जीवन है, बहता जल


वह कुनकुनी /धूप थी। बादलों की भागदौड़ आसमान में चल रही थी। बादल सूरज पर आवरण बनकर छा जाते और छाया कर रहे थे। पर जब बादल छट जाते और सूरज छा जाता तब आसमान पर अजीब तमाशा होता। ठंडी हवा बह रही थी। वह बगीचे में अकेला बैठा था।

बगीचा सुनसान था। सुबह की सैर करने वाले जा चूके थे। वह अकेला बैठा था। विचारों में डूबा था। उसके आस–पास घोर निराशा के बादल छाये हुए थे। उसमें वह डूबा था। उसे लग रहा था कि वह अन्धकार से घिरा है। आसमान का सूरज तो बादलों को चीरकर कभी बाहर निकल भी आता है, पर उसका सूरज तो सदा के लिये डूब गया है। असफलता ने उसे चारो ओर से जकड़ लिया है। वह परीक्षा में फेल हो गया है। उसके साथ पढ़ने वाले आगे निकल गए हैं। वह अकेला रह गया है। उसके मित्र अब साथ छोड़ देंगे। वह नए लड़कों के साथ पढ़ने बैठेगा। तब सब कहेंगे– ‘‘यही है वह लड़का जो असफल हुआ है।’’ उसे लगा यह पट्टिका सदा उस पर चिपकी रहेगी। यह सोच उसने आज घर छोड़ दिया था।

वह केवल 9 वर्ष का है। वह स्कूल की परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया है। वह घोर निराशा में है। दुनिया उसे रसहीन लग रही है। वह सोच रहा है, ऐसे जीवन से आत्महत्या करना ही बेहतर है। फिर उसके विचार ने उसे झटका दिया। उसके मन ने उससे कहा– “तुम्हारा परिवार तुम्हें कितना प्यार करता है। तुम आत्महत्या कर लोगे तो उन पर क्या दुख का पहाड़ नहीं टूटेगा?’’ मेरी माँ और मेरे पिताजी मेरे परीक्षा परिणाम से कितने दुखी थे, पर उन्होंने कितना प्यार–दुलार दिया था। उन्होंने ही कहा था– कोई बात नहीं, जीवन में ऐसी असफलता तो आती ही रहती है। उनके जीवन में भी ऐसी असफलताओं ने उन्हें घेरा था। आज भी तो वे असफल होते हैं, पर उसे चुपचाप सहन करते हैं। असफलता का कारण खोजते हैं। फिर प्रयत्न करते है और आगे बढ़ते हैं। वे निराश हो, परेशान नहीं होते। उसके शिक्षकों ने भी तो यही गुरूमंत्र दिया था, पर सब व्यर्थ। उसकी निराशा का अन्त नहीं था।

वह सोचता था कि यह व्यर्थ के उपदेश है। यथार्थ में तो यह उसकी हार ही है। वह टूट चुका था। वह बेचैन सा रहता। नींद भी ठीक से नहीं आती। बिस्तर पर वह करवट बदलता रहता। उसे शान्ति नहीं थी। वह कमजोर और बीमार लगने लगा था।

आज वह घर से भाग निकला था। उसने तय कर लिया था कि वह अपना जीवन समाप्त कर लेगा। वह बगीचे में बैठा यही सोच रहा था, तभी उसे एक गीत के मधुर स्वर सुनाई दिये। उसका ध्यान भंग हुआ। उसने गीत को ध्यान से सुना।

‘‘पानी मैला क्यों नहीं होता? क्योंकि वह बहता रहता है। पानी के मार्ग में बाधाएँ क्यों नहीं आती? क्योंकि वह बहता रहता है। पानी की एक बूँद झरने से नदी, नदी से महानदी और महानदी से समुद्र क्यों बन जाता है? क्योंकि वह बहता रहता है। इसलिये मेरे जीवन तुम रुको मत, बहते रहो, बहते रहो।’’

वह गीत ध्यान से सुनता रहा। उसने देखा कि यह गीत एक बौद्ध भिक्षु गा रहा था। उसने ध्यान से देखा तो उसे लगा कि वह एक बौद्ध मठ के बगीचे में बैठा है। अब उसे कुनकुनी धूप सुहावनी लग रही थी। बगीचे में खिलते पुष्प उसे खिल–खिलाते दिख रहे थे। बगीचा ठंडी हवा के झोंके से इठलाता लग रहा था। उसे लगा उसका जीवन भी बहता जल है। जल को बहते रहना है। वह जल बनकर वापस चल दिया अपने घर।

जल को रुकने के लिये कहाँ समय है। उसे तो अपनी गति से बहते रहना है वह अपने घर वापस लौट आया था। उसका नाम था हो–ची–मिन। बाद में वह वियतनाम का राष्ट्र नायक बना। उसने अपने संस्मरण में लिखा है कि स्कूली पढ़ाई के खराब परिणाम आने से वह घोर निराश था। उसने घर छोड़ दिया था। बौद्ध भिक्षु के गीत ने उसका जीवन बदल दिया।

बच्चों निराशा के कुएँ में कभी मत झाँकिए। जीवन बहता पानी है। उसे बहते रहने दो। वह अपना रास्ता खोज लेगा। गति ही जीवन है। गतिशील बने रहो।

श्री सत्यनारायण भटनागर, 2, एम–आई–जी– देवरादेव, नारायण नगर, पो–ओ– रतलाम, जिला–रतलाम–457001, (मध्य प्रदेश) – मो– : 09425103328, ई–मेल : agoya1260@gmail.com

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