आप यह जानते हैं कि सभी जीव-जन्तुओं को जीवित रहने के लिये पानी और ऊर्जा दोनों की आवश्यकता होती है। आपने यह भी जान लिया है कि जल और ऊर्जा की बढ़ती कमी विकास और प्रगति, दोनों को सीमित करती है। मानव जाति ने जल संपदा के अत्यधिक दोहन द्वारा जल की उपलब्धता ही कम कर दी है। समुद्र, नदियों व तालाबों जैसे प्राकृतिक निकायों को प्रदूषित कर दिया है जिससे पानी काम में लाने योग्य ही नहीं है। जल और ऊर्जा जैसे दो बुनियादी साधनों की बढ़ती समस्या को केवल समझ बूझ से प्रयोग और प्रभावशाली संरक्षण द्वारा हल किया जा सकता है। इस पाठ में आप जल एवं ऊर्जा के संरक्षण के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे।
उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात, आपः
- पानी की बढ़ती हुई मांग के लिये उत्तरदायी कारकों की सूची बना सकेंगे;
- जल संरक्षण की विभिन्न विधियों का वर्णन कर पाएँगे;
- जल संरक्षण और दीर्घोपयोगी संचालन की आवश्यकता और महत्ता को समझा पाएँगे;
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना का वर्णन कर सकेंगे;
- ऊर्जा को परिभाषित कर पाएँगे व मानव समाज के लिये ऊर्जा के प्रयोग को समझा सकेंगे, ऊर्जा के सामान्य व असामान्य स्रोतों की सूची तैयार कर पाएँगे;
- घरों में, कार्य स्थलों में, यातायात और उद्योगों में ऊर्जा के कुशल संचालन की बढ़ोतरी को समझा पाएँगे;
- देश भर में जारी विभिन्न ऊर्जा संरक्षण कार्यक्रमों के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
18.1 जल एक प्राकृतिक साधन के रूप में
जल एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संपदा है क्योंकि उसके बिना जीवन संभव ही नहीं है। उसका नवीनीकरण व पुनः प्रयोग भी हो सकता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई भाग समुद्रों, नदियों, तालाबों, बर्फ व हिमनदों के पानी से ढका हुआ है। परन्तु इस जल का 1% से भी कम भाग अलवणीय जल है व मानव सहित अन्य जीवों के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है। हालाँकि जल का प्राकृतिक विधि से चक्रण पूरे वर्ष, हर स्थान पर होता ही रहता है, उसका जरूरत से अधिक उपभोग हो रहा है और उसका कुछ भाग बेकार भी जाता है।
इन कारणों से जल संरक्षण आवश्यक हो गया है। वर्तमान काल में, दुनिया की जनसंख्या का एक तिहाई भाग जल की कमी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। गाँवों में महिलाओं को पानी भरने के लिये लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। कुछ पहाड़ी इलाकों में महिलाओं को तो पहाड़ के ऊपर दस-दस मील की चढ़ाई करनी पड़ती है, सिर्फ पानी के एक कुएँ तक पहुँचने के लिये। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सन 2025 तक, विश्व की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या को पेयजल की कमी की भीषण समस्या से जूझना पड़ेगा। अतः हमें पानी के प्रयोग के विषय में सावधान होना चाहिए व इसके संरक्षण के तरीके खोजने चाहिए। परन्तु पहले हम यह समझने की कोशिश करें कि पानी का अभाव किन कारणों से हुआ है।
18.2 जल की बढ़ती मांग के उत्तरदायी कारण
पानी की बढ़ती हुई मांग के पीछे निम्नलिखित कारक हैं:
क) सिंचाई का विस्तार
ख) उद्योगों द्वारा बढ़ती मांग
ग) बढ़ती हुई जनसंख्या की बढ़ती मांग
घ) परिवर्तनशील जीवनशैली द्वारा पानी का अधिक इस्तेमाल
(क) सिंचाई का विस्तार
भारत एक कृषि प्रधान देश है, अतः इसे सिंचाई के लिये बहुत पानी की आवश्यकता पड़ती है। सन 2000 में सिंचाई के लिये 5.36 अरब क्यूबिक मीटर पानी का इस्तेमाल हुआ था। यह कुल प्रयोग में आने वाले पानी का 81% है। पानी की बाकी मात्रा (19%) घरेलू, औद्योगिक व ऊपर दिए गए अन्य उद्देश्यों के लिये हुआ। आजादी के पश्चात, भारत के सिंचाई वाले इलाकों में जबरदस्त वृद्धि हुई है। अतः भारत में सिंचाई की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। सिंचाई की बढ़ती मांग के मुख्य कारण हैं:
- वर्षा के वितरण में क्षेत्रीय और मौसमी बदलाव।
- वर्षा ऋतु की अनिश्चितता।
- व्यावसायिक फसलों को उगाने के लिये जल की बढ़ती मांग।
- फसल उगाने की प्रणाली में परिवर्तन।
अधिक कुशल और पर्यावरणीय रूप से सक्षम सिंचाई की तकनीकें सही तरीके से पानी को पौधों तक पहुँचाकर पानी की मांग व खेतों में व्यर्थ होते पानी दोनों की मात्र को कम करती हैं। उदाहरण के लिये हल्के दबाव के छिड़काव करने वाले यंत्र स्प्रिंकलर से जल (80% जल को पौधों तक पहुँचाते हैं) और छोटे पैमाने की सिंचाई (थोड़ी-थोड़ी मात्रा में जल को सीधे रूप में), बिना बेकार किए, पौधों तक पहुँचाता है। इजराइल अब अपनी नगर निगम पालिका के 30% मल-जल को पौधों के उगाने में पुनः प्रयोग करता है तथा सन 2025 तक वह इस प्रतिशत दर को 80% तक बढ़ाने की योजना बना रहा है।
परन्तु संसार के बहुत से गरीब किसान सिंचाई की बढ़ोत्तरी व कुशलता को बढ़ाने के आधुनिक तकनीकी प्रणालियों को खरीद नहीं सकते। इसके स्थान पर वे ऐसी कम लागत की पारंपरिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं, जो बहुत बड़ी मात्रा में पानी का इस्तेमाल कर लेती हैं।
(ख) पानी का औद्योगिक प्रयोग
बहुत से उद्योगो में, पदार्थों के निर्माण के विभिन्न चरणों पर अधिकतर पानी का प्रयोग करते हैं। उद्योगों में जल का इस्तेमाल उपभोगी व गैर-उपभोगी, दोनों तरीकों से होता है। चाहे वे कृषि प्रधान उद्योग (सूती, कपड़ा, पटसन, चीनी एवं कागज) हो या धातु प्रधान उद्योग (लोहा, स्टील, रसायन व सीमेन्ट) हो। निर्माण प्रक्रिया के दौरान जल का बड़ी मात्रा में प्रयोग होता है, अथवा इसी प्रक्रिया के दौरान विभिन्न मशीनों के भागों को ठंडा करने के लिये ऊष्मा वितरक के रूप में जल का उपयोग होता है।
ऊर्जा उद्योगों में जल का प्रयोग एक ऊर्जा के स्रोत के साथ-साथ ठंडा करने वाले एजेन्टों दोनों रूपों में होता है। अयस्क व तेल के परिष्करण के उद्योगों की विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं में पानी का प्रयोग होता है।
(ग) बढ़ती जनसंख्या की बढ़ती मांग
भारत की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और स्वतंत्रता मिलने से अब तक वह तीन गुना बढ़ चुकी है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण, पानी की मांग में वृद्धि हुई है। हमें पानी पीने के लिये, मल अथवा मानव अपशिष्टों को बहाने के लिये, घरेलू उपयोग के लिये, सिंचाई और उद्योगों के लिये आवश्यक है।
- हमारे देश में बढ़ते जल के अभाव का सबसे मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या की पानी के लिये बढ़ती हुई मांग है।
- जनसाधारण को स्वच्छ, पेयजल प्रदान करना अब राज्यों के लिये लगभग असंभव हो रहा है।
- अधिकतर मानवीय प्रक्रियाएँ जैसे धोना, सफाई, खाना बनाना, मल-मूत्र इत्यादि को बहाने में पानी का प्रयोग होता है।
- लोगों की जितनी संख्या में वृद्धि होती है, उतना ही दिन-भर के कार्य निपटाने के लिये पानी की मांग बढ़ती है।
(घ) बदलती जीवन शैली
