जीरो बजट-प्राकृतिक खेती

जीरो बजट खेती
जीरो बजट खेती

जीरो बजट का अर्थ है। चाहे कोई भी अन्य फसल हो या बागवानी की फसल हो। उसकी लागत का मूल्य जीरो होगा। मुख्य फसल का लागत मूल्य आंतरवर्तीय फ़सलों के या मिश्र फ़सलों के उत्पादन से निकाल लेना और मुख्य फसल बोनस रूप में लेना या आध्यात्मिक कृषि का जीरो बजट है। फ़सलों को बढ़ने के लिए और उपज लेने के लिए जिन-जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है। वे सभी घर में ही उपलब्ध करना, किसी भी हालत में मंडी से या बाजार से खरीदकर नहीं लाना। यही जीरो बजट खेती है। हमारा नारा है। गांव का पैसा गांव में, गांव का पैसा शहरों में नहीं। बल्कि शहर का पैसा गांव में लाना ही गांव का जीरो बजट है।

फ़सलों को बढ़ने के लिए जो संसाधन चाहिए वह उनके जड़ों के पास भूमि में और पत्तों के पास वातावरण में ही पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। ऊपर से कुछ भी देने की जरुरत नहीं। क्योंकि हमारी भूमि अन्नपूर्णा है। हमारी फसलें भूमि से कितने तत्व लेती है। केवल 1.5 से 2.0 प्रतिशत लेती है। बाकी 98 से 98.5% हवा सूरज की रोशनी और पानी से लेती है।
 

उद्देश्य :-


खेती की लागत कम करके अधिक लाभ लेना।
ज़मीन/मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना।
रासायनिक खाद/कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाना।
कम पानी/सिंचाई अधिक उत्पादन लेना।
किसानों की बाजार निर्भरता में कमी लाना।

 

 

जीरो बजट/प्राकृतिक खेती के मुख्य घटक –


आच्छादन 2. बाफसा 3. बीजामृत 4. जीवामृत

 

 

 

 

1. आच्छादान


(अ) मृदाच्छादन : हम जब दो बैलों से खींचने वाले हल से या कुल्टी (जोत) से भूमि की काश्तकारी या जोताई करते हैं, तब भूमि पर मिट्टी का आच्छादन ही डलते हैं। जिस से भूमि की अंतर्गत नमी और उष्णता वातावरण में उड़कर नहीं जाती, बची रहती है।

(ब) काष्टाच्छादन : जब हम हमारी फ़सलों की कटाई के बाद दाने छोड़कर फ़सलों के जो अवशेष बचते हैं, वह अगर भूमि पर आच्छादन स्वरूप डालते हैं, तो अनंत कोटी जीवजंतु और केंचवे भूमि के अंदर बाहर लगातार चक्कर लगाकर चौबीस घंटे भूमि को बलवान, उर्वरा एवं समृद्ध बनाने का काम करते हैं और हमारी फ़सलों को बढ़ाते हैं।

(स) सजीव आच्छादन : हम कपास, अरंडी, अरहर, मिर्ची, गन्ना, अंगूर, अमरुद, लिची, इमली, अनार, केला, नारियल, सुपारी, चीकू, आम, काजू आदि फ़सलों में जो सहजीवी आतर फसलें या मिश्रित फसलें लेते हैं, उन्हें ही सजीव आच्छादान कहते हैं।

 

 

 

 

2. वाफसा :-


वाफसा माने भूमि में हर दो मिट्टी के कणों के बीच जो खाली जगह होती है, उन में पानी का अस्तित्व बिल्कुल नहीं होना है, तो उन में हवा और वाष्प कणों का सम मात्रा में मिश्रण निर्माण होना। वास्तव में भूमि में पानी नहीं, वाफसा चाहिए। याने हवा 50% और वाष्प 50% इन दोनों का समिश्रण चाहिए। क्योंकि कोई भी पौधा या पेड़ अपने जड़ों से भूमि में से जल नहीं लेता, बल्कि,वाष्प के कण और प्राणवायु के याने हवा के कण लेता है। भूमि में केवल इतना जल देना है, जिसके रूपांतर स्वरूप भूमि अंतर्गत उष्णता से उस जल के वाष्प की निर्मिती हो और यह तभी होता है, जब आप पौधों को या फल के पेड़ों को उनके दोपहर की छांव के बाहर पानी देते हो। कोई भी पेड़ या पौधे की खाद्य पानी लेने वाली जड़े छांव के बाहरी सरहद पर होती है। तो पानी और पानी के साथ जीवामृत पेड़ की दोपहर को बारह बजे जो छांव पड़ती है, उस छांव के आखिरी सीमा के बाहर 1-1.5 फिट अंतर पर नाली निकालकर उस नाली में से पानी देना चाहिए।

