संसार के प्रत्येक प्राणी का जीवन आधार जल ही है। शायद ही ऐसा कोई प्राणी हो जिसे जल की आवश्यकता न हो। जल हमें समुद्र, नदियों, तालाबों, झीलों, वर्षा एवं भूजल के माध्यम से प्राप्त होता है। गर्म हवाओं के चलने से समुद्र, नदियों, झीलों, तालाबों का जल वाष्पित होकर ठंडे स्थानों की ओर चलता है जहाँ पर न्यून तापमान के कारण संघनित होकर वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरता है। जबकि पहाड़ों पर और भी कम तापमान होने के कारण जल बर्फ के रूप में जम जाता है जोकि गर्मी के दिनों में पिघलकर नदियों में चला जाता है।
मानव अपने स्वास्थ्य, सुविधा, दिखावा व विलासिता को दिखाने के लिये अमूल्य जल की बर्बादी करने से नहीं चूकता है। पानी का इस्तेमाल करते हुए हम पानी की बचत के बारे में जरा भी नहीं सोचते हैं। परिणामस्वरूप अधिकांश जगहों पर जल संकट की स्थिति पैदा हो चुकी है। यदि हम अपनी आदतों में थोड़ा-सा भी बदलाव कर लें तो पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है। बस आवश्यकता है दृढ़संकल्प करने की तथा उस पर गंभीरता से अमल करने की, क्योंकि जल है तो हमारा भविष्य है। इसलिए यदि हम पानी की बचत करते हैं तो यह भी जल संग्रह का ही एक रूप है। एक अध्ययन से पता चला है कि मानव यदि अपनी आदतों को बदल लें तो 80 प्रतिशत से भी अधिक पानी की बचत हो सकती है। यदि मानव तमाम नहीं कुछ ही आदत बदल लें तो भी 15 प्रतिशत जल की बचत संभव है। बूँद-बूँद की बचत से एक बड़ी बचत हो सकती है। इस प्रकार पानी की बचत ही जल संरक्षण है।
जल संरक्षण का अर्थ
जल संरक्षण का अर्थ पानी बर्बादी तथा प्रदूषण को रोकने से है। जल संरक्षण एक अनिवार्य आवश्यकता है क्योंकि वर्षाजल हर समय उपलब्ध नहीं रहता अतः पानी की कमी को पूरा करने के लिये पानी का संरक्षण आवश्यक है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में 350 मिलियन क्यूबिक मील पानी है। इसमें से 97 प्रतिशत भाग समुद्र से घिरा हुआ है। पृथ्वी पर जल तीन स्वरूपों में उपलब्ध होता है: 1. तरल जल - समुद्र, नदियाँ, झरने, तालाब, कुएँ आदि; 2. ठोस जल (बर्फ) - पहाड़ों तथा ध्रुवों पर जमी बर्फ एवं 3. वाष्प (भाप) - बादलों में भाप।
आवश्यकता
यदि हमारे देश में वर्षाजल के रूप में प्राप्त पानी का पर्याप्त संग्रहण व संरक्षण किया जाए, तो यहाँ जल संकट को समाप्त किया जा सकता है। हमारे देश की अधिकांश नदियों में पानी की मात्रा कम हो गई, इनमें कावेरी, कृष्णा, माही, पेन्नार, साबरमती, गोदावरी और तृप्ति आदि प्रमुख हैं। जबकि कोसी, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, सुवर्ण रेखा, वैतरणी, मेघना और महानदी में जलातिरेक की स्थिति है। ऐसे में सतही पानी का जहाँ ज्यादा भाग हो, उसे वहीं संरक्षित करना चाहिए क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान के अनुसार भारत में वर्ष 2050 तक अधिकांश नदियों में जलाभाव कीस्थिति उत्पन्न होने की पूरी सम्भावना है। भारत के 4500 बड़े बाँधों में 220 अरब घनमीटर जल के संरक्षण की क्षमता है। देश के 11 मिलियन ऐसे कुएँ हैं, जिनकी संरचना पानी के पुनर्भरण के अनुकूल है। यदि मानसून अच्छा रहता है तो इनमें 25-30 मिलियन पानी का पुनर्भरण हो सकता है।
