थोड़ी कोशिश करें...तो आप भी ‘पानी के संरक्षण’ में दे सकते हैं अपना योगदान।
लखनऊ जैसे शहर में, जहां कंक्रीट का जाल सा बिछ गया है और बारिश के पानी के रिसकर भूगर्भ में पहुंचने की बहुत कम गुंजाईश बची है, सूखते भूगर्भ जल भंडारों के संरक्षण के लिए छतों पर गिरने वाले वर्षा जल की भूमिगत रिचार्जिंग ही अकेली विधा बची है। वर्षाजल की भूमिगत स्रोतों में पहुंचाने के उद्देश्य से आम शहरवासियों के लिए कई सरल व सस्ती तकनीकें उपयुक्त पाई गई हैं। यह स्थानीय भूगर्भीय परिस्थितियों के मुताबिक लागू की जा सकती है। लखनऊ में पेयजल के लिए भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन होने से यह स्रोत खत्म हो रहा है। बोरिंग अथवा नलकूपों के जरिए बेइंतिहा पानी निकालकर आप जिस कुदरती भूगर्भ जल भंडार को लगातार खाली कर रहे हैं, थोड़ा धन व्यय करके आप वर्षा के पानी को भूगर्भ जल स्रोतों में पहुँचाकर धरती का ऋण कुछ हद तक चुका सकते हैं। लौटाया पानी भविष्य में इसी समाज के काम आएगा। भूगर्भ जल रिचार्जिंग की कोई भी विधि अपनाने के लिए निर्माण कार्य महीने-सवा महीने में पूरा हो सकता है। कोई चाहे तो इस साल की बरसात से पानी संचित करने की तकनीक अपना सकता है।
छोटे अथवा मध्यम वर्ग के घरों की छत पर गिरने वाले बारिश के पानी को सिर्फ एक बार चंद हजार रुपए खर्च करके भूगर्भीय जल स्रोतों में पहुंचाया जा सकता है। यह राशि एक हजार से बीस हजार रुपए तक हो सकती है, बशर्ते यह जानकारी हो कि किस इलाके में जल संचयन की कौन सी विधा वैज्ञानिक पैमाने पर उपयुक्त रहेगी तथा छत का क्षेत्रफल कितना है? यह सरल विधा हर घर को वर्षा जल संरक्षण के पुनीत कार्य से जोड़ सकती है। जरूरत है सिर्फ इच्छा शक्ति की और थोड़ा पैसा खर्च करने की। क्या आप जानते हैं कि 100 मि.मी. बारिश होने पर आपके घर की तकरीबन 100 वर्ग मी. क्षेत्रफल की छत पर हर वर्ष बरसात में 1 लाख लीटर वर्षा जल गिरता है, जो सीवर व नालों में बहकर व्यर्थ चला जाता है। वर्षा जल संचयन की विधि अपनाकर इसमें से 80 हजार लीटर पानी को भूजल भंडारों जल की भावी पूंजी के रूप में जमा किया जा सकता है।
लखनऊ जैसे शहर में, जहां कंक्रीट का जाल सा बिछ गया है और बारिश के पानी के रिसकर भूगर्भ में पहुंचने की बहुत कम गुंजाईश बची है, सूखते भूगर्भ जल भंडारों के संरक्षण के लिए छतों पर गिरने वाले वर्षा जल की भूमिगत रिचार्जिंग ही अकेली विधा बची है। वर्षाजल की भूमिगत स्रोतों में पहुंचाने के उद्देश्य से आम शहरवासियों के लिए कई सरल व सस्ती तकनीकें उपयुक्त पाई गई हैं। यह स्थानीय भूगर्भीय परिस्थितियों के मुताबिक लागू की जा सकती है। लखनऊ में पेयजल के लिए भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन होने से यह स्रोत खत्म हो रहा है। वर्षा जल का संचयन ही हमें पुनर्जीवित कर सकता है। अगर आपका घर ऐसे क्षेत्र में है, जहां सतह से थोड़ी गहराई पर ही बालू का स्ट्रेटा मौजूद है, तो ‘रिचार्ज पिट’ यानी फिल्टर मीडिया से भरा दो से तीन मीटर गहरा गड्ढा बनाकर छतों पर गिरने वाले वर्षाजल को जमीन के भीतर डाइवर्ट किया जा सकता है।
