जीवनधारा योजना के अन्तर्गत निर्मित इन कुँओं से सिंचाई के लिये अब हर वक्त पानी उपलब्ध रहता है। वास्तव में देखा जाए तो यह पानी किसानों की जीवनधारा बन चुका है जो गरीबों की जिन्दगी में एक नई खुशहाली और हरियाली ला रहा है।
गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले छोटे और सीमान्त किसानों, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों तथा मुक्त कराए बंधुआ मजदूरों के लिये बिना किसी खर्च के कुँओं से सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिये 1988-89 में एक नई योजना आरम्भ की गई थी। इस योजना का नाम ‘मिलियन वैल’ योजना था। इसको राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम तथा ग्रामीण भूमिहीनों के लिये रोजगार गारण्टी कार्यक्रम के अन्तर्गत शुरू किया गया था। अप्रैल, 1989 में इन दोनों रोजगार कार्यक्रमों को मिलाकर एक नया कार्यक्रम बना, जिसका नाम ‘जवाहर रोजगार योजना’ रखा गया। ‘मिलियन वैल’ योजना अब इसी ‘जवाहर रोजगार योजना’ के अन्तर्गत संचालित की जाती है।आज कुँओं के लिये यह योजना धनराशि का प्रावधान करती है। फिर भी भौगोलिक कारणों से जहाँ कुएँ नहीं खोदे जा सकते हैं, वहाँ इस योजना के लिये आवंटित राशि का इस्तेमाल गौण सिंचाई जैसे सिंचाई तालाबों की खुदाई, पानी संचय करने के स्थानों के निर्माण और मुक्त कराए बंधुआ मजदूरों तथा अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की जमीन के विकास के लिये किया जा सकता है। ऐसी भूमि के विकास में वह जमीन शामिल है जो इन लोगों को भू-दान में या भूमि सीमा से अधिक पाई गई उपलब्ध जमीन के रूप में प्राप्त हुई है। इस योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिला स्तर पर जिला ग्रामीण विकास एजेंसी/जिला परिषद तथा गाँवों के स्तर पर ग्रामीण पंचायत की होती है।
यह योजना उत्पादनोन्मुख कार्यों में अतिरिक्त रोजगार के अवसर जुटाने के लक्ष्य की भी पूर्ति करती है। यह ऐसे निर्माण कार्य हैं जो गरीबों को लाभ पहुँचाने के लिये अबाध रूप से चल रहे हैं और जिनके फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में एक नये आधारभूत ढाँचे की संरचना हो रही है।
क्रियान्वयन
वर्ष 1993-94 से यह योजना पिछड़े वर्गों के छोटे और सीमान्तक किसानों के लिये भी लागू कर दी गई है। जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत उपलब्ध राशि का 30 प्रतिशत इस योजना के लिये रखा जाता है। इस योजना के आरम्भ होने से अब तक सारे देश में लगभग 7.85 लाख कुएँ खोदे जा चुके हैं और इन पर 2498.35 करोड़ रुपए की लागत आई है।
राज्यों के मामले में तमिलनाडु में हुई प्रगति इस योजना के क्षेत्र में काफी उल्लेखनीय है। वर्ष 1994-95 में तमिलनाडु को लगभग 73.5 करोड़ की राशि आवंटित की गई थी, जिसमें से लगभग 73.4 करोड़ रुपए ‘मिलियन वैल’ योजना के अन्तर्गत 6902 कुएँ खोदने तथा अन्य निर्माण कार्यों पर खर्च किए गए। 5548 कुँओं का निर्माण कार्य अभी पूरा होने वाला है। ‘मिलियन वैल’ योजना, जो तमिलनाडु राज्य में ‘जीवनधारा योजना’ के नाम से लोकप्रिय हो चुकी है, के अन्तर्गत 137 करोड़ रुपए की लागत से 23,500 से भी अधिक ऐसे कुँओं का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।
सपना साकार
चेंगई-एम.जी.आर. जिले में थिरूकल्लीकुन्दरम स्थान के नजदीक कुल्लीपटान्दलम गाँव में वेंकटेशन एक गरीब आदि द्रविण नौजवान है। अभी कुछ समय पहले तक यह 22 वर्षीय युवक अपनी ढाई एकड़ की बरानी जमीन में लगभग बेकार ही अपना पसीना बहाता चला आ रहा था, क्योंकि इस जमीन से उसे बहुत ही कम पैदावार मिल रही थी। अपनी जमीन की सिंचाई के लिये वह अन्य ग्रामवासियों की तरह वर्षा पर ही निर्भर रहता था। वर्षा से सिंचित इस जमीन पर उसे मुश्किल से धान की दो बोरियाँ मिल पाती थीं, जिनका मूल्य 600 रुपए के बराबर होता था। तभी उसने जीवनधारा योजना के बारे में सुना और मदद के लिये जिलाधिकारी के पास पहुँचा। इस योजना के अन्तर्गत मिले 40 हजार रुपए से उसने एक कुँआ खुदवाया। बाद में एक पम्पसेट भी लगवाया। अब, उसके लिये पानी ही पानी था और यहीं से वेंकटेशन की जिन्दगी एकदम बदल गई। इस साल की शुरुआत में उसने तरबूज की फसल बोई और 10,000 रुपए का लाभ कमाया। अपनी मेहनत और इस योजना से मिली धनराशि के कारण होने वाले लाभ से उत्साहित होकर अब उसने तिल की फसल बोई है और उसे आशा है कि 3 महीनों के दौरान ही उसे 3000 रुपए की आमदनी होगी। जीवनधारा योजना के फलस्वरूप आज वेंकटेशन के लिये यह सम्भव हो गया है कि वह वर्ष में 13 हजार रुपए तक कमा सकता है, जबकि इससे पहले कुल 600 रुपए कमाना भी उसके लिये कठिन और दुष्कर काम था।
केवल चेंगई-एम.जी.आर. जिले में ही कमजोर वर्ग के लगभग 2,500 गरीब किसान पिछले 4 वर्षों से जीवनधारा से लाभान्वित हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिन्होंने अपने खेतों में ऐसे कुँओं के निर्माण से अपनी आमदनी दोगुनी से भी अधिक कर ली है।
उदाहरण के तौर पर मुम्मिडीपुन्डी पंचायत संघ के अन्तर्गत विभिन्न गाँवों के छोटे किसानों जैसे सेल्वराज, गुणालम और कुर्रप्पन आदि भी इस योजना से बराबर लाभ उठा रहे हैं। पहले इन किसानों के पास सिंचाई की कोई निश्चित सुविधा नहीं थी और वे वर्षा पर आधारित फसलें जैसे, टैपियोका, मूँगफली और तिल उगाकर साल में 7000 रुपए से भी कम कमा पा रहे थे। पर जब जिला प्रशासन ने जीवनधारा योजना के अन्तर्गत उनको समुचित सहायता प्रदान की तो वे इस स्थिति में आ गए कि वर्ष में 2-2 फसलें ले सकें और उनकी वार्षिक आमदनी भी 15,000 रुपए से ऊपर हो गई। पम्पसेट लगाने के लिये इन लाभार्थियों को प्राथमिकता के आधार पर बिजली के कनेक्शन दिए जा रहे हैं।
जीवनधारा योजना के अन्तर्गत निर्मित इन कुँओं से सिंचाई के लिये अब हर वक्त पानी उपलब्ध रहता है। वास्तव में देखा जाए तो यह पानी किसानों की जीवनधारा बन चुका है जो गरीबों की जिन्दगी में एक नई खुशहाली और हरियाली ला रहा है।
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