जहाँ चाह वहाँ राह

सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा

सौर ऊर्जादिल्ली सरकार ने, हाल ही में, किसानों की आय में तीन से पाँच गुना तक इजाफा करने के लिये मुख्यमंत्री किसान आय बढ़ोत्तरी योजना को मंजूरी दी है। इस अनूठी योजना के अन्तर्गत किसान के एक एकड़ खेत के अधिकतम एक तिहाई हिस्से पर सोलर पैनल लगाए जाएँगे और बिजली पैदा की जाएगी।

सोलर पैनल लगाने वाली कम्पनी से दिल्ली सरकार का अनुबन्ध होगा और वह इस योजना के तहत पैदा होने वाली बिजली को चार रुपए प्रति यूनिट की दर से दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों के साथ ही आम जनता को भी बेचेगी। सोलर पैनल लगाने का पूरा खर्च कम्पनी द्वारा वहन किया जाएगा। किसानों को इस पर आने वाले खर्चे से पूर्णतः मुक्त रखा जाएगा।

दिल्ली सरकार का मानना है कि एक एकड़ जमीन से किसान को हर साल बीस से तीस हजार रुपयों तक की आय होती है। जमीन के एक तिहाई हिस्से पर सोलर पैनल लगाने से किसान को होने वाले नुकसान की भरपाई सरकार उन्हें किराया देकर करेगी। इस योजना के तहत किसानों को सालाना एक लाख रुपया किराए के रूप में प्राप्त होगा।

साफ है कि योजना किसानों के लिये घाटे का नहीं बल्कि फायदे का सौदा है। वे पहले की तरह ही अपनी जमीन के दो तिहाई हिस्से पर फसल उगाने के लिये स्वतंत्र होंगे। सरकार द्वारा जमीन के इस टुकड़े से होने वाली अनुमानित आय में सालाना मात्र दस हजार रुपए की कमी आएगी। इस तरह उन्हें तीस हजार की जगह एक लाख बीस हजार प्राप्त होंगे अर्थात आय में चार गुना बढ़ोत्तरी होगी।

दिल्ली सरकार का मानना है कि चूँकि सोलर पैनल जमीन से साढ़े तीन मीटर की ऊँचाई पर लगाए जाएँगे इसलिये उनकी जमीन बेकार नहीं जाएगी। सोलर पैनल लगाने से खेती के काम में कोई खास व्यवधान नहीं आएगा और किसान जमीन के उस हिस्से से भी उत्पादन ले सकेंगे। इस तरह यह किसानों के लिये अतिरिक्त आय होगी जो अन्ततः उनकी सालाना आमदनी को बढ़ाएगी।

ज्ञातव्य है कि मौजूदा समय में दिल्ली सरकार नौ रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदती है। और इसका बोझ अन्ततः दिल्ली की जनता को उठाना होता है। इस नई व्यवस्था के कारण लोगों को नौ रुपए की जगह चार रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलेगी जिससे उन्हें प्रति यूनिट पाँच रुपए की बचत होगी। राज्य सरकार के सभी विभागों को भी इसी दर पर बिजली प्राप्त होगी जिससे सरकार को हर साल 400 से 500 करोड़ रुपए की बचत होगी।

पिछले कई सालों से किसानों की आय बढ़ाने के लिये अनेक प्रयास किये जाते रहे हैं। खेती की लागत का हिसाब-किताब लगाया जाता रहा है। क्या जोड़ें और क्या घटाएँ पर खूब माथापच्ची होती रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या हो इस विषय पर अर्थशास्त्री से लेकर मंत्रालय, नौकरशाही और जन-प्रतिनिधि शिद्दत से बहस करते रहे हैं पर सर्वमान्य लागत फार्मूला या देय समर्थन मूल्य हमेशा विवादास्पद ही रहा है।

अनेक लोग पक्ष में तो अनेक विपक्ष में दलील देते रहे हैं। यह सही है कि किसानों को लाभ पहुँचाने के लिये अनेक उपाय सुझाए तथा लागू किये जाते रहे हैं। उन सब अवदानों के बावजूद किसान कभी कर्ज के चक्रव्यूह का भेदन नहीं कर पाता है। कर्ज माफी का फार्मूला भी सालाना कार्यक्रम बनता नजर आता है। सारी कसरत के बावजूद कोई भी प्रस्ताव या निर्णय किसान की न्यूनतम आय सुनिश्चित नहीं कर पाया है। उनके पलायन को भी कम नहीं कर पाया है। खेती से होते मोहभंग को कम नहीं कर पाया और माली हालत में अपेक्षित सुधार नहीं ला पाया है।

लगता है कि दिल्ली सरकार ने एक साथ दो लक्ष्यों का सफलतापूर्वक भेदन किया है। महंगी बिजली का विकल्प खोजकर न केवल अपना खर्च कम किया है वरन दिल्ली की जनता से टैक्स के रूप में वसूले पैसों की भी चिन्ता की है। यह बहुत कम प्रकरणों में ही होता है। दूसरे, दिल्ली सरकार ने अपने राज्य के किसानों की सालाना आय को सुनिश्चित किया है। यह आय हर साल कम-से-कम एक लाख रुपए अवश्य होगी और उन्हें मानसून की बेरुखी के कारण होने वाले नुकसान से बचाएगी। पुख्ता रक्षा कवच उपलब्ध कराएगी और आत्महत्या के आँकड़े को कम करेगी।

लगता है दिल्ली के मुख्यमंत्री किसान आय बढ़ोत्तरी योजना की अवधारणा भारत की परम्परागत खेती की उस मूल अवधारणा से प्रेरित है जिसमें मानसून पर निर्भर अनिश्चित खेती को सुनिश्चित आय देने वाले काम से जोड़ा जाता था। पहले ये काम पशुपालन हुआ करता था। अब समय बदल गया है। गोचर खत्म हो गए हैं। खेती में काम आने वाले जानवर अप्रासंगिक हो गए हैं। इसी वजह से सोलर पैनल के माध्यम से आय जुटाने का नया रास्ता इजाद किया गया है।

एक बात और, दिल्ली सरकार की इस नवाचारी योजना ने खेती पर मानसून की बेरुखी से होने वाले खतरे पर चोट नहीं की है। अच्छा होता, इस योजना के साथ-साथ मानसून की बेरुखी पर चोट करने वाली योजना का भी आगाज होता। अर्थात ऐसी योजना, जिसके अन्तर्गत कम-से-कम खरीफ की फसल की शत-प्रतिशत सुरक्षा की बात, हर खेत को पानी की बात और निरापद खेती (आर्गेनिक खेती) से जोड़कर आगे बढ़ाई होती। लगता है, इस बिन्दु पर किसानों से सीधी बात होनी चाहिए। समाधान वहीं से निकलेगा। निरापद खेती का भी आगाज वहीं से होगा। असम्भव कुछ भी नहीं है। आइडिया कभी भी किसी के मोहताज नहीं रहे बस अन्दर से चाह होनी चाहिए। इसी कारण कहा जाता है, ‘जहाँ चाह वहाँ राह।’ सम्भवतः इसी आधार पर दुष्यन्त आसमान में छेद करने के लिये जोर से पत्थर उछालने की पैरवी करते हैं।

अन्त में कहा जा सकता है कि दिल्ली सरकार के किसान आय बढ़ोत्तरी योजना से किसानों की एक लाख रुपए सालाना आमदनी सुनिश्चित हुई है, सम्भवतः उत्पादन की चुनौती बाकी है।

 

 

 

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