ज़हरीली यमुना से हो रही सबकी सांसत

प्रदूषित यमुना से संकट में जीवन
प्रदूषित यमुना से संकट में जीवन
मैली यमुना के पानी से धर्म और आस्था के साथ खिलवाड़ के साथ किसान, जंगली जानवर, परिंदे, पेड़-पौधे सबका अस्तित्व संकट में पड़ गया है। भारतीय किसान यूनियन के सचिव रामचंद्र राजपूत कहते हैं कि यमुना के जहरीले पानी से अब किसानों को केवल ट्यूबवेल का सहारा रह गया है और बदरपुर से संगम तक की लाखों एकड़ ज़मीन पर सिंचाई के मद में लाखों करोड़ों रुपए का खर्च बढ़ गया है। जब से यमुना जी रूठी हैं, तब से हमारा नसीब रूठ गया है।

सूर्यपुत्री यमुना के जल से आचमन के लिए अब बरसाने की राधा, वृंदावन के बांकेबिहारी और मथुरा के रंगनाथ जी तरसने लगे हैं, तो बदरपुर से संगम तक यमुना पट्टी के किनारे किसानों की लाखों एकड़ ज़मीन ट्यूबवेलों की मोहताज हो गई है। यमुना जल के बजाय ट्यूबवेलों के पानी से सिंचाई करने को मजबूर किसानों पर लाखों-करोड़ों का अतिरिक्त खर्च बढ़ गया है।

यमुना मुक्ति यात्रा में चल रहे किसान बताते हैं कि पानी के अभाव में खेती करना मुश्किल हो गया, तो जंगली जानवर अब पानी पीने के लिए यमुना के बजाय मैदानी और बस्ती वाले इलाकों में लगे ट्यूबवेलों की ओर आने लगे हैं। वे न केवल फसल को उजाड़ रहे हैं बल्कि मानव बस्तियों के लिए खतरा बन गए हैं। यमुना के जहरीले पानी ने गांव के कुओं तक का पानी प्रदूषित कर दिया है।

यमुना मुक्ति यात्रा में उस पार गांव के राजेंद्र सिंह राजपूत कहते हैं कि उनके पास 6 एकड़ ज़मीन है। 10 साल पहले तक वह यमुना के पानी से न केवल सिंचाई करते थे बल्कि उसे पी भी लेते थे। लेकिन यमुना के पानी से इतनी बदबू आती है कि उससे आधा किलोमीटर के दायरे में सांस ले पानी मुश्किल हो जाता है। बेरुका के किसान ओमवीर सिंह का कहना है कि यमुना का पानी जहरीला होने से खेती का बंटाधार हो गया है। यमुना जल के बजाय ट्यूबवेलों से सिंचाई की निर्भरता बढ़ी है। किसान को हर फसल पर 8-10 हजार रुपए पानी के मद में अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है।

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