औद्योगिक विकास का परिणाम आर्थिक विकास हुआ। लोगों की वस्तुएँ खरीदने की क्षमता में वृद्धि हुई। अतः न केवल लोगों की जीवन शैली में परिवर्तन आ गया बल्कि जीवन जीने के स्तर में भी बदलाव आया है।
बाजार में बड़ी मात्रा में आकर्षक उपकरण, वस्तुएँ व रसोईघर और स्नानघर में प्रयोग में आने वाली वस्तुएँ आम तौर से उपलब्ध हैं और लोगों को उनको खरीदने का लालच रहता है। उदाहरणतः टोटिंयों और शॉवरों को इस तरह से बनाया जाता है कि उनको खोलने पर बड़ी मात्रा में उनसे पानी निकलता है। हालाँकि कपड़े धोने की मशीनें और बर्तन धोने के उपकरण (Dishwasher) बहुत अधिक मात्रा में पानी का इस्तेमाल करते हैं, वे इसके साथ-साथ सुलभ भी हैं और वर्तमान जीवन शैली के अनुरूप भी हैं।
छुट्टियों के दिनों में कई लोग वाटर पार्क (Water park) जैसी मनोरंजन-प्रधान जगहों पर बड़ी संख्या में जाते हैं- जहाँ पर अत्यधिक पानी का इस्तेमाल होता है। इन पार्कों में खेले जाने वाले बहुत से मनोरंजक खेलों में अत्यधिक जल का प्रयोग होता है। हालाँकि यह भी सच है कि इस पानी के खेलों में प्रयोग हुआ पानी पुनःचक्रित और पुनःप्रयोग में लाया जाता है।
झीलों (Reservoir) का पानी मनोरंजक उद्देश्यों के लिये इस्तेमाल होता है- जैसे नौका चलाने, तैरने एवं मछली पकड़ने के लिये। गॉल्फ एक अत्यंत लोकप्रिय खेल के रूप में उभर रहा है और गॉल्फ के मैदान विभिन्न जगहों पर स्थापित हो रहे हैं। ये गॉल्फ के मैदान अपने संचालन के लिये अत्यधिक पानी का प्रयोग करते हैं। सार्वजनिक एवं निजी बगीचों के रख-रखाव के लिये भी जल की आवश्यकता पड़ती है।
ब्राजील के बाद हमारा देश दुनिया में वर्षा के पानी को प्राप्त करने में दूसरे नंबर पर है। पर इसमें से बहुत कम पानी भूमि की निचली सतहों तक पहुँचता है या जल तालिका का विस्तार करता है। अधिकांश पानी बहता हुआ (भूमि की सतह से सीधा) समुद्र में चला जाता है।
सार्वजनिक और निजी तैराकी पूलों को पानी की सप्लाई व साफ-सफाई दोनों की आवश्यकता होती है।
18.2 जल-संरक्षण की विभिन्न विधियाँ
अब तक आपने अनुभव कर लिया होगा कि पानी के संरक्षण की महत्ता कितनी आवश्यक है। हमें निम्नलिखित कार्यों को करने की आवश्यकता है- (1) लोगों में पानी के अभाव के प्रति चेतना जागृत करना ताकि वह उसका युक्तिसंगत प्रयोग कर सकें। (2) पानी को बिल्कुल व्यर्थ न करना। रिसते (लीक) करते पाइपों और नलकों की तुरंत मरम्मत कराने की आवश्यकता होती हैं। इनका केवल आवश्यकतानुसार प्रयोग करें। (3) दाँत साफ करते समय, नहाते व दाढ़ी बनाते समय नलकों को खुला न छोड़ें। नलके खोलने व बंद करने में कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ती। (4) वर्षाजल को एकत्रित कर उसका घरेलू कार्यों के लिये प्रयोग करें। याद रखिए कि यह स्वच्छ जल है।
जल संरक्षण की कई विधियां हैं: जैसे- वृक्षारोपण, पुनः प्रयोग, पुनःचक्रण, पानी के प्रयोग की कारगरता में वृद्धि, पानी का एकत्रीकरण करके प्रयोग, व भूमि के अंदर पाये जाने वाले पानी का पुनः प्रयोग।
(i) वनरोपण
पृथ्वी और वायुमंडल के मध्य जलवाष्प का निरंतर आदान-प्रदान होता रहता है, जो जल चक्र के रूप में चलता रहता है। इस जल चक्र की गति द्वारा जल के बहाव पर, वर्षा के वितरण व तापक्रम के रूपान्तरण पर मुख्य रूप से प्रभाव पड़ता है। पौधे जल चक्र में वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उष्णकटिबंधीय वनों में, वार्षिक वर्षा का 75% भाग पौधों द्वारा वायुमण्डल में वापस लौटा दिया जाता है। इस प्रकार वन भूमि और हवा के जल संतुलन को कायम रखने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन एक संरक्षण भूमिका को निभाते हैं तथा भूमि और जल के संरक्षण में सहायक हैं।
वन मुख्य रूप से पारिस्थितिक सेवाओं को प्रदान करते हैं, जैसे-
- ऊर्जा के बहाव व रासायनिक चक्रण का समर्थन।
- मृदा अपरदन को कम करना।
- पानी को अवशोषित करना और उसे मुक्त करना।
- पानी को स्वच्छ बनाना।
- वायु का शुद्धिकरण करना।
- स्थानीय व क्षेत्रीय जलवायु को प्रभावित करते हैं।
- वायुमंडलीय कार्बन को संग्रहित करना।
वनों के बड़े भागों का काटना वनों द्वारा प्रदान किए जा रहे पारिस्थितिकीय सेवाओं को कम कर देता है और इसका परिणामस्वरूप क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु परिवर्तन के रूप में सामने आता है।
वनों का काटना अस्थाई या स्थायी रूप से अक्सर वनों के बड़े भागों पर कृषि या अन्य उद्देश्य के लिये किया जाता है।
वनों का पुनःरोपण कटे हुए पेड़ों के स्थान पर नए पेड़ पौधों को उगाने की प्रक्रिया है या पेड़ों के विस्तार को पुनः विकास के लिये बढ़ाना है। पुनःरोपण भूमि के अपरदन से बचाव करके भूमि की उर्वरता को बढ़ाते हैं, बचे हुए पानी को जलाशयों द्वारा समुद्रों तक पहुँचने से बचाती है व बाढ़ से संरक्षण करती है। अतः वनों का पुनःरोपण जल संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(ii) जल का पुनःचक्रण
औद्योगिक या घरेलू प्रयोगों के पश्चात यदि अपशिष्ट जल का ठीक प्रकार से उपयोग किया जाए, तब उसे सिंचाई, भूमिगत पानी के पुनःप्रयोग या औद्योगिक व नगर निगम पालिका तक के उपयोग के लिये लाया जा सकता है।
शहरों के समीप कृषि भूमि को नगर निगम पालिका के अपशिष्ट जल से सिंचित किया जा सकता है। घरेलू पैमाने पर पुनःचक्रित ‘ग्रे पानी’ (घरेलू प्रयोग से निकला अनौपचारित पानी जिसमें मल-मूत्र न मिला हो) का कई प्रकार के कामों में प्रयोग हो सकता है।
नहाने, बर्तन धोने के टबों, कपड़े धोने की जगहों व वॉशिंग मशीनों से निकले गंदे पानी को कई प्रकार से प्रयोग में लाया जा सकता है। हर चीज के लिये स्वच्छ पानी की आवश्यकता नहीं होती। नहाने एवं शॉवर के बाद के पानी को पौधों में डाला जा सकता है।
(iii) अपशिष्ट पानी का पुनः प्रयोग
अपशिष्ट जल में भी कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसी पानी को सिंचाई के लिये प्रयोग में लाया जाए, तो उनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व पौधों की वृद्धि कर सकते हैं।
अपशिष्ट जल का पुनःप्रयोग निज स्थान पर या छोटे पैमाने की साफ-सफाई व्यवस्था पर अत्यंत प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। स्थानीय संदर्भ में, समुदाय के स्तर पर, पुनः प्रयोग के विकल्प पर गम्भीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
(iv) जल-संग्रहण
घरों या इमारतों के इर्द-गिर्द गिरते बारिश के पानी को इकट्ठा कर उसे प्रयोग में लाने की क्रिया को जल संग्रहण कहते हैं या इसको बारिश के पानी को भूमि की निचली तहों तक पहुँच कर उस स्तर के पानी की मात्रा की वृद्धि की प्रक्रिया को भी कहते हैं।
समय आ गया है कि हम अपने जल प्रबंधन के पुराने तरीकों का पुनः प्रयोग आरम्भ कर दें। इसमें बहते झरनों और नदियों में से, मॉनसून के दौरान जल को एकत्रित करके विभिन्न जल निकायों में संरक्षित किया जाता है।
(v) भूमि के निचले स्तर के जल का पुनर्भरण
सतही जल की तुलना में भूमि के अंदर के पानी की मात्रा 13 से 20 गुना अधिक है। भूमिगत जल में मृदा में पानी एकत्रित रहता है या फिर जलभृत के रूप में। (जमीन के नीचे का प्राकृतिक पानी का निकाय)।
