जिला पंचायत बोर्ड बैठक में रखी काली नदी की व्यथा

नदी किनारे बसे ग्रामीणों का जीवन नरक बना हुआ है। ये ग्रामीण बुझे मन से बखान करते हैं कि आज से बीस बरस पूर्व तक इस नदी का पानी पीने में व नहाने तक में इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन आज इसमें हाथ भी नहीं दे सकते। एक चीज जो नहीं बदली है वह यह कि किसानों द्वारा इस नदी के पानी से आज भी सिंचाई की जाती है। लेकिन आज भारी तत्वों व कीटनाशकों से प्रभावित इस पानी से फसलों की सिंचाई करने से जहां फसलों में भारी तत्व व कीटनाशक प्रवेश कर गए हैं वहीं मिट्टी में भी ये तत्व मिल चुके हैं।

नीर फाउंडेशन, मेरठ व इंडिया वॉटर पार्टनरशिप, नई दिल्ली द्वारा विश्व जल दिवस दिवस को विश्व जल वीक के रूप में मनाया जा रहा है। इसमें 22 से 24 मार्च, 2012 तक प्रत्येक दिन जल संरक्षण संबंधी विभिन्न प्रकार की गतिविधियां की जानी हैं। आज जिला पंचायत सभागार में जिला पंचायत की बोर्ड बैठक के पश्चात काली नदी के संबंध में एक प्रजेंटेशन प्रस्तुत किया गया। प्रजेंटेशन प्रस्तुत करते हुए रमन ने जानकारी दी कि काली नदी गंगा की सहायक नदी के रूप में जानी जाने वाली लगभग 300 किलोमीटर लम्बी काली नदी (पूर्व) जो कि मुजफ्फरनगर जनपद की जानसठ तहसील के अंतवाड़ा गांव से प्रारम्भ होकर मेरठ, गाजियाबाद, बुलन्दशहर, अलीगढ़, एटा व फर्रूखाबाद के बीच से होते हुए अन्त मे कन्नौज में जाकर गंगा में मिल जाती है। कुछ लोग इसका उद्गम अंतवाड़ा के एक किलोमीटर ऊपर चितौड़ा गांव से मानते हैं।

यह नदी उद्गम स्रोत से मेरठ तक एक छोटे नाले के रूप में बहती है जबकि आगे चलकर नदी का रूप ले लेती है। हमेशा टेढ़ी-मेढ़ी व लहराकर बहने वाली इस नदी को नागिन के नाम से भी जाना जाता है, जबकि कन्नौज के पास यह कालिन्द्री के नाम से मशहूर है। वर्तमान में यह भयंकर प्रदूषण की चपेट में है। वर्ष 1999-2001 केंद्रीय भू-जल बोर्ड की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, नदी की कुल लम्बाई में से एकत्र किए गए सैंकड़ों जलीय नमूनों (नदी जल व हैण्डपम्प) के परीक्षण से बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य निकलकर सामने आए थे। इन नमूनों में लेड, क्रोमियम, लोहा, कॉपर व जिंक आदि तत्व पाए गए थे। रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरनगर जनपद के चिढोड़ा, याहियापुर व जामड़, मेरठ जनपद के धन्जु, देदवा, उलासपुर, बिचैला, मैंथना, रसूलपुर, गेसूपुर, कुढ़ला, मुरादपुर बढ़ौला, कौल, जयभीमनगर व यादनगर, गाजियाबाद में अजराड़ा व हापुड़, बुलन्दशहर जनपद के अकबरपुर, साधारनपुर व उत्सरा, अजीतपुर, लौगहरा, मनखेरा, बकनौरा व आंचरूकला, अलीगढ़ के मैनपुर, सिकन्दरपुर व रसूली तथा कन्नौज के राजपुरा, बालीपुरा व नवीनगंज आदि गांव नदी के प्रदूषण से बुरी तरह से ग्रस्त हैं।

इन गांवों का जीवन शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता के चलते मुश्किलों भरा हो चुका है। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ व गाजियाबाद क्षेत्र के आस-पास 30-35 मीटर नीचे तक की गहराई में भारी तत्व तय सीमा से अत्यधिक मात्रा में पाए गए हैं। वहीं नीर फाउंडेशन द्वारा इंटरनेशनल वॉटर एशोसिएशन, नीदरलैण्ड व वर्ल्ड एन्वायरन्मेंट फेडरेशन, यूके के सहयोग से वर्ल्ड वॉटर मॉनिटिरिंग डे के तहत भी नदी जल के नमूनों के परीक्षण में शाबित हो चुका है कि नदी में ऑक्सीजन नहीं है, टरबिडिटी 100 जेटीयू तथा पीएच 10 से भी अधिक है। कभी शुद्ध व निर्मल जल लेकर बहने वाली यह नदी आज उद्योगों (शुगर मिलों, पेपर मिल, रासायनिक उद्योग), घरेलू बहिस्राव, मृत पशुओं का नदी में बहिस्राव, शहरों, कस्बों, कमेलों व कृषि का गैर-शोधित कचरा ढोने का साधन मात्र बनकर रह गई है। मेरठ सहित सभी शहरों व कस्बों का शहरी कचरा भी इसी नदी में समाहित होता है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार इस नदी के पानी में अत्यधिक मात्रा में लेड, मैग्नीज व लोहा जैसे भारी तत्व व प्रतिबंधित कीटनाशक अत्यधिक मात्रा में घुल चुके हैं।

