प्रकृति ने जबलपुर क्षेत्र को एक समृद्ध भूवैज्ञानिक विरासत सौंपी है। इस कारण जबलपुर क्षेत्र को भूविज्ञान का म्यूजियम माना जाता है। इस सीमित क्षेत्र में लगभग 250 करोड़ वर्ष पूर्व निर्मित कैम्ब्रियन-पूर्व महाकल्प की चट्टानों से लेकर लगभग दस लाख वर्ष पुरानी अत्यन्त-नूतन युग तक की लगभग सभी चट्टानें मिलती हैं।
इन चट्टानों में ग्रेनाइट, नाइस, शिष्ट, संगमरमर, बेसाल्ट, लमेटा संस्तर, बलुआपत्थर, क्ले और कछारी मिट्टी प्रमुख हैं। प्रकृति ने जबलपुर क्षेत्र को भूविज्ञान आधारित जो दृश्य विरासत (Tangible Geo-heritage) सौंपी है उसमें उल्लिखित चट्टानों के अतिरिक्त प्रमुख हैं धुआँधार जल प्रपात, संगमरमर में नर्मदा द्वारा काटी संकरी घाटी, ग्रेनाइट की सन्तुलित शिला (Balance rock), डायनासर के अंडे तथा गोंडवाना युग की वनस्पतियों के जीवाश्म। यह दृश्य भूवैज्ञानिक विरासत है जो नंगी आँखों से दिखाई देती है।
जबलपुर क्षेत्र में दृश्य भूवैज्ञानिक विरासत के अलावा भूजल-विज्ञान पर आधारित अनूठी अदृश्य विरासत (Intangible Geo-heritage) भी मौजूद है। उस अदृश्य विरासत को विज्ञान की मदद से ही समझा जा सकता है। उस अदृश्य विरासत का विकास तत्कालीन गोंड समाज ने लगभग 500 साल पहले स्थानीय चट्टानों के भूजलीय गुणों को समझकर किया था। यह अनूठी विरासत जल स्वराज को सफल बनाती है तथा लगभग गादमुक्त बारहमासी तालाबों के रूप में देखी जा सकती है।
प्रकृति ने जबलपुर क्षेत्र को एक समृद्ध भूवैज्ञानिक विरासत सौंपी है। इस कारण जबलपुर क्षेत्र को भूविज्ञान का म्यूजियम माना जाता है। इस सीमित क्षेत्र में लगभग 250 करोड़ वर्ष पूर्व निर्मित कैम्ब्रियन-पूर्व महाकल्प की चट्टानों से लेकर लगभग दस लाख वर्ष पुरानी अत्यन्त-नूतन युग तक की लगभग सभी चट्टानें मिलती हैं।
तालाब निर्माण में सबसे अधिक रुचि गोंड राजा संग्रामशाह और हृदयशाह ने ली थी। इनके अतिरिक्त रानी दुर्गावती एवं दलपतिशाह, वीरनारायण - दुर्गावती, छत्रशाह, नरेन्द्रशाह और निजामशाह ने भी अनेक तालाबों का निर्माण कराया था। इस आलेख में जबलपुर क्षेत्र की उसी भूजल विज्ञान पर आधारित अप्रत्यक्ष विरासत की चर्चा की गई है।
गोंडों की राजधानी गढ़ा (जबलपुर का उपनगर) थी। आसपास प्रजा रहती होगी इसलिये उसके आसपास के सभी ग्रामों में तालाब हैं। ये नहर विहीन तालाब, भूजल-विज्ञान की अप्रत्यक्ष विरासत हैं। गोंडों ने तालाबों के अतिरिक्त बावड़ियाँ और कुएँ भी बनवाए थे। इस क्षेत्र में गोंसाईं सम्प्रदाय के लोगों और स्थानीय सम्पन्न लोगों ने भी बड़ी संख्या में तालाबों का निर्माण कराया था।
डॉ. महेश चौबे ने, अपनी पुस्तक जबलपुर अतीत दर्शन में नगर क्षेत्र के 52 पुराने तालाबों (देखें तालिका एक) का जिक्र किया है। उन 52 तालाबों की सूची निम्नानुसार है -