- जलभृतों (Aquifers) के माध्यम से बाढ़ का पानी इन जलनिकायों या गहरे गड्ढों की पंक्तियों में डाला जा सकता है।
- छोटे तालाबों और परिस्रवण टैंकों को खोद कर, सतह के काम में आने वाले जल को उन्हें जमीन के अन्दर के जल को पुनर्भरण करने के लिये इस्तेमाल में लाया जा सकता है।
- नाले के पानी, प्रयोग किए गए पानी (नगरनिगम पालिका और घरेलू), घरों से निकली हुई नालियों को ऐसे गड्ढों में छानकर और अंतस्रावित करके भरा जा सकता है जहाँ से वह भूमि के नीचे के जल को पुनर्भरित कर सके।
- टैंकों और नहरों की सफाई नियमित रूप से होनी चाहिए।
- खेतों की मानसून के पूर्व की जोताई भूमि के वाष्प को संरक्षित रख सकती है।
पाठगत प्रश्न 18.1
1. जल की मांग की बढ़ोत्तरी के पीछे तीन कारणों को बताइए।
2- सिंचाई के दो पर्यावरणीय रूप से प्रभावशाली व्यवस्थाओं के नाम लीजिए।
3. जल का संरक्षण क्यों होना चाहिए?
4. कोई दो तरीके बताइए जिनके द्वारा एक व्यक्ति पानी का संरक्षण कर सकता है।
5. हमारे देश में पानी के अभाव का एक मुख्य कारण बताइए।
18.3 जल संसाधन का प्रबंधन
मनुष्यों द्वारा प्रयोग के लिये उपलब्ध जल की कुल मात्रा सीमित है। हमारे देश में वर्षा की परिवर्तनशील स्थिति को ध्यान में रखते हुए, इस अनमोल संसाधन का कुशल प्रबंधन व संरक्षण जरूरी है। हमारी विशाल जनसंख्या द्वारा जल साधन के बगैर सोचे-समझे प्रयोग के कारण व असंतुलित वितरण प्रणालियों के कारण वर्तमान व्यवस्था में पानी का गहरा अभाव पैदा हो गया है।
पानी के कुशल प्रबंधन व संरक्षण में निम्नलिखित दो युक्तियां प्रयोग में लाई जानी चाहिए।
(1) जल के अपशिष्ट होने और घटने की कमी।
(2) जल के संग्रहण, प्रबंधन सुधारित एकत्रीकरण में बढ़ोत्तरी।
18.3.1 पानी को बर्बाद करने में कमी
पानी को व्यर्थ बर्बाद होने से रोकने के लिये हम सबको सभी वर्गों के लोगों के बीच जल संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जन चेतना जागृत करनी चाहिए। अखबारों, रेडियो और टेलीविजन (दूरदर्शन) जैसे विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा इस चेतना को जागृत किया जा सकता है। इसको करने के अन्य तरीकों में लघु नाटकों, नुक्कड़ नाटकों व भाषणों की भूमिका भी हो सकती है।
- कोई भी सरकारी अथवा अन्य एजेन्सी, जो कि पानी के मीटरों को स्थापित करने के लिये जिम्मेदार है। उसे कुशल ढंग से चलने वाले मीटरों का स्थापन करना चाहिए व एक ऐसे दर को निर्धारित करनी चाहिए, जिससे लोग नगर निगम के पानी का कम प्रयोग करने के लिये बाध्य हो।
- नलकों व नहाने के शॉवरों में बहाव के नियंत्रक, व कम मात्रा में पानी प्रयोग करने वाले टॉयलेट के फ्लश भी पानी के प्रयोग को कम करते हैं।
- पानी की पाइपों में किसी भी लीक करते भाग की तुरंत पहचान कर उसकी मरम्मत कर देनी चाहिए।
- घर के बाग, बगीचों व पार्कों को सुबह-सुबह पानी देना चाहिए या शाम को देर से जिससे पानी के वाष्पीकरण की मात्रा कम हो।
- खेतों की सिंचाई व जमीन के नीचे के पानी का पुनर्भरण का मुख्य स्रोत वर्षाजल है। क्योंकि वर्षा साल के तीन महीनों तक ही होती है, अतः वर्षा के पानी को एकत्रित कर लेना चाहिए। जमीन के नीचे का पानी एक नवीनीकृत होने वाला संसाधन है जो पुनर्भरण की स्वाभाविक प्रक्रिया से पुनः भर जाता है। सिंचाई करने और वाष्पीकरण से, अपतृणों पर व्यर्थ पानी की क्षति और तालाबों से दूसरे स्थानों तक पानी के स्थानान्तरण के व्यय को कम करके, पानी की कमी नियंत्रित की जा सकती है।
18.3.2 संग्रहण एकत्रीकरण, जमीन के नीचे के पानी का पुनर्भरण और पानी का संचयन
1. जमीन के नीचे के पानी का पुनर्भरण
- बाढ़ के पानी को जलभरण (जमीन के नीचे के पानी के टैंकों) में गहरे गड्ढों या खाइयों के माध्यम से डाला जा सकता है।
- छोटे टैंकों व परिस्रवण टैंकों (Percolation tanks) को उपयोग में न आने वाले पानी के बचाने व जमीन के पानी का पुनर्भरण करने के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है।
- भूमिगत जल का पुनर्भरण वर्षा के जल का एकत्रीकरण व उपयोग करके किया जा सकता है।
- नालों का पानी, प्रयोग हुआ पानी इत्यादि जमीन के अंदर के पानी को छानने व परिस्रवण के लिये गड्ढों, खाई खोदकर, गहरे गड्ढों में भरा जा सकता है।
- टैंकों व नहरों की सफाई नियमित रूप से होनी चाहिए।
- खेतों में मॉनसून से पूर्व की जोताई भूमि के वाष्प के संरक्षण में सहयोग देता है।
2. प्रदूषित जल का उपयोगी रूप में परिवर्तित करने के लिये प्रदूषकों को हटाना
- घरेलू और नगर निगम के अपशिष्ट जल का उचित उपचार करने के कारण पानी के संरक्षण में सहायक मिलती है। ऐसा जल जैविक तत्वों व रोगजनक सामग्री से भरपूर होता है। इसका अर्थ है उससे प्रदूषकों, कीटाणुओं व जहरीले तत्वों का पृथककरण।
- फॉस्फेट, नाइट्रेट व अन्य पोषक तत्वों को अवशोषित करने से प्रदूषित जल को विकासशील कवक व पानी पर तैरते हुए जलकुम्भी भी साफ करने में सहायक होते हैं। जलीय पौधों का प्रयोग बायोगैस के उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
18.4 राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना
भारत में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सतलुज, कृष्णा, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी जैसी कई छोटी और बड़ी नदियाँ हैं।
कई भारतीय नदियाँ बुरी तरह से प्रदूषित हैं व बड़े पैमाने पर उनका पानी मानवीय प्रयोग के लिये अनुपयुक्त है। उद्योगों और नदी के किनारे बसे शहरों से निष्कासित अपशिष्ट (effluents) अधिकतर प्रदूषण के लिये जिम्मेदार है।
नदियों की सफाई के लिये, भारत सरकार द्वारा कई विशाल योजनाओं की शुरुआत की गई है।
दो मुख्य कार्य योजनाएँ इस नाम से हैं:
1. गंगा एक्शन प्लान (Ganga Action Plan)
2. यमुना एक्शन प्लान (Yamuna Action Plan)
गंगा एक्शन प्लान (GAP): गंगा भारत की सबसे बड़ी और सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह 2,525 कि.मी. लम्बी है। इस नदी के पानी का विस्तार दस भारतीय राज्यों में है। इस नदी के प्रदूषण का मुख्य कारण उसके किनारे के पास स्थित उद्योगों और शहरों द्वारा निष्कासित अनौपचारित मलजल, अपशिष्ट एवं उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ हैं। गंगा एक्शन प्लान अपने प्रकार की पहली, महत्त्वाकांक्षी योजना है। गंगा एक्शन प्लान को भारत सरकार ने गंगा की सफाई के लिये शुरू किया है।
सन 1993 में इस कार्य योजना का पहला चरण समाप्त हुआ था।
यमुना कार्य योजना (YAP) को निम्नलिखित नारे के साथ सन अप्रैल 1993 को लागू किया गया था।
‘‘यमुना को स्वच्छ बनाना है।
हम सबको हाथ बंटाना है।’’
यमुना गंगा नदी से निकली हुई एक मुख्य उपनदी है।
यमुना एक्शन प्लान का मुख्य उद्देश्य यमुना नदी से प्रदूषकों का पृथक्करण करके उसकी सफाई व संरक्षण करना है।
पाठगत प्रश्न 18.2
1. एक वाक्य में यह व्यक्त कीजिए कि दूरदर्शन (TV) किस प्रकार जल संरक्षण के विषय में चेतना जागृत करने में सहायक होगा।
2. पौधों और बगीचों की तड़के सुबह या शाम देर से सिंचाई करना अधिक बुद्धिमता का कार्य क्यों है?
