जल का भू-आकृति-विज्ञान

भू-आकृति-विज्ञान की दृष्टि से भारत को सात सुपरिभाषित क्षेत्रों में बांटा जा सकता है जो इस प्रकार हैं:

(i)हिमालय की विशाल पर्वतमालाओं सहित, उत्तरी पर्वतमालाएं;

(ii) विशाल मैदानी क्षेत्र जिसके आर-पार सिंधु और गंगा ब्रह्मपुत्र नदी प्रणालियां मौजूद हैं। इसका एक तिहाई भाग पश्चिमी राजस्थान के सूखे-क्षेत्र में पड़ता है, शेष इलाका अधिकाशंतः उर्वर मैदानी क्षेत्र है;

(iii)केन्द्रीय उच्च भूमि जिसमें पश्चिम में अरावली पर्वतमालाओं से शुरू होकर पूर्व-पश्चिम दिशा में जाती हुई और पूर्व में एक गहरे कगार पर समाप्त होती पर्वतमालाएं शामिल हैं। यह क्षेत्र विशाल मैदानी-क्षेत्र तथा दक्षिणी पठार के बीच स्थित है;

(iv)पश्चिमी घाटों, पूर्वी घाटों, उत्तर दक्षिणी पठार, दक्षिण दक्खिनी पठार और पूर्वी पठार सहित प्रायद्वीपीय पठार;(v)पूर्वी घाटों से पूर्व में स्थित बंगाल की खाड़ी की सीमा पर लगミग 100-130 किलोमीटर चौड़ी भू-पट्टी के रूप में पूर्वी तट;

(vi)अरब सागर की सीमा पर तथा पश्चिमी घाटों के पश्चिम में स्थित लगभग 10-25 किलोमीटर चौड़ी संकरी भू-पट्टी के रूप में पश्चिमी तट; तथा

(vii)अरब सागर में लक्षद्वीप के प्रवालद्वीप तथा बंगाल की खाड़ी में अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूहों सहित द्वीपसमूह।

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