तालिका एक
सरल क्रमांक |
तालाब का नाम |
कहाँ स्थित है |
1. |
हनुमान ताल |
हनुमान ताल मुहल्ले में स्थित है। |
2. |
फूटाताल |
फूटाताल मुहल्ले में स्थित है। यह तालाबू अब सूख चुका है। |
3. |
भँवरताल |
इस तालाब पर पार्क का निर्माण हो चुका है। |
4. |
महानद्दा |
यह तालाब अब कचरे के ढेर और दलदल में बदल चुका है। |
5. |
रानीताल |
तालाब के आसपास बस्ती बस चुकी है। उसके अवशेष बचे हैं। |
6. |
संग्राम सागर |
इसका निर्माण गोंड राजा संग्रामशाह ने कराया था। |
7. |
चेरीताल |
इस तालाब का निर्माण दुर्गावती की दासी ने कराया था। |
8. |
गुलौआ ताल |
यह ताल, गोतमजी की मढ़िया के पास स्थित है। |
9. |
सूपाताल |
यह ताल, मेडिकल कालेज के रास्ते, बजरंग मठ से लगा है। |
10. |
गंगा सागर |
इसका निर्माण गोंड राजा हृदयशाह ने कराया था। |
11. |
कोलाताल |
यह ताल, देवताल के पीछे की पहाड़ियों में स्थित है। |
12. |
देवताल (विष्णुताल) |
इसके चारों ओर मन्दिर बने हैं। |
13. |
ठाकुर ताल |
इसका निर्माण दुर्गावती के आमात्य महेश ठाकुर ने कराया था। |
14. |
तिरहुतिया ताल |
अज्ञात |
15. |
गुड़हाताल |
यह ताल गंगा सागर के पास स्थित है। |
16. |
सुरजला ताल |
शाहीनाके से गढ़ा जाने के रास्ते के अन्तिम छोर पर स्थित है। |
17. |
अवस्थी ताल |
स्थिति अज्ञात |
18. |
भान तलैया |
यह तलैया बड़ी खेरमाई मन्दिर के निकट स्थित है। |
19. |
बेनीसिंह की तलैया |
मिलौनीगंज के उत्तर में। अब अस्तित्व नहीं है। |
20. |
श्री नाथ की तलैया |
यह तलैया, अंजुमन स्कूल के पीछे थी। अब अस्तित्व नहीं। |
21. |
जूड़ी तलैया |
स्थिति अज्ञात |
22. |
अलफ खां की तलैया |
यह तलैया, तिलक भूमि तलैया में थी। अब अस्तित्व नहीं। |
23. |
सेवाराम की तलैया |
स्थिति अज्ञात |
24. |
कदम तलैया |
यह तलैया, गुरन्दी बाजार के पास थी। |
25. |
मुड़चरहाई |
गोलाबाजार के पीछे स्थित इस तालाब की जमीन पर इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन का हाल और महिला उत्कर्ष मंडल का भवन बन चुका है। उसका अब अस्तित्व नहीं। |
26. |
माढ़ोताल |
मनमोहन नगर और आई.टी.आई के पास इसी नाम के ग्राम में यह तालाब स्थित है। |
27. |
आधारताल |
कृषि विश्वविद्यालय के पास आधारताल में स्थित है। |
28. |
साई तलैया |
इसका निर्माण, गढ़ा के रेलवे केबिन नम्बर 2 के बाजू में किया गया था। |
29. |
नौआ तलैया |
गौतम जी की मढ़िया से गढ़ा बाजार के रास्ते में बाएँ हाथ की ओर बनवाया गया था। |
30. |
सूरज तलैया |
त्रिपुरी चौक के बगल में बनवाया गया था। |
31. |
फूलहारी तलैया |
