सारांश
प्रस्तुत शोध पत्र में राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले की बामनवास पंचायत समिति में संचालित जल संग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम एवं उसके परिणामों का सांख्यिकीय विश्लेषण किया गया हैं। इसके अतिरिक्त क्षेत्र में पहले से उपलब्ध जल संसाधनों, उनके प्रदूषित होने एवं जलाभाव के कारणों, प्रभावों एवं जल प्रबन्धन के तरीकों का भी उल्लेख किया गया हैं।
मुख्य बिन्दुः जल संसाधन, जल प्रबन्धन, जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम, भू-जल दोहन ।
प्रस्तावना
उत्तरी एवं मध्य भारत को गंगा-ब्रह्मपुत्र की देन कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन नदियों के जल से ही यहाँ की भूमि उपजाऊ हुई जिसके फलस्वरूप यहाँ सभ्यताओं का विकास हुआ, परन्तु कुछ ही नदियों वर्षभर प्रवाहित होती है। ऐसे में अन्य क्षेत्रों के निवासियों ने भूमिगत जल का उपयोग करना प्रारम्भ कर दिया। धीरे-धीरे भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन होने और वर्षा जल का उचित प्रबंधन नहीं होने के कारण जलाभाव की समस्या उत्पन्न होने लगी । वर्तमान समय में जल संसाधनों का प्रबन्धन व उसका क्षेत्र के विकास में योगदान एक नवीन व ज्वलन्त विषय के रूप में उभर कर सामने आ रहा है, क्योंकि जल जीवन का आधार है और इसके बिना जीवन सम्भव नहीं है। यह मानव की ही नहीं अपितु प्राणीमात्र के जीवन की आवश्यकता है। जल पृथ्वी पर पाया जाने वाला एक अमूल्य संसाधन है, जो प्रकृति निर्माण में सहभागी होकर सम्पूर्ण जीवमण्डल को आधार प्रदान करता है। सभ्यताओं के विकास और विनाश में जल का विशेष योगदान रहा है।
वर्तमान में तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या हेतु जल की अधिक आवश्यकता है, अतः यदि अभी भी जल संरक्षण के प्रयास नहीं किये गये तो निकट भविष्य में मानव को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होगें। अतः इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार ने जलग्रहण विकास कार्यक्रम की शुरूआत की, जिसका उद्देश्य उपलब्ध जल संसाधन का संरक्षण करना एवं उसकी सततता बनाये रखना है।
शोध परिकल्पना
- बढ़ती जनसंख्या हेतु जल की अधिक आवश्यकता होगी।
- जल के अविवेकपूर्ण दोहन से जल संकट उत्पन्न होगा।
- उद्योगों एवं नगरों के विस्तार से जल की माँग में वृद्धि होगी।
- सिंचित क्षेत्र में वृद्धि के साथ-साथ जल की आवश्यकता में वृद्धि होगी।
- प्रदूषण बढ़ने से जल दूषित होगा।
- वनक्षेत्रों में ह्रास से वर्षा की मात्रा प्रभावित होगी।
- जल संग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम, जल के प्रबन्धन में सहायक होगा।
उद्देश्य
- बामनवास पंचायत समिति क्षेत्र में स्थित जल संसाधनों का विश्लेषण करना।
- बामनवास पंचायत समिति में संचालित जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम में मेलों व माइक्रो जलग्रहण क्षेत्रों का मानचित्रिय विश्लेषण करना।
- विभिन्न योजनाओं के साथ संचालित जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम की स्थिति को स्पष्ट करना।
- टिकाऊ विकास की संकल्पना को जलग्रहण विकास कार्यक्रम के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट करना।
- बामनवास पंचायत समिति क्षेत्र के सतत् विकास के पक्ष को जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम के आलोक में स्पष्ट करना।
- जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम के द्वारा क्षेत्र में हुए विकास का सांख्यिकीय विश्लेषण करना।
- जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम के द्वारा होने प्रभावों का विभिन्न आधारों पर मूल्याकंन करना।
शोध विधि
प्रस्तुत शोध पत्र में जल संसाधन प्रबंधन की समस्या का अध्ययन करने के लिए दो प्रकार के आंकड़ों को चुना गया हैं।
- प्राथमिक आंकडे प्रश्नावली द्वारा सर्वे एवं साक्षात्कार के माध्यम से एकत्रित किये गये हैं।
- द्वितीयक आंकडे सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों से प्राप्त किये गये हैं।
अध्ययन क्षेत्र
प्रस्तुत शोध कार्य के लिए सवाईमाधोपुर जिले की बामनवास पंचायत समिति का चयन किया गया हैं। बामनवास सवाई माधोपुर जिले के उत्तरी भाग में स्थित हैं। सवाई माधोपुर जिला राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में स्थित है जिसका कुल क्षेत्रफल 5042.99 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 4967.70 वर्ग किलोमीटर ग्रामीण क्षेत्र व 75.29 वर्ग किलोमीटर शहरी क्षेत्र में आता है। अरावली पर्वतमालाओं से आच्छादित एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपुर यह जिला 25045 से 260415 उत्तरी अक्षांश तथा 750592 से 7700 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। सवाई माधोपुर के उत्तर पूर्व में करौली जिला व दक्षिण में कोटा व बून्दी जिले हैं। जबकि दक्षिण पूर्व में चम्बल नदी द्वारा मुरैना जिला (म.प्र.) से सीमांकित है। उत्तर में दौसा व जयपुर जिले व पश्चिम में टोक जिले से घिरा हुआ है। इस जिले का दक्षिण-पूर्वी भाग विध्यन पठार से घिरा हुआ है। इस जिले की समुद्र तट से ऊँचाई 400 मीटर से 600 मीटर के मध्य है। जिले की सबसे ऊँची चोटी बामनवास तहसील में है जिसकी ऊंचाई 827 मीटर है। जिले में बहने वाली मुख्य नदियों चम्बल, बनास, मोरेल, जीवद, गम्भीर व ढील नदियाँ है। चम्बल नदी जिले को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले से अलग करती है। जिले में पश्चिम रेल्वे का दिल्ली-मुम्बई मार्ग गंगापुर व सवाई माधोपुर तहसीलों से एवं जयपुर - मुम्बई मार्ग सवाई माधोपुर तथा चौथ का बरवाड़ा तहसील से गुजरता है।
बामनवास पंचायत समिति में जलाभाव की समस्या
- बामनवास पंचायत समिति में भी सम्पूर्ण भारत की तरह मानसूनी वर्षा होती हैं और प्राप्त वर्षा जल भी प्रबन्धन के अभाव में व्यर्थ बह जाता हैं। अतः वर्षा कम होने और भूमिगत जल के अधिक दोहन से क्षेत्र में जल की विकट समस्या है।
- पंचायत समिति में उपस्थित बांध भी वर्षा पर निर्भर है। इसके अतिरिक्त कुओ नलकूपों एवं अन्य सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर भी जल के दुरूपयोग के कारण जल का अभाव रहता है।
जल स्त्रोत
नदी
सवाईमाधोपुर जिले में चार नदियां प्रवाहित होती हैं जिनमें चम्बल, बनास, मोरेल व जीवद प्रमुख है ये बॉली पंचायत समिति के अधिकतर क्षेत्रों को सिंचाई व जलापूर्ति प्रदान करती है।
बांध
बामनवास पंचायत समिति में प्रमुख रूप से निम्नलिखित बांध है- नाग तलाई बांध गन्डाल बांध, नया तालाब लिवाली बांध और आकोदिया बांध।
कुएं
वर्षा की मात्रा में कमी की वजह से भूमिगत जल स्तर गिर गया जिससे कुओं के जल स्तर में गिरावट आई और अधिकांश कुएं सूख गये सन 2015-16 में कुओं की संख्या 4343 थी लेकिन पिछले 5 वर्षों में कुऐं की मात्रा में गिरावट दर्ज की गयी।
तालिका 1: बामनवास पंचायत समिति में कुओं की संख्या
2008-09 | 2009-10 | 2010-11 | 2011-12 | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 |