इस प्रकार जल संरक्षण की आवश्यकता स्वयं सिद्ध हो जाती है क्योंकि जल ही संपूर्ण प्राणि जगत का आधार है तथापि जल संरक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है:
1. जल का समुचित वितरण एवं उपयोग सुनिश्चित करना; 2. शुद्ध जल की निरंतर हो रही कमी को पूरी करना; 3. भावी पीढ़ियों के लिये जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
बूँद-बूँद से बड़ी बचत
यद्यपि पानी की एक बूँद मात्रा देखने में बहुत कम लगती है। परंतु यदि इसे न रोका जाए तो बहुत पानी बरबाद हो जाता है। निम्नलिखित विवरण से इस बात को और भी बल मिलता है अतः पानी की एक भी बूँद बर्बाद नहीं होने देनी चाहिए।
1. एक टपकते नल से प्रति सेकेंड एक बूँद बर्बाद होने से एक माह में 760 लीटर पानी व्यर्थ में ही बह जाता है।
2. सीधे नल से नहाने पर 90 लीटर पानी खर्च होता है।
3. हाथ धोकर नल ठीक प्रकार से न बंद करने पर एक मिनट में 30 बूँद पानी तथा वर्ष में 46 हजार लीटर पानी व्यर्थ चला जाता है।
4. पाइप से बगीचे की सिंचाई पर पानी की भारी बर्बादी होती है।
5. प्रेशर से कार धोने, जल की धार से सब्जियाँ धोने में पानी बर्बाद होता है।
6. खेतों में नहर या पाइप से सिंचाई करने में अधिक पानी लगता है।
7. टाॅयलेट और यूरिनल में लोग काफी पानी बर्बाद करते हैं।
8. सार्वजनिक नलों से बहता हुआ पानी पर्याप्त मात्रा में बर्बाद होता है।
9. ड्रिप सिंचाई प्रणाली से कम पानी में अधिक सिंचाई हो जाती है। इससे लगभग आधा पानी बच जाता है।
10. छोटे गिलासों में पानी पीने से पानी की बचत होती है।
11. कम रिसाव वाले मटकों का उपयोग करने से जल की बचत होती है।
12. लाॅन, पौधों आदि में शाम को ही पानी दें।
13. पर्याप्त कपड़े होने पर ही वाशिंग मशीन का उपयोग करें।
14. सब्जियाँ किसी टब या बर्तन में धोएँ।
15. फ्लश टैंक में व्यर्थ पानी का उपयोग करें।
16. वाहनों को बाल्टी में पानी लेकर धोएँ।
17. शाॅवर के बजाए बाल्टी व मग से नहाएँ।
18. बर्फ के टुकड़ों को किसी पौधे या लाॅन में डाल दें।
19. शेव, ब्रुश, मुँह आदि धोते समय लगातार नल न चलाएँ।
20. मेहमानों को आधा गिलास पानी दें बाद में माँगने पर ही और दें।
इस प्रकार इन उपायों से जल की बचत हो सकती है। बस आवश्यकता है इन पर अमल करने की। यदि इन पर या अन्य तरीकों का उपयोग किया जाए तो जल की यही बचत संग्रहण होगी।
जल संग्रहण के उपाय
जल संग्रहण के लिये हर स्तर पर प्रयास की आवश्यकता है। यदि निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाए तो जल संरक्षण सुगम हो जाता है।
1. प्रत्येक गाँव/बस्ती में एक तालाब होना आवश्यक है जिसमें जल संग्रह हो सके तथा आवश्यकतानुसार उपयोग में लाया जा सके।
2. नदियों पर छोटे-छोटे बाँध व जलाशय बनाए जाएँ ताकि बाँध में पानी एकत्र हो सके तथा आवश्यकतानुसार उपयोग में लाया जा सके।
3. नदियों में प्रदूषित जल को डालने से पूर्व उसे साफ करना जरूरी है ताकि नदियों का जल साफ सुथरा बना रहे।
4. अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाए ताकि ये वृक्ष एक तरफ तो पर्यावरण को नमी पहुँचाए तथा दूसरी ओर वर्षा करने में सहायता करें।
5. जल प्रवाह की समुचित व्यवस्था होनी आवश्यक है। कस्बों, नगरों से गंदे पानी का निकास आवश्यक है।
6. जल को व्यर्थ में बर्बाद न करें और न ही प्रदूषित करें।
7. भूमिगत जल का उपयोग समय तथा उपलब्धता के आधार पर ही किया जाना चाहिए। ताकि आवश्यकता के समय इसका उपयोग किया जा सके।
8. भवनों, सार्वजनिक स्थलों, सरकारी भवनों में जल संरक्षण के लिये व्यवस्था की जाए।
9. जल को गहरी जमीन में छोड़ दें ताकि वह अंदर जाकर भूजल स्तर को ऊपर उठाने में मदद करें।
10. जल संरक्षण के लिये जल का उचित संचय आवश्यक है।
11. जल का उचित संवहन तथा स्थानांतरण भी जल संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
जल संग्रहण: एक सामूहिक उत्तरदायित्व
राष्ट्रीय विकास में जल की महत्ता को देखते हुए ‘जल संरक्षण’ को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानते हुए हमें निम्नलिखित आसान उपायों को करने के लिये जनजागरण अभियान चलाकर जल संरक्षण सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि जनसहभागिता से जल की बचत बड़े प्रभावी ढंग से की जा सकती है।
1. बच्चों, महिलाओं, पुरूषों को जल संरक्षण के महत्व व आवश्यकता से अवगत कराना चाहिए।
2. बाल्टी से स्नान/शौच आदि की आदत डालनी चाहिए।
3. गाँवों में तालाबों को गहरा करके वर्षा जल संचित करना चाहिए।
4. नगरों/महानगरों में घरों की नालियों का पानी गड्ढे में एकत्र करके इसे सिंचाई के काम में लेना चाहिए।
5. घर की छत पर वर्षाजल का भंडारण करके इसे काम में लिया जाए।
6. घरों, सार्वजनिक स्थानों पर नल की टोंटियों की सुरक्षा की जाए ताकि पानी की बर्बादी को रोका जा सके।
7. समुद्री खारे जल को पेयजल व घरेलू उपयोग योग्य बनाने के लिये समुचित प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाए।
8. गंगा-यमुना जैसी सदानीरा नदियों की नियमित सफाई सुनिश्चित की जाए तथा इन्हें प्रदूषण मुक्त बनाया जाए।
9. वृक्षारोपण को हर स्तर पर प्रोत्साहित किया जाए।
10. विद्यालय की पाठ्यपुस्तकों में ‘जल संरक्षण’ एक विषय के रूप में पढ़ाया जाए ताकि बचपन से ही बच्चों में यह संस्कार स्वतः विकसित हो सके। इसे हर स्तर पर एक अनिवार्य विषय बना दिया जाए।
निःसंदेह उपर्युक्त उपायों पर अमल करने से जल संरक्षण अभियान को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी तथा जल संकट से निपटने में यह एक सकारात्मक पहल होगी। किसी ने ठीक ही कहा है:
जल संरक्षण कीजिए, जल जीवन का सार।
जल न रहे यदि जगत में, जीवन है बेकार।।
यद्यपि उपर्युक्त उपाय पर्याप्त नहीं हैं तथापि इनके द्वारा जल संरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल अवश्य की जा सकती है। यदि समाज का हर एक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी निभाने लगे तो जल संरक्षण को बल मिलेगा। अतः समाज के एक जागरूक अंग होने के नाते हम सबका कर्तव्य है कि जल संरक्षण को हर स्तर पर प्रोत्साहित करें ताकि वर्तमान जल संकट की समस्या का समाधान संभव हो सके।