पक्के तटबन्ध वाला तालाब जो शाहीनाके से आगे, गढ़ा रोड पर दाहिने हाथ थाने की तरफ बनवया गया था। |
32. |
जिन्दल तलैया |
पुराने गढ़ा थाने से श्रीकृष्ण मन्दिर वाले मार्ग पर स्थित है। |
33. |
मछराई |
शाहीनाके के पास, कन्याशाला स सटा है। |
34. |
बघा |
गढ़ा हितकारणी हाई स्कूल के पीछे स्थित था। |
35. |
बसा |
गढ़ा में भूलन रेलवे की चौकी के पास था। |
36. |
बाल सागर |
मेडिकल कालेज क्षेत्र में अस्पताल क पछे बनवाया गया था। |
37. |
बल सागर |
तेवर ग्राम में स्थित है। |
38. |
हिनौता ताल |
भेड़ाघाट मार्ग पर ग्राम आमहिनौता ग्राम में स्थित है। |
39. |
सगड़ा ताल |
मेडकल कालेज के थोड़ा आगे स्थित है। |
40. |
चौकी ताल |
लम्हेटा घाट रोड पर स्थित है। |
41. |
हाथी ताल |
इसी तालाब की जमीन पर हाथीताल कालोनी बस चुकी है। |
42. |
सूखा ताल |
एन.टी.पी.सी. के समीप जबलपुर-पाटन मार्ग पर सूखाग्राम में स्थित है। यह तटबन्ध वाला तालाब है। |
43. |
महाराज सागर |
देवताल के पास (रजनीश धाम के निकट) बनवाया गया था। |
44. |
कूडन ताल |
यह ताल, भेड़ाघाट रोड पर कूडन ग्राम में स्थित है। |
45. |
अमखेरा ताल |
यह तालाब आधारताल के पीछे अमखेरा ग्राम में स्थित है। |
46. |
बाबा ताल |
यह ताल, हाथी ताल श्मशान घाट के निकट बनवाया गया था। |
47. |
ककरैया तलैया |
यह महानद्दा से पहले छोटी लाइन से लगी तलैया थी। |
48. |
खम्बाताल |
यह तालाब सदर क्षेत्र में केंटान्मेंट अस्पताल के पास थी। |
49. |
गणेश ताल |
एम.पी.ई.बी. के गणेश मन्दिर के पीछे स्थित है। |
50. |
कटरा ताल |
पूर्णतः सूखा तालाब। बचे अवशेष को शंकर तलैया कहते हैं। |
51. |
उखरी ताल |
विजयनगर के पास, अब अस्तित्वहीन है। |
52. |
मढ़ा ताल |
नगर के मध्य में स्थित था। अब यहाँ कार्यालय, दुकानें इत्यादि बन गए हैं। |
गोंडों ने नर्मदा नदी के दक्षिणी भूभाग में बसाहटों के निकट तलैया (छोटे तालाब) और जंगलों की निचली जमीन (Depressions) पर सामान्यतः दस एकड़ से बड़े मिट्टी की पाल वाले तालाबों का भी निर्माण कराया था। इसके अलावा ऊँचे पठारी भागों की लगभग समतल जमीन पर बँधियानुमा तालाब भी बनवाए थे। सम्भव है बंजारों ने भी इस इलाके में कुछ तालाबों का निर्माण कराया हो। उन्हें चिन्हित करने तथा उनके पीछे के विज्ञान को समझने के लिये शोध किये जाने की आवश्यकता है।
पी. जी. अड्यालकर (1971) ने गहरे अन्वेषण नलकूपों की सहायता से, नर्मदा घाटी का सघन अध्ययन किया था। इस अध्ययन से ज्ञात होता है कि सतह से लगभग 40 मीटर की गहराई तक काली मिट्टी और क्ले की अपारगम्य (Impervious) परतें पाई जाती हैं। गोंडों ने कछारी इलाकों में इन्हीं अपारगम्य परतों अर्थात काली मिट्टी और क्ले की परतों के ऊपर बारहमासी तालाब बनवाए हैं। यह निर्माण भूजल-विज्ञान की अप्रत्यक्ष विरासत का अविवादित उदाहरण है।
