एक बार जीन बाहर आ जाए तो इसे रोकने का कोई रास्ता नहीं है।
इसका लंबे समय से डर था। सामाजिक कार्यकर्ता और सजग वैज्ञानिक इसकी चेतावनी दे चुके थे, किंतु सरकार ने आंखें मूंदे रखीं। अब डर सच साबित हो चुका है। इसने पर्यावरण प्रदूषण के एक और विनाशकारी रूप-जीन प्रदूषण पर चिंता बढ़ा दी है।
जीएम धान
दिल्ली के एक अनुसंधान संगठन 'जीन कैंपेन' ने पता लगाया है कि बीज कंपनी मायको द्वारा झारखंड में अनुसंधान प्रयोग के नाम पर बोया गया सामान्य चावल दरअसल जीन परिवर्तित चावल था और इसमें जीन के विषैले तत्व पाए गए थे। दूसरे शब्दों में जीएम चावल में जमीन के एक ऐसे विषाणु की जीन थी, जो कीटों को नियंत्रित रखता था। यह जीन पड़ोस में बोए गए धान की सामान्य किस्म में भी प्रवेश कर गया।
सुदूर कर्नाटक के मैसूर में कपास किसान भी बेहद चिंतित हैं। वे लंबे समय से जैव कपास की खेती करते आ रहे थे, किंतु अब वे खुद को जीन परिवर्तित बीटी कपास की फसल से घिरे पा रहे हैं। बीटी कपास के डर से वे नियमित अंतराल पर परीक्षण करा रहे हैं और स्थिति पर बराबर नजर रख रहे हैं। अब तक उन्हें अपने खेतों में बीटी जीन नहीं मिला, लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी!
मैं बताता हूं कि जीन प्रदूषण की राम कहानी क्या है।
कुछ साल पहले ओमान ने भारत से असामान्य पेशकश की। तेल से धनी यह देश राजस्थान की सूखे और रेतीले इलाकों में पैदा होने वाले थारपारकर नस्ल के चार पशु चाहता था। थारपारकर नाम इन पशुओं की अद्भुत जीन विशेषता के कारण मिला है, जिस कारण ये राजस्थान के विशाल थार रेगिस्तान को पार कर जाते हैं। इन पशुओं को हासिल करने की यह कोशिश विफल हो गई। तब यह महसूस हुआ कि सघन पशु प्रजनन कार्यक्रम के तहत भारतीय पशुओं को जर्सी और हाल्सटीन फ्रीसिएन नस्लों के साथ संकर नस्ल में बदलने के भेदभावरहित कार्यक्रम और आपरेशन फ्लड के कारण भारत के 80 फीसदी से अधिक पशु नान डिस्क्रिप्ट श्रेणी में पहुंच गए हैं।
एक ऐसे देश जिसमें विश्व में पशुओं की सबसे अधिक संख्या हैं, में आनुवांशिक विकारों की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। भारत की एक दर्जन से अधिक पशु प्रजातियां गायब हो चुकी हैं। पशुओं से संबंधित भारत की अनोखी आनुवांशिक विविधता और संपदा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।
वाहनों से होने वाले प्रदूषण के विपरीत आनुवांशिक प्रदूषक तत्वों में गुणात्मक वृद्धि की क्षमता होती है। दिल्ली की सड़कों को जाम कर चुके वाहनों के विपरीत इन्हीं सड़कों पर घूमते पशु पीढ़ी दर पीढ़ी आनुवांशिक विकारों के वाहक बने रहेंगे।
उच्चतम न्यायालय सरकार पर दबाव बनाकर कम प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन के इस्तेमाल का आदेश दे सकता है, लेकिन आनुवांशिक प्रदूषण रोकने के लिए उसके पास भी कोई विचार नहीं है। पर्यावरण प्रदूषण को लेकर तो तरह-तरह के विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं, लेकिन पशुओं में आनुवांशिक विकार से कोई गुस्सा नहीं फूटा। यही हालत चावल की नस्ल में आए विकार के संदर्भ में भी है।
