जकार्ता डूब रहा है


जकार्ता का चालीस फीसदी हिस्सा फिलहाल समुद्र जल से नीचे है। माउरा बारू जैसे समुद्रतटीय जिले हाल के वर्षों में सतह से चौदह फीट नीचे चले गए हैं। थोड़े ही दिनों पहले मैंने वहाँ की एक आधी डूब चुकी फैक्टरी में किशोरों को मछली खाते देखा था। अन्धाधुन्ध विकास और गैरजिम्मेदार राजनीतिक नेतृत्व का यह खामियाजा जकार्ता भुगत रहा है। जकार्ता में पाइप के जरिए जलापूर्ति आधे से भी कम घरों में होती है। भारी वर्षा के बावजूद यहाँ भूजल रीचार्ज नहीं हो पाता, क्योंकि शहर का 97 फीसदी हिस्सा कंकरीट से ढँँका है। रासडियोनो याद करते हैं कि एक समय समुद्र उनके दरवाजे से बहुत दूर पहाड़ के पास था। उस समय वह दरवाजा खेलते और सामने की जगह में कैटफिश, मसालेदार अंडा और भुना मुर्गा बेचते थे। लेकिन साल-दर-साल समुद्र घर के पास आता गया, पहाड़ धीरे-धीरे ओझल होता गया। अब समुद्र घर के बहुत पास आ गया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का जलस्तर निरन्तर बढ़ रहा है और मौसम भी बदल रहा है। इस महीने एक और तूफान आया, जिससे जकार्ता की गलियाँ पानी में डूब गईं। जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे शोधार्थी इरवन पुलुंगम आशंका जताते हैं कि अगली सदी में यहाँ का तापमान कई डिग्री फॉरेनहाइट और समुद्र का जलस्तर तीन फीट तक बढ़ सकते हैं।

लेकिन जकार्ता की इस हालत का कारण सिर्फ जलवायु परिवर्तन नहीं है। तथ्य यह है कि जकार्ता दुनिया के किसी भी दूसरे शहर की तुलना में तेजी से डूब रहा है। वहाँ नदियों का जलस्तर प्राय: सामान्य से अधिक रहता है, सामान्य वर्षा आस-पास के इलाकों को डुबा देती है और भवन धीरे-धीरे धरती में धँस रहे हैं। इसका मुख्य कारण लोगों का गैरकानूनी ढंग से कुआँ खोदना है।

लोग भूजल की एक-एक बूँद निचोड़ ले रहे हैं। जकार्ता का चालीस फीसदी हिस्सा फिलहाल समुद्र जल से नीचे है। माउरा बारू जैसे समुद्रतटीय जिले हाल के वर्षों में सतह से चौदह फीट नीचे चले गए हैं। थोड़े ही दिनों पहले मैंने वहाँ की एक आधी डूब चुकी फैक्टरी में किशोरों को मछली खाते देखा था।

अन्धाधुन्ध विकास और गैरजिम्मेदार राजनीतिक नेतृत्व का यह खामियाजा जकार्ता भुगत रहा है। जकार्ता में पाइप के जरिए जलापूर्ति आधे से भी कम घरों में होती है। भारी वर्षा के बावजूद यहाँ भूजल रीचार्ज नहीं हो पाता, क्योंकि शहर का 97 फीसदी हिस्सा कंकरीट से ढँँका है। पहले जो सदाबहार वन थे, वहाँ अब गगनचुम्बी टावर हैं।

कारोबार बढ़ने और विदेशियों के आने से जकार्ता में जहाँ निर्माण कार्यों में तेजी आई, वहीं इंडोनेशिया के ग्रामीण इलाकों में भी कोयला खदानों तथा तम्बाकू की खेत के कारण ग्रामीण जीवन पर असर पड़ा। स्थानीय लोगों को मजबूरन सुमात्रा और कलीमातन में भागना पड़ा है। कपड़ों की फैक्टरी बढ़ने से प्रदूषण तेजी से बढ़ा है। ये फैक्टरियाँ टनों कूड़ा-कचरा नदियों के मुहानों पर डाल देती हैं, जिससे जकार्ता शहर में जलापूर्ति दूषित हो गई है।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद टोक्यो भी इसी स्थिति में पहुँच गया था। लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिये भारी संसाधन झोंककर और कड़े कानून बनाकर टोक्यो उस संकट से निकल गया था। इरवन पूछते हैं कि क्या 21वीं सदी का जकार्ता 20वीं सदी का टोक्यो बन सकेगा। जकार्ता जिस हालत में पहुँच चुका है, वहाँ से निकलना आसान नहीं और प्रकृति लम्बे समय तक इन्तजार नहीं करने वाली।

लेखक न्यूयॉर्क टाइम्स के लिये माइकल किमलमैन

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