जहरीला होता जा रहा है दोआबा का भूजलअनिल बंसलहिण्डन, कृष्णा और काली तीनों नदियाँ औद्योगिक कचरे के कारण इतनी प्रदूषित हो चुकी हैं कि इनका पानी इंसान और मवेशियों के इस्तेमाल लायक तो रहा ही नहीं है, इससे खेतों में सिंचाई करना भी धरती को जहरीला बनाना है। पर दुविधा यह है कि किसान इन नदियों के पानी से चाह कर भी बच नहीं सकते। जमीन के भीतर पानी का अपने आप रिसाव होता है। उसी का नतीजा है कि इन नदियों के आसपास बसे गाँवोें का भूजल भी पीने लायक नहीं रहा है। नई दिल्ली, 4 जनवरी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बहुत बड़े इलाके का भूजल जहरीला हो चुका है। इसकी वजह गंगा और यमुना के बीच स्थित दोआबा इलाके की तीन छोटी नदियों का प्रदूषण है।
काली, हिण्डन, और कृष्णा के पानी को तो प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड पहले ही जहरीला घोषित कर चुका है। अब इन नदियों के आसपास बसे गाँवों का भूजल भी इस्तेमाल लायक नहीं रह गया है। लेकिन उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार को इसकी फिक्र नहीं है। लोग कैंसर, हैपेटाइटिस और हड्डी विकारों के शिकार हो रहे हैं।
दोआबा पर्यावरण समिति ने इन नदियों के पानी का तो परीक्षण किया ही, आसपास के गाँवों के भूजल के नमूने भी जमा कर प्रयोगशाला में जँचवाए। समिति के अध्यक्ष और पर्यावरण वैज्ञानिक चन्द्रवीर सिंह ने हैण्डपम्प और नलकूपों के पानी की जाँच में पाया कि इंसान की सेहत के लिए खतरनाक भारी धातुओं के अवशेष जरूरत से ज्यादा मात्रा में थे। मसलन, आर्सेनिक, फ्लोराइड, निकिल, शीशा, लौह, क्लोराइड, बोरोन, सल्फेट आदि तत्वों से युक्त पानी का सेवन गाँव वालों की जिन्दगी को दूभर कर रहा है। उन्होंने राष्ट्रीय हरित पंचाट से इसकी शिकायत भी की।
राष्ट्रीय हरित पंचाट में केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने अपने जवाब में मान लिया कि हिण्डन, कृष्णा और काली तीनों नदियाँ औद्योगिक कचरे के कारण इतनी प्रदूषित हो चुकी हैं कि इनका पानी इंसान और मवेशियों के इस्तेमाल लायक तो रहा ही नहीं है, इससे खेतों में सिंचाई करना भी धरती को जहरीला बनाना है। पर दुविधा यह है कि किसान इन नदियों के पानी से चाह कर भी बच नहीं सकते। जमीन के भीतर पानी का अपने आप रिसाव होता है। उसी का नतीजा है कि इन नदियों के आसपास बसे गाँवोें का भूजल भी पीने लायक नहीं रहा है।
कृष्णा और हिण्डन का बरनावा के पास संगम होता है। वहीं सन्त गुरमीत राम रहीम का डेरा सच्चा सौदा भी है। बरनावा में ही महानन्द गाँधी धाम विद्यालय भी है। दोनों ठिकानों पर साल में कई बार लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। पर चिन्ता की बात यह है कि बरनावा का भूजल भी मैगनीज और एल्युमीनियम जैसी धातुओं के अवशेष से इस्तेमाल लायक नहीं रहा।
तीनों नदियों के पानी में बीओडी यानी बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड का स्तर भी बहुत ऊँचा पाया गया है। दिल्ली के आसपास एनसीआर के एक बड़े भूभाग को इस भूजल प्रदूषण ने शिकार बनाया है। नतीजतन गाँव-गाँव में कैंसर के मरीज अचानक बढ़ गए हैं।
चन्द्रवीर सिंह हरियाणा प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड में वैज्ञानिक थे। वे दोआबा के ही दाहा गाँव के निवासी हैं। हरियाणा से सेवानिवृत्त होकर घर लौटने के बाद जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के गाँव की हालत देखी तो दंग रह गए। नदियों के इस प्रदूषण के खिलाफ उन्होंने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और जल संसाधन मन्त्री उमा भारती का दरवाजा भी खटखटाया है।
केन्द्रीय भूजल बोर्ड को केन्द्र सरकार ने समस्या के समाधान की हिदायत भी दी है। लेकिन चन्द्रवीर सिंह को उत्तर प्रदेश सरकार के रवैए पर हैरानी है। जो राष्ट्रीय हरित पंचाट के बार-बार फटकारने पर भी अपना जवाब तक नहींं भेज रही। नदियों को प्रदूषण से बचाना तो दूर की बात है।
उत्तर प्रदेश के दोआबा क्षेत्र के बारे में देश के लोगों की धारणा अभी भी विपरीत है। गंगा और यमुना के बीच का सिंचित क्षेत्र होने के कारण यहां की जमीन सोना उगलती रही है। हरिद्वार से निकाली गई गंगनहर का भी इलाके की समृद्धि में बड़ा योगदान रहा है।
