जल आंदोलन : समय बड़ी बचत का

जल आंदोलन : समय बड़ी बचत का। PC-पेन धरातल
जल आंदोलन : समय बड़ी बचत का। PC-पेन धरातल

गाँव, रेगिस्तान और पानी। यही हमारी सांसे हैं और यही हमारी आस भी  और यही कहीं हमारी पारम्परिक जल संरक्षण तकनीक की सम्पदा। रेगिस्तान में जहाँ सूरज की रजत किरणें रेत की चादर पर दरिया होने का छलावा करती हैं, वहीं लाखों मिन्नतों के बाद बादल सालभर में 10-20 सेंटीमीटर भी बरस जाएँ तो धरती के हलक में पानी की एक बूँद भी अमृत लगती है। राजस्थान के रेगिस्तान का सूखे और पलायन की त्रासदी ने कभी पीछा नहीं छोड़ा, मगर यहाँ के फौलादी हिम्मत वाले लोगों ने हार भी नहीं मानी। यहीं बुआई की, यहीं जोता और यहीं अपनी सोच और बसावट के ऐसे निशान छोड़े जिसका लोहा आज की दुनिया भी मानती है।
 
पश्चिमी इलाके में धोरों की खूबसूरती और पुरखों की तैयार जल संरचनाओं के जीवित अवशेषों को देखने हर साल लाखों देशी-विदेशी सैलानी यहाँ आते हैं और यहाँ के माहौल में बसी मुहब्बत से तर-बतर होकर लौटते हैं। इतिहास बताता है कि जैसलमेर के करधनी इलाके में जिला पाली से आकर बसे मेहनतकश लोगों ने 84 गाँवों को आबाद किया था। रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी उन्होंने और वहीं सिंचाई के लिए खड़ीन तैयार किए। खड़ीन यानी पानी की आवक का क्रम तय करने का नायाब तरीका, जिससे जमीन में भरपूर नमी रहती है और सामूहिक खेती भी होती है। यानी पानी सिर्फ खेतों को सहेजने का ही नहीं, समुदाय को बांधे रखने का भी माध्यम था। इसे तैयार करने वाली इस स्वाभिमानी कौम ने उस इलाके से तब अपना ठिकाना ही उठा लिया जब उनकी बहू-बेटियों पर हुक्मरानों की नीयत खराब होने लगी। ये वे अध्याय हैं, जो समझाते हैं कि राजाओं के सेवक और रक्षक साबित न हो पाने की कमजोरी ने किस तरह हमारे यहाँ की अद्भुत जल और पर्यावरण गाथाओं का दुखद अंत किया।

आज भूजल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। स्थिति यह है कि 10 साल पहले जहाँ 30 फीट पर पानी मिलता था, आज 100 फीट पर भी नहीं मिल रहा है। इसका समाधान है वर्षा जल को संचित करने में। यह काम भारत में होता था। बाद में इसमें शिथिलता आई, जिसका दुष्परिणाम सामने है। आज एक बार फिर जल संरक्षण के पुराने और पारम्परिक तरीकों को अपनाना समय की आवश्यकता है।

आज रेगिस्तान के वासियों को खारे पानी के साथ नहरों का मीठा पानी भी नसीब है तो यह आधुनिक दौर की अभियांत्रिकी की बदौलत। मगर आज भी दूर-दराज के गाँव-ढाणियों में खड़ीन, बेरियाँ, जोहड़, बावड़ी टांके यानी मानव निर्मित पारम्परिक जल-संरचनाएँ ही हैं, जो जमीन को नम रखने का अपना धर्म नहीं भूलती, साथ ही फसलों और पशुओं के रख वाले बनकर जीवन की गति बनाए रखने में आज भी खरी हैं। इनमें से जिन-जिनको समुदायों ने सहेज लिया वे फिर भी आज खोजने से मिल जाएगी, मगर जिन्हें न समुदाय ने बचाया, न ही शासन ने जिनका मोल समझा, वे न जाने कितने आज मिट्टी में दब चुके हैं और ऐसे इलाकों में पानी पाताल यानी डार्क जोन में है। पंचायती राज की अवधारणा में ग्राम स्वराज समाहित था और ग्राम स्वराज में समुदाय की भागीदारी। हर गाँव का अपना अस्तित्व, अपनी पहचान, अपनी अर्थव्यवस्था, अपने उद्यम, और अपने पर निर्भरता। प्राकृतिक संसाधनों को सम्भाल कर रखना इसी का हिस्सा था, जिस समुदाय ने समझा, संसाधनों को इसे साझा किया वे प्रकृति से नाता जोड़े रहे और जिन्होंने कद्र नहीं की, उन्हें अब नए सिरे से सीखना ही होगा।
 