3. आपके विचार से लोगों को पानी को कम बर्बाद करने के उद्देश्य से किस प्रकार प्रेरित किया जा सकता है?
4. भूमिगत जल की पुनर्भरण करने की एक विधि बताइए।
5. व्यर्थ (बर्बाद) पानी से प्रदूषकों को हटाने में शैवाल या हायसिन्थ जैसे जलीय पौधों की क्या भूमिका है?
6. GAP (जी.ए.पी.) और YAP (वाई.ए.पी.) क्या है?
7. GAP और YAP जैसी कार्य योजनाओं को क्यों आरम्भ किया गया है?
8. हमारे देश की दो मुख्य नदियों के नाम लिखिए।
18.6 ऊर्जा संरक्षण
ऊर्जा क्या है?
ऊर्जा को इस तरह परिभाषित करते हैं जैसे कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। ऊर्जा का प्रयोग किया जा सकता है। जब ऊर्जा का एक बार इस्तेमाल लिया जाता है तो पुनः प्रयोग नहीं हो सकता, जैसे वह पोषक तत्वों की पुनरावर्तित नहीं हो सकती। आपने पिछले पाठों में सीखा है कि ऊर्जा के स्रोत दो प्रकार के होते हैं- (i) नवीकरणीय (ii) अनवीकरणीय। हालाँकि ऊर्जा न तो उत्पन्न होती है न ही उसे नष्ट किया जा सकता है। उसका पुनर्चक्रण भी नहीं हो सकता।
18.6.1 समाज द्वारा ऊर्जा का प्रयोग
मानव-जाति व अन्य जीवधारी अपनी क्रियाओं और शारीरिक कार्यों के लिये ऊर्जा की जरूरत होती है। इस ऊर्जा को जीवधारी भोजन से प्राप्त करते हैं और यह एडिनोसीन ट्राई-फॉस्फेट (ATP) नाम के एक रासायनिक यौगिक के रूप में पायी जाती है। इस यौगिक का संश्लेषण मुख्यतः भोजन के ऑक्सीकरण के दौरान होता है, जोकि कोशिकाओं के श्वसन के दौरान होता है।
आप तो जानते ही हैं कि प्रकृति में ऊर्जा का स्थानान्तरण खाद्य श्रृंखलाओं के माध्यम से होता है।
ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्रोत सूर्य है। पौधे सूर्य की ऊर्जा को प्रकाश-संश्लेषण के लिये इस्तेमाल करते हैं और इसीलिये उन्हें उत्पादक कहा जाता है। शाकाहारी पौधों को खाते हैं। वे उपभोक्ता कहलाते हैं। मांसाहारी शाकाहारियों को भोजन बनाते हैं। इस प्रकार से ऊर्जा का स्थानान्तरण एक प्राणी से दूसरे तक होता है। कुछ ऊर्जा, ऊष्मा के रूप में विलीन हो जाती है।
मानव-जाति को ऊर्जा न केवल अपनी शारीरिक प्रक्रियाओं के लिये चाहिए, बल्कि अन्य कई प्रकार की क्रियाओं को करने के लिये भी चाहिए जैसे-
- खाना पकाने और ऊष्मा के लिये ऊष्मा या विद्युत की आवश्यकता होती है।
- बिजली की आवश्यकता ट्यूब लाइटों, बल्बों एवं पंखों, कूलरों और वातानुकूलनों को चलाने के लिये पड़ती है।
- मनुष्यों और सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिये गाड़ियों, बसों, रेलगाड़ियों, ट्रकों और हवाई जहाज जैसे यातायात के साधनों को पेट्रोल, डीजल या प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas, CNG) जैसे ईंधनों की जरूरत पड़ती हैं।
- ऊर्जा (विद्युत) का बहुमंजलीय इमारतों में पानी को पम्प करने (चढ़ाने) का काम आता है।
- ऊर्जा का उन विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिये इस्तेमाल होता है जोकि विभिन्न प्रकार के माल, पदार्थों के निर्माण में लगती हैं।
- ऊर्जा का प्रयोग कृषि, सिंचाई, ट्रैक्टरों व अन्य खेतों पर काम आने वाली मशीनों, कीटनाशकों के छिड़काव इत्यादि में होता है।
- ऊर्जा का प्रयोग ऊर्जा उत्पादन में भी होता है उदाहरणतः बिजली के स्टेशनों में टर्बाइनों को चलाने में।
अतः हम कह सकते हैं कि ऊर्जा मानव-जाति के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण संपदा है।
पाठगत प्रश्न 18.3
1. ऊर्जा की परिभाषा दीजिए।
2. ऊर्जा के बल पर चलने वाली चार मानवीय क्रियाओं का जिक्र कीजिए।
3. उस ऊर्जा पदार्थ का नाम लिखिए जो कि मानवों द्वारा संश्लेषित है।
18.7 ऊर्जा के परम्परागत और गैर-परम्परापत स्रोत
ऊर्जा के परम्परागत स्रोत जीवाश्मीय ईंधन हैं। जीवाश्मीय ईंधन के निर्माण में कई वर्ष लग जाते हैं और उनका नवीनीकरण नहीं हो सकता। जीवाश्म उन जीवों के अवशेष हैं जोकि बहुत वर्ष पहले जीते थे और जीवाश्म ईंधन वे पौधे हैं जो पृथ्वी के नीचे दब गए थे और जो पत्थरों के रूप में परिवर्तित हो गए। जीवाश्मीय ईंधन को खानों से खोदकर निकालना पड़ता है।
अधिकतर जीवाश्मीय ईंधन ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में निष्कासित करते हैं। जीवाश्म ईंधन निम्न प्रकार के होते हैं:
1. कोयला ठोस पदार्थ है। उसके खनन के बाद उसे ट्रकों और रेलगाड़ियों से भेजा जाता है। हमारे देश में कोयले की खानें बिहार के रानीगंज, झरिया और धनबाद नगरों के पास पायी जाती हैं।
2. तेल एक द्रव धातु है जिसको जमीन में कुआँ खोदने के पश्चात बाहर खींचा जाता है। इसको दूर-दराज के इलाकों में तेल के टैंकरों व तेल की पाइप लाइनों के माध्यम से भेजा जाता है। तेल (पेट्रोलियम) का गाड़ियों और हवाई जहाजों को चलाने में प्रयोग होता है। भारत में तेल पश्चिमी तट पर तथा आसाम की डिगबोई तेल क्षेत्रों में पाया जाता है।
3. प्राकृतिक गैस विभिन्न गैसों का मिश्रण हैं। खाना पकाने के प्रयोग में आने वाली गैस को एलपीजी या द्रव पेट्रोलियम गैस कहते हैं और वह सिलिन्डरों में भरकर लाई जाती है। संपीड़ित प्राकृतिक गैस या सीएनजी (जैसे-बसों, स्कूटरों, ऑटो-रिक्शों और टैक्सियों) सार्वजनिक यातायात के वाहनों में प्रयोग होती है।
तेल और प्राकृतिक गैस प्लवक (फाइटोप्लैंक्टन) के जीवाश्म हैं, जो करोड़ों वर्ष पहले जीवित थे और उनके मृत होने पर समुद्र के नीचे दब गए थे। वर्षों के पश्चात, ऊष्मा और दबाव के कारण, वे पेट्रोलियम के रूप में परिवर्तित हो गए और समुद्र की निचली सतह के नीचे पाए जाने लगे।
