जासूस पौधे


पौधों में अकस्मात परिवर्तन या उनके पत्तियों और फूलों के रंगों में परिवर्तन यह संकेत करते हैं कि उस स्थान पर रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे यूरेनियम आदि उपस्थित हैं। अमेरिका और कनाडा में इस प्रकार बहुत सी खानों की खोज की गई है, मेटेलीकोलस पौधों की सहायता से खनिज सम्पदाओं की खोज विषय पर अब भी वैज्ञानिक कई प्रकार के प्रयोग कर रहे हैं।

खनिज सम्पदा की जासूसी करने वाले पेड़-पौधों की खोज भूगर्भ वानस्पतिकी के तहत होती है। खनिज सम्पदा का पता लगाने के लिये वहाँ के पेड़-पौधों की पत्तियों का जैव भूगर्भ रासायनिक परीक्षण किया जाता है। इस परीक्षण के तहत वैज्ञानिक पेड़-पौधों की पत्तियों को जलाकर उसकी राख में खनिजों की जाँच करते हैं, क्योंकि जड़ों के माध्यम से मिट्टी में उपस्थित खनिज तत्व पत्तियों तक पहुँच जाते हैं। इसलिए पत्तियों के रासायनिक परीक्षण से उस स्थान के भूगर्भ में उपस्थित खनिज और उसकी मात्रा का आसानी से पता चल जाता है।

स्पेन, बेल्जियम और ब्रिटेन में पाये जाने वाले ‘वायोला कैलेमिनेया’ पौधे की उपस्थिति से जस्ते की कई बड़ी खानों का पता लगा है। यह पौधा वहीं पाया जाता है जहाँ पृथ्वी के गर्भ में जस्ता प्रचुर मात्रा में होता है। इस पौधे को ‘जिंक वायलेट’ के नाम से भी जाना जाता है। अरेरिया वल्गैरिक, एल्साइन वर्ना और थैलेप्सी एलपेस्टे नामक पौधे भी जस्ते की उपस्थिति बताते हैं। इन पौधों का पत्तियों में जस्ते के ऑक्साइड जमा हो जाते हैं, जो पत्तियों में पौधों की जड़ों के माध्यम से पहुँचते हैं।

कार्नेशन और मिंट कुल के पौधे भूगर्भ में ताम्बे की उपस्थिति का पता देते हैं। आस्ट्रेलिया में ‘पालीर्कापी स्पाइरोस्टाइलिस’ रूस में, ‘जिप्सोफिला पैट्रिनी’, ज़िम्बाब्वे में ‘वेसियन ओटोपैटम’ और चीन में ‘इस्कोलियूजा’ नामक पौधों से भूमिगत ताम्बे की उपस्थिति का पता लगा है। आस्ट्रेलिया और रूस में इन पौधों से कई बड़ी ताम्रखानों का पता लगा है। इसी प्रकार मध्य अफ्रीकी देशों में ताम्बे की सूचना देने वाले पौधों की कई जातियों का पता चला है। भारत में ‘मैलिरियम’ कुल के पौधों से ताम्बे की खानों का पता चलता है।

कैक्टस की एक जाति ‘प्रिकलीपियर’ द्वारा भूगर्भ में उपस्थित मैग्नीज की सूचना मिलती है। क्योंकि ये पौधे मैग्नीज धातु की सघनता वाले क्षेत्र में ही पाये जाते हैं। इन पौधों से धातु की उपस्थिति के साथ-साथ उसकी सघनता और विरलता का भी पता चलता है। कोबाल्ट धातु की सूचना मध्य अफ्रीका में स्थित जेरे नामक देश में पाये जाने वाले ‘होमेनियस्ट्रस रोबर्टी’ पौधे से मिलती है। स्पेन में पाया जाने वाला ‘एटेलैरिया सिटैसिया’ नामक पौधा भूगर्भ में पारे की स्थिति दर्शाता है। ब्राजील में कई सोने की खानों का पता ‘लेनिसेरा कनफ्यूजा’, ‘स्कोपिया टाइफा’ और ‘एल्पाइना स्पेसिओसा’ नामक पौधों से लगा है। स्वीडन में पाये जाने वाले ‘लाइकनिस एल्पाइना’ नामक पौधे से निकिल की कई बड़ी खानों का पता लगा है।

भारत में ऐसे बहुत से पेड़-पौधे हैं, जो भूगर्भ में उपस्थित खनिज सम्पदाओं की खबर देते हैं। बिहार और कर्नाटक में पाया जाने वाला ‘पोयेसिलोन्यूटान इंडिकाम’ लौह धातु की सूचना देता है। आम भाषा में इस पौधे को ‘वल्लगी’ कहते हैं। राजस्थान के बाड़मेर और बीकानेर जिले में ‘केलोट्रोपिस प्रोसेरा’ ‘रूआ’ और ‘ऐरब्राटोमेंटोसा’ पौधों से जिप्सम धातु की उपस्थिति का पता चला है। ओडिशा के सुकिंदा घाटी में पाये जाने वाले ‘मिलियूसा वेल्यूटिना’, ‘मैलोट्स फिलीपिनीज’ और ‘कांब्रतम डिकैड्रम’ नामक पौधों से वहाँ निकिल धातु की खानों का संकेत मिला है। अपने देश में सिंप्लोकोस और ‘अंजली’ नाम से मशहूर ‘मेमिसिलान’ पौधों से एल्यूमिनियम धातु की सूचना मिलती है। ‘यूफोर्बिया एंटीकोरम’ पौधे दक्षिण भारत में ग्रेनाइट निसकंपलेक्स में उगते हैं।

‘स्टीलेरिया मीडिया’ पौधा जिन स्थानों पर पाया जाता है, उन स्थानों पर पारे के पाये जाने की पुष्टि होती है। ‘डेस्मोस्टेकिया बाइपिन्नेटा’ पादप दलदल से ढकी जिप्सम बेड्स के सूचक हैं। लाइमस्टोन बेड्स पर ‘टेक्सस बेकेटा’ और ‘लेरिक्स ग्रेफ्फीथिआना’ पौधों की अच्छी संवृद्धि होती है। इसी प्रकार से अनेक मेटेलीकोलस पौधे उन स्थानों पर उगते हैं, जहाँ पर सेलीनियम, सल्फर आदि खनिज तत्त्वों का बाहुल्य होता है।

खोजों से पता चला है कि पृथ्वी के अन्दर खनिजों की प्रचुरता के कारण बहुत से पेड़-पौधों के स्वरूप और स्वभाव में अन्तर आ जाता है। कुछ विशेष प्रकार की वनस्पतियों का पीला पड़ जाना यह स्पष्ट करता है कि वहाँ के भूगर्भ में मैग्नीज, जस्ता और ताम्बे का भण्डार है। पौधों में अकस्मात परिवर्तन या उनके पत्तियों और फूलों के रंगों में परिवर्तन यह संकेत करते हैं कि उस स्थान पर रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे यूरेनियम आदि उपस्थित हैं। अमेरिका और कनाडा में इस प्रकार बहुत सी खानों की खोज की गई है, मेटेलीकोलस पौधों की सहायता से खनिज सम्पदाओं की खोज विषय पर अब भी वैज्ञानिक कई प्रकार के प्रयोग कर रहे हैं।

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