ऐसे उथले स्ट्रेटा वाले क्षेत्र में 200 वर्ग मीटर की छत के लिए पिट के बजाए बगीचे के किनारे ‘ट्रेंच’ (खाईनुमा गड्ढा) बनाकर बारिश के पानी को रिचार्ज कराया जा सकता है। इसने भी फिल्टर मीडिया भरा जाएगा। जिन इलाकों में बालू का स्ट्रेटा 10 से 15 मीटर अथवा अधिक गहराई पर मौजूद है तो वहां पर वर्षाजल संग्रहण के लिए एक रिचार्ज चैंबर बनाकर ‘बोर-वेल’ के जरिए रिचार्जिंग कराई जा सकती है।
100 से 300 वर्ग मीटर की छत के लिए इस तकनीक पर 15 से 30 हजार रुपए का खर्च आ सकता है। यह खर्च एक बार ही आएगा। यह तकनीक उन क्षेत्रों में उपयुक्त होगी जहां ऊपरी स्ट्रेटा चिकनी मिट्टी का बना हुआ है। वैसे घर के आस-पास कोई सूखा कुआं मौजूद हो तो उसे सीधे रिचार्ज के लिए उपयोग में लाया जा सकता है और इसमें खर्च भी अपेक्षाकृत कम आता है।
जल समस्या के समाधान हेतु सरकारी प्रयासों के साथ ही जन आंदोलन का सहारा लेना होगा। प्रदेश निवासी को वर्षा की हर बूंद के महत्व हो समझना होगा। इस प्रयास के अंतर्गत तेजी से बहते जल के धीरे-धीरे बहने की स्थिति में लाना होगा, धीमी गति से बहे जल को रुक जाने की स्थिति में लाना होगा, रुके हुए जल का हम उपयोग कर सकेंगे, वहीं जल जमीन के अंदर प्रवेश करके भूमिगत जल भंडार भरेगा- जिसका हम दोहन कर पाएंगे- नल कूप, हैंडपंप, कुंआ इत्यादि के द्वारा।
1. पठारी क्षेत्रों में माइक्रोवाटर शेड को जल विकास का आधार मानकर वर्षा जल संचयन हेतु गड्ढे, ताल, तलैया, तालाब, बाँध, बन्धियाँ आदि इस प्रकार निर्मित होने चाहिए ताकि प्रदेश में होने वाली वर्षा कम से कम 30 प्रतिशत भाग जहां पानी बरसता हो उसी जगह रोक दिया जाए, शेष 65 प्रतिशत सिंचाई विभाग के हवाले किया जाए ताकि बड़े-बड़े बाँधों को भी भरा जा सके तथा नदियों में भी जल बहाव बना रहे।
2. वर्षाजल संचयन एवं रिचार्जिंग स्ट्रक्चर के निर्माण के साथ ही उसके आसपास के क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जाए।
3. वन विभाग के नियंत्रणाधीन छोटी पहाड़ियों तथा वन क्षेत्र में वृहद स्तर पर कंटूर बंध व वृक्षारोपण का कार्य किया जाए।
4. उपलब्ध परंपरागत जल स्रोतों की डीसिल्टिंग व मरम्मत का कार्य कराया जाए।
5. सूखे कुओं की सफाई करके उन्हें रिचार्ज स्ट्रक्चर के रूप में प्रयोग में लाया जाए।
6. कृषि कार्यों में सिंचाई की आधुनिक विधियों का प्रयोग करके जल की बचत की जाए।
7. प्रत्येक कृषक को उद्यानीकरण करने हेतु प्रेरित किया जाए।
8.शहरी क्षेत्र में रूफ टाप रेन वाटर हार्वेस्टिंग का निर्माण वृहद स्तर पर कराया जाए।
9. जन सामान्य को वर्षा जल संचयन व रिचार्जिंग एवं जल की खपत को कम करने के उपायों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए जिसके लिए वृहद स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने की आवश्यकता है।
जल जल करते सब जलें, जल पाए ना कोय।
बारिश में संचय ना किया, अब पछताए का होय।।
वर्षा जल को एकत्रित करने की प्रणाली 4 हजार वर्ष पुरानी है। इस तकनीक को आज वैज्ञानिक मापदंडों के आधार पर सिर्फ पुनर्जीवित किया जा रहा है।
1. घर के लान को कच्चा रखें
2. घर के बाहर सड़कों के किनारे कच्चा रखें अथवा लूज-स्टोन पेवमेंट का निर्माण करें।
3. पार्कों में रिचार्ज ट्रेंच बनाई जाएं।
1. रिचार्ज पिट
