जीर्णोंद्धार की बाट जोह रही आदिगंगा


पश्चिम बंगाल के इतिहास और संस्कृति से जुड़ी आदिगंगा तिल-तिल अपना अस्तित्व खो रही है लेकिन इसे बचाने के लिए न तो केंद्र और न ही पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से कोई कारगर कदम उठाया जा रहा है।

आदिगंगा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना गंगा का। गोमुखी से निकलने वाली गंगा जब पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है तो उसे हुगली कहा जाता है। इसी हुगली नदी की एक शाखा को आदिगंगा कहा जाता है। हेस्टिंग्स के निकट से यह शाखा निकली है जो दक्षिण कोलकाता के कालीघाट, टालीगंज, कूदघाट, बांसद्रोणी, नाकतल्ला, न्यू गरिया से होते हुए विद्याधरी नदी में मिल जाती है। विद्याधरी नदी बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। इसे टॉली का नाला भी कहा जाता है क्योंकि ब्रिटिश मेजर विलियम टॉली ने वर्ष 1776 में इस नदी को गहराया करवाया था ताकि इस रास्ते व्यापार किया जा सके। तब से 50 के दशक तक आदिगंगा गुलजार रही।

इस नदी से व्यापारिक सामानों की आवाजाही होती रही लेकिन धीरे-धीरे इसके अस्तित्व पर खतरा बढ़ने लगा। नदी की इस दयनीय हालत पर मायूस होकर न्यू गरिया निवासी 60 वर्षीय पी.के. नाग कहते हैं, ‘जब से मैंने होश संभाला तब से आदिगंगा को ऐसा ही देख रहा हूँ। जानबूझकर इस नदी की हत्या की जा रही है। बहुत दुःख होता है नदी को देखकर लेकिन हमारे हाथ में कुछ नहीं है।’

आदिगंगा का ऐतिहासिक महत्व भी है। कहा जाता है कि चैतन्य महाप्रभु इसी नदी से होकर ओडिशा गये थे। वे दक्षिण कोलकाता के जिस जगह पर कुछ देर विश्राम किया था आज वह क्षेत्र वैष्णवघाटा के नाम से जाना जाता है। इस नदी के किनारे ही कालीघाट समेत अन्य ऐतिहासिक मंदिर स्थित हैं लेकिन आज नदी की जो हालत है उसे देखकर कहा जा सकता है कि यह कभी भी दम तोड़ सकती है।

आदिगंगा के बीचोंबीच बनाया गया मेट्रो रेलवे का पिलरनदी के दोनों किनारों पर अतिक्रमण के कारण नदी की चौड़ाई कम हो गयी है और शहर का कूड़ा-करकट इसी नदी में बहाया जा रहा है जिस कारण नदी का पानी थमा हुअा है। रही-सही कसर मेट्रो रेलवे ने पूरी कर दी। वर्ष 2000 में मेट्रो रेलवे का दक्षिण कोलकाता की तरफ 8.5 किलोमीटर तक विस्तार करने का फैसला लिया गया। यह फैसला आदिगंगा के ताबूत में आखिरी कील साबित हुअा।

महानगर के पर्यावरणविद और आदिगंगा को बचाने की मुहिम से जुड़े मोहित रे कहते हैं, ‘पहले यह फैसला किया गया था कि मेट्रो रेलवे को नदी के किनारे से ले जाया जायेगा लेकिन अतिक्रमण को हटाने की जोखिम से बचने के लिए राज्य सरकार ने रेलवे मंत्रालय को आदिगंगा से होकर मेट्रो ले जाने की इजाजत दे दी।’

इस फैसले के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट के ग्रीन बेंच में मामला किया गया लेकिन कोर्ट ने रेलवे एक्ट, 1989 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि आदिगंगा में पिलर स्थापित करने के लिए रेलवे को किसी भी तरह के अनापत्ति प्रमाण की जरूरत नहीं। मोहित रे बताते हैं, ‘कोर्ट के इस फैसले ने हमें निराश कर दिया था। हम इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाते लेकिन इसमें अधिक खर्च था जो हमारे वश में नहीं था।’

कोर्ट का फैसला आते ही मेट्रो का काम शुरू हुअा और लगभग 6 किलोमीटर तक आदिगंगा के बीचोंबीच 100 से अधिक पिलर स्थापित कर दिये गये। यही नहीं 5 मेट्रो स्टेशनों को आदिगंगा पर ही स्थापित कर दिया गया। रे इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेवार ठहराते हुए कहते हैं, ‘मेट्रो के विस्तार की योजना से पहले तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने घोषणा की थी कि आदिगंगा में फेरी सेवा (जहाज सेवा) शुरू की जायेगी लेकिन जब मेट्रो के विस्तार का प्रस्ताव आया तो सरकार ने आदिगंगा से होकर मेट्रो ले जाने की इजाजत दे दी।’