लगभग पाँच दशक पहले तक, मानव-जाति को जीवाश्मीय ईंधन के समाप्त होने की चिंता नहीं थी। परन्तु जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई और जीवाश्मीय ईंधन का उपयोग बढ़ता गया, पर्यावरण-विशेषज्ञ जीवाश्मीय ईंधन के सीमित और अनवीकृत होने की बात करने लगे (यानि वे एक सीमित समय-अवधि के लिये उपलब्ध हैं) और वैज्ञानिक अन्य (गैर-परम्परागत) ऊर्जा के स्रोतों के विषय में सोचने व बात करने लगे। इन वैकल्पिक स्रोतों का अभी तक बहुत सीमित मात्रा में प्रयोग हुआ था। गैर-परम्परागत ऊर्जा के स्रोत निम्न प्रकार के हैं:
- सौर ऊर्जा
- वायु ऊर्जा
- जल ऊर्जा
- ज्वारीय ऊर्जा
- भूतापीय ऊर्जा
- बायोमास से प्राप्त ऊर्जा
ये संसाधन नवीकृत हैं और यह कभी समाप्त नहीं होने वाले हैं। इनमें से, सौर ऊर्जा या सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। यह प्रकृति में व्यापक रूप से पायी जाती है, प्रदूषण न करने वाली है और मुफ्त रूप से उपयोग के लिये उपलब्ध है। सौर ऊर्जा अब सीधे रूप से ‘‘सौर पैनलों’’ द्वारा प्रसारित होती है जोकि सूर्य की किरणों द्वारा घरों में ऊष्मा लाते हैं, सौर ऊर्जा अब सौर पैनलों से सीधे ही प्राप्त की जाती है जिससे ऊर्जा को घरों में सौर विकिरणों द्वारा पहुँचाया जाता है। सौर टीवी में सौर फोटोबोल्टिक सेलों का प्रयोग किया जाता है एवं सौर तापीय ऊर्जा सौर कुकरों में खाना बनाने के काम में आती है। सूर्य ऊर्जा का उद्योगों में भी प्रयोग होता है।
वायु ऊर्जा (Wind energy)
वायु ऊर्जा का पारंपरिक रूप से घरेलू कार्यों के लिये और खेतों की सिंचाई के लिये पानी उठाने के लिये काम हुआ है। वायु की गतिज ऊर्जा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित होकर प्रयोग में लाई जाती है।
जल ऊर्जा (Hydel Power)
कई बांधों का एक खास ऊँचाई पर नदियों पर पानी के संरक्षण के लिये निर्माण हुआ है। तब इसी संरक्षित पानी के भंडार की स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा वृहत जल प्रवाह के द्वारा परिवर्तित किया जाता है। यह टर्बाइनों पर पानी के बहाव के द्वारा होता है। अतः पानी के भंडार की संभावित ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा के रूप में परिवर्तित किया जाता है।
ज्वारीय ऊर्जा (Tidel energy)
ज्वारीय ऊर्जा समुद्र की या सागर की लहरों की ऊर्जा है, जो वायु से ऊर्जा निकालती है और यह वायु सौर ऊर्जा से संचालित होती है। ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।
भूतापीय ऊर्जा (Geothermal energy)
यह ऊर्जा वह ऊष्मा ऊर्जा है जो पृथ्वी की ऊपरी सतह पर मौजूद है। पृथ्वी के इस भाग की ऊष्मा आसानी से उपलब्ध है और उसका विद्युत उत्पादन के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
बायोमास से प्राप्त ऊर्जा
बायोमास वह पादप सामग्री है जिसका प्रकाश-संश्लेषण के परिणामस्वरूप निर्माण हुआ है। इसमें से कुछ को उदाहरणतः लकड़ी, कृषि अपशिष्ट को जलाकर ऊष्मा का निर्माण किया जा सकता है। ‘बायोमास’ का ऊर्जा के उत्पादन में भी प्रयोग हो सकता है या इसको ईंधन के रूप में प्रयोग होने वाली एल्कोहॉल (द्रव या मीथेन गैस) के रूप में भी परिवर्तित किया जा सकता है। क्योंकि ये पौधों की सामग्री से प्राप्त होते हैं। इन्हें जैव ईंधन (Bio fuels) के नाम से भी जाना जाता है।
बायोमास एक नवीकृत होने वाली ऊर्जा है और यह तब तक उपलब्ध रहेगी, जब तक पृथ्वी पर पौधे पाये जायेंगे। अतः ईंधन की लकड़ी की सप्लाई के लिये तेजी से उगने वाले तैलीय पॉम वृक्ष व जट्रोफा (Jatropha) जैसे विशेष पौधों को उगाया जाता है। ईंधन के रूप में ‘बायोमास’ का एक और प्रयोग कृषि अपशिष्ट फसल के अवशेषों और पशुओं की खाद का एकत्रीकरण है।
बैक्टीरिया द्वारा जैविक अपशिष्ट, मल-जल और ठोस ‘बायोमास’ नाले की गंदगी को ‘बायोगैस’ जैसे जैविक ईंधनों में परिवर्तित किया जा सकता है। बायोगैस पाचक व बड़े आकार के बर्तन हैं, जिनमें जैविक अपशिष्ट (पौधों और पशुओं के अपशिष्ट) को बैक्टीरिया के किण्वन की प्रक्रिया द्वारा बायोगैस का निर्माण होता है। जिसका प्रयोग खाना बनाने या गर्म करने के लिये हो सकता है।
बायोगैस मीथेन और कार्बन-डाइऑक्साइड का एक मिश्रण है। मीथेन को खाद के अवायवीय (वायु की अनुपस्थिति में) पाचन की प्रक्रिया द्वारा और इन्हीं से सम्बन्धित अवायवीय बैक्टीरिया के माध्यम से अपशिष्टों मलजल उपचार पर कार्य के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
हाल में, ईथैनॉल को मोटरगाड़ी के ईंधन के रूप में प्रयोग करने की बात की जा रही है। ये गन्ने, सॉरघम, भुट्टे या चुकन्दर के किण्वन और आसवन के माध्यम से निर्मित होता है। शुद्ध ईथेनॉल का प्रयोग किया जा सकता है और मोटरगाड़ी के इंजन को पेट्रोल की जगह ईथैनॉल के इस्तेमाल के लिये बदलने की जरूरत नहीं है।
बायोडीजल (Biodiesel)
भारत में तैलीय पौधों की कई किस्में हैं। बायोडीजल को वनस्पति के तेलों से निकाला जा सकता है। बायोडीजल प्रदान करने वाली पेड़ों के नाम इस प्रकार हैं: (1) रतनजोत या जटरोफा कूरकस (Jatropha curcas), (2) नागचम्पा या कैलोफिलम आयोनोफिलम (Callophyllum ionophyllum), (3) रबर के बीज या हेविया ब्राजीलयेन्सिस (Hevea braziliensis) हालाँकि बायोडीजल में पेट्रोलियम पदार्थ मौजूद नहीं हैं। वह उसी पेट्रोलियम के स्थान पर सामान्य इंजनों में विकल्प के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है।
पाठगत प्रश्न 18.4
1. ऊर्जा के नवीकृत होने वाले और नवीकृत न होने वाले स्रोतों में अंतर कीजिए।
2. एक परम्परागत और एक गैर परम्परागत ऊर्जा के स्रोत के नाम लिखिए।
3. तीन जीवाश्मीय ईंधनों के नाम लिखिए।
4. एक बायोडीजल प्रदान करने वाले पौधे का नाम लिखिए।
5. (क) ‘बायोमास’ और (ख) बायोगैस’ से आप क्या समझते हैं?
