रासायनिक खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल से न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है बल्कि पैदावार भी गिरी है। यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो गिरती पैदावार देश की खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बन जाएगी।
केंद्रीय मिट्टी और जल संरक्षण शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान (सीएसडब्ल्यूसीआरटीआई), देहरादून द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार देश की कुल जमीन में से करीब 44 फीसदी में मिट्टी कटान की सालाना दर 10 टन प्रति हेक्टेयर से भी ज्यादा है। इससे मिट्टी की उर्वरता घटती जा रही है। अध्ययन के मुताबिक वनों की कटाई, खनन, विकास कार्य और मिट्टी संरक्षण के उपायों की कमी के कारण हर साल 5.3 अरब टन मिट्टी और 84 लाख टन पोषक तत्व नष्ट होते जा रहे हैं। अपने जीवित माटी अभियान के तहत ग्रीनपीस ने जुलाई से नवंबर 2010 के बीच असम, उड़ीसा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पंजाब के चिह्नित किए गए जिलों में केंद्र सरकार की मिट्टी स्वास्थ्य संबंधी नीतियों और योजनाओं का सामाजिक परीक्षण किया। सॉइल, सब्सिडी एंड सर्वाइकल नामक रिपोर्ट में ग्रीनपीस ने माटी की सेहत व देश की खाद्य सुरक्षा के बीच सीधे संबंध को उजागर किया गया है।यह रिपोर्ट इस तरह भी ध्यान आकृष्ट करती है कि रासायनिक खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल से न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है बल्कि पैदावार भी गिरी है। यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो गिरती पैदावार देश की खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बन जाएगी। अपने अभियान में ग्रीनपीस ने एक हजार किसानों के बीच एक सर्वेक्षण भी कराया ताकि मिट्टी के स्वास्थ्य पर उनके विचार और मूल्यांकन को सामने लाया जा सके। इसमें हर राज्य के चुने गए एक जिले के दो सौ किसान शामिल किए गए। यह रिपोर्ट किसानों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करती है और अपनी मिट्टी के बारे में उनके जमीनी अनुभवों को महत्व देती है।
इस रिपोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि किसान कैसे सरकार के समर्थन से अपनी क्षरित और खस्ताहाल भूमि को फिर से हरा-भरा कर सकते हैं। देखा जाए तो आज पैदावार बढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा मिट्टी की उर्वरता में आ रही गिरावट है। इस गिरावट में हरित क्रांति के दौरान रासायनिक उर्वरकों के बल पर की जाने वाली सघन खेती की मुख्य भूमिका रही है। रासायनिक उर्वरकों ने भले ही तात्कालिक रूप से कृषि उत्पादन बढ़ाने में मदद की लेकिन इसका दुष्परिणाम कृषि मित्र जीव-जंतुओं के विनाश के रूप में सामने आया। इससे मिट्टी न केवल बेजान हुई बल्कि उसकी प्रतिरोधक क्षमता भी घटी।
दरअसल, मिट्टी एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है जिसमें पाए जाने वाले असंख्य कीड़े-मकोड़े उसे जीवित बनाए रखते हैं। यह तंत्र पौधों की जड़ों को पोषक तत्वों की आपूर्ति करके उन्हें फलने-फूलने के लिए स्वस्थ वातावरण भी मुहैया करता है। देसी व हरी खाद मिट्टी के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखते हैं।
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