6013 | 6027 | 6009 | 6031 | 6042 | 6053 | 7062 | 7064 |
स्त्रोत: पंचायत समिति बामनवास
ट्यूबवेल व पम्पिंग सेट जल संसाधनों व भूमिगत स्त्रोतों में ट्यूबवेल व पम्पिंग सेट भी अपनी एक विशिष्ट पहचान रखते है इनके द्वारा बहुत अधिक दूरी के क्षेत्र में भी सिंचाई की जा सकती है इनके द्वारा पानी का उपयोग उचित प्रकार से किया जा सकता है। सवाई माधोपुर में पेयजल सप्लाई ट्यूबवेलों के द्वारा की जाती है। सवाई माधोपुर ट्यूबवेल व पम्पिंग सेटों की स्थिति को तालिका के माध्यम से स्पष्ट किया गया है।
तालिका 2 बामनवास पंचायत समिति में ट्यूबवेल व पम्पिंग सेटो संख्या (2010-16)
2010-11 | 2011-12 | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 |
6028 | 6032 | 6040 | 6041 | 6062 | 6086 |
स्त्रोत- पंचायत समिति बामनवास
तालिका से स्पष्ट होता है कि कुओं की संख्या में 2015-16 तो वृद्धि हुई लेकिन जल स्तर में गिरावट की वजह से उन स्थान ट्यूबवेल व पम्प सेटों ने ले लिया जिससे कुओं के द्वारा की जाने वाली सिंचाई में कमी आयी है।
तालिका 3 बामनवास पंचायत समिति में जल संसाधनों का वितरण (2016)
कुएँ | नलकूप | तालाब | नहरे | पम्पिंग सेट | ट्यूबवेल |
6062 | 50 | 260 | 1 | 6062 | 378 |
स्त्रोत- पंचायत समिति बामनवास
तालिका 4 :- बामनवास पंचायत समिति में सिंचित क्षेत्रफल (2015- 2016)
साधन के अनुसार सिंचित क्षेत्रफल | कुल सिंचित क्षेत्रफल | ||||
कुएँ | नलकूप | तालाब | नहरे | अन्य साधन | |
19783 | 5232 | 1729 | 3242 | 10579 | 40565 |
स्त्रोत- पंचायत समिति बामनवास
जलाभाव से उत्पन्न समस्याएँ
- पेयजल की समस्या
- पशुपालन एवं सिंचाई के लिए जल का अभाव
- सूखे की समस्या
- भू-जल का दोहन बढ़ना
समाधान के उपाय
जल संसाधन संरक्षण के उपायों को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता
जल की प्रदूषण से रक्षा-
पृथ्वी पर उपलब्ध जल संसाधन प्रदूषण मुक्त रहे तो दुनिया की वर्तमान जनसंख्या की जलापूर्ती के लिए पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध है। लेकिन जल के प्रदूषित होने के कारण जल का एक बड़ा भाग मानव जगत के उपयोग में नहीं आ पा रहा है।
भूमि व जल का विवेकपूर्ण उपयोग -
जल आपूर्ति का 25 प्रतिशत आपूर्तिकर्ता भूमिगत जल है। विश्व स्तर पर कुल शेष जल की आपूर्ति सतही जल स्त्रोतों से होती है। भूजल की उपलब्ध मात्रा के अनुपात में इसकी मांग निरंतर बढती जा रही है। भूजल का एक बार दोहन होने के बाद उन्हें आपूर्ति लम्बे समय में हो पाती है। इस कारण जल का विवेकपूर्ण उपयोग करके ही जल की मात्रा को अनुपातिक रूप में बचाये रखा जा सकता है।
जल का पुनर्वितरण -
भू-सतह पर पाये जाने वाले जल - का वितरण सर्वत्र समान न होकर विषम रूप में है। किसी क्षेत्र में अधिक वर्षा होती है तो कई क्षेत्र शुष्क बने रहते हैं। अतः कम आवश्यकता वाले क्षेत्रों से अधिक आवश्यकता वाले क्षेत्रों को जलापूर्ति करके जल संकट को काफी मात्रा में कम किया जा सकता है।
जनसंख्या नियंत्रण -
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि तथा जल ससाधन में प्रादेशिक रुप में मात्रात्मक व गुणात्मक कमी आने से जल संकट ने उग्र रूप ले लिया है। निरंतर जल की मांग बढ़ती जा रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ ही कृषि व उद्योगों का विस्तार तथा नगरीकरण भी बढ़ा है। जिससे स्वच्छ जल की मांग भी बढ़ती जा रही है।
पारम्परिक जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करना-