2. रिचार्ज ट्रेंच
3. रिचार्ज वेल
4. रिचार्ज ट्रेंच कम बोर वेल
5. सूखा कुंआ
6. तालाब-पोखर
7. सतही जल संग्रहण
यह तकनीकें स्थानीय हाइड्रोजियोलाजी पर निर्भर करती हैं।
1. भूगर्भ जल नियंत्रण एवं निमन लागू कर अंधाधुंध दोहन पर अंकुश लगाया जाए।
2. पेयजल सेक्टर में भूजल स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता के दृष्टिगत सीमित आपूर्ति और नियोजित उपयोग को प्राथमिकता दी जाए।
3. शहर में भूजल दोहन कम करके सीमावर्ती क्षेत्रों में नलकूप लगाकर आपूर्ति की व्यवस्था की जाए।
4. शहरी सीमा के भीतर भूगर्भ पर आधारित व्यवसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित न किया जाए।
1. दंत मंजन करते, दाढ़ी बनाते समय नलों/टोंटी को कम से कम खोले और मग का इस्तेमाल करें।
2. बर्तनों को मांजते समय नल बंद रखें, जब धुलाई करनी हो तब ही नल को खोलें।
3. जल की धार हमेशा धीमी रखें और टपकते नलों को तुरंत ठीक कराएं।
4. गाड़ी की धुलाई पाइप लगाकर न करें, बल्कि बाल्टी में पानी लेकर गाड़ी साफ करें।
5. घर के आगे की सड़कों को अनावश्यक पानी से न धोएं।
6. सार्वजनिक नलों में लीकेज देखें तो उसकी शिकायत जल संस्थान को करें।
7. कम पानी की खपत वाले फ्लश सिस्टम का प्रयोग करें, इससे 10 ली. पानी बचेगा।
8. रसोई में ताजा पानी भरने की प्रवृत्ति छोड़ संग्रहित पानी का पूरा इस्तेमाल करें।
9. पानी की टंकी में वाल्व अवश्य लगाएं और पान को ओवरफ्लो न कराएं।
10. घर के सदस्यों को पानी बचाने की शिक्षा जरूर दें। ध्यान रखें कि अनावश्यक जल की बर्बादी अथवा टपकना एक ऋणात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, जो आपके मन मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है।
11.जल, ऊर्जा एवं धन की बचत का आशय है कि उसे दूसरों के हित साधन में लगाना।
1. फसलों की सिंचाई क्यारी बनाकर करें।
2. सिंचाई की नालियों को पक्का करें या कैनवास/पी.वी.सी. पाइप को प्रयोग करें।
3. बागवानी की सिंचाई हेतु ‘ड्रिप विधि’ व फसलों हेतु ‘स्प्रिंकलर’ विधि अपनाएं।
4. पेड़ पौधों एवं फसलों की सिंचाई आदि में आवश्यकतानुसार ही पानी का प्रयोग करें।
5. बगीचे में पानी सुबह ही दें ताकि वाष्पीकरण से होने वाला नुकसान कम किया जा सके।
6. जल की कमी वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलें जिसमें कम पानी की आवश्यकता हो।
7. अत्यधिक भूजल गिरावट वाले क्षेत्रों में फसल चक्र में परिवर्तन कर अधिक जल खपत वाली फसलें न उगाई जाएं।
8. खेतों की मेड़ों को मजबूत व ऊँचा करके खेत का पानी खेत में रिचार्ज होने दें।
1. औद्योगिक प्रयोग में लाए गए जल का शोधन करके उसका पुनः उपयोग करें।
2. मोटर गैराज में गाड़ियों की धुलाई से निकले जल की सफाई करके पुनः प्रयोग में लाएं।
3. वाटर पार्क तथा होटल में प्रयुक्त होने वाले जल का उपचार करके बार-बार प्रयोग में लाएं।
4. होटल, निजी अस्पताल, नर्सिंग होम व उद्योग आदि ‘वर्षा जल का संग्रहण’ कर टायलेट व गार्डन में उस पानी का प्रयोग करें।