वर्षों से आदिगंगा के इस हिस्से की नहीं हुई सफाईसम्प्रति न्यू गरिया तक तो आदिगंगा में पानी दिखता है लेकिन इसके बाद जब नदी दायीं तरफ मुड़ती है तो इसमें पानी नहीं दिखता है। दिखता है तो केवल जलीय जंगल। राज्य सरकार खानापूर्ति के नाम पर कभी कभार जंगलोंं को हटा देती है लेकिन न्यू गरिया के बाद नदी की जो दयनीय हालत है उस पर राज्य सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है।

यहाँ यह भी बताते चलें कि गंगा नदी को बचाने के लिए वर्ष 1986 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने गंगा एक्शन प्लान शुरू किया था। इसके तहत उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा की धारा को अविरल रखने की योजना थी लेकिन इस योजना का लाभ आदिगंगा की झोली में नहीं पहुँचा। सरकारी सूत्रों की मानें तो गंगा एक्शन प्लान के दूसरे चरण के तहत 655.87 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे जिससे आदिगंगा का जीर्णोद्धार किया जाना था लेकिन यह काम कागजों पर ही हुअा।

वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद फिर एकबार गंगा को निर्मल बनाने के लिए योजनाएँ तैयार की गयीं। यहाँ तक कि गंगा के नाम से मंत्रालय भी बना दिया गया लेकिन इसका रत्तीभर भी फायदा आदिगंगा को नहीं मिला। अलबत्ता पश्चिम बंगाल सरकार कह रही है कि आदिगंगा की धारा को अविरल रखने के लिए सभी तरह के प्रयास किये जा रहे हैं और आगे भी किये जायेंगे।

आदिगंगा के ऊपर बना मेट्रो स्टेशनविशेषज्ञों का कहना है कि आदिगंगा को बचाने की चाहे जितनी भी कोशिशें कर ली जायें, जब तक मेट्रो को आदिगंगा से हटाया नहीं जायेगा तब तक सारी कोशिशें सिफर साबित होंगी। विशेषज्ञ इसके लिए दक्षिण कोरिया से सियोल शहर से गुजरने वाली चंग्येचन नदी का उदाहरण देते हैं।

सियोल शहर के बीचोबीच गुजरने वाली चंग्येचन नदी 5 दशक पूर्व आदिगंगा की तरह ही नाले में तब्दील हो गयी थी। 70 के दशक में स्थानीय प्रशासन ने इस नदी के ऊपर सड़क बना दिया और बाद में सड़क के ऊपर फ्लाईओवर का निर्माण कर दिया गया।

शहरीकरण और विकास की इस आंधी ने चंग्येचन नदी को मार दिया था लेकिन यह नदी फिर जिंदा हो गयी। वर्ष 2003 में स्थानीय निगम ने इस नदी को संजीवनी देने की ठानी और इसके लिए फ्लाईओवर और सड़क को तोड़ दिया गया। वर्ष 2006 में यह नदी दुबारा बहने लगी।

पर्यावरणविद हिमांशु ठक्करनदियों पर व्यापक काम करने वाले साउथ एशिया नेटवर्क अॉन डैम्स, रीवर्स एंड पीपल के कोअॉर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर कहते हैं, ‘सिओल की तर्ज पर ही आदिगंगा को पुनरोद्धार किया जा सकता है। मेट्रो को दूसरी ओर शिफ्ट करना होगा। आदिगंगा की ड्रेजिंग करनी होगी और पानी का बहाव जारी रहे यह सुनिश्चित करना होगा।’ठक्कर बताते हैं, ‘इन सबके अलावा नदी के पुनरोद्धार के लिए विशेषज्ञों की टीम बनानी होगी और गहन शोध करना होगा तभी कुछ हो सकता है।’

पर्यावरणविद मोहित रेसिओल शहर का दौरा करने वाले पर्यावरणविद मोहित रे ने कहा, ‘आदि गंगा को अगर बचाना है तो सिओल के मॉडल पर ही काम करना होगा, दूसरा कोई विकल्प नहीं है लेकिन इसके लिए इच्छाशक्ति की जरूरत है।’बहरहाल देखना यह है कि गंगा को माँ कहने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार और तृणमूल कांग्रेस नीत पश्चिम बंगाल सरकार सिओल मॉडल को अपनाकर देश और विश्व के सामने एक नजीर पेश करती है या फिर आदिगंगा को यों ही तिलतिल मरने को छोड़ देती है।
 

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Post By: RuralWater
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