जीवन दान मांगते तालाब

रीवा तालाब
रीवा तालाब
19 जनवरी 2014, रींवा। प्रशासनिक अफसरों तथाकथित जनप्रतिनिधियों और भूमाफिया की सांठ-गांठ प्राकृतिक जलश्रोतों के लिए संकट बन गई है। अपने ही नियम कानून को धता बताकर जहां अफसरों ने खामेाशी ओढ़ ली है तो उनके इशारे पर भूमाफिया तालाबों को कब्जाकर सोसायटी विकसित कर रहे है। रीवां जिले में इस कारनामें को बड़ी तेजी से अंजाम दिया गया है। आंकडे बताते हैं कि रियासत के समय यहां पर करीब 8000 तालाब थे जिनकी संख्या वर्तमान में महज 1500 के आस-पास रह गई है। हाईकोर्ट जबलपुर ने एक बार फिर तालाबों को अतिक्रमणकारियों के चंगुल से बचाने के निर्देश दिये हैं। जिससे उम्मीद की किरण जागी है। पर अफसोस की बात यह है कि निर्देश का पालन उन्हीं अफसरों को करना है। जिनके समय में ही तालाबों पर सबसे अधिक संकट आया हैं पेश है महेश सिंह की रिर्पोट ...

प्राकृतिक जल स्रोत के उपहार तालाबों का अस्तित्व संकट में


रींवा के तालाबों के इतिहास पर नजरे दौडाएं तो आजादी के वक्त जहां राजस्व विभाग के दस्तावेजों में 5000 तालाब होने की पुष्टि होती है वहीं वर्ष 1996 में हुए बंदोबस्त के वक्त शासकीय दस्तावेजों में इनकी गिनती महज 1545 पायी गयी है। बंदोबस्त के वक्त जिले भर के 1524 तालाबों को अतिक्रमण की चपेट में बताया गया था तथा 22 तालाब भूमाफियों के कब्जे में बताए गये थे। लेकिन समय के साथ-साथ तालाबों पर प्रशासनिक अफसरों को ध्यान भंग हो गया। न तो अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए कभी ठोस कदम उठाए गये और न ही सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन सुनिश्चित किया गया। धीरे-धीरे प्रशासनिक अफसरों की नजर तले तालाबों पर कब्जे जारी रहे और सिलसिला आज तक चल रहा है।

प्रशासन ने कभी भी गुम हो चुके तालाबों की पैमाइश कराने की कोशिश नहीं की जो रीवा रियासत के समय के दस्तावेजों में मौजूद थे। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुये प्राकृतिक स्रोतों से संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठाने के दिशा-निर्देश देते हुये कहा था कि तालाब,पोखर, नदियाँ देश की अमूल्य धरोहर हैं। इन पर कब्जा करना और कराना दोनों गैरकानूनी है। इसके लिए राजस्व संहिता 1959 की धारा 248 के तहत कार्यवाही का प्रावधान भी बना। लेकिन सारे कानूनी नियम दिखावा साबित हुये। वर्तमान में शहर के 5,त्योंथर के 19 तालाब, मउगंज के 11, सिरमौर के 2 तालाबों का अस्तित्व खतरे में है।

शहर के तालाबों पर तन गई इमारतें


जैसे-जैसे शहरीकरण हुआ वैसे-वैसे तालाब भेंट चढ़ते गए। प्रशासन की अनदेखी से आधा सैकड़ा तालाबों में अब गिनती के ही बचे है। इनमें लालपा तालाब, लखौरीबाग का तालाब, कटरा तलैया का अस्तित्व मिटने की ओर है। बोदाबाग के झझरा तालाब में तो इमारतें खड़ी हो गयी है। वह भी पिछले पाँच साल के भीतर। जबकि रामसागर तालाब,चिरूहुआ तालाब, बोदाबाग तालाब, धोबिया तालाब, गोरहा तालाब और रताहरा तालाब अतिक्रमण की चपेट में है। इनमें से कईयों पर भूमाफिया की गिद्ध नजरें लगी हुई हैं, बस मौके की तलाश में है।

तालाबों से थी रियासत की शान


बुजुर्गो की मानें तो रीवा रियासत की शान तालाबों से थी। रियासत के समय अधिकतर तालाब महारानियों ने बनवाए थे। उस समय तालाब आम आदमी के निस्तार के साधन हुआ करते थे। खेती- किसानी ही नहीं पीने का पानी भी इन्हीं तालाबों से मिलता था।

हाईकोर्ट की पहल प्रशंसनीय


तालाब जल के स्थाई स्रोत हैं जो हमें प्रकृति द्वारा उपहार स्वरूप मिले हैं। इनके संरक्षण के लिए शासन-प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा हैं और माफिया इन पर कब्जा करते जा रहे हैं। जो अत्यंत चिंता का विषय है। तालाबों को बचाने को शासन स्तर पर प्रयास होना चाहिए। पुराने शासकीय तालाबों का अतिक्रमण हटाकर उनमें पानी संरक्षित करें। तालाब नही बचेगें तो भविष्य में पानी का घोर संकट होगा। हाईकोर्ट का निर्णय प्रशंसनीय है।
मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों की प्यास भी तालाबों के पानी से ही बुझती थी। बरसात में जल संचयन होता था और बाहर मास पानी का इस्तेमाल किया जाता था। तालाबों की वजह से रीवा का भू गर्भ जल स्तर मध्य प्रदेश के अन्य शहरों से उपर रहा। लेकिन रियासत गई,समय गया और आया शहरीकरण का दौर तो वही मानव जो कल तक तालाबों के किनारे शुभ कार्यो के लिए पूजन अर्चन करता था उन्हीं में से कुछ ने तालाब लील कर कालोनी विकसित करने का इसे जरिया बना लिया । नतीजा धीरे-धीरे तालाब का अस्तित्व मिटता गया और आज हमारे प्राकृतिक जल संचयन के श्रोत गिनती के शेष है।
लालबहादुर सिंह,समाजसेवी

गांवों में यदि तालाब सुरक्षित नहीं पाए तो आने वाले समय में लोग पानी के घोर संकट से जुझेगें । तालाबों का ही पानी जमीन के अंदर जाकर पानी के लेबल को बनाए रखता है। जिससे हैण्डपम्प और नलकूप चलते है। हर गांव में तालाब जरूरी है। शासन को चाहिये कि जो तालाब है उन्हें अतिक्रमण से मुक्त कराकर संरक्षित किया जाए और जिन गांवों में तालाब नहीं है वहां तालाब बनवाएं जाएं । तालाब हमारी संस्कृति की पहचान भी है उन्हें बचाने के लिए सभी को आगे आना चाहिए।
डॉ.मुकेश ऐंगल,पर्यावरणविद्

रीवां जिले के तालाब अतिक्रमण और भूमाफिया के निशाने पर है। शासन प्रशासन के लापरवाही भरे रवैये से इनका अस्तित्व खतरे में है। हजारों की संख्या में तालाबों का अस्तित्व पहले ही समाप्त हो चुका हैं जो बचे हैं उन्हें बचाने की कवायद नहीं की जा रही है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद तालाबों की पैमाइश होनी चाहिए।
बीके माला,सामाजिक कार्यकर्ता

संकलन और टाइपिंग - नीलम श्रीवास्तव

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Post By: pankajbagwan
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