1. शासनादेश दिनांक 25 अप्रैल, 2006 द्वारा शहरी क्षेत्रों हेतु पूर्व में लागू 200 वर्ग मी. अथवा अधिक क्षेत्रफल के भूखंडों पर रूफ टाप रेनवाटर हार्वेस्टिंग पद्धति स्थापित करने की व्यवस्था को संशोधित कर अब 300 वर्ग मी. अथवा अधिक क्षेत्रफल के भूखंडों हेतु अनिवार्य किया गया है। ग्रुप हाउसिंग स्कीप के अंतर्गत 200 वर्ग मी. से कम क्षेत्रफल के सरकारी व निजी भूखंडों तथा प्रस्तावित सभी योजनाओं (शासकीय व निजी क्षेत्र) के लेआउट प्लान में ‘सामूहिक भूजल रिचार्जिंग’ की व्यवस्था अनिवार्य की गई है।
2. तालाबों/जलाशयों की गहराई अधिकतम 3 मीटर से अधिक नहीं होगी।
3. प्रदूषित जल की संभावना वाले क्षेत्र में तालाबों/जलाशय में रिचार्ज शाफ्ट नहीं बनेगा।
4. तालाबों को अवैध कब्जों व अतिक्रमण से मुक्त कराने के निर्देश।
5. जुलाई 2006 से कक्षा 6 से 8 के पाठ्यक्रम में ‘वर्षा जल संचयन’ का विषय सम्मिलित।
6. सरकारी/अर्द्ध सरकारी भवनों में रिचार्जिंग अनिवार्य।
1. यदि पानी में कीटाणु हो तो उसे 100 से. ग्रे. पर उबाल लें तथा इसके ठंडे हो जाने के बाद इसे छान-कर पीने में प्रयोग करें।
2. पी. एच.- पानी की अम्लीयता या क्षारीयता की माप करने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली इकाई है। शुद्ध पानी की पी.एच. गुणता 7 होती है, जबकि पी.एच. गुणता अम्लीयता और क्षारीय पानी में क्रमशः 0-7 और 7-14 के बीच रहती है।
3. आयरन - पानी लोहे (आयरन) की अधिकतम अनुमन्य सीमा 1 मिग्रा/लीटर है। इसलिए उपयोग में लाए जाने वाले पानी में लोहे की जांच करना आवश्यक हो जाता है।
4. टी.डी.एस.- पेयजल के स्वाद पर टी.डी.एस. का विशेष प्रभाव रहता है। 600 मि.ग्रा./लीटर के कम टी.डी.एस. सामान्यतः अच्छा माना जाता है। किंतु 1200 मिग्रा./ली. से अधिक उपयुक्त नहीं रहता है।
5. नाइट्रेट- 100 कि.ग्रा./ लीटर से अधिक मात्रा होने पर बच्चों को ब्लू बेबी रोग हो सकता।
1. भूजल स्तर गिरावट की वार्षिक दर को कम किया जा सकता है।
2. भूगर्भ जल उपलब्धता एवं पेयजल आपूर्ति की मांग के अंतर को कम किया जा सकता है। दबावग्रस्त ‘एक्यूफर्स’ (भूगर्भीय जल स्ट्रेटा) को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।
3. भूजल गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
4. सड़कों पर जल प्लावन की समस्या से निजात मिल सकेगा।
5. 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की छत से प्रतिवर्ष 55,000 से 80,000 लीटर पानी संचित हो सकता है। यह मात्रा वर्षा जल की उपलब्धता पर निर्भर करेगी।
6. वृक्षों को पर्याप्त जल की आपूर्ति स्वतः संभव हो सकेगी।
1. केवल छतों पर गिरने वाले वर्षा जल को ही सीधे एक्यूफर में रिचार्ज कराया जाए।
2. यथासंभव रिचार्ज पिट/ट्रैंच विधियों को ही प्रोत्साहित किया जाए।
3. रिचार्ज परियोजना में यह ध्यान अवश्य रखा जाए कि किसी तरह के प्रदूषित तत्व भूगर्भ जल में न पहुंचे।
4. छतों को साफ रखा जाए तथा किसी प्रकार के रसायन, कीटनाशक न रखा जाए।
5. जल प्लावन से प्रभावित क्षेत्रों/उथले जल स्तर वाले क्षेत्रों में रिचार्ज विधा न अपनाई जाए।
आओ मिलकर दृढ़ संकल्प लें, सब जन इस क्षण।
बूंद-बूंद से करके होगा, भूजल स्रोतों का संरक्षण।।
संपर्क
कार्यालय : अधिशाषी अभियंता,
खंड - चित्रकूट धाम (बाँदा)
वेबसाइट : www.gwd.up.nic.in
इस बरसात में धरती का पानी लौटाइए!