जबलपुर क्षेत्र के पुराने तालाब - भूजल-विज्ञान की अप्रत्यक्ष विरासत
गोंडकाल में जबलपुर क्षेत्र में अनेक तालाबों का निर्माण हुआ था। अधिकांश स्थानों पर उनकी आकृति अर्धचन्द्राकार या स्थानीय भूगोल से नियंत्रित नजर आती है। कुछ क्षेत्रों में अधिक तो कुछ क्षेत्रों में बहुत कम तालाब बने हैं। अधिकांश जगह, पहाड़ियों से घिरे इलाकों में गहरे तालाब बनाए गए थे। केवल एक जगह चौकोर तालाब बनाया गया है। कुछ जगह छोटे कैचमेंट वाले नदी या नाले पर तालाब निर्माण को वरीयता दी गई है।
सभी तालाबों का निर्माण, स्थानीय चट्टान और उसके भूजल-विज्ञान आधारित गुणों को समझकर किया गया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि वे तालाब भूजल विज्ञान की अप्रत्यक्ष विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। तालिका दो में जबलपुर क्षेत्र के पुराने 48 तालाबों जिन्हें इस आलेख में भूजल-विज्ञान की अप्रत्यक्ष विरासत कहा गया है, का विवरण प्रस्तुत कर उन्हें समग्रता में समझने का प्रयास किया गया है।
इन तालाबों के भूजल विज्ञान को निर्धारित करते समय तालाब की तली और उसके नीचे मिलने वाली चट्टान की दूरी को ध्यान में रखा गया है। अर्थात, यदि तालाब की तली के नीचे, काफी गहराई तक मिट्टी मिलती है तो उसे कछारी तालाब और उसके विपरीत यदि चट्टान, उसकी तली के पास है तो उसे, उस चट्टान विशेष पर बना हुआ माना है। नीचे दी गई तालिका में 48 तालाबों को उनके भूविज्ञान के साथ दर्शाया गया है -
तालिका दो
क्र. |
तालाब का नाम |
भूविज्ञान |
क्र. |
तालाब का नाम |
भूविज्ञान |
1. |
हनुमान ताल |
कछारी मिट्टी |
25. |
मुड़चरहाई |
कछारी मिट्टी |
2. |
फूटाताल |
कछारी मिट्टी |
26. |
माढ़ोताल |
कछारी मिट्टी |
3. |
भँवरताल |
बलुआ पत्थर |
27. |
आधार ताल |
कछारी मिट्टी |
4. |
महानद्दा |
बलुआ पत्थर |
28. |
साई तलैया |
कछारी मिट्टी |
5. |
रानीताल |
कछारी मिट्टी |
29. |
नौआ तलैया |
कछारी मिट्टी |
6. |
सग्राम सागर |
ग्रेनाइट |
30 |
सूरज तलैया |
ग्रेनाइट |
7. |
चेरीताल |
कछारी मिट्टी |
31. |
फूलहारी तलैया |
लमेटा |
8. |
गुलौआ ताल |
कछारी मिट्टी |
32. |
जिन्दल तलैया |
कछारी मिट्टी |
9. |
सूपाताल |
बलुआ पत्थर |
33. |
मछराई |
ग्रेनाइट |
10. |
गगा सागर |
कछारी मिट्टी |
34. |
बघा |
ग्रेनाइट |
11. |
कोलाताल |
ग्रेनाइट |
35. |
बसा |
कछारी मिट्टी |
12. |
देवताल |
ग्रेनाइट |
36. |
बाल सागर |
कछारी मिट्टी |
13. |
गणेश ताल |
कछारी मिट्टी |
37. |
बल सागर |
कछारी मिट्टी |
14. |
कटरा ताल |
ग्रेनाइट |
38. |
हिनौता ताल |
