अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के शोध के अनुसार दुनिया में हर साल एक लाख अस्सी हजार मौतों की वजह शीतल पेय है। शीतल पेय में मौजूद कैरेमल शरीर को इंसुलिनरोधी बना देता है। इससे शीतल पेय की शक्कर का पाचन नहीं होता। धीरे-धीरे शीतल पेय की लत लग जाती है। शीतल पेय का कैफीन शरीर में समा जाता है। आंखों की पुतली और खुल जाती है। ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। फॉस्फोरिक एसिड शरीर के लिए महत्वपूर्ण कैल्शियम, मैग्नीशियम और जिंक को आंतों में बांध देता है। इस पर कैफीन असर करता है और पेशाब द्वारा शरीर से बाहर कर देता है। यानी थकान और डिहाइड्रेशन। अक्सर होता है कि कोई साधारण व्यक्ति अगर किसी बड़ी कंपनी की बुराई करे, तो लोग ध्यान नहीं देते, पर वही बात कोई सेलिब्रिटी यानी चर्चित अभिनेता-अभिनेत्री करे, तो उस पर सबका ध्यान जाता है। कई अध्ययनों से तथ्य उजागर है कि शीतल पेय में हानिकारक तत्व होते हैं, इसलिए उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कई किसान अपने खेतों में कीटनाशक के स्थान पर कोला पेय का इस्तेमाल कर रहे हैं। यही बात बाबा रामदेव और दूसरे कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने कही तो वह हमारे गले नहीं उतरी। पर अभिताभ बच्चन की बात समझ में आ गई। हाल में उनका बयान आया कि उन्होंने बरसों तक पेप्सी के ब्रांड एंबेसेडर के रूप में काम किया। बाद में उन्हें यह समझ में आया कि जिसका वे विज्ञापन कर रहे हैं, उसमें जहर की मात्रा है। इसलिए उन्होंने उसका प्रचार करना बंद कर दिया। यह ज्ञान उन्हें एक मासूम बच्ची के कहने पर हुआ।
उनके इस बयान से कोला पेय बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां हड़बड़ा गईं। अब लोग विचार करने लगे हैं कि जब बात इतनी गंभीर है, तो आमिर खान और शाहरुख खान जैसे अभिनेता और धोनी जैसे खिलाड़ी आखिर ऐसे जहरीले पेय पदार्थों का विज्ञापन क्यों करते हैं?
लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि अभिताभ बच्चन को अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने में इतना वक्त कैसे लग गया। जयपुर में एक मासूम बच्ची ने अमिताभ से कहा था कि हमारी शिक्षिका कहती हैं कि पेप्सी में जहर होता है, तो फिर आप उसका प्रचार क्यों करते हैं? यह किस्सा 2001 का है, पर अमिताभ बच्चन ने 2005 तक पेप्सी का प्रचार किया। आखिर ऐसी कौन-सी मजबूरी थी कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सूनने में चार साल लगा दिए। संभव है कि वे अनुबंध से बंधे हों।
इसके बाद सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ जैसे क्रिकेटरों ने इसके विज्ञापन के लिए चौबीस करोड़ रुपए लिए थे। इसके पता चल जाता है कि कोला पेय के विज्ञापनों में काम करने से हमारे सितारों को कितना लाभ होता है। फिल्म अभिनेता और क्रिकेटरों की अच्छी छवि का उपयोग कंपनियां लोगों को गलत रास्ते पर ले जाने के लिए करती हैं। इसी से वे कमाते भी खूब हैं।
भारत में कोला पेय का उत्पादन करती बहुराष्ट्रीय कंपनियों और पर्यावरण के लिए लड़ने वाली संस्थाओं के बीच 2006 से ही एक तरह का शीतयुद्ध चल रहा है। 2006 में दिल्ली की सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने एक चौंकाने वाली जानकारी दी कि कोला पेय में कीटनाशक दवाएं खतरनाक स्तर पर मिली होती हैं। इस रहस्योद्घाटन के बाद केंद्र सरकार ने यह फैसला किया कि कोला पेय स्वास्थ्य को कितना नुकसान पहुंचाता है, इस पर शोध किया जाना चाहिए। इसके लिए एक संसदीय समिति का गठन किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में सलाह दी कि कोला पेय की बिक्री पर नियंत्रण रखा जाए। सरकार ने समिति के इस सुझाव पर ध्यान नहीं दिया।