लखनऊ जैसे शहर में, जहां कंक्रीट का जाल सा बिछ गया है और बारिश के पानी के रिसकर भूगर्भ में पहुंचने की बहुत कम गुंजाईश बची है, सूखते भूगर्भ जल भंडारों के संरक्षण के लिए छतों पर गिरने वाले वर्षा जल की भूमिगत रिचार्जिंग ही अकेली विधा बची है। वर्षाजल की भूमिगत स्रोतों में पहुंचाने के उद्देश्य से आम शहरवासियों के लिए कई सरल व सस्ती तकनीकें उपयुक्त पाई गई हैं। यह स्थानीय भूगर्भीय परिस्थितियों के मुताबिक लागू की जा सकती है। लखनऊ में पेयजल के लिए भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन होने से यह स्रोत खत्म हो रहा है। बोरिंग अथवा नलकूपों के जरिए बेइंतिहा पानी निकालकर आप जिस कुदरती भूगर्भ जल भंडार को लगातार खाली कर रहे हैं, थोड़ा धन व्यय करके आप वर्षा के पानी को भूगर्भ जल स्रोतों में पहुँचाकर धरती का ऋण कुछ हद तक चुका सकते हैं। लौटाया पानी भविष्य में इसी समाज के काम आएगा। भूगर्भ जल रिचार्जिंग की कोई भी विधि अपनाने के लिए निर्माण कार्य महीने-सवा महीने में पूरा हो सकता है। कोई चाहे तो इस साल की बरसात से पानी संचित करने की तकनीक अपना सकता है।
छोटे अथवा मध्यम वर्ग के घरों की छत पर गिरने वाले बारिश के पानी को सिर्फ एक बार चंद हजार रुपए खर्च करके भूगर्भीय जल स्रोतों में पहुंचाया जा सकता है। यह राशि एक हजार से बीस हजार रुपए तक हो सकती है, बशर्ते यह जानकारी हो कि किस इलाके में जल संचयन की कौन सी विधा वैज्ञानिक पैमाने पर उपयुक्त रहेगी तथा छत का क्षेत्रफल कितना है? यह सरल विधा हर घर को वर्षा जल संरक्षण के पुनीत कार्य से जोड़ सकती है। जरूरत है सिर्फ इच्छा शक्ति की और थोड़ा पैसा खर्च करने की। क्या आप जानते हैं कि 100 मि.मी. बारिश होने पर आपके घर की तकरीबन 100 वर्ग मी. क्षेत्रफल की छत पर हर वर्ष बरसात में 1 लाख लीटर वर्षा जल गिरता है, जो सीवर व नालों में बहकर व्यर्थ चला जाता है। वर्षा जल संचयन की विधि अपनाकर इसमें से 80 हजार लीटर पानी को भूजल भंडारों जल की भावी पूंजी के रूप में जमा किया जा सकता है।
लखनऊ जैसे शहर में, जहां कंक्रीट का जाल सा बिछ गया है और बारिश के पानी के रिसकर भूगर्भ में पहुंचने की बहुत कम गुंजाईश बची है, सूखते भूगर्भ जल भंडारों के संरक्षण के लिए छतों पर गिरने वाले वर्षा जल की भूमिगत रिचार्जिंग ही अकेली विधा बची है। वर्षाजल की भूमिगत स्रोतों में पहुंचाने के उद्देश्य से आम शहरवासियों के लिए कई सरल व सस्ती तकनीकें उपयुक्त पाई गई हैं। यह स्थानीय भूगर्भीय परिस्थितियों के मुताबिक लागू की जा सकती है। लखनऊ में पेयजल के लिए भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन होने से यह स्रोत खत्म हो रहा है। वर्षा जल का संचयन ही हमें पुनर्जीवित कर सकता है। अगर आपका घर ऐसे क्षेत्र में है, जहां सतह से थोड़ी गहराई पर ही बालू का स्ट्रेटा मौजूद है, तो ‘रिचार्ज पिट’ यानी फिल्टर मीडिया से भरा दो से तीन मीटर गहरा गड्ढा बनाकर छतों पर गिरने वाले वर्षाजल को जमीन के भीतर डाइवर्ट किया जा सकता है।
ऐसे उथले स्ट्रेटा वाले क्षेत्र में 200 वर्ग मीटर की छत के लिए पिट के बजाए बगीचे के किनारे ‘ट्रेंच’ (खाईनुमा गड्ढा) बनाकर बारिश के पानी को रिचार्ज कराया जा सकता है। इसने भी फिल्टर मीडिया भरा जाएगा। जिन इलाकों में बालू का स्ट्रेटा 10 से 15 मीटर अथवा अधिक गहराई पर मौजूद है तो वहां पर वर्षाजल संग्रहण के लिए एक रिचार्ज चैंबर बनाकर ‘बोर-वेल’ के जरिए रिचार्जिंग कराई जा सकती है।