किसी समय सरस्वती नदी जैसलमेर से होकर गुजरती थी और अरब सागर से एकाकर होती थी। नदी सूखने पर यहाँ रेगिस्तान पसर गया और फिर जब इंदिरा गाँधी नहर की सौगात मिली तो राहत आई। हालांकि नहर ने भी ऐसा कहर ढाया है कि खारे से छुटकारे की खैर मनाते हुए मीठे पानी में घुली बीमारियों को आँख मूँदकर पी जाने के सिवाय कोई चारा नहीं है। इस राज्य के सीढ़ियों वाले कुँए यानी स्टेपवैल और घरों, मन्दिरों, सामुदायिक स्थानों पर बने टांकों और ताल-तलैया की खूबी यह भी है कि इनका रख-रखाव समुदाय साझी जिम्मेदारी समझकर करता रहा है। उनकी इस पानी पर निर्भरता है इसलिए भी उनका इन संरचनाओं से लगाव भी है। इस तरह का अपनत्व बांध, नहर या पाइपलाइनों से कभी नहीं जुड़ पाता। इन बड़ी योजनाओं की देखभाल शासन-प्रशासन करता है और उनका जनता से नाता, दाता और याचक का बनकर खत्म हो जाता है। अगर नहरों में मृत पशु बहते हैं, गंदे नाले खुलते हैं और रासायनिक कचरा घुलता है तो कौन-सा समुदाय बोलेगा, कौन सुनवाई करेगा ?
 
अमरीकी अंतरिक्ष संस्था नासा ने अलवर के आभानेरी की बेहद खूबसूरत चाँद बावड़ी को अपने चहेते स्टारटॉक प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाया है, मगर राजस्थान के कई सूखे और रेगिस्तानी इलाकों में जल⪅न की ऐसी अनगिनत मिसालें हैं जिन तक भले ही नासा की दूरबीन न पहुँचे, नीति बनाने और लागू करने वालों की निगाह तो पहुँचनी ही चाहिए। संयुक्त राष्ट्र ने नौ साल पहले ही पीने के साफ पानी को बेहद जरूरी मानव अधिकार मान लिया था। अब नीति आयोग भी बता रहा है कि आज करीब आधा भारत गम्भीर जल संकट की चपेट में है। यानी करीब 60 करोड़ लोगों पर मार है और हर साल साफ पानी तक पहुँच नहीं होने से करीब 2,00,000 लोग मौत के मुँह में समा जाते हैं। नीति आयोग का जल प्रबन्धन सूचकांक-2018 इशारा करता है कि 2020 तक भारत के 21 शहरों का गर्भ पूरा सूख जाएगा। इससे लगभग 10 करोड़ लोगों पर सीधा असर पड़ेगा।
 
नीतियों के आईने से मुद्दे की तह में झांका जाए तो इस मंथन से पहली बार उपजे जल-शक्ति मंत्रालय ने लक्ष्य रखा है कि 2024 तक हर घर तक साफ जल पहुँचेगा और जल संसाधनों का प्रबन्धन किया जाएगा। केन्द्र सरकार ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है और हाल के केन्द्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जल शक्ति अभियान में 256 जिलों के 1,539 खंडों में जल संरक्षण, बारिश के  पानी के संचयन, परम्परागत जल निकायों के नवीनीकरण, पानी के दोबारा इस्तेमाल और पेयजल की सफाई पर ध्यान रहेगा। जल शक्ति मंत्रालय का जिम्मा भी ऐसे मंत्री के हाथ है, जो मारवाड़ की ही कोख में पले-बढ़े हैं और पानी का मोल अच्छी तरह जानते हैं इसलिए उम्मीदें और भी ज्यादा हैं। समानुभूति (एम्पैथी) का गुण कुशल नेतृत्व का लक्षण गिना जाने लगा है इसलिए पानी की कमी से जूझती जनता के कष्टों को जो बेहतर महसूस कर पाएगा, वही इसके संरक्षण और पहुँच से जुड़े परम्परागत ज्ञान, विज्ञान और आधुनिक तकनीक को धरातल से जोड़ पाएगा।
 