भारतीय वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता और आजादी बचाओं आंदोलन के संस्थापक और भारत के विभिन्न भागों में पिछले बीस वर्षों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ जन जागरण अभियान चलाने वाले दिवंगत राजीव दीक्षित ने दावा किया था कि अभिताभ बच्चन को कोलाइटिस होने का मुख्य कारण उनकी कोला पानी की आदत थी। खुद अमिताभ ने उन्हें पत्र लिख कर बताया था कि उनकी आंतों के रोग का कारण उनका अधिक मात्रा में कोला पेय पीना था। अमिताभ कहते हैं कि उन्हें अभिषेक ने सलाह दी थी कि किसी भी कंपनी का ब्रांड एंबेसेडर बनने और उसके उत्पाद का प्रचार करने के पहले इसकी जांच करना जरूरी है कि उसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए कितना उपयोगी और कितना हानिकारक है। अब यह अलग बात है कि आज भी उनकी पुत्रवधू ऐश्वर्या राय कोका कोला का प्रचार कर रही हैं। खुद अमिताभ ‘मैगी’ जैसे तुरंत आहार का प्रचार कर रहे हैं।
कोका कोला और पेप्सी जैसे उत्पादों में रंग के लिए 4-मिथाइल इमिडेजोल रसायन का इस्तेमाल होता है। इससे कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। इस सच्चाई के सामने आते ही अमेरिका में जबरदस्त हड़बड़ी देखी गई। इसके चलते कोला ने अपने उत्पाद में इस रसायन का इस्तेमाल करना बंद कर दिया। उधर पेप्सी ने घोषणा की कि वह फरवरी 2014 तक अपने उत्पाद में इस रसायन का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर देगा लेकिन इन दोनों कंपनियों ने भारत में अपने उत्पाद में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया है। आज भी इन जहरीले पेय पदार्थों की बिक्री हमारे देश में जारी है।
हाल में केंद्र सरकार का एक परिपत्र आया है कि अगर क्रिकेटर या फिल्म स्टार किसी उत्पाद का प्रचार करते हैं और उसके कारण अपेक्षित लाभ न हो, या उससे नुकसान हो, तो उपभोक्ता उस कंपनी पर दावा करके मुआवजा वसूल सकता है। इस कानून पर सख्ती से अमल होना चाहिए। अगर नागरिक जागरूक होते हैं, तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारे सितारों की ख्याति का दुरुपयोग कर लोगों को धोखे में नहीं रख सकतीं।
पैसे के लिए कलाकारों में पेप्सी और कोकाकोला के विज्ञापन करने की होड़ है। कुछ तो ऐसे हैं जो एक साल पहले कोका कोला को अच्छा बता रहे थे, तो अब पेप्सी के लिए कुछ भी कहने की तैयार हैं। ताजा मामला दीपिका पादुकोण का है। 2009-10 में वे पेप्सी की ब्रांड एंबेसडर थीं, तो अब वे कोका कोला का हाथ थामने जा रही हैं। इससे पहले आमिर खान, सचिन तेंदुलकर, अक्षय कुमार, रितिक रोशन, ऐश्वर्या राय, करीना कपूर भी दोनों कंपनियो के लिए विज्ञापन कर चुके हैं।
हालांकि लोगों में जागरूकता की वजह से हमारे शहरों में तीन साल के दौरान शीतल पेय की बिक्री पंद्रह से बीस प्रतिशत की दर से कम हुई है। अमेरिका में भी ऐसा ही रुझान है। एक दशक पहले वहां के बेवरेज मार्केट में शीतल पेय का शेयर साठ प्रतिशत था, जो अब चालीस प्रतिशत रह गया है। इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोध के अनुसार शीतल पेय की हर बोतल (350 मिली) के साथ टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा बीस प्रतिशत बढ़ जाता है। शोध टीम का हिस्सा रहे प्रो. निक वेअरहेम के मुताबिक शीतल पेय की बोतलों पर भी तंबाकू उत्पादों की तरह स्वास्थ्य चेतावनी होनी चाहिए।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के शोध के अनुसार दुनिया में हर साल एक लाख अस्सी हजार मौतों की वजह शीतल पेय है। फोर्टीस अस्पताल की डॉ. नीतू तलवार कहती हैं कि शीतल पेय में मौजूद कैरेमल शरीर को इंसुलिनरोधी बना देता है। इससे शीतल पेय की शक्कर का पाचन नहीं होता हमारे देश में शक्कर की दो सबसे बड़ी खरीदार कंपनियां हैं कोका-कोला और पेप्सी। शरीर में डोपामाइन नामक रसायन बनता है, ठीक वैसे ही जैसे हेरोइन का नशा करने के बाद बनता है। इससे दिमाग को आनंद का अहसास होता है। धीरे-धीरे शीतल पेय की लत लग जाती है। शीतल पेय का कैफीन शरीर में समा जाता है। आंखों की पुतली और खुल जाती है। ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। फॉस्फोरिक एसिड शरीर के लिए महत्वपूर्ण कैल्शियम, मैग्नीशियम और जिंक को आंतों में बांध देता है। इस पर कैफीन असर करता है और पेशाब द्वारा शरीर से बाहर कर देता है। यानी थकान और डिहाइड्रेशन।