एक दौर में हिण्डन, काली और कृष्णा तीनों नदियों का पानी रोजमर्रा के इस्तेमाल में आता था। हिण्डन के तट पर तो शिव का पुरा महादेव में ऐतिहासिक मन्दिर भी है, जहाँ शिवरात्रि पर लाखों काँवड़िए हर साल जल चढ़ाते हैं। दो दशक पहले तक ये श्रद्धालु नदी में स्नान भी करते थे। अब तो नदी का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि उसके किनारे पर खड़ा होना तक दूभर है।
काली, हिण्डन, और कृष्णा के पानी को तो प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड पहले ही जहरीला घोषित कर चुका है। अब इन नदियों के आसपास बसे गाँवों का भूजल भी इस्तेमाल लायक नहीं रह गया है। लेकिन उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार को इसकी फिक्र नहीं है। लोग कैंसर, हैपेटाइटिस और हड्डी विकारों के शिकार हो रहे हैं।
दोआबा पर्यावरण समिति ने इन नदियों के पानी का तो परीक्षण किया ही, आसपास के गाँवों के भूजल के नमूने भी जमा कर प्रयोगशाला में जँचवाए। समिति के अध्यक्ष और पर्यावरण वैज्ञानिक चन्द्रवीर सिंह ने हैण्डपम्प और नलकूपों के पानी की जाँच में पाया कि इंसान की सेहत के लिए खतरनाक भारी धातुओं के अवशेष जरूरत से ज्यादा मात्रा में थे। मसलन, आर्सेनिक, फ्लोराइड, निकिल, शीशा, लौह, क्लोराइड, बोरोन, सल्फेट आदि तत्वों से युक्त पानी का सेवन गाँव वालों की जिन्दगी को दूभर कर रहा है। उन्होंने राष्ट्रीय हरित पंचाट से इसकी शिकायत भी की।
राष्ट्रीय हरित पंचाट में केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने अपने जवाब में मान लिया कि हिण्डन, कृष्णा और काली तीनों नदियाँ औद्योगिक कचरे के कारण इतनी प्रदूषित हो चुकी हैं कि इनका पानी इंसान और मवेशियों के इस्तेमाल लायक तो रहा ही नहीं है, इससे खेतों में सिंचाई करना भी धरती को जहरीला बनाना है। पर दुविधा यह है कि किसान इन नदियों के पानी से चाह कर भी बच नहीं सकते। जमीन के भीतर पानी का अपने आप रिसाव होता है। उसी का नतीजा है कि इन नदियों के आसपास बसे गाँवोें का भूजल भी पीने लायक नहीं रहा है।
कृष्णा और हिण्डन का बरनावा के पास संगम होता है। वहीं सन्त गुरमीत राम रहीम का डेरा सच्चा सौदा भी है। बरनावा में ही महानन्द गाँधी धाम विद्यालय भी है। दोनों ठिकानों पर साल में कई बार लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। पर चिन्ता की बात यह है कि बरनावा का भूजल भी मैगनीज और एल्युमीनियम जैसी धातुओं के अवशेष से इस्तेमाल लायक नहीं रहा।
तीनों नदियों के पानी में बीओडी यानी बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड का स्तर भी बहुत ऊँचा पाया गया है। दिल्ली के आसपास एनसीआर के एक बड़े भूभाग को इस भूजल प्रदूषण ने शिकार बनाया है। नतीजतन गाँव-गाँव में कैंसर के मरीज अचानक बढ़ गए हैं।
चन्द्रवीर सिंह हरियाणा प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड में वैज्ञानिक थे। वे दोआबा के ही दाहा गाँव के निवासी हैं। हरियाणा से सेवानिवृत्त होकर घर लौटने के बाद जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के गाँव की हालत देखी तो दंग रह गए। नदियों के इस प्रदूषण के खिलाफ उन्होंने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और जल संसाधन मन्त्री उमा भारती का दरवाजा भी खटखटाया है।
केन्द्रीय भूजल बोर्ड को केन्द्र सरकार ने समस्या के समाधान की हिदायत भी दी है। लेकिन चन्द्रवीर सिंह को उत्तर प्रदेश सरकार के रवैए पर हैरानी है। जो राष्ट्रीय हरित पंचाट के बार-बार फटकारने पर भी अपना जवाब तक नहींं भेज रही। नदियों को प्रदूषण से बचाना तो दूर की बात है।
उत्तर प्रदेश के दोआबा क्षेत्र के बारे में देश के लोगों की धारणा अभी भी विपरीत है। गंगा और यमुना के बीच का सिंचित क्षेत्र होने के कारण यहां की जमीन सोना उगलती रही है। हरिद्वार से निकाली गई गंगनहर का भी इलाके की समृद्धि में बड़ा योगदान रहा है।
एक दौर में हिण्डन, काली और कृष्णा तीनों नदियों का पानी रोजमर्रा के इस्तेमाल में आता था। हिण्डन के तट पर तो शिव का पुरा महादेव में ऐतिहासिक मन्दिर भी है, जहाँ शिवरात्रि पर लाखों काँवड़िए हर साल जल चढ़ाते हैं। दो दशक पहले तक ये श्रद्धालु नदी में स्नान भी करते थे। अब तो नदी का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि उसके किनारे पर खड़ा होना तक दूभर है।
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Post By: Shivendra