राँची जिला आपदा प्रबन्धन प्राधिकार द्वारा, आपदा प्रबन्धन विभाग, झारखण्ड सरकार एवं राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकार के सौजन्य से भूकम्प का मॉक अभ्यास का प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन ए.टी.आई. के सभागार में हुआ। कार्यशाला के उदघाटन समारोह में राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकार के वरिष्ठ सलाहकार श्री बी.के दत्ता, ने कहा कि भारत में किसी न किसी तरह के आपदा की चुनौती उत्पन्न हो जाती है। उससे हम किस प्रकार निबटे इसके लिए हमें बहुत आपदा प्रबन्धन प्रणाली अपनाने की जरूरत है। श्री दत्ता ने बतलाया कि मानव निर्मित एवं प्राकृतिक आपदा से सम्बन्धित तथ्यों को रखा उन्होंने कहा कि हम स्वयं को परिस्थिति के अनुरूप तैयार करें तो आपदा से बचा जा सकता है।
उन्होंने कहा भारत में लम्बे समय तक आपदा प्रबन्धन प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों के लिए राहत और पुनर्वास प्रदान करने का मुद्दा हाशिए पर था। केन्द्र सरकार में आपदा प्रबन्धन कृषि मन्त्रालय में एक विभाग के रुप में कार्यरत था तथा राज्य स्तर पर आपदा प्रबन्धन राजस्व या राहत विभाग का विषय था इसके साथ जिला स्तर पर कलेक्टरों के कई संकट प्रबन्धन कार्यों में से एक कार्य-आपदा प्रबन्धन था। विकास और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव का कोई विशेष अध्ययन नहीं किया गया था गरीबी उन्मूलन, पर्यावरण, लघु ऋण, सामाजिक और आर्थिक कमजोरियों, आदि महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विभिन्न योजनाओं, नीतियों और कार्यक्रमों में देश के शीर्ष नियोजन निकाय में आपदा जोखिम के बारे में चर्चा होती रही है। 2005-15 के ह्योगो फ्रेमवर्क में कहा गया है सतत विकास के लिए सभी स्तरों पर विकास योजना बनाने की प्रक्रिया में आपदा जोखिम के बारे में देश की प्रतिबद्धता वाँछित परिणाम प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में लम्बे समय तक आपदा प्रबन्धन प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों के लिए राहत और पुनर्वास प्रदान करने के एक मुद्दे के रूप में हाशिए पर था।
केन्द्र सरकार में आपदा प्रबन्धन कृषि मन्त्रालय में एक विभाग के रुप में कार्यरत था तथा राज्य स्तर पर आपदा प्रबन्धन राजस्व या राहत विभाग का विषय था इसके साथ जिला स्तर पर कलेक्टरों के कई संकट प्रबन्धन कार्यों में से एक कार्य-आपदा प्रबन्धन था। विकास और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव का कोई विशेष अध्ययन नहीं किया गया था गरीबी उन्मूलन, पर्यावरण, लघु ऋण, सामाजिक और आर्थिक कमजोरियों, आदि महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विभिन्न योजनाओं, नीतियों और कार्यक्रमों में देश के शीर्ष नियोजन निकाय में आपदा जोखिम के बारे में चर्चा होती रही है। 2005-15 के ह्योगो फ्रेमवर्क में कहा गया है सतत विकास के लिए सभी स्तरों पर विकास योजना बनाने की प्रक्रिया में आपदा जोखिम के बारे में देश की प्रतिबद्धता वाँछित परिणाम प्राप्त करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम होना चाहिए।
इस अवसर पर ए.टी.आई. के महानिदेशक श्री सुधीर प्रसाद ने कहा कि राज्य में आपदा प्रबन्धन प्राधिकार सक्रिय नहीं है फिर भी राँची जिला की ओर से किये जा रहे कार्यशाला एक सराहनीय कदम है। उन्होंने राष्ट्रीय क्राइसिस प्रबन्धन समिति एवं राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकार को राज्य स्तरीय से जिला स्तरीय एवं प्रखण्ड स्तरीय, समिति का गठन करने तथा कार्यबल सुनिश्चित करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी आपदा से निबटने के लिए व्यक्ति, परिवार समाज, मोहल्ला, तहसील,एवं जिला से राज्य की जागरूकता के लिए कार्य करनी पड़ेगी। इसके लिए मैन पावर एवं आंतरिक संसाधन तथा आधारभूत संरचना होनी चाहिए।
कार्यशाला में विभिन्न प्रकार के आपदाओं जैसे जल एवं पर्यावरण सड़क रेल, वायु, तेल टैंकर, नाभकीय दुर्घटना एवं उनके उद्देश्यों के साथ चिकित्सीय एवं जैविकीय आपदा यथा इबोला, बर्ड फ्लू, सीरियल बम ब्लास्ट, रासायनिक एवं रेडियोधर्मी आपदाओं के साथ क्राइसिस प्रबन्धन एवं आपदा प्रबन्धन के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी दी गई। स्कीपा के महानिदेशक श्री सुधीर प्रसाद, राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकार के श्री एनके मिश्रा, प्रधान सचिव आपदा प्रबन्धन, उपायुक्त राँची श्री मनोज कुमार, कर्नल श्री संजय श्रीवास्तव, सलाहकार श्री बी.बी गड़नायक उपस्थित थे।
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