6. उन दो रासायनिक पदार्थों के नाम लीजिए जिन्हें ‘बायोफ्यूल’ (जैव ईंधन) कहा जाता है?
7. इन्हें बायोफ्यूल (जैविक ईंधन) क्यों कहा जाता है?
18.8 ऊर्जा की कारगरता में विकास
घर में
- बिजली को व्यर्थ या बर्बाद न होने दें। जब बत्तियों या पंखों का प्रयोग न हो, तो उन्हें बुझा दिया कीजिए या स्विच ऑफ कर दिया कीजिए। एक ही स्थान पर साथ बैठकर या काम कर, उनका प्रयोग न्यूनतम कर दिया कीजिए।
- खाना पकाने के लिये ईंधन कुशल चूल्हों का प्रयोग कीजिए। धुआँ छोड़ने वाले स्टोवों का इस्तेमाल न करें।
- जलाने-फूंकने के लिये पेड़ों की सूखी टहनियों को ही काटा कीजिए।
- खाना बनाते समय गैस की धीमी आंच रखिए। इससे न केवल गैस की बचत होती है बल्कि खाना भी अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट बनता है।
- खाने की सामग्री गैस पर चढ़ाने से पहले, उसे पूरी तरह काट-छांटकर तैयार रखें। इससे गैस व्यर्थ में जलती नहीं रहेगी।
- खाना गर्म करने व पकाने के लिये सौर ऊर्जा से संचालित कुकरों का प्रयोग कीजिए।
काम की जगह पर
- दफ्तर पहुँचने के लिये ‘गाड़ी के पूल’ (कार पूल) प्रणाली का उपयोग करें। इसमें कई लोग एक ही कार का प्रयोग कर सकते हैं।
- बत्तियों और पंखों को तब ‘स्विच ऑफ’ (बंद) कर दें, जब उनका प्रयोग न हो। अगर बिल के भुगतान करने की जिम्मेदारी किसी और की भी हो तब भी ऐसी ही अच्छी आदत अपनाएं। यह कार्य उतना पैसा बचाने के लिये नहीं है, जितना ऊर्जा बचाने के लिये।
- कम्प्यूटर का स्विच तब बंद कर दें, जब वह प्रयोग में न हो।
यातायात में
- निजी वाहनों की तुलना में जितना अधिक संभव हो सके सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें।
- गाड़ी की गति, जहाँ तक हो सके, 50 से 60 कि-मी- प्रति घंटा ही रखें। अतः गाड़ी की गति को थोड़ा कम ही रखें।
- गाड़ी के चोक का सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही प्रयोग करें। चोक को तुरंत उस समय बंद कर दें, जब इंजन गर्म हो जाए; अगर गाड़ी चालू करने में कोई मुश्किल हो रही हो तो, इंजन को चालू करने के लिये क्लच दबाइए।
- यदि ईंधन के टैंक व वाहनों के एक्जॉस्ट लीक कर रहे हों, तो तुरंत उनकी मरम्मत करें।
- ट्रैफिक सिग्नल पर रुकने पर वाहन के इंजन को बंद कर दें।
18.9 भारत में सौर ऊर्जा (शक्ति) को प्रोत्साहन
भारत न केवल एक घने रूप से जनसांख्यिक देश है, बल्कि यहाँ काफी मात्रा में सौर ऊर्जा उपलब्ध भी है। इन कारणों से, भारत सूर्य ऊर्जा के प्रयोग के लिये आदर्श स्थान बन जाता है।
- नवीन और नवीकृत होने वाली ऊर्जा का मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy, MNRE) सौर ऊर्जा के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से योजनाओं और प्रोत्साहन करने वाले योजनाओं की शुरूआत की है- जैसे परिदान, आसान ऋण, आर्थिक सहायता, कच्ची सामग्री के आयात पर कम दर की ड्यूटी, कुछ यंत्रों पर उत्पाद शुल्क पर माफी इत्यादि सौर ऊर्जा के प्रयोग को प्रोत्साहन देते हैं।
- भारतीय नवीकृत ऊर्जा विकास की ऐजेन्सी (Indian Renewable Energy Development Agency, IREDA) फोटोवॉल्टेक तंत्र (PV) की खरीद के लिये आर्थिक सहायता उपलब्ध कराती है।
- सन 2022 तक सरकार दस मिलियन वर्ग मीटर का सौर ऊर्जा के संकलन का क्षेत्र स्थापित करने की सोच रही है। यह युक्ति उतनी बिजली की मात्रा का उत्पादन करती है जो कि एक 500 मेगावॉट बिजलीघर से उत्पादित मात्रा के समान है।
- पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार ने नई बहुमंजलीय इमारतों में सौर ऊर्जा का प्रयोग अनिवार्य बना दिया है।
- राजस्थान सरकार ने सूर्य ऊर्जा के उत्पादन के लिये थार मरुस्थल में 35,000 कि.मी.2 का क्षेत्र तय किया है।
- एसपीवी (सूर्य ऊर्जा से संचालित फोटोबोल्टिकं) तंत्रों के प्रयोग द्वारा लगभग 2700 गाँवों का ग्रामीण विद्युतीकरण किया जा सकता है।
- वर्तमान में, भारत में कई कम्पनियाँ फोटोवोल्टिक के निर्माण में लगी हुई हैं।
- साफ विकास और जलवायु पर एशिया पैसिफिक सहभागिता (Asia Pacific Partnership, APP) के अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया सरकार ने भारत और चीन के अगली पीढ़ी के सौर ऊर्जा इन्जीनियरों को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी ली है। इसके अन्तर्गत ग्रामीण सौर ऊर्जा के प्रयोग के लिये कई कार्यक्रमों का निर्माण किया गया है।
- कृषि विभाग में, सूर्य ऊर्जा से संचालित पी-वी- पानी के पम्पों का प्रयोग सिंचाई और पीने के पानी के लिये होता है। सूर्य ऊर्जा से संचालित ड्राएरों का संरक्षण से पूर्व फसलों को सुखाने का काम होता है।
- अस्पतालों, होटलों और होटलों में बड़ी-बड़ी रसोईयों में सौर ऊर्जा से संचालित कुकरों व गर्म पानी की सप्लाई ने बिजली की समस्या को कुछ हद तक हल कर दिया है और इसका विस्तार भी होना चाहिए।
(i) सीएफएल (कम्पैक्ट फ्लोरोसेन्ट बत्तियां) को प्रोत्साहन
- फ्रलोरोसेंट प्रकाश की बत्तियों में मरकरी एक अहम तत्व है। ये बल्बों को प्रकाश का कुशल स्रोत बनाते हैं।
- क्योंकि सीएफएल परम्परागत बत्तियों से 95% कम बिजली का इस्तेमाल करते हैं, वे बिजली की मांग को कम करते हैं।
- सीएफएल मरकरी को बहुत कम मात्रा में प्रयोग में लाते हैं हर बल्ब में औसतन 4 मिलीग्राम।
- प्रयुक्त होते वक्त, बल्ब से मरकरी का बिल्कुल भी निष्कासन नहीं होता। परन्तु इन वस्तुओं के निपटारे के समय सावधानी बरतनी चाहिए।
- अधिकतर लोगों ने अपने घरों में बिजली के शुल्क की कटौती के लिये सीएफएल का प्रयोग शुरू कर दिया है।
- सरकारी दफ्तरों और संस्थानों ने पारंपरिक बिजली के बल्बों के स्थान पर सीएफएल का इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
(ii) बिजली के उपकरणों के मूल्यांकन में रेटिंग प्रणाली का प्रयोग
मार्च 2002 में, ऊर्जा संरक्षण विधेयक के अंतर्गत, ऊर्जा मंत्रालय ने ऊर्जा संचालन के दफ्तर (Bureau of Energy Effeciency, BEE) की शुरुआत की थी। यह भारत सरकार की एक एजेन्सी है। इस एजेन्सी की भूमिका उन कार्यक्रमों को विकसित करने की है जो भारत में ऊर्जा का संरक्षण और कुशल ऊर्जा प्रयोग को प्रोत्साहन देंगे।
सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया है कि जनवरी 2010 से भारत में बिजली के उपकरणों की बीईई (BEE) द्वारा रेटिंग की जाए।
