जल जंगल से जनमानस है
जनमानस से जल और जंगल
मधुर रहे सम्बन्ध अगर तो
होगा फिर जनजन का मंगल
सागर से उठ बादल बन
सम्पूर्ण देश में जल बरसाता
ताल, तलैया नदियों को
बिना भेदभाव सबको भर जाता
जुड़ा जाती है कब की प्यासी धरती
ठंडी होकर सुख पाती है जलती धरती
तपता पहाड़ झरना बन झरने लगता
पत्थर कठोर पिघल अमृत झरने लगता
पोरपोर उग आती हरियाली पहाड़ में
नई जवानी उमंग जग जाती पहाड़ में
सन्नाटा पसरा होता जून जेठ में
झूम झूम उठती हरियाली
चाहे चूमना बादल को आभार सहित
उमग उमग हरियाली
जल अमृत है समझो इसको
और इसे पहचानो जन मानस तुम
पानी है अनमोल न इसको भूलो
दिल से गांठ बांध लो जन मानस तुम
बूँद-बूँद की कीमत है जैसे मोती
इसे बनाए रखो
बेकार न बहने पाये जानो
इसे बचाए रखो
पानी का पानी रखो सम्हाले
इसके बिना सब सून
मर जाते सब बिना वजूद के
जैसे मोती, मानुस, चून
जल देता है चहुँ ओर पहुँचकर
हरित क्रान्ति का नव सन्देश
सूखा जंगल खिल उठता है
धर नूतन हरियाली-भेष
नव यौवना स्वागत करती मन-ही-मन
अनुपम सिंगार कर प्रियतम का
केश घटा सी सतरंगी चूनर लहराए
स्वप्निल पलकों में सपना प्रियतम का
जन मानस क्यों निष्ठुर होकर
जल जंगल का करता नाश
भूल रहे हम उसको ही क्यों जो
करता सब जीवों का पोषण और विकास
जल जंगल का हो संरक्षण निधि अमूल्य है
हो मनोभाव बलवान
वर्ना विनाश की लीला नृत्य करेगी
ताण्डव होगा नहीं होगा कल्याण
पलते कितने जीव जन्तु हैं जल जंगल से
हम सबकी यह थाती
तभी सभी आनंदित होंगे समृद्ध बनेंगे
होगी खुशियों से चौड़ी छाती
जल ही से फसलें लहलह करती
दाने-दाने से भण्डार भरे
क्षुधा तृप्त हो भूख मिटे सब जीवों की
आओ मिलकर हम जयकार करें
जंगल साथी प्यारा अपना औषधि, फल दे
और लकड़ियाँ कितने ही सामान
नहीं सजग अब भी हम होंगे
जग सारा हो जाएगा शमसान
कहने को बाकी बहुत अभी हैं कितनी बातें
करो नहीं अपराध नहीं हो दंगल
हे जन मानस! सावधान हो सावधान!
अब से चेतो वर्ना होगा
पग-पग पर बस दुःखद अमंगल
अस्तु...
जल जंगल से जन मानस है
जन मानस से जल और जंगल
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डाॅ. दयानाथ सिंह ‘‘शरद’’, अभयना, मंगारी, वाराणसी - 221202-उ.प्र.
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