जिला पंचायत बोर्ड बैठक में काली नदी के बारे में बात करते नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन त्यागीजिला पंचायत बोर्ड बैठक में काली नदी के बारे में बात करते नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन त्यागीइसका पानी वर्तमान में किसी भी प्रयोग का नहीं है। इसके पानी में इतनी भी ऑक्सीजन की मात्रा नहीं बची है जिससे कि मछलियां व अन्य जलीय जीव जीवित रह सकें। नदी के प्रदूषण का आलम यह है कि पहले इसके पानी में सिक्का डालने पर वह तली में पड़ा हुआ चमकता रहता था लेकिन आज उसके पानी को हथेली में लेने से हाथ की रेखाएं भी नहीं दिखती हैं। गौरतलब है कि उद्गम से लेकर गंगा में मिलने तक की दूरी में इसके किनारे करीब 1200 गांव, बड़े शहर व कस्बे बसे हुए हैं। इतनी बड़ी संख्या में इसके किनारे आबादी का बसा होना यही तय करता है कि सभ्यताएं वहीं बसती थीं जहां पानी के उचित साधन मौजूद हों। लेकिन इसके किनारे बसी आबादी नदी के प्रदूषण से बुरी तरह ग्रस्त है यही कारण है कि जो सभ्यताएं इसके किनारे बसी व विकसित हुई थीं वे अब प्रगति के चरम पर पहुंचकर मिटने के कगार पर पहुंच गई हैं। इस नदी में भयंकर प्रदूषण के चलते आस-पास बसे गांवों का भूजल भी प्रदूषित हो गया है। इन गांवों के हैण्डपम्पों से निकलने वाले पानी में वही भारी तत्व माजूद हैं जोकि नदी के पानी में बहते हैं।

कोई अन्य वैकल्पिक व्यवस्था न होने के कारण ग्रामीण इसी प्रदूषित पानी को पी रहे हैं तथा गंभीर व जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। इस पानी की विषाक्तता के चलते ग्रामीणों को कैंसर, पेट संबंधी, दिल संबंधी व दिमाग संबंधी बीमारियों ने घेर लिया है तथा पुरुषों की पौरूषता व महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व मेरठ जनपद स्थित आढ़ व कुढ़ला गांवों में नदी के प्रदूषण से प्रभावित हैण्डपम्प का पानी पीने से बच्ची की मौत तक हो गई थी। यही नहीं मेरठ के कुनकुरा गांव में नदी का पानी पीने से दो दर्जन मोर तत्काल मौत की नींद सो गए थे। जो पशु भी गलती से इसका पानी पी लेता है तो उसकी मौत हो जाती है। पशुओं व अन्य जानवरों की इसके पानी को पीने के कारण मरने की खबरें समय-समय पर सुनने को मिलती ही रहती हैं। यही नहीं जलालपुर गांव में पुल के अभाव में पशुओं को नदी में से निकलकर दूसरे छोर पर जाना पड़ता है जिससे कि उनकी त्वचा फफूंड जाती है।

नदी किनारे बसे ग्रामीणों का जीवन नरक बना हुआ है। ये ग्रामीण बुझे मन से बखान करते हैं कि आज से बीस बरस पूर्व तक इस नदी का पानी पीने में व नहाने तक में इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन आज इसमें हाथ भी नहीं दे सकते। एक चीज जो नहीं बदली है वह यह कि किसानों द्वारा इस नदी के पानी से आज भी सिंचाई की जाती है। लेकिन आज भारी तत्वों व कीटनाशकों से प्रभावित इस पानी से फसलों की सिंचाई करने से जहां फसलों में भारी तत्व व कीटनाशक प्रवेश कर गए हैं वहीं मिट्टी में भी ये तत्व मिल चुके हैं। नीर फाउंडेशन के एक अध्ययन में पाया गया था कि नदी किनारे के गांवों में जो सब्जियां पैदा की जाती हैं उनमें भरपूर मात्रा में कीटनाशक मौजूद हैं। ये सब्जियां ही बाजार में बेची जा रही हैं तथा उपभोक्ताओं के घरों तक पहुंच रही हैं। यह भी दुःखद है कि जिन सब्जियों को शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खाया जाता है वे सब्जियां आज बीमारियां परोस रही हैं। मानव के साथ-साथ इसके प्रदूषण से पशु भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं।

संस्था आप सभी से अपील करती है कि मेरठ से होकर बहने वाली काली नदी को बचाने में अपना सहयोग दें। इस दौरान जिला पंचायत अध्यक्ष मनिंदर पाल सिंह, जिला पंचायत अधिकारी भीकम सिंह, सभी जिला पंचायत सदस्य व बोर्ड के सदस्य उपस्थित थे।

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