- बीईई स्टार ऊर्जा कुशाग्रता के प्रतीकों (लेबलों) को इसलिये निर्मित किया गया है कि वह विभिन्न बिजली के उपकरणों को एकीय मापदंड स्थापित कर पाएँ तथा एकीय मापदंड परीक्षण की स्थितियों में ऊर्जा के उपभोग को संकेतित कर पाएँ।
- ये प्रतीक ऊर्जा कुशाग्रता के स्तरों को लेबल पर तारों (स्टार) की संख्या को रंगीन रूप में संकेतित करते हैं।
- यह स्टार रेटिंग प्रणाली एक स्टार (सबसे कम ऊर्जा कुशाग्रता ; अतः सबसे कम पैसों की बचत) से पाँच सितारे (अत्यधिक ऊर्जा कुशाग्रता ; अतः अधिकतम पैसे की बचत) तक की श्रृंखला तक चलती है।
फ्रिज, वातानुकूलक (एअरकंडीशनर), कपड़े धोने की मशीनें, बत्ती जलाने के सिस्टम, इत्यादि अपनी ऊर्जा कुशाग्रता को संकेतित करने के लिये सितारों के स्तरों का इस्तेमाल करेंगे।
(iii) यातायात और ऊर्जा
यातायात क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ोत्तरी में सबसे तेज वृद्धि का क्षेत्र है। (इसमें कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रेस ऑक्साइड शामिल हैं)। यातायात द्वारा कुल ग्रीनहाउस प्रदूषकों में से 85% से अधिक सड़कों पर चलते यातायात के वाहनों द्वारा निष्कासित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2 ) की वजह से है।
ऊर्जा संबंधी अपशिष्टों को कम करने में ऊर्जा कुशाग्रता की बढ़ोत्तरी करके कम ऊर्जा के प्रयोग द्वारा अधिक मात्रा में उपयोगी काम करना जरूरी है। इस ऊर्जा अपशिष्ट की मात्रा कम करने के कई आर्थिक व पर्यावरणीय लाभ है।
- यातयात में ऊर्जा के संरक्षण का बेहतरीन तरीका मोटर वाहनों की ईंधन कुशाग्रता को बढ़ाना है।
- हाइब्रिड संकरित गैस विद्युत के इंजन व हाइड्रोजन से चलने वाले फ्यूलसेल से ऊर्जित बिजली के वाहनों जैसे ईंधन कुशाग्र वाहनों को विकसित किया जा रहा है।
- फ्यूल सेल आंतरिक दहन इंजनों से लगभग दोगुना ज्यादा कुशाग्र है; उनमें कोई चलते पुर्जे नहीं हैं; उन्हें कम देख-रेख की आवश्यकता होती है और वे कोई प्रदूषण नहीं करते हैं।
- ‘रेवा’ हमारे देश में विकसित एक लघु आकार की बिजली से संचालित गाड़ी का नाम है। बड़े आकार के वाहनों की बजाय लघु आकार के वाहनों का प्रयोग तथा दुपहिए स्कूटरों का इस्तेमाल काफी हद तक ऊर्जा का बचाव कर सकता है।
- ऊर्जा के व्यय में भारी कटौतियां उन वाहनों के प्रयोग से की जा सकती हैं जिनके ऐसे कुशाग्र, इंजन हों जो कम पेट्रोल का इस्तेमाल करते हों (उदाहरण पेट्रोलियम बिजली संक्रित वाहन) या वे वाहन जो कि अपने जीवन काल के दौरान नवीकृत होने वाले ऊर्जा के स्रोतों का प्रयोग करते हैं।
- पेट्रोलियम ईंधनों के स्थान पर जैव ईंधनों (जैविक पदार्थों से संबंधित ईंधन) का प्रयोग एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर भारत सरकार, फिलहाल बहुत ध्यान दे रही है।
पाठगत प्रश्न 18.5
1. इस बात का जिक्र कीजिए कि आप घर में, कार्यक्षेत्र में व यातायात के क्षेत्र में ऊर्जा कुशाग्रता की कैसे बढ़ोतरी करने में लगे हैं। हर श्रेणी के दो प्वाइंट दीजिए।
2. अंग्रेजी में इनका पूरा-पूरा नाम लिखिएः
एम.एन.आरई.(MNRE), आई.आर.ई.डी.ए. (IREDA), सीएफएल (CFL)
3. लोगों ने अपने घरों में सीएफएल का प्रयोग क्यों शुरू कर दिया है?
4. बीईई के क्या मायने हैं? उसके कार्य क्या हैं?
5. ‘एक सितारे’ के और ‘पाँच सितारे’ के फ्रिज में क्या अंतर है?
आपने क्या सीखा
- जल एक अति आवश्यक प्राकृतिक संसाधन है।
- नदी, झील, तालाब, टैंक और भूमिगत जल प्रयोग में लाए जाने वाले जल के स्रोत हैं।
- पानी के अभाव के लिये निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं:
(i) बढ़ती हुई जनंसख्या की बढ़ती मांग
(ii) सिंचाई के विस्तार से बढ़ती हुई मांग
(iii) परिवर्तनशील जीवनशैली की वजह से पानी का बढ़ता प्रयोग
(iv) नदियों में मिट्टी का जम जाना
(v) जल संसाधन का खराब प्रबंधन
- क्योंकि पानी की घरेलू कामों, उद्योगों, सिंचाई और पशुपालन के लिये जरूरत है, उसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
- पानी का संरक्षण जल संपदा के सही प्रबंधन के कारण किया जा सकता है। ये चार दिशाओं में हो सकता है (i) पानी को कम बर्बाद करके (ii) पानी के संग्रहण (iii) पुनर्भरण एवं संग्रहण द्वारा।
- पानी को बर्बाद होने से बचाने के लिये जनसंचार के माध्यमों द्वारा सामाजिक चेतना को जागृत करके व सरकार और व्यक्तिगत प्रयासों को लागू करके किया जा सकता है।
- पानी का संग्रहण बारिश के पानी को इकट्ठा करके, तालाबों और नहरों की नियमित सफाई द्वारा, व जल भंडारों में बाढ़ के पानी को भरने के द्वारा किया जा सकता है।
- प्रयोग के योग्य पानी को प्राप्त करने का एक और तरीका है- स्वच्छ पानी के जलाशयों से प्रदूषकों को हटाकर।
- हमारी नदियों गंगा और यमुना का जल प्रदूषण हो चुका है और अब उनकी रिवर एक्शन प्लान के अंतर्गत सफाई की जा रही है।
- ऊर्जा को हम कार्य करने की क्षमता के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। ऊर्जा नवनीकृत होने वाली और पुनः प्रयोग में न लाई जाने वाली दोनों किस्मों की होती है।
- ऊर्जा के परम्परागत स्रोत जीवश्मीय ईंधन है, जबकि गैर-परम्परागत स्रोत सूर्य, वायु, पानी, समुद्री लहरें, ज्वारीय भूतापीय और ‘बायोमास’ शक्तियां हैं।
- जैविक ईंधनों को पौधों व पौधों से निकले पदार्थों से प्राप्त किया जा सकता है। ये या तो द्रव (बायोइथनॉल) के रूप में मिलते हैं या इनको कार्बन डाइऑक्साइड और CH4 जैसी गैसों (बायोगैस) के रूप में पाया जाता है। जट्रोफा, हीबिया और कैलोफाइलम जैसे पौधों के तेज बीज से बायोडीजल को प्रदान करते हैं।
- घरों में और कार्यालयों में कुछ सावधानी से किए गए कार्य ऊर्जा का बचाव कर सकते हैं।
- भारत का बिजली के संरक्षण का कार्यक्रम अच्छी तरह नियोजित है।
- भारत में सीएफएल और सूर्य ऊर्जा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
- ऊर्जा संरक्षण विधेयक के अंतर्गत बीईई, भारत सरकार की एक एजेन्सी है जो बिजली के उपकरणों सौर यंत्रों की रेटिंग (सितारों की) निर्धारित करती है।
- ग्रीनहाउस गैसों के साथ-साथ ऊर्जा संबंधी अपशिष्टों में कमी के उद्देश्य से ऊर्जा कुशाग्र वाहनों का विकास किया जा रहा है।
पाठांत प्रश्न
1. पानी के अभाव के पीछे जिम्मेदार कारणों को लिखिए।
2. जल-संरक्षण के तरीकों के बारे में बताइए।
3. पानी का संग्रहण क्या है? इसको किन तरीकों से किया जा सकता है?