100 से 300 वर्ग मीटर की छत के लिए इस तकनीक पर 15 से 30 हजार रुपए का खर्च आ सकता है। यह खर्च एक बार ही आएगा। यह तकनीक उन क्षेत्रों में उपयुक्त होगी जहां ऊपरी स्ट्रेटा चिकनी मिट्टी का बना हुआ है। वैसे घर के आस-पास कोई सूखा कुआं मौजूद हो तो उसे सीधे रिचार्ज के लिए उपयोग में लाया जा सकता है और इसमें खर्च भी अपेक्षाकृत कम आता है।
जल की समस्या के समाधान हेतु सुझाव
जल समस्या के समाधान हेतु सरकारी प्रयासों के साथ ही जन आंदोलन का सहारा लेना होगा। प्रदेश निवासी को वर्षा की हर बूंद के महत्व हो समझना होगा। इस प्रयास के अंतर्गत तेजी से बहते जल के धीरे-धीरे बहने की स्थिति में लाना होगा, धीमी गति से बहे जल को रुक जाने की स्थिति में लाना होगा, रुके हुए जल का हम उपयोग कर सकेंगे, वहीं जल जमीन के अंदर प्रवेश करके भूमिगत जल भंडार भरेगा- जिसका हम दोहन कर पाएंगे- नल कूप, हैंडपंप, कुंआ इत्यादि के द्वारा।
1. पठारी क्षेत्रों में माइक्रोवाटर शेड को जल विकास का आधार मानकर वर्षा जल संचयन हेतु गड्ढे, ताल, तलैया, तालाब, बाँध, बन्धियाँ आदि इस प्रकार निर्मित होने चाहिए ताकि प्रदेश में होने वाली वर्षा कम से कम 30 प्रतिशत भाग जहां पानी बरसता हो उसी जगह रोक दिया जाए, शेष 65 प्रतिशत सिंचाई विभाग के हवाले किया जाए ताकि बड़े-बड़े बाँधों को भी भरा जा सके तथा नदियों में भी जल बहाव बना रहे।
2. वर्षाजल संचयन एवं रिचार्जिंग स्ट्रक्चर के निर्माण के साथ ही उसके आसपास के क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जाए।
3. वन विभाग के नियंत्रणाधीन छोटी पहाड़ियों तथा वन क्षेत्र में वृहद स्तर पर कंटूर बंध व वृक्षारोपण का कार्य किया जाए।
4. उपलब्ध परंपरागत जल स्रोतों की डीसिल्टिंग व मरम्मत का कार्य कराया जाए।
5. सूखे कुओं की सफाई करके उन्हें रिचार्ज स्ट्रक्चर के रूप में प्रयोग में लाया जाए।
6. कृषि कार्यों में सिंचाई की आधुनिक विधियों का प्रयोग करके जल की बचत की जाए।
7. प्रत्येक कृषक को उद्यानीकरण करने हेतु प्रेरित किया जाए।
8.शहरी क्षेत्र में रूफ टाप रेन वाटर हार्वेस्टिंग का निर्माण वृहद स्तर पर कराया जाए।
9. जन सामान्य को वर्षा जल संचयन व रिचार्जिंग एवं जल की खपत को कम करने के उपायों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए जिसके लिए वृहद स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने की आवश्यकता है।
जल जल करते सब जलें, जल पाए ना कोय।
बारिश में संचय ना किया, अब पछताए का होय।।
वर्षा जल संचयन कैसे हो?
वर्षा जल को एकत्रित करने की प्रणाली 4 हजार वर्ष पुरानी है। इस तकनीक को आज वैज्ञानिक मापदंडों के आधार पर सिर्फ पुनर्जीवित किया जा रहा है।
छोटे और सामान तरीके अपनाएं
1. घर के लान को कच्चा रखें
2. घर के बाहर सड़कों के किनारे कच्चा रखें अथवा लूज-स्टोन पेवमेंट का निर्माण करें।
3. पार्कों में रिचार्ज ट्रेंच बनाई जाएं।
रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग 7 एक सरल तकनीक
उपयुक्त विधियाँ
1. रिचार्ज पिट
2. रिचार्ज ट्रेंच
3. रिचार्ज वेल
4. रिचार्ज ट्रेंच कम बोर वेल
5. सूखा कुंआ
6. तालाब-पोखर
7. सतही जल संग्रहण
यह तकनीकें स्थानीय हाइड्रोजियोलाजी पर निर्भर करती हैं।
कौन सी छत कितना पानी समेटेगी
छत का क्षेत्रफल (वर्ग मी.) | रिचार्ज हेतु उपलब्ध वर्षाजल (लीटर प्रतिवर्ष) |
100 | 80 हजार |
200 | 1.6 लाख |
300 | 2.4 लाख |
500 | 4 लाख |
1000 | 8 लाख |