पारम्परिक जल संग्रह स्थल जनसंख्या के एक बड़े भाग को भारत में जलापूर्ति करने में सक्षम रहे है। लेकिन समय के साथ इनका अवनमन हुआ है।
सिंचाई की आधुनिक विधियों का उपयोग -
विश्व स्तर पर वार्षिक जल के उपयोग में से 69 प्रतिशत कृषि कार्यों में जल का उपयोग होता है। कृषि के क्षेत्र में यह जलापूर्ति सतही जल स्रोतो व भूमिगत जल से होती है। सिंचाई की उन्नत विधियों को अपनाकर जल के एक बड़े भाग को संरक्षित किया जा सकता है।
वनस्पतिक आवरण में वृद्धि-
जलीय परिसंचरण के अन्तर्गत प्रतिवर्ष भू सतह पर वर्षा के रूप में विभिन्न मात्रा में जल प्राप्त होता है यह सतही जल स्त्रोतों द्वारा बहता हुआ सागरों तक पहुंचता है। इसका कुछ भाग तालाबों व झील आदि में संग्रहित होता है, परन्तु वनस्पतिक आवरण की कम मात्रा के कारण भूमिगत नहीं हो पाता। अतः धरातल पर वनों को अधिक मात्रा में लगाया जाना चाहिए जिससे भूजल के स्तर में वृद्धि हो सके।
फसल प्रतिरूप में परिवर्तन -
कृषि जलवायु दशाओं के अनुसार फसल बोने पर अतिरिक्त जल की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन वर्तमान समय में अधिक लाभ प्राप्ति के प्रयास में फसल प्रतिरुप में परिवर्तन देखा गया है और जल की कम उपलब्धता होने पर भूजल का दोहन किया गया है। फलस्वरुप जल संकट की स्थिति सामने आ गयी है अतः जल की कम उपलब्धता वाले क्षेत्रों में कृषि वानिकी तथा बागाती कृषि को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
बाढ़ प्रबन्धन -
भारत में बाढ़ के रुप में स्वच्छ जल काअधिकांश भाग उपयोग में न आकर विनाशक बन जाता है। अतः तटबंधों का निर्माण करके बाढ़ के नुकसान से बचाव के साथ-साथ जल के एक बड़े भाग को संरक्षित किया जा सकता है।
बामनवास पंचायत समिति में जल संग्रहण विकास कार्यक्रम
जल संग्रहण विकास कार्यक्रम की कार्य प्रणाली के अन्तर्गत सर्वप्रथम विकास का सबसे छोटी इकाई गांव से प्रारम्भ किया जाता है। इस कार्यक्रम के प्रमुख तत्वों में सामुदायिक संगठन एवं प्रशिक्षण जनसहभागिता कृषि योग्य भूमि पर संरक्षण एवं उत्पादन पद्धतियाँ एवं अकृषि योग्य भूमि पर संरक्षण एवं उत्पादन पद्धतियाँ, नाला उपचार, पशुधन विकास नर्सरी विकास आय वृद्धि हेतु अन्य घरेलू पद्धतियों को रखा जाता है जन सहभागिता एवं तकनीकी ज्ञान जल ग्रहण विकास के दो प्रमुख स्तम्भ है जिनमें मध्य समजस्य होना आवश्यक है।
(क) जल ग्रहण क्षेत्र का अर्थ एवं परिभाषा
अर्थ- जल ग्रहण क्षेत्र यह भौगोलिक इकाई होता है जिसमें गिरने वाला जल एक नदी या एक-दूसरे से जुडी हुई कई छोटी नदियों के माध्यम से एकत्रित होकर एक स्थान से होकर बहता है। इस स्थान को निर्गम या जल निकास बिंदू कहते हैं।
(ख) उद्देश्य
देश में वर्षा जल को बहने से रोकने इसको इकट्ठा करने मिट्टी और पानी को यथा स्थिति पर संरक्षण करने के लिए वर्षा से जलागम पद्धति को परंपरागत रूप से प्रयोग में लाया जा रहा है। इसका सामान्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों को लम्बे समय के विकास के लिए भूमि और जल संसाधन का प्रबन्धन करना है।
(ग) बामनवास पंचायत समिति में मेको व माईको जल ग्रहण क्षेत्र
बामनवास पंचायत समिति में चलाये जा रहे जल ग्रहण विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 38,231 हैक्टेयर क्षेत्र आता है। इस पंचायत समिति में 10 मेलो व 59 माइक्रो जल ग्रहण क्षेत्र है इस जल ग्रहण क्षेत्र में से 14,051 हैक्टेयर क्षेत्र उपचारित किया जा चुका है। 8.190 हैक्टेयर क्षेत्र में कार्यक्रम चल रहा है। 15,990 हैक्टेयर क्षेत्र प्रस्तावित है। जल ग्रहण क्षेत्र के भूमि उपयोग को निम्न तालिका व मानचित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया जा रहा है।