 

 

 

 

3. बीजामृत (बीज शोधन) 100 कि.ग्रा. बीज के लिए :-


सामग्री
1. 5 किग्रा. गाय का गोबर
2. 5 लीटर गाय का गौमूत्र
3. 20 लीटर पानी
4. 50 ग्राम चूना
5. 50 ग्राम मेड़ की मिट्टी

बनाने की विधि : इस सभी सामग्री को चौबीस घंटे एक साथ पानी में डालकर रखें। दिन में दो बार लकड़ी से घोलें। बाद में बीज पर बनाए हुए बीजामृत का छिड़काव करें। बीज को मिलाकर छाया में सुखाएं और बाद में बीज बोएं। बीज शोधन से बीज जल्दी और ज्यादा मात्रा में उगकर आते हैं। जड़े गति से बढ़ती हैं और भूमि से पेड़ों पर जो बीमारियों का प्रादुर्भाव होता है वह नहीं होता है।

अवधि प्रयोग : बुवाई के 24 घंटे पहले बीजशोधन करना चाहिए।

 

 

 

 

4. जीवामृत :-


(अ) घन जीवामृत (एक एकड़ खेत के लिए)

 

 

 

 

सामग्री :-


1. 100 किलोग्राम गाय का गोबर
2. 1 किलोग्राम गुड/फलों का गुदा की चटनी
3. 2 किलोग्राम बेसन (चना, उड़द, अरहर, मूंग)
4. 50 ग्राम मेड़ या जंगल की मिट्टी
5. 1 लीटर गौमूत्र

 

 

 

 

बनाने की विधि :-


सर्वप्रथम 100 किलोग्राम गाय के गोबर को किसी पक्के फर्श व पोलीथीन पर फैलाएं फिर इसके बाद 1 किलोग्राम गुड या फलों गुदों की चटनी व 1 किलोग्राम बेसन को डाले इसके बाद 50 मेड़ या जंगल की मिट्टी डालकर तथा 1 लीटर गौमूत्र सभी सामग्री को फॉवड़ा से मिलाएं फिर 48 घंटे छायादार स्थान पर एकत्र कर या थापीया बनाकर जूट के बोरे से ढक दें। 48 घंटे बाद उसको छाए पर सुखाकर चूर्ण बनाकर भंडारण करें।

 

 

 

 

अवधि प्रयोग :-


इस घन जीवामृत का प्रयोग छः माह तक कर सकते हैं।

 

 

 

 

सावधानियां :-


सात दिन का छाए में रखा हुआ गोबर का प्रयोग करें।
गोमूत्र किसी धातु के बर्तन में न ले या रखें।

 

 

 

 

छिड़काव :-


एक बार खेत जुताई के बाद घन जीवामृत का छिड़काव कर खेत तैयार करें।

 

 

 

 

(ब) जीवामृत : (एक एकड़ हेतु)
सामग्री :-


1. 10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर
2. 5 से 10 लीटर गोमूत्र
3. 2 किलोग्राम गुड या फलों के गुदों की चटनी
4. 2 किलोग्राम बेसन (चना, उड़द, मूंग)
5. 200 लीटर पानी
6. 50 ग्राम मिट्टी

 

 

 

 

बनाने की विधि


सर्वप्रथम कोई प्लास्टिक की टंकी या सीमेंट की टंकी लें फिर उस पर 200 ली. पानी डाले। पानी में 10 किलोग्राम गाय का गोबर व 5 से 10 लीटर गोमूत्र एवं 2 किलोग्राम गुड़ या फलों के गुदों की चटनी मिलाएं। इसके बाद 2 किलोग्राम बेसन, 50 ग्राम मेड़ की मिट्टी या जंगल की मिट्टी डालें और सभी को डंडे से मिलाएं। इसके बाद प्लास्टिक की टंकी या सीमेंट की टंकी को जालीदार कपड़े से बंद कर दे। 48 घंटे में चार बार डंडे से चलाएं और यह 48 घंटे बाद तैयार हो जाएगा।

अवधि प्रयोग :
इस जीवामृत का प्रयोग केवल सात दिनों तक कर सकते हैं।

 

 

 

 

सावधानियां :-


प्लास्टिक व सीमेंट की टंकी को छाए में रखे जहां पर धूप न लगे।
गोमूत्र को धातु के बर्तन में न रखें।
छाए में रखा हुआ गोबर का ही प्रयोग करें।

 

 

 

 