कछारी मिट्टी |
15. |
गुड़हलताल |
कछारी मिट्टी |
39. |
सगड़ा ताल |
बलुआ पत्थर |
16. |
सुरजला ताल |
कछारी मिट्टी |
40. |
चौकी ताल |
बलुआ पत्थर |
17. |
उखरी ताल |
कछारी मिट्टी |
41. |
हाथी ताल |
ग्रेनाइट |
18. |
भान तलैया |
ग्रेनाइट |
42. |
सूखा ताल |
कछारी मिट्टी |
19. |
बेनीसिंह की तलैया |
कछारी मिट्टी |
43. |
महाराज सागर |
ग्रेनाइट |
20. |
श्री नाथ की तलैया |
कछारी मिट्टी |
44. |
कूडन ताल |
कछारी मिट्टी |
21. |
जूड़ी तलैया |
कछारी मिट्टी |
45. |
अमखेरा ताल |
कछारी मिट्टी |
22. |
अलफखां की तलैया |
कछारी मिट्टी |
46. |
बाबा ताल |
ग्रेनाइट |
23. |
मढ़ा ताल |
कछारी मिट्टी |
47. |
ककरैया तलैया |
ग्रेनाइट |
24. |
कदम तलैया |
ग्रेनाइट |
48. |
खम्बाताल |
बलुआ पत्थर |
तालिका दो से पता चलता है कि 48 बारहमासी तालाबों में से 28 तालाब अपारगम्य कछारी मिट्टी पर बनाए गए थे। ग्रेनाइट की पानी सोखने वाली अपक्षीण परत पर 13 परकोलेशन-सह-जल संचय तालाब बनाए गए थे।
अपक्षीण ग्रेनाइट पर बने तालाबों की खूबी यह थी कि वे, सबसे पहले एक्वीफर को समृद्ध करते थे। उसके बाद वे इतना जल संचय करते थे कि तालाब बारहमासी तालाब में बदल जाये। बरसात के मौसम में उससे पानी का इतना आदान-प्रदान हो कि वह लगभग गादमुक्त रहे। बरसात की घट-बढ़ का उस पर खास असर नहीं पड़े। सभी जानते हैं कि गढ़ा, गोंडों की राजधानी थी। स्वाभाविक है, उनकी अधिकांश प्रजा इसी बस्ती और उसके आसपास निवास करती होगी।
प्रजा की निस्तार जरूरतों को पूरा करने के लिये साल भर पानी की आवश्यकता थी इसलिये उन्होंने गढ़ा क्षेत्र में बहुत से परकोलेशन-सह-जल संचय तालाब बनवाए। इन तालाबों ने समाज को जलस्वावलम्बन उपलब्ध कराया। लगभग 500 साल बाद भी इन तालाबों का असर अभी भी बाकी है। उस असर के कारण इस क्षेत्र में भूजल स्तर की गिरावट कम है। पानी बहुत कम गहराई पर मिल जाता है। उक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि जबलपुर क्षेत्र के गोंडकालीन तालाब, हकीकत में भूजल विज्ञान की अप्रत्यक्ष विरासत हैं। उनके पीछे का विज्ञान आज भी प्रासंगिक है। यही वह भूविज्ञान पर आधारित विरासत है जिसे सामने लाये जाने की आवश्यकता है।
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geology of jabalpur and water bodies, considered as museum of geology, precambrian age, rock structure, granite, marble, narmada valley, gonds and their knowledge about rocks, presence of fossils in narmada valley rock, construction of ponds and stepwells, research done by p g adyalkar. |
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