शहरों में कैसे हो भूगर्भ जल नियोजन
1. भूगर्भ जल नियंत्रण एवं निमन लागू कर अंधाधुंध दोहन पर अंकुश लगाया जाए।
2. पेयजल सेक्टर में भूजल स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता के दृष्टिगत सीमित आपूर्ति और नियोजित उपयोग को प्राथमिकता दी जाए।
3. शहर में भूजल दोहन कम करके सीमावर्ती क्षेत्रों में नलकूप लगाकर आपूर्ति की व्यवस्था की जाए।
4. शहरी सीमा के भीतर भूगर्भ पर आधारित व्यवसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित न किया जाए।
रोजमर्रा के घरेलू कार्यों में जल बचत
1. दंत मंजन करते, दाढ़ी बनाते समय नलों/टोंटी को कम से कम खोले और मग का इस्तेमाल करें।
2. बर्तनों को मांजते समय नल बंद रखें, जब धुलाई करनी हो तब ही नल को खोलें।
3. जल की धार हमेशा धीमी रखें और टपकते नलों को तुरंत ठीक कराएं।
4. गाड़ी की धुलाई पाइप लगाकर न करें, बल्कि बाल्टी में पानी लेकर गाड़ी साफ करें।
5. घर के आगे की सड़कों को अनावश्यक पानी से न धोएं।
6. सार्वजनिक नलों में लीकेज देखें तो उसकी शिकायत जल संस्थान को करें।
7. कम पानी की खपत वाले फ्लश सिस्टम का प्रयोग करें, इससे 10 ली. पानी बचेगा।
8. रसोई में ताजा पानी भरने की प्रवृत्ति छोड़ संग्रहित पानी का पूरा इस्तेमाल करें।
9. पानी की टंकी में वाल्व अवश्य लगाएं और पान को ओवरफ्लो न कराएं।
10. घर के सदस्यों को पानी बचाने की शिक्षा जरूर दें। ध्यान रखें कि अनावश्यक जल की बर्बादी अथवा टपकना एक ऋणात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, जो आपके मन मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है।
11.जल, ऊर्जा एवं धन की बचत का आशय है कि उसे दूसरों के हित साधन में लगाना।
किसान भी कर सकते हैं पानी की बचत
1. फसलों की सिंचाई क्यारी बनाकर करें।
2. सिंचाई की नालियों को पक्का करें या कैनवास/पी.वी.सी. पाइप को प्रयोग करें।
3. बागवानी की सिंचाई हेतु ‘ड्रिप विधि’ व फसलों हेतु ‘स्प्रिंकलर’ विधि अपनाएं।
4. पेड़ पौधों एवं फसलों की सिंचाई आदि में आवश्यकतानुसार ही पानी का प्रयोग करें।
5. बगीचे में पानी सुबह ही दें ताकि वाष्पीकरण से होने वाला नुकसान कम किया जा सके।
6. जल की कमी वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलें जिसमें कम पानी की आवश्यकता हो।
7. अत्यधिक भूजल गिरावट वाले क्षेत्रों में फसल चक्र में परिवर्तन कर अधिक जल खपत वाली फसलें न उगाई जाएं।
8. खेतों की मेड़ों को मजबूत व ऊँचा करके खेत का पानी खेत में रिचार्ज होने दें।
उद्योगों/व्यवसायिक क्षेत्रों में जल बचत के टिप्स
1. औद्योगिक प्रयोग में लाए गए जल का शोधन करके उसका पुनः उपयोग करें।
2. मोटर गैराज में गाड़ियों की धुलाई से निकले जल की सफाई करके पुनः प्रयोग में लाएं।
3. वाटर पार्क तथा होटल में प्रयुक्त होने वाले जल का उपचार करके बार-बार प्रयोग में लाएं।
4. होटल, निजी अस्पताल, नर्सिंग होम व उद्योग आदि ‘वर्षा जल का संग्रहण’ कर टायलेट व गार्डन में उस पानी का प्रयोग करें।
ग्रामीण क्षेत्रों के लिए वर्षा जल संचयन की उपयुक्त तकनीकें
मैदानी क्षेत्र | पठारी क्षेत्र |
1. तालाब/जलाशय | 1. जलाशयों/तालाबों का जीर्णोद्धार |
- नए तालाबों का निर्माण | 2. परकोलेशन टैंक |
- पुराने तालाबों का निर्माण | 3. चेक डेम्स |
2. गली/नाला प्लगिंग | 4. गोबियन स्ट्रक्चर्स |
3. रिचार्ज कूप | 5. सीमेंट प्लग्स/गली प्लग्स |
4. फालतू जल हेतु रिचार्ज पिच | 6. सब-सरफेस डाइक्स/कंटूर बंध |