जल संग्रहण: सामाजिक पहल की अनिवार्यता
जल संकट देश ही नहीं बल्कि समूचे विश्व की समस्या है। दुनिया भर के विशेषज्ञों की राय है कि वर्षाजल का संरक्षण करके गिरते भूजल स्तर को रोका जा सकता है। टिकाऊ विकास (सस्टेनेबल डवलपमेंट) का यही आधार हो सकता है। भूजल पानी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है और पृथ्वी पर होने वाली जलापूर्ति अधिकतर भूजल पर ही निर्भर करती है, लेकिन आज इसका इतनी बेदर्दी से दोहन हुआ है कि जिसका उल्लेख करना संभव नहीं है। इसके परिणामस्वरूप अनियमित वातावरण की स्थिति पैदा हो चुकी है। कहीं पर धरती फट रही है तो कहीं पर अचानक जमीन तप रही है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड, अवध व ब्रज क्षेत्र के आगरा की घटनाएँ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। ये घटनाएँ संकेत देती हैं कि भविष्य में स्थिति कितना विकराल रूप धारण कर सकती है।
भूगर्भ विशेषज्ञों का मानना है कि बुंदेलखण्ड, अवध, कानपुर, हमीरपुर, इटावा की ये घटनाएँ भूजल के अंधाधुंध दोहन का ही परिणाम हैं। यह भयावह खतरे का संकेत है, क्योंकि जब-जब पानी का अत्यधिक दोहन होता है तब-तब जमीन के अंदर के पानी का उत्पलावन बल कम होने या समाप्त होने पर जमीन धँस जाती है तथा उसमें दरारें पड़ जाती हैं। यह तभी रोका जा सकता है जबकि भूजल के उत्पलावन बल को बरकरार रखा जाए। पानी समुचित मात्रा में रिचार्ज होता रहे। इसका एकमात्र उपाय यही है कि ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में भूजल के दोहन को नियंत्रित किया जाए। जल का संरक्षण तथा समुचित भंडारण हो, ताकि पानी जमीन के अंदर प्रवेश कर सके। भूजल के अंधाधुंध दोहन के लिये कौन जिम्मेदारहै? योजना आयोग के अनुसार भूजल का 80 प्रतिशत से अधिक भाग कृषि क्षेत्र में उपयोग होता है। इसे बढ़ाने में सरकार द्वारा बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी जिम्मेदार है। आयोग ने यह सब्सिडी कम करने की सिफारिश भी की थी। यदि विश्व बैंक की मानें तो भूजल का सर्वाधिक 92 प्रतिशत उपयोग और सतही जल का 89 प्रतिशत उपयोग कृषि में होता है जबकि 5 प्रतिशत सतही जल घरेलू उपयोग में लाया जाता है।
आजादी के समय देश में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5000 क्यूबिक मीटर थी जबकि उस समय देश की आबादी 40 करोड़ थी। पानी की उपलब्धता धीरे-धीरे कम होती गई तथा आबादी बढ़ती गई। अनुमान है कि वर्ष 2025 में यह घटकर 1500 क्यूबिक मीटर रह जाएगी जबकि देश की आबादी लगभग 1.39 अरब हो जाएगी।
योजना आयोग के अनुसार देश का 29 प्रतिशत क्षेत्र पानी की भीषण समस्या से जूझ रहा है। इसके लिये कृषि के साथ-साथ उद्योग भी जिम्मेदार हैं। विश्व बैंक के अनुसार औद्योगिक इकाइयाँ इतना पानी एक दिन में ही खींच लेती हैं जितना पानी एक गाँव पूरे महीने भी नहीं खींच पाता है। प्रश्न यह है कि जिस देश में पानी की उपलब्धता 2300 अरब घनमीटर है तथा जहाँ पर सदानीरा नदियों का जाल बिछा हुआ है वहाँ पर पानी का इतना भीषण संकट क्यों? इसका एक मात्र कारण यह है कि वर्षा से मिलने वाले कुल पानी का 47 प्रतिशत भाग नदियों के माध्यम से समुद्र केखारे पानी में मिल जाता है। इस जल को बचाया जा सकता है।