4. इन पर सक्षिप्त नोट लिखिएः गंगा एक्शन प्लान और यमुना एक्शन प्लान
5. परम्परागत और गैर-परम्परागत ऊर्जा के स्रोत क्या हैं? उदाहरणों सहित विवरण दीजिए।
6. जैविक ईंधन (Bio fuel) क्या है?
7. इन पर नोट लिखिए (i) बायोगैस डाइजेस्टर (ii) बायोडीजल (iii) खनन ईंधन
8. व्यक्तिगत स्तर पर आप ऊर्जा का संरक्षण कैसे कर सकते हैं?
9. बिजली के उपकरणों/यंत्रों को सितारों की रेटिंग के साथ प्रदर्शित करने की जरूरत क्यों है?
10. यातायात के वाहनों को ऊर्जा कुशाग्र कैसे बनाया जा सकता है।
11. सौर ऊर्जा को एक ऊर्जा के संसाधन में प्रयोग करने की तीन विधियाँ बताइए।
पाठगत प्रश्नों के उत्तर
18.1
1. उद्योगों द्वारा बढ़ती मांग, बढ़ती जनसंख्या द्वारा बढ़ती मांग, सिंचाई का विस्तार, बदलती जीवन शैली के कारण से बढ़ता हुआ पानी का प्रयोग (कोई तीन)
2. हल्के दबाव वाले छिड़काव करने के यंत्र और लघु पैमाने की सिंचाई।
3. पानी के अभाव की समस्या के हल के लिये हमें पानी के विवेकतापूर्ण किए प्रयोग की आवश्यकता है और आगामी पीढ़ियों के लिये संरक्षित करने की आवश्यकता है।
4. जल का बहुत संयम के साथ प्रयोग कीजिए। घरेलू प्रयोग के उद्देश्य से लीक करती पाइपें और नलकों की मरम्मत करें, वर्षा के पानी को एकत्रित करके घरेलू काम में प्रयोग करना।
5. बढ़ती जनसंख्या।
18.2
1. लघु नाटकों, वार्तालाप अथवा कार्टूनों जैसे संचेतना कार्यक्रमों से एक बड़ी जनसंख्या तक पहुँचा जा सकता है।
2. क्योंकि वाष्पोत्सर्जन कम होता है, इसीलिये पानी की कम क्षति होती है।
3. पानी के उपभोग पर एक उपयुक्त शुल्क लगाइए।
4 अधिक मात्रा में मिलने वाले क्षेत्र से अभाव के क्षेत्र तक सप्लाई का पहुँचाया जाना। प्रयुक्त पानी को गडढों में डालिये। बाढ़ के पानी को जलकोषों में डालिये। नहरों की सफाई/भूमि की सतह से फिसलते पानी को रोककर संरक्षित करना/ मानसून से पहले खेतों की जुताई/ वर्षा के पानी का सम्पूर्ण प्रयोग (कोई भी दो)
5. वे जलाशयों से फास्फेट व नाइट्रेट लेते हैं।
6. गंगा एक्शन प्लान और यमुना एक्शन प्लान।
7. क्योंकि यमुना और गंगा नदियां बुरी तरह प्रदूषित हो गई थीं।
8. कृष्णा/कावेरी/गोदावरी/रावी/ब्रह्मपुत्र/नर्मदा (कोई भी अन्य)
18.3
1. काम करने की क्षमता।
2. खाना पकाना, बिजली के उपकरणों का प्रयोग करना, उद्योगों में वाहनों के लिये ईंधन और कृषि।
3. ATP अथवा ऐडीनोसाइन ट्राईफॉस्फेट।
18.4
1. नवीनीकृत न होने वाला सप्लाई में सीमित है; नवीनीकृत होने वाली ऊर्जा एक असीमित मात्रा में उपलब्ध है।
2. परम्परागत कोयला या पेट्रोलियमः गैर-परम्परागत सूर्य/जल/ज्वारीय/बायोमास
3. कोयला, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम (तेल)
4. जट्रोफा/कैलोफिलम/हीविया (रबड़) (कोई एक)
5. (क) बायोमास - पौधों का पदार्थ
(ख) बायोगैस- ईंधन के रूप में प्रयोग में आने वाली गैस, जिसके CH4 मौजूद है और जो अवायवीय बैक्टीरिया की जैविक अपशिष्टों पर क्रिया से बनता है।
6. इथेनॉल, मीथेन
7. क्योंकि वे पौधों से अथवा बैक्टीरिया से प्राप्त होते हैं, जो दोनों जैविक जीव है।
18.5
1. (i) बत्ती, पंखा और वातानुकूलक को तब स्विच ऑफ (बंद) कर दो, जब वे प्रयोग में नही हैं। गैस का हल्की आंच का प्रयोग कीजिए, वह खाना बनाने की गैस को बचाता है।
(ii) बत्ती, पंखा और वातानुकूलक को तब स्विच ऑफ (बंद) कर दो, जब वे प्रयोग में नहीं हैं, दफ्तर पहुँचने के लिये कार पूल (कई की बजाए एक ही कार का प्रयोग करना) का प्रयोग करें, सीएफएल का प्रयोग करें, कम्प्यूटर को तब स्विच ऑफ (बंद) कर दें जब उसका प्रयोग न हो रहा हो।
(iii) गाड़ी की गति को 50-60 किमी घंटे की रफ्तार तक कायम रखिए, ट्रैफिक सिग्नल पर वाहन के इंजन को खुला रखने की बजाय बंद कर दें। (कोई भी अन्य)
2. MNRE (एमएनआई)- भारतीय नवीनीकृत होने वाली ऊर्जा का मंत्रालय; IREDA। (आईआरईडीए- भारतीय नवीनीकृत ऊर्जा विकास ऐजेन्सी; CFL (सीएफएल)- कम्पैक्ट फ्ल्यूरोसेंट लाइट बल्ब।
3. क्योंकि ऊर्जा का उपयोग कम है, इसलिये बिजली के बिल में कटौती होती है।
4. ऊर्जा कुशाग्रता का ‘ब्यूरो’ (कार्यालय/विभाग)- बीईई की भूमिका भारत में संरक्षण की बढ़ोतरी और ऊर्जा के कुशाग्र प्रयोग के लिये कार्यक्रमों का विकास है।
5. (क) ऊर्जा की सबसे कम कुशाग्रता और कम पैसों की बचत।
(ख) अत्यधिक ऊर्जा कुशाग्रता और अधिकतम पैसों की बचत।
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