आर्थिक विकास की तरह ही भारत के लिए जीवनदायी पेड़ पौधों और जीव-जंतुओं के आनुवांशिक संसाधनों को बचाने के लिए जिम्मेदार वैज्ञानिक और प्रशासनिक तंत्र ने इस ओर से आंखें मूंद ली हैं और इस विकार को न्यायोचित ठहरा रहे हैं। वैज्ञानिक समुदाय अब तक हमें बताता आया है कि आनुवांशिक विविधता रोगों, कीटों, जलवायु परिवर्तन और जैव प्रौद्योगिकीय हादसों से मानवता की रक्षा का कवच है, किंतु जब बात आनुवांशिक विकार की आती है तो ये चुप्पी साध जाते हैं।
2002 में बीटी कपास की व्यावसायिक फसल को मंजूरी देने के तुरंत बाद एक व्यापार मेला संगठन ने महाराष्ट्र के इलाके से तीन साल तक जैविक कपास खरीदी। इससे धागा और धागे से वस्त्र बनाकर जापान को निर्यात किए, जो इसी प्रकार के आनुवांशिक विकार से त्रस्त थे। विदर्भ की कपास उत्पादक पट्टी से वह और 'स्ट्रेट वैरायटी' बीज हासिल नहीं कर पाए।
'स्ट्रेट वैरायटी' बीज पौधे के आनुवांशिकी चरित्र की स्थायित्व का द्योतक है। यह प्रमाणित जैव कपास उत्पादन के लिए जरूरी है। डीएनए परीक्षणों से यह स्पष्ट हो गया है कि कपास की किस्मों, जिनमें उच्च पैदावार वाली किस्में भी शामिल हैं, में वर्णसंकर खोट है। इस कारण आनुवांशिक ढांचे का स्थायित्व नष्ट हो गया है।
अब बीटी कपास के प्रवेश से आनुवंशिक विकार और भी विकृत हो जाएंगे। हाल ही में बायोटेक्नालाजी उद्योग यूनिवर्सिटी आफ कैलिफार्निया के दो वैज्ञानिकों के अनुसंधान की प्रतिष्ठा गिराने पर तुल गया।
मैक्सिको के पौध जीव विज्ञानी इग्नासियो कैपेला और उनके छात्र डेविड क्विस्ट इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निशाने पर हैं, क्योंकि उन्होंने यह स्थापित किया है कि मैक्सिको की मक्का पट्टी में जीन परिवर्तित फसल फैल गई है। संयोगवश, मैक्सिको मक्का की उत्पत्ति का मूल स्थान है। इस प्रकार के आनुवांशिक विकार अंतत: विश्व की उपलब्ध आनुवांशिक मौलिकता को नष्ट कर देंगे। मैक्सिको के राष्ट्रीय जैव विविधता आयोग ने इन स्थापनाओं को स्वीकार किया है।
आयोग के अनुसार दो अलग-अलग टीमों ने ओक्साका प्रांत से लिए गए नमूनों में दस प्रतिशत फसलों में ट्रांसजेनिक डीएनए पाया। इन टीमों ने इसे जीन संवर्धित प्रदूषण का सबसे अधिक खराब मामला बताया। टीम ने यह पाया कि यह जीन प्रदूषण अमेरिका से आई खाद्य सामग्री में मौजूद तत्वों का परिणाम है।
यह कहना कि जेनेटिक प्रदूषण से चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, अपने आपको धोखा देना है। इस खतरे के प्रति हमें तुरंत सचेत होना होगा। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो जेनेटिक क्षय के साथ जेनेटिक प्रदूषण हमारी फसलों की मौलिकता को नष्ट कर देगा। इसमें दो राय नहीं कि ऐसी स्थिति हमारे समक्ष गंभीर खाद्य संकट उत्पन्न करेगी।