इस तरह देखें तो केवल पैसे की खातिर हमारे आदर्श जहर परोसने का काम कर हमारे स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। ये यह भी नहीं सोचते कि इस तरह से वे भारत के भविष्य की सेहत बिगाड़ने मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अगर कुछ लोग बिना धन के इस दिशा में जागरूकता फैलाएं, तो लोग उसे भी नोटिस में लेंगे। संभव है उपभोक्ता जाग जाए और देश का भविष्य संवरने लगे।
ईमेल : parimalmahesh@gmail.com
उनके इस बयान से कोला पेय बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां हड़बड़ा गईं। अब लोग विचार करने लगे हैं कि जब बात इतनी गंभीर है, तो आमिर खान और शाहरुख खान जैसे अभिनेता और धोनी जैसे खिलाड़ी आखिर ऐसे जहरीले पेय पदार्थों का विज्ञापन क्यों करते हैं?
लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि अभिताभ बच्चन को अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने में इतना वक्त कैसे लग गया। जयपुर में एक मासूम बच्ची ने अमिताभ से कहा था कि हमारी शिक्षिका कहती हैं कि पेप्सी में जहर होता है, तो फिर आप उसका प्रचार क्यों करते हैं? यह किस्सा 2001 का है, पर अमिताभ बच्चन ने 2005 तक पेप्सी का प्रचार किया। आखिर ऐसी कौन-सी मजबूरी थी कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सूनने में चार साल लगा दिए। संभव है कि वे अनुबंध से बंधे हों।
इसके बाद सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ जैसे क्रिकेटरों ने इसके विज्ञापन के लिए चौबीस करोड़ रुपए लिए थे। इसके पता चल जाता है कि कोला पेय के विज्ञापनों में काम करने से हमारे सितारों को कितना लाभ होता है। फिल्म अभिनेता और क्रिकेटरों की अच्छी छवि का उपयोग कंपनियां लोगों को गलत रास्ते पर ले जाने के लिए करती हैं। इसी से वे कमाते भी खूब हैं।
भारत में कोला पेय का उत्पादन करती बहुराष्ट्रीय कंपनियों और पर्यावरण के लिए लड़ने वाली संस्थाओं के बीच 2006 से ही एक तरह का शीतयुद्ध चल रहा है। 2006 में दिल्ली की सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने एक चौंकाने वाली जानकारी दी कि कोला पेय में कीटनाशक दवाएं खतरनाक स्तर पर मिली होती हैं। इस रहस्योद्घाटन के बाद केंद्र सरकार ने यह फैसला किया कि कोला पेय स्वास्थ्य को कितना नुकसान पहुंचाता है, इस पर शोध किया जाना चाहिए। इसके लिए एक संसदीय समिति का गठन किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में सलाह दी कि कोला पेय की बिक्री पर नियंत्रण रखा जाए। सरकार ने समिति के इस सुझाव पर ध्यान नहीं दिया।
भारतीय वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता और आजादी बचाओं आंदोलन के संस्थापक और भारत के विभिन्न भागों में पिछले बीस वर्षों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ जन जागरण अभियान चलाने वाले दिवंगत राजीव दीक्षित ने दावा किया था कि अभिताभ बच्चन को कोलाइटिस होने का मुख्य कारण उनकी कोला पानी की आदत थी। खुद अमिताभ ने उन्हें पत्र लिख कर बताया था कि उनकी आंतों के रोग का कारण उनका अधिक मात्रा में कोला पेय पीना था। अमिताभ कहते हैं कि उन्हें अभिषेक ने सलाह दी थी कि किसी भी कंपनी का ब्रांड एंबेसेडर बनने और उसके उत्पाद का प्रचार करने के पहले इसकी जांच करना जरूरी है कि उसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए कितना उपयोगी और कितना हानिकारक है। अब यह अलग बात है कि आज भी उनकी पुत्रवधू ऐश्वर्या राय कोका कोला का प्रचार कर रही हैं। खुद अमिताभ ‘मैगी’ जैसे तुरंत आहार का प्रचार कर रहे हैं।
