जौ गेहूँ बौवै पाँच पसेर, मटर के बीघा तीसै सेर।
बोवै चना पसेरी तीन, तिन सेर बीघा जोन्हरी कीन।।
दो सेर मोथी अरहर मास, डेढ़ सेर बिगहा बीज कपास।।
पाँच पसेरी बिगहा धान, तीन पसेरी जड़हन मान।।
सवा सेर बीघा साँवाँ मान, तिल्ली सरसों अँजुरी जान।।
बर्रै कोदो सेर बोआओ, डेढ़ सेर बीघा तीसी नाओ।।
डेढ़ सेर बजरा बजरी साँवाँ, कोदौ काकुन सवैया बोवा।।
यहि विधि से जब बोवै किसान, दूना लाभ की खेती जान।।
शब्दार्थ- मोथी-मूँग की तरह का एक अन्न। मास-उड़द।
भावार्थ- घाघ के अनुसार प्रति बीघा जौ-गेहूँ पचीस सेर, मटर तीस सेर, चना पन्द्रह सेर, ज्वार तीन सेर, मोथी, अरहर और उरद दो सेर, कपास डेढ़ सेर, धान पचीस सेर, जड़हन पन्द्रह सेर, साँवाँ सवा सेर, तिल और सरसों अँजुली भर, बर्रे और कोदौ एक सेर, अलसी डेढ़ सेर, बाजरा, बजरी (जोंधरी) और साँवाँ डेढ़ सेर और कोदौ, काकुन सवा सेर के हिसाब से बोना चाहिए। ऐसा करने वाला किसान दूना लाभ कमाता है।
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