हवा लोगों को जीवन देती है लेकिन अगर यही जीवन लेने लगे तो? सवाल अजीब जरूर है लेकिन इसे झुठलाया नहीं जा सकता है।
हाल ही में एक संस्थान द्वारा किये गये एक शोध में पता चला है कि दिल्ली की आबोहवा जहरीली हो गयी है और लोगों की जिंदगी के दिन कम कर रही है। इंडियन इंस्टीट्यूट अॉफ ट्रौपिकल मेटीरियोलॉजी Indian Institute of Tropical Meteorology (IITM) द्वारा किये गये शोध में पता चला है कि वायु प्रदूषण के चलते दिल्ली के लोगों के जीवनकाल से 6.4 वर्ष कम हो रहे हैं। इसका मतलब यह है कि जिन लोगों की जिंदगी 80 वर्षों की है वे 76 वर्ष ही जी पायेंगे।
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें दिल्ली को विश्व का 11वां सबसे प्रदूषित शहर कहा गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस शोध में 100 देशों के 3 हजार शहरों को शामिल किया गया था।
वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश के 141 शहरों में से 78 प्रतिशत शहरों में पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा सामान्य से अधिक पायी गयी है।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार ने बढ़ते वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सम विषम फॉर्मूला लागू किया था और दावा किया था कि इससे वायु प्रदूषण में कमी आयी है।
इंडियन इंस्टीट्यूट अॉफ ट्रौपिकल मेटीरियोलॉजी (IITM) ने नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च, कोलोरैडो (Centre for Atmospheric Research (NCAR), Colorado) के साथ मिलकर यह शोध किया है। शोध में जो बातें सामने आयी हैं उसने फिर एक बार एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि भारत की राजधानी दिल्ली के लोग क्या इसी तरह जहरीली आबोहवा में जीते रहेंगे?हालांकि शोध में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों की भी हालत बहुत अच्छी नहीं है। शोध में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में अकाल मौत की संख्या बढ़ी है।
राज्य |
पार्टिकुलेट मैटर से हुई अकाल मौतें ( वर्ष 2011) |
उत्तर प्रदेश |
86,000 |
महाराष्ट्र |
56,000 |
पश्चिम बंगाल |
52,000 |
बिहार |
46,000 |
आंध्रप्रदेश |
42,000 |
दिल्ली |
10,000 |
इस शोध में 2011 की जनगणना के आंकड़े लिये गये हैं और पार्टिकुलेट मैटर के आधार पर रिसर्च किया गया है। प्रमुख रूप से पार्टिकुलेट मैटर 2.5 के प्रभाव को लेकर किये गये शोध पत्र के अनुसार वायु प्रदूूषण के कारण महाराष्ट्र में लोगों की उम्र से 3.3 वर्ष कम हो रहे हैं। शोध के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण महाराष्ट्र में 10 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 15 प्रतिशत लोगों की मौत दर्ज की गयी है।
शोध में शामिल इंडियन इंस्टीट्यूट अॉफ ट्रौपिकल मेटीरियोलॉजी विज्ञानी सचिन घुड़े कहते हैं, शोध का परिणाम विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और ग्लोबल बर्डेन अॉफ डिजीजेज (डीबीडी) के अनुमान के समान है लेकिन भौतिक तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि किस व्यक्ति की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई है। घुड़े बताते हैं, शोध के लिए गणितीय नियमों का सहारा लिया गया है और पूूर्व के प्रदूषण और जन स्वास्थ्य के आंकड़े भी शोध का आधार बनाया गया है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि यूरोप और अमेरिका जहाँ वायु प्रदूषण कम है वहाँ इस तरह के शोध खूब होते हैं लेकिन भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं है कि हम वायु प्रदूषण के जीवन पर दीर्घावधि प्रभाव के बारे में पता कर सके।
शोध में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में 9 प्रतिशत और बिहार में 8 प्रतिशत लोगों की मौत वायु प्रदूूषण के कारण होती है। शोध के अनुसार पश्चिम बंगाल में लोगों की उम्र से 6.1 वर्ष और बिहार में 5.7 वर्ष कम हो रहे हैं। अन्य राज्य जहाँ वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा जीवन लील रहा है वे हैं आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, ओडिशा औऱ राजस्थान।
राष्ट्रीय स्तर देखा जाए तो वायु प्रदूषण के चलते 32 प्रतिशत लोगों की अकाल मौत हो रही है यानी हर वर्ष 5.7 लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण अकाल काल के गाल में समा रहे हैं।
रिसर्च में ओजोन के चलते होने वाली मौतों के बारे में भी बताया गया है। शोध में कहा गया है कि ओजोन के चलते भारत में जितनी मौतें होती हैं उनमें से 7 प्रतिशत मौत महाराष्ट्र में, 18 प्रतिशत मौत उत्तर प्रदेश में, 11 प्रतिशत मौत बिहार में और 9.5 प्रतिशत मौत पश्चिम बंगाल में होती है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि पार्टिकुलेट मैटर 2.5 का उत्सर्जन वाहनों के चलते होता है। पार्टिकुलेट मैटर के चलते फेफड़े का रोग होता है जो अंततः मौत का कारण बनता है।
इंडियन इंस्टीट्यूट अॉफ ट्रौपिकल मेटीरियोलॉजी का यह शोध जोग्राफिकल रिसर्च लेटर्स (जीपीएल) Geophysical Research Letters (GPL) में पिछले हफ्ते छपा था।
शोध में यह भी कहा गया है कि प्रदूषण के कारण 640 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान भी हुआ है। चिकित्सकों का इस संबंध में कहना है कि वायु प्रदूषण हार्ट अटैक व ब्लड प्रेशर को बढ़ावा देता है। पुणे के चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन के डायरेक्टर संदीप साल्वी ने कहा, पार्टिकुलेट मैटर हृदय के आलावा रक्त के माध्यम से फेफड़े में प्रवेश कर जाता है जिससे हार्ट अटैक और ब्लड प्रेशर की समस्या होती है।
राज्य |
वायु प्रदूषण से कितनी घटी उम्र |
दिल्ली |
6.4 साल |
पश्चिम बंगाल |
6.1 साल |
बिहार |
5.7 साल |
झारखंड |
5.2 साल |
ओडिशा |
4.8 साल |
घुड़े ने कहा कि इस तरह के शोध का भारत में कोई मॉडल नहीं था। अाईअाईटीएम विज्ञानी ने खुद से मॉडल तैयार किया और एनसीएअार के विज्ञानियों ने इसे प्रमाणित करने में मदद की। यहाँ यह भी बताे चलें कि वायु प्रदूषण से मौत को लेकर पहली रिपोर्ट 2014 में प्रकाशित हुई थी। शोध में इसके आंकड़ों को आधार बनाया गया है।
शोध की मानें तो पार्टिकुलेट मैटर 2.5 में आने वाले दिनों में और बढ़ोतरी हो सकती है जिससे मुश्किलें और बढ़ेंगी। घुड़े कहते हैं, तेजी से हुए शहरीकरण, कल-कारखानों की बहुलता और वाहनों की बढ़ी संख्या के चलते पिछले 2 दशकों में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए अभी से ठोस कदम नहीं उठाये गये तो आने वाले में हालात बेकाबू हो जायेंगे और तब करने को भी कुछ नहीं रह जायेगा।
मौलिक रिसर्च पढ़ने के लिये अटैचमेंट देखें।
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