नई दिल्ली, 10 अप्रैल। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश में आबादी की तुलना में पहले से ही कम पानी की उपलब्धता के और कम होते जाने पर चिंता जताते हुए कहा है कि अपने स्वामित्व वाली भूमि मनचाहा पानी निकालने की छूट नहीं होनी चाहिए। उन्होंने भूजल निकालने की छूट को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए जाने की जरूरत पर जोर दिया है। राजधानी में ‘भारत जल सप्ताह’ का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया की 17 फीसद आबादी भारत में है। लेकिन उपयोग करने लायक पेयजल मात्र चार फीसद ही है। देश में पानी की कमी है। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और शहरीकरण ने जल की आपूर्ती और मांग के अंतर की खाई को और चौड़ा कर दिया है। जलवायु संकट से जल की उपलब्धता की कमी और बढ़ सकती है और देश के जल चक्र को खतरा पैदा हो सकता है।
उन्होंने आगाह किया कि अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट और नालों से बहने वाले मल से हमारे जल संसाधनों का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। भूजल का स्तर तेजी से घटता जा रहा है। इससे उसमें फ्लोराइड, आर्सेनिक और अन्य रसायनों की मात्रा बढ़ रही है। देश में जल की भयावह स्थिति का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सबके ऊपर दुर्भाग्य से अभी भी बड़े पैमाने पर खुले में शौच करने के प्रचलन ने जल को प्रदूषित करने में योगदान किया है। खुले में शौच का प्रचलन जारी रहने के पीछे भी जल की कमी एक बड़ी वजह है। भूजल के भारी दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए सिंह ने कहा कि मौजूदा कानून भूमि के मालिकों को अपनी भूमि से जितना चाहे जल निकालने का अधिकार देते हैं। जल निकालने की सीमा के लिए कोई कानून नहीं है।
बिजली और जल के कम दाम के कारण भी भूजल का घोर दुरुपयोग जारी है। दुर्लभ भूजल संसाधन के इस्तेमाल को लेकर साफ कानूनी ढांचा बनाए जाने पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि बेहतर जल प्रबंधन व्यवस्था के रास्ते में मुख्य बाधा हमारे देश के वर्तमान संस्थागत और कानूनी ढांचे में कमी है। इसमें फौरी सुधार किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि मौजूदा वास्विकताओं को ध्यान में रखते हुए जल संसाधन के संरक्षण की बेहतर योजना, विकास और प्रबंधन की दिशा में तुरंत कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा-ऐसा सुझाव है कि जल संरक्षण और उपयोग के सामान्य सिद्धांतों को लेकर एक ऐसा व्यापक पहुंच वाला राष्ट्रीय कानूनी ढांचा बनाया जाए जो हर राज्य को जल संचालन का आवश्यक कानूनी आधार उपलब्ध कराए।
उन्होंने कहा कि इससे एकीकृत और सुसंगत संस्थागत जल नीति को लागू करने में मदद मिलेगी। जल दुरुपयोग नियंत्रित करने के सिलसिले में मनमोहन सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय जल मिशन ने जल उपयोग दक्षता में 20 फीसद सुधार का लक्ष्य रखा है। जल आपूर्ति बढ़ाने की सीमाओं को देखते हुए ऐसा किया जाना जरूरी है। इस सबसे बढ़कर भूजल को वर्तमान में व्यक्तिगत मिल्कियत समझे जाने की स्थिति से निकाल कर उसे साझा संपत्ति संसाधन के रूप में बनाया जाना चाहिए।
उन्होंने आगाह किया कि अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट और नालों से बहने वाले मल से हमारे जल संसाधनों का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। भूजल का स्तर तेजी से घटता जा रहा है। इससे उसमें फ्लोराइड, आर्सेनिक और अन्य रसायनों की मात्रा बढ़ रही है। देश में जल की भयावह स्थिति का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सबके ऊपर दुर्भाग्य से अभी भी बड़े पैमाने पर खुले में शौच करने के प्रचलन ने जल को प्रदूषित करने में योगदान किया है। खुले में शौच का प्रचलन जारी रहने के पीछे भी जल की कमी एक बड़ी वजह है। भूजल के भारी दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए सिंह ने कहा कि मौजूदा कानून भूमि के मालिकों को अपनी भूमि से जितना चाहे जल निकालने का अधिकार देते हैं। जल निकालने की सीमा के लिए कोई कानून नहीं है।
बिजली और जल के कम दाम के कारण भी भूजल का घोर दुरुपयोग जारी है। दुर्लभ भूजल संसाधन के इस्तेमाल को लेकर साफ कानूनी ढांचा बनाए जाने पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि बेहतर जल प्रबंधन व्यवस्था के रास्ते में मुख्य बाधा हमारे देश के वर्तमान संस्थागत और कानूनी ढांचे में कमी है। इसमें फौरी सुधार किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि मौजूदा वास्विकताओं को ध्यान में रखते हुए जल संसाधन के संरक्षण की बेहतर योजना, विकास और प्रबंधन की दिशा में तुरंत कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा-ऐसा सुझाव है कि जल संरक्षण और उपयोग के सामान्य सिद्धांतों को लेकर एक ऐसा व्यापक पहुंच वाला राष्ट्रीय कानूनी ढांचा बनाया जाए जो हर राज्य को जल संचालन का आवश्यक कानूनी आधार उपलब्ध कराए।
उन्होंने कहा कि इससे एकीकृत और सुसंगत संस्थागत जल नीति को लागू करने में मदद मिलेगी। जल दुरुपयोग नियंत्रित करने के सिलसिले में मनमोहन सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय जल मिशन ने जल उपयोग दक्षता में 20 फीसद सुधार का लक्ष्य रखा है। जल आपूर्ति बढ़ाने की सीमाओं को देखते हुए ऐसा किया जाना जरूरी है। इस सबसे बढ़कर भूजल को वर्तमान में व्यक्तिगत मिल्कियत समझे जाने की स्थिति से निकाल कर उसे साझा संपत्ति संसाधन के रूप में बनाया जाना चाहिए।
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