नीतिगत निर्णय
1. शासनादेश दिनांक 25 अप्रैल, 2006 द्वारा शहरी क्षेत्रों हेतु पूर्व में लागू 200 वर्ग मी. अथवा अधिक क्षेत्रफल के भूखंडों पर रूफ टाप रेनवाटर हार्वेस्टिंग पद्धति स्थापित करने की व्यवस्था को संशोधित कर अब 300 वर्ग मी. अथवा अधिक क्षेत्रफल के भूखंडों हेतु अनिवार्य किया गया है। ग्रुप हाउसिंग स्कीप के अंतर्गत 200 वर्ग मी. से कम क्षेत्रफल के सरकारी व निजी भूखंडों तथा प्रस्तावित सभी योजनाओं (शासकीय व निजी क्षेत्र) के लेआउट प्लान में ‘सामूहिक भूजल रिचार्जिंग’ की व्यवस्था अनिवार्य की गई है।
2. तालाबों/जलाशयों की गहराई अधिकतम 3 मीटर से अधिक नहीं होगी।
3. प्रदूषित जल की संभावना वाले क्षेत्र में तालाबों/जलाशय में रिचार्ज शाफ्ट नहीं बनेगा।
4. तालाबों को अवैध कब्जों व अतिक्रमण से मुक्त कराने के निर्देश।
5. जुलाई 2006 से कक्षा 6 से 8 के पाठ्यक्रम में ‘वर्षा जल संचयन’ का विषय सम्मिलित।
6. सरकारी/अर्द्ध सरकारी भवनों में रिचार्जिंग अनिवार्य।
जानिए पानी की गुणवत्ता
1. यदि पानी में कीटाणु हो तो उसे 100 से. ग्रे. पर उबाल लें तथा इसके ठंडे हो जाने के बाद इसे छान-कर पीने में प्रयोग करें।
2. पी. एच.- पानी की अम्लीयता या क्षारीयता की माप करने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली इकाई है। शुद्ध पानी की पी.एच. गुणता 7 होती है, जबकि पी.एच. गुणता अम्लीयता और क्षारीय पानी में क्रमशः 0-7 और 7-14 के बीच रहती है।
3. आयरन - पानी लोहे (आयरन) की अधिकतम अनुमन्य सीमा 1 मिग्रा/लीटर है। इसलिए उपयोग में लाए जाने वाले पानी में लोहे की जांच करना आवश्यक हो जाता है।
4. टी.डी.एस.- पेयजल के स्वाद पर टी.डी.एस. का विशेष प्रभाव रहता है। 600 मि.ग्रा./लीटर के कम टी.डी.एस. सामान्यतः अच्छा माना जाता है। किंतु 1200 मिग्रा./ली. से अधिक उपयुक्त नहीं रहता है।
5. नाइट्रेट- 100 कि.ग्रा./ लीटर से अधिक मात्रा होने पर बच्चों को ब्लू बेबी रोग हो सकता।
भूगर्भ जल रिचार्ज के लाभ
1. भूजल स्तर गिरावट की वार्षिक दर को कम किया जा सकता है।
2. भूगर्भ जल उपलब्धता एवं पेयजल आपूर्ति की मांग के अंतर को कम किया जा सकता है। दबावग्रस्त ‘एक्यूफर्स’ (भूगर्भीय जल स्ट्रेटा) को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।
3. भूजल गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
4. सड़कों पर जल प्लावन की समस्या से निजात मिल सकेगा।
5. 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की छत से प्रतिवर्ष 55,000 से 80,000 लीटर पानी संचित हो सकता है। यह मात्रा वर्षा जल की उपलब्धता पर निर्भर करेगी।
6. वृक्षों को पर्याप्त जल की आपूर्ति स्वतः संभव हो सकेगी।
कुछ सावधानियाँ
1. केवल छतों पर गिरने वाले वर्षा जल को ही सीधे एक्यूफर में रिचार्ज कराया जाए।
2. यथासंभव रिचार्ज पिट/ट्रैंच विधियों को ही प्रोत्साहित किया जाए।
3. रिचार्ज परियोजना में यह ध्यान अवश्य रखा जाए कि किसी तरह के प्रदूषित तत्व भूगर्भ जल में न पहुंचे।
4. छतों को साफ रखा जाए तथा किसी प्रकार के रसायन, कीटनाशक न रखा जाए।
5. जल प्लावन से प्रभावित क्षेत्रों/उथले जल स्तर वाले क्षेत्रों में रिचार्ज विधा न अपनाई जाए।
आओ मिलकर दृढ़ संकल्प लें, सब जन इस क्षण।
बूंद-बूंद से करके होगा, भूजल स्रोतों का संरक्षण।।
संपर्क
कार्यालय : अधिशाषी अभियंता,
खंड - चित्रकूट धाम (बाँदा)
वेबसाइट : www.gwd.up.nic.in
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