इसका लंबे समय से डर था। सामाजिक कार्यकर्ता और सजग वैज्ञानिक इसकी चेतावनी दे चुके थे, किंतु सरकार ने आंखें मूंदे रखीं। अब डर सच साबित हो चुका है। इसने पर्यावरण प्रदूषण के एक और विनाशकारी रूप-जीन प्रदूषण पर चिंता बढ़ा दी है।
जीएम धान
दिल्ली के एक अनुसंधान संगठन 'जीन कैंपेन' ने पता लगाया है कि बीज कंपनी मायको द्वारा झारखंड में अनुसंधान प्रयोग के नाम पर बोया गया सामान्य चावल दरअसल जीन परिवर्तित चावल था और इसमें जीन के विषैले तत्व पाए गए थे। दूसरे शब्दों में जीएम चावल में जमीन के एक ऐसे विषाणु की जीन थी, जो कीटों को नियंत्रित रखता था। यह जीन पड़ोस में बोए गए धान की सामान्य किस्म में भी प्रवेश कर गया।
सुदूर कर्नाटक के मैसूर में कपास किसान भी बेहद चिंतित हैं। वे लंबे समय से जैव कपास की खेती करते आ रहे थे, किंतु अब वे खुद को जीन परिवर्तित बीटी कपास की फसल से घिरे पा रहे हैं। बीटी कपास के डर से वे नियमित अंतराल पर परीक्षण करा रहे हैं और स्थिति पर बराबर नजर रख रहे हैं। अब तक उन्हें अपने खेतों में बीटी जीन नहीं मिला, लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी!
मैं बताता हूं कि जीन प्रदूषण की राम कहानी क्या है।
कुछ साल पहले ओमान ने भारत से असामान्य पेशकश की। तेल से धनी यह देश राजस्थान की सूखे और रेतीले इलाकों में पैदा होने वाले थारपारकर नस्ल के चार पशु चाहता था। थारपारकर नाम इन पशुओं की अद्भुत जीन विशेषता के कारण मिला है, जिस कारण ये राजस्थान के विशाल थार रेगिस्तान को पार कर जाते हैं। इन पशुओं को हासिल करने की यह कोशिश विफल हो गई। तब यह महसूस हुआ कि सघन पशु प्रजनन कार्यक्रम के तहत भारतीय पशुओं को जर्सी और हाल्सटीन फ्रीसिएन नस्लों के साथ संकर नस्ल में बदलने के भेदभावरहित कार्यक्रम और आपरेशन फ्लड के कारण भारत के 80 फीसदी से अधिक पशु नान डिस्क्रिप्ट श्रेणी में पहुंच गए हैं।
एक ऐसे देश जिसमें विश्व में पशुओं की सबसे अधिक संख्या हैं, में आनुवांशिक विकारों की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। भारत की एक दर्जन से अधिक पशु प्रजातियां गायब हो चुकी हैं। पशुओं से संबंधित भारत की अनोखी आनुवांशिक विविधता और संपदा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।
वाहनों से होने वाले प्रदूषण के विपरीत आनुवांशिक प्रदूषक तत्वों में गुणात्मक वृद्धि की क्षमता होती है। दिल्ली की सड़कों को जाम कर चुके वाहनों के विपरीत इन्हीं सड़कों पर घूमते पशु पीढ़ी दर पीढ़ी आनुवांशिक विकारों के वाहक बने रहेंगे।
उच्चतम न्यायालय सरकार पर दबाव बनाकर कम प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन के इस्तेमाल का आदेश दे सकता है, लेकिन आनुवांशिक प्रदूषण रोकने के लिए उसके पास भी कोई विचार नहीं है। पर्यावरण प्रदूषण को लेकर तो तरह-तरह के विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं, लेकिन पशुओं में आनुवांशिक विकार से कोई गुस्सा नहीं फूटा। यही हालत चावल की नस्ल में आए विकार के संदर्भ में भी है।
