जल द्वारा भूक्षरण के चरण

जल द्वारा भूक्षरण
जल द्वारा भूक्षरण

भूक्षरण की प्रक्रिया वर्षा जल के भूमि की सतह पर गिरते ही आरम्भ हो जाती है, जिसके विभिन्न चरण हैं जैसे -
वर्षा-बून्द या आस्फालन क्षरण-

यह वर्षा-बूदों के भूमि की सतह पर टकराने से उठे छींटों के कारण होता है। वर्षा बूंदों की गतिज ऊर्जा के कारण भूमि की सतह की मृदा छिटककर फैल जाती है। यह गतिज ऊर्जा किसी स्थान व समय पर गिरने वाली वर्षा-बूंदों के द्रव्यमान तथा उसके वेग के वर्ग के अनुसार होती है। वर्षा की तीव्रता उसमें उपलब्ध बूंदों की आकृति एवं आकार-वितरण, प्रति क्षेत्रफल में गिरती बूंदों की संख्या तथा वर्षा की अवधि पर निर्भर करती है। वर्षा-बूंदों की क्षरण- क्षमता भी वर्षा बूंन्दों के आकार-वितरण, भूमि का ढाल तथा हवा के कारण वर्षा बून्दों के भूमि से टकराने के कोण के अनुसार होती है। ढालू स्थानों पर मृदा का छिटकना अधिक दूरी तक होता है। इस प्रकार के क्षरण का नियन्त्रण हेतु भूमि की सतह पर वानस्पतिक परत या पलवार बिछाकर किया जा सकता है ताकि भूमि पर वर्षा-बूंदें सीधे न टकराएँ। इसके अतिरिक्त खेतों की जुताई ढाल के विपरीत दिशा में की जानी चाहिए ताकि इस प्रकार बनी नाली व मेढ़ द्वारा मृदा का छिटकना रोका जा सके।

पृष्ठ या अंतःनलिका क्षरण-

इसमें मृदा कणों का वर्षा-बूंदों द्वारा छिटकने के उपरान्त बहता हुआ सतही अपवाह इन कणों को अपने साथ बहाकर ले जाता है। यह एक सैद्धांतिक प्रक्रिया है जिसमें भूमि की ऊपरी परत बहते हुए अपवाह के साथ बह जाती है। किसी स्थान की आकृति, आकार, तथा मृदा घनत्व के लिए अपवाह की क्षरण-क्षमता वर्षा की तीव्रता, भूमि की अंतःस्पंदन दर तथा भूमि के ढाल पर निर्भर करती है। कभी-कभी आस्फालन क्षरण तथा पृष्ठ-क्षरण को एक साथ मिलाकर अन्तःनलिका क्षरण भी कहा जाता है।

नलिका-क्षरण-

यह बहते अपवाह द्वारा बनी छोटी नलिकाओं में सांध्र प्रवाह के कारण मृदा कणों के अलगाव तथा अपवाह के साथ बहने से उत्पन्न होता है। इन छोटी नलिकाओं में अपवाह प्रति-प्रवाह वाले क्षेत्रों से भी आता है जिसके कारण इनमें भूक्षरण लगातार बढ़ता रहता है। यह एक अत्यधिक गम्भीर समस्या है विशेषकर उन स्थानों पर जहाँ तीव्र वर्षा के झोकों के कारण अधिक मात्रा में अपवाह पैदा होता है। भूक्षरण के इस चरण पर ही अधिक प्रभावी उपाय अपनाने चाहिए। आरम्भिक अवस्था में इन नलिकाओं को समान्य जुताई प्रक्रिया द्वारा भी समाप्त किया जा सकता है ताकि ये नलिकाएँ आगे न बढ़ने पाए।जल द्वारा भूक्षरण

अवनालिका-क्षरण- -

जब छोटी नलिकाओं में लम्बे समय तक लगातार अवसाद युक्त अपवाह बहता रहता है, तब ये नलिकाएँ आकार में बढ़कर अवनालिका का रूप धारण कर लेती हैं। इन अवनालिकाओं को सामन्य जुताई द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता है। अवनालिका-क्षरण की दर कई बातों पर निर्भर करती है, जैसे- जलागम का जल-निकास क्षेत्र, मृदा विशिष्टताएँ, अवनालिकाओं का आकर एवं आकृति, अवनालिकाओं का लम्बवत्‌ ढाल आदि। यदि इस चरण पर भी उपयुक्त संरक्षण उपाय नहीं अपनाए गये तो ये अवनालिकाएँ भीषण रूप धारण कर लेगी तथा पूरा क्षेत्र बीहड़ की तरह बन जायेगा।

जल-धारा तटीय क्षरण- -

इस प्रक्रिया में लगातार बहती जल-धारा के कारण नालिकाओं के किनारों तथा तल पर मृदा का कटाव एवं गतिशीलता लगातार बनी रहती है। यह उन नालिकाओं या नदियों में होता है जो सदैव बहती रहती है।



 

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