छिड़काव


जीवामृत को जब पानी सिंचाई करते है तो पानी के साथ छिड़काव करें अगर पानी के साथ छिड़काव नहीं करते तो स्प्रे मशीन द्वारा छिड़काव करें।

पहला छिड़काव बोआई के 15 से 21 दिन बाद 5 ली. छना जीवामृत 100 ली. पानी में घोल कर।

दूसरा छिड़काव बोआई के 30 से 45 दिन बाद 5 ली. छना जीवामृत 100 ली. पानी में घोल कर।

तीसरा छिड़काव बोआई के 45 से 60 दिन बाद 10 ली. छना जीवामृत 150 ली. पानी में घोल कर।

 

 

 

 

60 से 90 दिन की फसलों में


चौथा छिड़काव बोआई के 60 से 75 दिन बाद 20 ली. छना जीवामृत 200 ली. पानी में घोल कर ।

 

 

 

 

90 से 180 दिन की फसलों में


चौथा छिड़काव बोआई के 60 से 75 दिन बाद 10-15 ली. छना जीवामृत 150 ली. पानी में घोल कर। पांचवा छिड़काव बोआई के 75 से 0 दिन बाद 20 ली. छना जवामृत 200 ली. पानी में घोल कर।

छठा छिड़काव बोआई के 90 से 120 दिन बाद 20 ली. छना जीवामृत 200 ली. पानी में घोल कर।

सातवां छिड़काव बोआई के 105 से 150 दिन बाद 25 ली. छना जीवामृत 200 ली. पानी में घोल कर।

आठवां छिड़काव बोआई के 120 से 165 दिन बाद 25 ली. छना जीवामृत 200 ली. पानी में घोल कर। नौवां छिड़काव बोआई के 135 से 180 दिन बाद 25 ली. छना जीवामृत 200 ली. पानी में घोल कर।

दसवां छिड़काव बोआई के 150 से 200 दिन बाद 30 ली. छना जीवामृत 200 ली. पानी में घोल कर।

 

 

 

 

कीटनाशी दवाएं

 

 

 

नीमास्त्र


(रस चूसने वाले कीट एवं छोटी सुंडी इल्लियां के नियंत्रण हेतु) सामग्री :-

1. 5 किलोग्राम नीम या टहनियां
2. 5 किलोग्राम नीम फल/नीम खरी
3. 5 लीटर गोमूत्र
4. 1 किलोग्राम गाय का गोबर

 

 

 

बनाने की विधि


सर्वप्रथम प्लास्टिक के बर्तन पर 5 किलोग्राम नीम की पत्तियों की चटनी, और 5 किलोग्राम नीम के फल पीस व कूट कर डालें एवं 5 लीटर गोमूत्र व 1 किलोग्राम गाय का गोबर डालें इन सभी सामग्री को डंडे से चलाकर जालीदार कपड़े से ढक दें। यह 48 घंटे में तैयार हो जाएगा। 48 घंटे में चार बार डंडे से चलाएं।

अवधि प्रयोग :- नीमास्त्र का प्रयोग छः माह कर सकते है।

 

 

 

सावधानियां :-


1.छाये में रखे धूप से बचाएं।
2. गोमूत्र प्लास्टिक के बर्तन में ले या रखें।

 

 

 

छिड़काव :-


100 लीटर पानी में तैयार नीमास्त्र को छान कर मिलाएं और स्प्रे मशीन से छिड़काव करें।

 

 

 

 

ब्रम्हास्त्र


(अन्य कीट और बड़ी सूंडी इल्लियां)

 

 

 

सामग्री :-


1. 10 लीटर गोमूत्र
2. 3 किलोग्राम नीम की पत्ती की चटनी
3. 2 किलोग्राम करंज की पत्तों की चटनी
4. 2 किलोग्राम सीताफल पत्ते की चटनी
5. 2 किलोग्राम बेल के पत्ते
6. 2 किलोग्राम अंडी के पत्ते की चटनी
7. 2 किलोग्राम धतूरा के पत्ते की चटनी

 

 

 

बनाने की विधि :-


इन सभी सामग्री में से कोई भी पांच सामग्री के मिश्रण को गोमूत्र में मिट्टी के बर्तन पर डाल कर आग में उबाले जैसे चार उबले आ जाए तो आग से उतारकर 48 घंटे छाए में ठंडा होने दें। इसके बाद कपड़े से छानकर भंडारण करे।

 

 

 

 

अवधि प्रयोग:-


ब्रह्मास्त्र का प्रयोग छः माह तक कर सकते हैं।

 

 

 

 

सावधानियां :-


भंडारण मिट्टी के बर्तन में करें।
गोमूत्र धातु के बर्तन में न रखे।

 

