसंयोजक बन्ध द्वारा बन्धित होता है। साथ ही दो हाइड्रोजन बन्ध द्वारा बन्धित होते हैं। इससे अन्तर आण्विक बलों में वृद्धि हो जाती है। इन बलों तथा हाइड्रोजन बन्धों को तोडने के लिए अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होगी। जिससे जल का क्वथनांक 100 डिग्री. से. होता है।
इसी प्रकार o,m,p नाइट्रो फीनाॅल के क्वथनांक क्रमशः 214 डिग्री. से., 290 डिग्री. से.,270 डिग्री. से. होते हैं। आर्थो आइसोमर में चीलेशन होता है जबकि मेटा तथा पेरा आइसोमर में संगुणन होता है। इन बलों को तोडने के लिए अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होती है । अतः आर्थो आइसोमर की तुलना में m तथा p का क्वथनांक अधिक होता है।
यौगिकों में जितना अधिक हाइड्रोजन बन्ध होगा। उतना ही अधिक क्वथनांक होगा। इसी प्रकार ठोस का गलनांक भी अधिक होगा। अणुओं की संख्या अधिक होने के कारण आकर्षण बल अधिक होगा। उस बल को हटाने के लिए अधिक ऊष्मा का उपयोग करना होगा। अतः गलनांक भी अधिक होगा।
जल का घनत्व
ठोस पदार्थ का घनत्व अधिक होता है क्योंकि ठोस में अणुओं की संख्या अधिक है। परन्तु बर्फ, ठोस होते हुए भी, का घनत्व कम होता है। इस कारण वह जल में तैरती हैं जब जल को 4 डिग्री से. तक ठण्डा करते हैं तब जल के घनत्व में वृद्धि होती हैं परन्तु जब जल को 4 डिग्री से. नीचे ठण्डा करते हैं तो जल का घनत्व कम होने लगता है। जल में हाइड्रोजन बन्ध हर ताप पर उपस्थित रहता है। परन्तु 4 डिग्री से. से नीचे जाने पर अणुओं की गतिशीलता कम हो जाती हैं प्रबल हाइड्रोजन बन्ध बनाने के लिए प्रत्येक आक्सीजन परमाणु को अन्य चार हाइड्रोजन परमाणु चतुष्फलकीय रूप में घेर लेते हैं। इसमें दो हाइड्रोजन बन्ध से बन्धित रहते हैं। अतः बर्फ में जल के अणु परस्पर चतुष्फलकीय दिशा में रहते हैं। अणुओं के मध्य काफी रिक्त स्थान रहता है जिससे बर्फ ठोस होते हुए भी जल से हल्की होती है। बर्फ का घनत्व जल के घनत्व से कम होता है। इसकी कारण बर्फ पानी में तैरती है। जब बर्फ पिघलती है तब संरचना धीरे धीरे टूटने लगती है तथा जल के अणु परस्पर निकट आने लगते हैं।
बर्फ की संरचना
उपर्युक्त विवरण जल के महत्व एवं जल के विलक्षण गुणों को हाइड्रोजन बन्ध द्वारा समझाया जाता है। जल जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। जल जीवन में आनन्द उत्साह, प्रेरणा भरता है अन्यथा जीवन अभिशाप हो जाता है।
सम्पर्कः 26 कावेरी एंक्लेव, फेस-2, रामघाट रोड, अलीगढ़।
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