कोका कोला और पेप्सी जैसे उत्पादों में रंग के लिए 4-मिथाइल इमिडेजोल रसायन का इस्तेमाल होता है। इससे कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। इस सच्चाई के सामने आते ही अमेरिका में जबरदस्त हड़बड़ी देखी गई। इसके चलते कोला ने अपने उत्पाद में इस रसायन का इस्तेमाल करना बंद कर दिया। उधर पेप्सी ने घोषणा की कि वह फरवरी 2014 तक अपने उत्पाद में इस रसायन का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर देगा लेकिन इन दोनों कंपनियों ने भारत में अपने उत्पाद में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया है। आज भी इन जहरीले पेय पदार्थों की बिक्री हमारे देश में जारी है।
हाल में केंद्र सरकार का एक परिपत्र आया है कि अगर क्रिकेटर या फिल्म स्टार किसी उत्पाद का प्रचार करते हैं और उसके कारण अपेक्षित लाभ न हो, या उससे नुकसान हो, तो उपभोक्ता उस कंपनी पर दावा करके मुआवजा वसूल सकता है। इस कानून पर सख्ती से अमल होना चाहिए। अगर नागरिक जागरूक होते हैं, तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारे सितारों की ख्याति का दुरुपयोग कर लोगों को धोखे में नहीं रख सकतीं।
पैसे के लिए कलाकारों में पेप्सी और कोकाकोला के विज्ञापन करने की होड़ है। कुछ तो ऐसे हैं जो एक साल पहले कोका कोला को अच्छा बता रहे थे, तो अब पेप्सी के लिए कुछ भी कहने की तैयार हैं। ताजा मामला दीपिका पादुकोण का है। 2009-10 में वे पेप्सी की ब्रांड एंबेसडर थीं, तो अब वे कोका कोला का हाथ थामने जा रही हैं। इससे पहले आमिर खान, सचिन तेंदुलकर, अक्षय कुमार, रितिक रोशन, ऐश्वर्या राय, करीना कपूर भी दोनों कंपनियो के लिए विज्ञापन कर चुके हैं।
हालांकि लोगों में जागरूकता की वजह से हमारे शहरों में तीन साल के दौरान शीतल पेय की बिक्री पंद्रह से बीस प्रतिशत की दर से कम हुई है। अमेरिका में भी ऐसा ही रुझान है। एक दशक पहले वहां के बेवरेज मार्केट में शीतल पेय का शेयर साठ प्रतिशत था, जो अब चालीस प्रतिशत रह गया है। इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोध के अनुसार शीतल पेय की हर बोतल (350 मिली) के साथ टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा बीस प्रतिशत बढ़ जाता है। शोध टीम का हिस्सा रहे प्रो. निक वेअरहेम के मुताबिक शीतल पेय की बोतलों पर भी तंबाकू उत्पादों की तरह स्वास्थ्य चेतावनी होनी चाहिए।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के शोध के अनुसार दुनिया में हर साल एक लाख अस्सी हजार मौतों की वजह शीतल पेय है। फोर्टीस अस्पताल की डॉ. नीतू तलवार कहती हैं कि शीतल पेय में मौजूद कैरेमल शरीर को इंसुलिनरोधी बना देता है। इससे शीतल पेय की शक्कर का पाचन नहीं होता हमारे देश में शक्कर की दो सबसे बड़ी खरीदार कंपनियां हैं कोका-कोला और पेप्सी। शरीर में डोपामाइन नामक रसायन बनता है, ठीक वैसे ही जैसे हेरोइन का नशा करने के बाद बनता है। इससे दिमाग को आनंद का अहसास होता है। धीरे-धीरे शीतल पेय की लत लग जाती है। शीतल पेय का कैफीन शरीर में समा जाता है। आंखों की पुतली और खुल जाती है। ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। फॉस्फोरिक एसिड शरीर के लिए महत्वपूर्ण कैल्शियम, मैग्नीशियम और जिंक को आंतों में बांध देता है। इस पर कैफीन असर करता है और पेशाब द्वारा शरीर से बाहर कर देता है। यानी थकान और डिहाइड्रेशन।
इस तरह देखें तो केवल पैसे की खातिर हमारे आदर्श जहर परोसने का काम कर हमारे स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। ये यह भी नहीं सोचते कि इस तरह से वे भारत के भविष्य की सेहत बिगाड़ने मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अगर कुछ लोग बिना धन के इस दिशा में जागरूकता फैलाएं, तो लोग उसे भी नोटिस में लेंगे। संभव है उपभोक्ता जाग जाए और देश का भविष्य संवरने लगे।
ईमेल : parimalmahesh@gmail.com
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