 

 

 

छिड़काव :-


एक एकड़ हेतु 100 लीटर पानी में 3 से 4 लीटर ब्रह्मास्त्र मिला कर छिड़काव करें।

 

 

 

 

अग्नी अस्त्र


(तना कीट फलों में होने वाली सूंडी एवं इल्लियों के लिए)

 

 

 

सामग्री :-


1. 20 लीटर गोमूत्र
2. 5 किलोग्राम नीम के पत्ते की चटनी
3. आधा किलोग्राम तम्बाकू का पाउडर
4. आधा किलोग्राम हरी तीखी मिर्च
5. 500 ग्राम देशी लहसुन की चटनी

 

 

 

बनाने की विधि :-


उपयुक्त ऊपर लिखी हुई सामग्री को एक मिट्टी के बर्तन में डालें और आग से चार बार उबाल आने दें। फिर 48 घंटे छाए में रखें। 48 घंटे में चार बार डंडे से चलाएं।

 

 

 

 

अवधि प्रयोग :-


अग्नी अस्त्र का प्रयोग केवल तीन माह तक प्रयोग कर सकते हैं।

 

 

 

 

सावधानियां :-


मिट्टी के बर्तन पर ही सामग्री को उबल आने दे।

 

 

 

 

छिड़काव :-


5 ली. अन्गी अस्त्र को छानकर 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे मशीन या नीम के लेवचा से छिड़काव करें।

 

 

 

 

फंगीसाइड फफूंदनाशक दवा :-


100 लीटर पानी में 3 लीटर खट्टी छाछ (मट्ठा) का खूब अच्छी तरह मिलाकर फसल में छिड़काव करें।

 

 

 

 

तशपर्णी अर्क


(सभी तरह के रस चूसक कीट और सभी इल्लियों के नियंत्रण के लिए)

 

 

 

सामग्री :-


1. 200 लीटर पानी
2. 2 किलोग्राम करंज के पत्ती
3. 2 किलोग्राम सीताफल पत्ते
4. 2 किलोग्राम धतूरा के पत्ते
5. 2 किलोग्राम तुलसी के पत्ते
6. 2 किलोग्राम पपीता के पत्ती
7. 2 किलोग्राम गेंदा के पत्ते
8. 2 किलोग्राम गाय का गोबर
9. 500 ग्राम तीखी हरी मिर्च
10. 200 ग्राम अदरक या सोंठ
11. 5 किलोग्राम नीम के पत्ती
12. 2 किलोग्राम बेल के पत्ते
13. 2 किलोग्राम कनेर के पत्ती
14. 10 लीटर गोमूत्र
15. 500 ग्राम तम्बाकू पीस के या काटकर
16. 500 ग्राम लहसुन
17. 500 ग्राम हल्दी पीसी

 

 

 

बनाने की विधि :-


सर्वप्रथम एक प्लास्टिक के ड्रम में 200 ली. पानी डाले फिर नीम, करंज, सीताफल, धतूरा, बेल, तुलसी, आम, पपीता, कंजरे, गेंदा की पत्ती की चटनी डाले और डंडे से चलाएं फिर दूसरे दिन तम्बाकू, मिर्च, लहसुन, सोठ, हल्दी डाले फिर डंडे से चलाकर जालीदार कपड़े से बंद कर दें और 40 दिन छाए में रखा रहने दे, परंतु सुबह शाम चलाएं।

 

 

 

 

अवधि प्रयोग :-


इसको छः माह तक प्रयोग कर सकते हैं।

 

 

 

 

सावधानियां :-


1. इस दशपर्णी अर्क को छाये में रखें।
2. इसको सुबह शाम चलना न भूले।

 

 

 

 

छिड़काव :-


200 ली. पानी में 5 से 8 ली. दशपर्णी अर्क मिलाकर छिड़काव करें।

 

 

 

 

संदेश


किसान भाइयों /बहनों अपना क्षेत्र कम पानी अर्थात सूखे वाला क्षेत्र है इसमें रासायनिक खेती और महंगी होती जाएगी तथा पैदावार (उत्पादन) घटती जाएगी इसमें पूरी फसल समाप्त होने के खतरे ज्यादा है रासायनिक खेती में रोग स्वयं लगते हैं अपनी खेती खतरे में है इसे बचाएं जीरों बजट/प्राकृतिक खेती अपनाएं

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें :

डॉ. अरविंद खरे
ग्रामोन्नति संस्थान-लंघानपुरा, महोबा (उ.प्र.) 05281-254097
सहयोग : एक्शन एड लखनऊ

 

 

 

 

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