आर्थिक विकास की तरह ही भारत के लिए जीवनदायी पेड़ पौधों और जीव-जंतुओं के आनुवांशिक संसाधनों को बचाने के लिए जिम्मेदार वैज्ञानिक और प्रशासनिक तंत्र ने इस ओर से आंखें मूंद ली हैं और इस विकार को न्यायोचित ठहरा रहे हैं। वैज्ञानिक समुदाय अब तक हमें बताता आया है कि आनुवांशिक विविधता रोगों, कीटों, जलवायु परिवर्तन और जैव प्रौद्योगिकीय हादसों से मानवता की रक्षा का कवच है, किंतु जब बात आनुवांशिक विकार की आती है तो ये चुप्पी साध जाते हैं।
2002 में बीटी कपास की व्यावसायिक फसल को मंजूरी देने के तुरंत बाद एक व्यापार मेला संगठन ने महाराष्ट्र के इलाके से तीन साल तक जैविक कपास खरीदी। इससे धागा और धागे से वस्त्र बनाकर जापान को निर्यात किए, जो इसी प्रकार के आनुवांशिक विकार से त्रस्त थे। विदर्भ की कपास उत्पादक पट्टी से वह और 'स्ट्रेट वैरायटी' बीज हासिल नहीं कर पाए।
'स्ट्रेट वैरायटी' बीज पौधे के आनुवांशिकी चरित्र की स्थायित्व का द्योतक है। यह प्रमाणित जैव कपास उत्पादन के लिए जरूरी है। डीएनए परीक्षणों से यह स्पष्ट हो गया है कि कपास की किस्मों, जिनमें उच्च पैदावार वाली किस्में भी शामिल हैं, में वर्णसंकर खोट है। इस कारण आनुवांशिक ढांचे का स्थायित्व नष्ट हो गया है।
अब बीटी कपास के प्रवेश से आनुवंशिक विकार और भी विकृत हो जाएंगे। हाल ही में बायोटेक्नालाजी उद्योग यूनिवर्सिटी आफ कैलिफार्निया के दो वैज्ञानिकों के अनुसंधान की प्रतिष्ठा गिराने पर तुल गया।
मैक्सिको के पौध जीव विज्ञानी इग्नासियो कैपेला और उनके छात्र डेविड क्विस्ट इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निशाने पर हैं, क्योंकि उन्होंने यह स्थापित किया है कि मैक्सिको की मक्का पट्टी में जीन परिवर्तित फसल फैल गई है। संयोगवश, मैक्सिको मक्का की उत्पत्ति का मूल स्थान है। इस प्रकार के आनुवांशिक विकार अंतत: विश्व की उपलब्ध आनुवांशिक मौलिकता को नष्ट कर देंगे। मैक्सिको के राष्ट्रीय जैव विविधता आयोग ने इन स्थापनाओं को स्वीकार किया है।
आयोग के अनुसार दो अलग-अलग टीमों ने ओक्साका प्रांत से लिए गए नमूनों में दस प्रतिशत फसलों में ट्रांसजेनिक डीएनए पाया। इन टीमों ने इसे जीन संवर्धित प्रदूषण का सबसे अधिक खराब मामला बताया। टीम ने यह पाया कि यह जीन प्रदूषण अमेरिका से आई खाद्य सामग्री में मौजूद तत्वों का परिणाम है।
यह कहना कि जेनेटिक प्रदूषण से चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, अपने आपको धोखा देना है। इस खतरे के प्रति हमें तुरंत सचेत होना होगा। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो जेनेटिक क्षय के साथ जेनेटिक प्रदूषण हमारी फसलों की मौलिकता को नष्ट कर देगा। इसमें दो राय नहीं कि ऐसी स्थिति हमारे समक्ष गंभीर खाद्य संकट उत्पन्न करेगी।
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