प्रदूषित हवा के चलते भारत में हर साल छह लाख जबकि दुनियाभर में साठ लाख लोगों की जान जा रही है। यह खुलासा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में किया है। रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में वायु प्रदूषण की वजह से हर साल आठ लाख मौतें हो रही हैं। इनमें 75 फीसदी से ज्यादा मौतें भारत में हो रही हैं। दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र से हवा के लिये गए नमूने बदतर स्थिति को बता रहे हैं। दस में से नौ लोग ऐसी हवा में साँस ले रहे हैं, जो उनकी सेहत को नुकसान पहुँचा रही है। यह तस्वीर चिन्ताजनक है। 2012 के आँकड़ों के मुताबिक भारत में दो लाख 49 हजार 388 लोगों की मौत हृदय रोग, एक लाख 95 हजार एक मौत हार्ट अटैक, एक लाख 10 हजार पाँच सौ मौतें फेफड़ों की बीमारी और 26 हजार 334 मौतें फेफड़ों की कैंसर से हुई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आठ अन्तरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर दुनिया भर के तीन हजार शहरों और कस्बों की हवा का विश्लेषण किया है।
इसमें बाहरी और अंदरूनी वायु प्रदूषण के तहत पीएम 2.5 और पीएम 10 प्रदूषकों के स्तर को मापा गया। कई शहरों में प्रदूषक तत्व डब्ल्यूएचओ के तय मापदण्ड 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक पाये गए। रिपोर्ट के मुताबिक 92 फीसदी वैश्विक जनसंख्या उन इलाकों में रह रही है, जहाँ वायु प्रदूषण का स्तर सबसे ऊँचा है। चीन में इससे 10.21 लाख मौतें हुई हैं, जो सबसे अधिक है। भारत में दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहर है, जहाँ वायु प्रदूषण का स्तर पीएम 10 है। यहाँ इसका स्तर तकरीबन 2.35 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है।
पिछले साल यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो, हावर्ड और येल के अर्थशास्त्रियों की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के उन देशों में शुमार है, जहाँ वायु प्रदूषण का स्तर सबसे ऊँचा है। इसकी वजह से यहाँ मौत लोगों को समय से तीन साल पहले ही अपने आगोश में ले रही है। रिपोर्ट आगे बताती है कि अगर भारत अपने वायु मानकों को पूरा करने के लिये इस आँकड़े को उलट देता है तो इससे 66 करोड़ लोगों के जीवन के 3.2 वर्ष बढ़ जाएँगे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत की आधी आबादी यानी 66 करोड़ लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहाँ सूक्ष्म कण पदार्थ (पार्टिकुलेट मैटर) प्रदूषण मानकों से ऊपर है। अगर भारत वायु प्रदूषण पर जल्दी काबू नहीं करता है तो 2025 तक अकेले दिल्ली में ही इससे हर वर्ष 26,600 लोगों की मौत होगी। यूनिवर्सिटी ऑफ कैरोलीना के जैसन वेस्ट के एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण से सबसे अधिक मौत दक्षिण और पूर्व एशिया में होती है।
आँकड़े बताते हैं कि हर साल मानव निर्मित वायु प्रदूषण से 4 लाख 70 हजार और औद्योगिक इकाइयों से उत्पन्न प्रदूषण से 21 लाख लोग दम तोड़ते हैं। गत वर्ष दुनिया की जानी-मानी पत्रिका ‘नेचर’ ने भी खुलासा किया कि अगर जल्द ही हवा की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ तो 2050 तक प्रत्येक वर्ष 66 लाख लोगों की जान जा सकती है। यह रिपोर्ट जर्मनी के मैक्स प्लेंक इंस्टीट्यूट ऑफ केमेस्ट्री के प्रोफेसर जोहान लेलिवेल्ड और उनके शोध दल ने तैयार किया था। इसमें प्रदूषण फैलने के दो प्रमुख कारण गिनाए गए हैं। इनमें एक पीएम 2.5 एस विषाक्त कण और दूसरा वाहनों से निकलने वाली गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड है। रिपोर्ट में आशंका जाहिर की गई है कि भारत और चीन में वायु प्रदूषण की समस्या गहरा सकती है, क्योंकि इन देशों में खाना पकाने के लिये कच्चे ईंधन का इस्तेमाल होता है। अगर इससे निपटने की तत्काल रणनीति तैयार नहीं की गई तो विश्व की बड़ी जनसंख्या को वायु प्रदूषण का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
डब्ल्यूएचओ वायु प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम के बारे में जागरूकता बढ़ाने की अपील की है। लेकिन इस पर अमल नहीं हो रहा है। उपग्रहों से दुनिया के 189 शहरों की तस्वीर ली गई है। इसके आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक है। देश के शहरों के वायुमंडल में गैसों का अनुपात बिगड़ता जा रहा है और उसे लेकर किसी तरह की सतर्कता नहीं बरती जा रही। हाल के वर्षों में वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा घटी है जबकि दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है। कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखानों और उद्योगों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है। इनके जलने से सल्फर डाइऑक्साइड निकलती है, जो मानव जीवन के लिये बेहद खतरनाक है।
शहरों का बढ़ता दायरा, कारखानों से निकलने वाला धुआँ, वाहनों की बढ़ती तादाद एवं मेट्रो का विस्तार तमाम ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। वाहनों के धुएँ के साथ सीसा, कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के कण निकलते हैं। ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियों को पैदा करते हैं। मसलन, सल्फर डाइऑक्साइड से फेफड़े के रोग, कैडमियम जैसे घातक पदार्थों से हृदय रोग और कार्बन मोनोक्साइड से कैंसर, साँस सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं। कारखानों और विद्युत गृह की चिमनियों से भी प्रदूषण बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुँच रहा है। प्रदूषित वायुमंडल से जब बारिश होती है प्रदूषक तत्व वर्षा के पानी के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मृदा को प्रदूषित कर देते हैं।
नार्वे, स्वीडन, कनाडा और अमेरिका की महान झीलें अम्लीय वर्षा से प्रभावित हैं। अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रहा है। यूरोप महाद्वीप में अम्लीय वर्षा के कारण 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र वन नष्ट हो चुके हैं। वायुमण्डल के दूषित गैसों के कारण पृथ्वी के रक्षा कवच के रूप में काम करने वाली ओजोन गैस की परत को काफी नुकसान पहुँचा है। ध्रुवों पर इस परत में एक बड़ा छिद्र हो गया है जिससे सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी किरण जमीन पर पहुँचकर ताप में वृद्धि कर रही है। इससे न केवल कैंसर जैसे असाध्य बीमारियों का खतरा बढ़ा है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ओजोन एवं अन्य तत्वों के बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। एक शोध के मुताबिक जन्म के समय कम वजन के शिशुओं को आगे चलकर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है। गत वर्ष देश के 39 शहरों की 138 स्मारकों पर वायु प्रदूषण के घातक दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि शिमला, हसन, मंगलौर, मैसूर, कोट्टायम और मदुरै जैसे शहरों में पार्टिकुलेट मैटर पॉल्यूशन राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर से भी अधिक है। कुछ स्मारकों के समीप तो यह चार गुना से भी अधिक पाया गया है। सर्वाधिक प्रदूषण स्तर दिल्ली के लालकिला के आस-पास पाया गया। सरकार वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिये प्रभावकारी नीति बनाए और उस पर अमल करे, तभी इस समस्या से निपटा जा सकता है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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