इसके लिये वर्षा जल का संग्रहण, संरक्षण तथा समुचित प्रबंधन आवश्यक है। यही एकमात्र विकल्प भी है। यह तभी संभव है, जब पूरा समाज जोहड़ों, तालाबों को पुनर्जीवित करे, खेतों में सिंचाई के लिए पक्की नालियों का निर्माण हो, पी.वी.सी. पाइपों का इस्तेमाल हो। बहाव क्षेत्र में पानी को संचित किया जा सकता है। इसके लिये बाँध बनाए जा सकते हैं ताकि यह पानी समुद्र में न जा सके। इसके साथ ही साथ बोरिंग, ट्यूबवेल पर नियंत्रण लगाया जाए। उन पर भारी कर लगाया जाए ताकि पानी की बर्बादी रोकी जा सके। जरूरी यह भी है कि पानी की उपलब्धता के गणित को समाज भी समझे। यह आम-जन की जागरूकता तथा सहभागिता से ही सम्भव है। भूजल संरक्षण के लिये देशव्यापी अभियान चलाया जाना अति आवश्यक है, ताकि भूजल का समुचित नियमन हो सके।
यह सर्वविदित है कि भूजल की 80 प्रतिशत जलराशि हम पहले ही उपयोग में ला चुके हैं। तथापि शेष जल के दोहन का सिलसिला निरंतर चालू है। भविष्य में हमें इतना पानी नहीं मिल पाएगा जितना कि हमारी मांग होगी। अकेली सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती है। यह काम आम आदमी के सहयोग से संभव है। भारतीय संस्कृति में जल को जीवन का आधार माना जाता है। इसी कारण जल को संचित करने की परंपरा हमारे देश में शुरू से ही रही है। अतः समाज ही इस अभियान में सहयोग दे सकता है। अतः समाज के हर व्यक्ति को अपने-अपने स्तर व सामर्थ्य के अनुसार जल संरक्षण अभियान में सहयोग करना चाहिए।
इस प्रकार जल संरक्षण में पूरे समाज को अपनी ओर से नई पहल करनी चाहिए। केवल सरकारी सहायता पर निर्भर नहीं होना चाहिए क्योंकि सरकारें अपने पाले में गेंद न डालकर अपना कर्तव्य निभा लेती हैं। परंतु समय की मांग है कि पूरा समाज इस अभियान से जुड़े तथा पंरपरागत जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करे।
वर्तमान जल संकट को देखते हुए देश-विदेश में हर मंच पर जल संरक्षण की चर्चा होने लगी है। विभिन्न सरकारों द्वारा इसके लिये योजनाबद्ध ढंग से काम भी किए जा रहे हैं। परंतु यह एक विश्व व्यापी समस्या है, एक सामाजिक संकट है, इसका समाधान शीघ्रातिशीघ्र करने की आवश्यकता है। इस कार्य को एक सामाजिक अभियान बनाने का समय आ चुका है। इसमें जन-जन का सहयोग अपेक्षित है। जल संकट की समस्या के समाधान के लिये जल संरक्षण ही एकमात्र विकल्प रह जाता है जिससे जल की उपलब्धता की निरंतरता को सुनिश्चित किया जा सकता है।
संपर्क करें:
डाॅ. श्याम नारायण मिश्र, वरिष्ठ हिंदी अधिकारी, केन्द्रीय इलैक्ट्राॅनिकी, अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान, सीरी, पिलानी-333 031 (राजस्थान), फोन नं.: 01596-252425, ई-मेल:snmishra@ceeri.ernet.in
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