तालिका 5 बामनवास पंचायत समिति में जल ग्रहण क्षेत्र के भूमि उपयोग
(घ) कार्यक्रम का योगदान
जल ग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम का प्रमुख ध्येय किसी भी क्षेत्र के स्थाई विकास की अवधारणा पर आधारित है। इस कार्यक्रम की गतिविधियों में प्राकृतिक संसाधनों का सुनियोजित व दीर्घकालीन उपयोग सुनिश्चित होता है और विभिन्न जल संग्रहण ढांचों का निर्माण प्राकृतिक रूप से पर्यावरणीय सुरक्षा व पारिस्थितिकी विकास को ध्यान में रख कर करने के प्रयास किये जाते है और उसी प्रकार विकास का प्रमुख ध्येय भी प्रकृति के संसाधनों का विवेकपूर्ण दीर्घकालिक उपयोग पर आधारित है। इस कार्यक्रम से निम्नलिखित क्षेत्रों में सार्थक प्रभाव देखा गया-
निष्कर्ष
सवाई माधोपुर जिले में जल संसाधन प्रबन्धन के अभाव से व्याप्त समस्या के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वास्तव में इस जिले के लोग जल समस्या के कारण ही अन्य समस्याओं जैसे बेरोजगारी, गरीबी व प्रदूषण आदि से ग्रस्त हैं। क्योंकि जल ही जीवन का आधार है और आधार के बिना जीवन असम्भव है। अतः इस समस्या के आगे आकर लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास करना चाहिए जल समस्या के कारणों, प्रभावों व उपायों से जनता को अवगत कराना चाहिए। सरकारों को भी इस दिशा में नयी एवं उचित योजनाएँ बनाकर उनका शीघ्रातिशीघ्र क्रियान्वयन करना चाहिए। नदी से नदी जोड़ने जैसी योजनाओं को केन्द्र सरकार द्वारा शीघ्र क्रियान्वित कर लोगों तक इसका लाभ पहुँचाना चाहिए।
जलाभाव की समस्या मुख्य रूप से वर्षा की कमी के कारण ही उत्पन्न होती है, अतः हमें पर्यावरण सन्तुलन पर ध्यान देना होगा, इसके लिए वृक्षों की कटाई को नियंत्रित कर वन संरक्षण व वन वृद्धि पर जोर देना होगा। यह हमारी गलत धारणा है कि असाक्षरता के कारण लोग वृक्ष कटाई के नुकसान से अनभिज्ञ है और अशिक्षित लोग ही वृक्ष काटते है। जबकि वास्तविकता तो यह है कि अशिक्षित लोग परम्परावादी एवं रूढिवादी तो होते है, लेकिन वे अपनी संस्कृति के परम पुजारी भी है। वे वृक्षों को काटना पाप समझते है, इसलिए वे तो वृक्षों को काटने की बजाय उनकी पूजा करते है। खेजडली काण्ड में अपने देवता स्वरूप खेजड़ी के वृक्षों की कटाई के विरोध में बलिदान देने वाले कोई और नहीं हमारे अशिक्षित ग्रामीण लोग ही थे। सरकार को उचित योजनाएँ बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए। जनता की मुख्य आवश्यकता को ध्यान में रखकर प्राथमिकता के अनुसार योजनाएँ बनाकर उनको क्रियान्वित करना चाहिए।
सन्दर्भ ग्रंथ सूची
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- Jat BC. Water Resource Management, Pointer Publishers, Jaipur (Rajasthan)
- Mathur PC, Gurjar RK. Water and Land Management in arid ecology, Rawat publication, Jaipur (Rajasthan) 1991.
- पंचायत समिति बामनवास 2008-2016
लेखक परिचय :- डॉ. सीमा चौहान एसोसिएट प्रोफेसर (भूगोल विभाग के एच.ओ.डी.) गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज कोटा, राजस्थान, भारत
डॉ. अजय विक्रम सिंह चंदेल (एसोसिएट प्रोफेसर (भूगोल) गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज कोटा, राजस्थान
स्रोत :- इंडियन स्टेट ऑफ फोरेस्ट रिपोर्ट: भारतीय वन संरक्षण
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