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में लोगों की आदतें बदलने की बात भी कही है तो फिर से गाँवों की जीवनशैली और संसाधनों के समझदारी से उपयोग को अपनाना ही होगा। पारम्परिक जानकारी और तकनीक को पढ़ना और रटना ही नहीं होगा, उसके जीते-जागते अंश तैयार करने होंगे। जन-जागरण के लिए उन कहानियों को कहना होगा जो सच्ची हैं और जो दुनियाभर के लिए बनाए गए टिकाऊ विकास के लक्ष्यों की पगडंडियाँ हैं। खाट पर बैठकर नहाना और उस चैथाई बाल्टी पानी को खाट के नीचे रखे तसले में बचाकर उसे फिर से उपयोग लाना, रामझारे से ओक लगाकर पानी पीना, कम पानी वाली फसलें बोना, पत्तल-दोने-सकोरों में बड़ा खाना यानी जीमण हो जाना, टांके में इकट्ठा बरसाती पानी की पूजा स्थल की तरह साफ रखना या मवेशियों के चारे और पानी के लिए खेती बनवाना-ये सब रोजमर्रा के जीवन और गाँव-नगर नियोजन का हिस्सा थे।
 
अब जब देश में जल युद्ध से पहले जल आन्दोलन छिड़ गया है तो हालात को बेकाबू होने से रोकने का एक रास्ता तो यही है कि देशवासी अपनी आदतों में सुधार लाएँ और नीतियाँ बनाने वाले जल-विरासत पर गौर करते हुए जन-जन को जोड़ने पर काम करें। जल-स्वावलंबन के जरिए पिछली बार की राजस्थान सरकार ने जल-स्रोतों की सफाई और खुदाई का काम हाथ में लिया तो अबकी राज्य सरकार जल-कानून का खाका तैयार कर रही है जिसमें पानी की बर्बादी पर जुर्माना होगा। मगर पहला कदम तो जल-जवाबदेही का ही होगा, एक-एक बूंद की बचत और परवाह साथ-साथ।

TAGS

water information, water wikipedia, essay on water, importance of water, water in hindi, uses of water, essay on grey water, grey water in hindi, water crisis in india, water crisis in india and its solution, water scarcity essay, effects of water scarcity, water crisis article, water scarcity solutions, what are the main causes of water scarcity, water crisis in india essay, water crisis in india facts, water scarcity in india,what are the main causes of water scarcity, water scarcity in india in hindi, water scarcity pdf, water scarcity pdf in hindi, what is water pollution, water pollution wikipedia, water pollution wikipedia in hindi, water pollution project, water pollution essay, causes of water pollution, water pollution effects, types of water pollution, water pollution causes and effects, water pollution introduction, sources of water pollution, what is underground water in hindi, what is ground water, ground water wikipedia, groundwater in english, what is groundwater, what is underground water in english, groundwater in hindi , water table, surface water, PM modi mann ki baat, water crisis on pm modi mann ki baat, mann ki baat on water conservation, Prime minister naredenra modi, jal shakti mantralaya, what is jal shakti mantralaya, works of jal shakti mantralaya, rivers of india map, rivers name, importance of rivers, types of rivers, rivers of india in english, rivers in hindi, how many rivers are there in india, draught meaning, drought meaning in hindi, water crisis in chennai 2019, water crisis in chennai the hindu, water crisis in chennai in hindi, water crisis in chennai quora, water crisis in chennai upsc, water crisis in chennai may 2019, water crisis in chennai memes, water crisis in chennai it companies, water crisis in chennai hotels, water crisis in chennai news, NITI aayog report on water crisis, UN report on water crisis, water crisis in rajasthan, drinking water crisis in rajasthan, water crisis in rajasthan wikipedia, water crisis in rajasthan essay, water crisis in rajasthan hindi news, water crisis in rajasthan news, water crisis area in rajasthan, jal andolan.

Path Alias

/articles/jala-andaolana-samaya-badai-bacata-kaa

Post By: Shivendra
×