जान पर बना यमुना का प्रदूषण

हमारे मुल्क में नदियों के अंदर बढ़ते प्रदूषण पर आए दिन चर्चा होती रहती है।प्रदूषण रोकने के लिए गोया बरसों से कई बड़ी परियोजनाएँ भी चल रही हैं। लेकिन नतीजे देखें तो वही “ढाक के तीन पात” प्रदूषण से हालात इतने भयावह हो गए हैं कि पेयजल तक का संकट गहरा गया है। राजधानी दिल्ली के 55 फीसद लोगों की जीवन-दायिनी, उनकी प्यास बुझाने वाली- यमुना के पानी में जहरीले रसायनों की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि उसे साफ कर पीने योग्य बनाना तक दुष्कर हो गया है।

बीते एक महीने में दिल्ली में दूसरी बार ऐसे हालात के चलते पेयजल शोधन संयंत्रों को रोक देना पड़ा। चंद्राबल और वजीराबाद के जलशोधन केंद्रों की सभी इकाइयों को महज इसलिए बंद करना पड़ा कि पानी में अमोनिया की मात्रा .002 से बढ़ते-बढ़ते 13 हो गई, जिससे पानी जहरीला हो गया। अब गर्मी आने को है। समय रहते यदि समस्या पर पार नहीं पा ली गई, तो हालात और भी विकराल हो जाएंगे। यमुना का प्रदूषण आहिस्ता-आहिस्ता अब लोगों की जान पर बन आया है।

यमुना के पानी में जहरीले रसायनों की मात्रा ज्यादा होने को लेकर हरियाणा सरकार और दिल्ली जल बोर्ड के बीच तनातनी चल रही है। दिल्ली जल बोर्ड का कहना है कि हरियाणा के उद्योगों द्वारा यमुना नदी में जो कचरा डाला जाता है, उसकी वजह से ही पानी में अमोनिया की मात्रा ज्यादा हुई। जल बोर्ड ने इसकी शिकायत केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड से भी की लेकिन कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला जबकि खुद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कल-कारखानों से निकलने वाले पानी के सम्बंध में कड़े कायदे-कानून बना रखे हैं।

इस बात को भी अभी कोई ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कानपुर में ऐलान किया था कि, ''नदियों में मिलने वाले जहरीले रसायनों की जवाबदेही अंतत: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की होगी। यदि इस मामले में वह नाकाम साबित होता है तो, उसके खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएंगे।' जयराम रमेश ने उस वक्त इसके बाबत निर्देश भी जारी किए। फिर भी हरियाणा और उत्तर प्रदेश के औद्योगिक इलाकों, पानीपत और बागपत में लगे कारखानों का विषैला पानी बिना रुके यमुना में लगातार गिरता रहा। यों, यमुना के प्रदूषण के लिए अकेला हरियाणा ही जिम्मेदार नहीं है बल्कि इसमें दिल्ली भी बराबर भागीदार है।

शीला सरकार ने एक समय राजधानी के इलाकों में चल रहे कल-कारखानों को दिल्ली से बाहर बसाने के लिए बाकायदा एक मुहिम चलाई, जगह-जगह जल, मलशोधक संयंत्र लगाए, लेकिन हालात आज भी ऐसे बने हुए हैं कि, हजारों कारखाने रिहाइशी इलाकों के आस-पास बने हैं और तिस पर रख-रखाव में लापरवाही के चलते ज्यादातर शोधन संयंत्र भी काम करना बंद कर चुके हैं। पिछले दिनों हुए राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़े बुनियादी ढांचा सम्बंधी विकास कार्यों ने भी यमुना को प्रदूषित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। बीते कुछ सालों में दिल्ली में न सिर्फ वायु प्रदूषण बढ़ा है, बल्कि उसी रफ्तार में जल प्रदूषण भी।

उद्योगों-कारखानों से निकलने वाला कचरा यमुना में लगातार गिरता है। औद्योगिक इकाइयां ज्यादा मुनाफे के चक्कर में कचरे के निस्तारण और परिशोधन के जानिब कतई संवेदनशील नहीं हैं। मंजर यह है कि यमुना के 1,376 किलोमीटर लम्बे रास्ते में मिलने वाली कुल गंदगी में से महज 2 फीसद रास्ते, यानी 22 किलोमीटर में मिलने वाली दिल्ली की 79 फीसद गंदगी ही यमुना को जहरीला बनाने के लिए काफी है।

गंगा-यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार अब तक 15 अरब रुपये से अधिक खर्च कर चुकी है लेकिन उनकी वर्तमान हालत 20 साल पहले से कहीं बदतर है। गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिए जाने के बावजूद इसमें प्रदूषण जरा भी कम नहीं हुआ है। करोड़ों रुपये यमुना की भी सफाई के नाम पर बहा दिए गए, मगर रिहाइशी कॉलोनियों व कल-कारखानों से निकलने वाले गंदे पानी का कोई माकूल इंतजाम नहीं किया गया। जाहिर है, जब तक यह गंदा पानी यमुना में गिरने से नहीं रोका जाता, यमुना सफाई अभियान की सारी मुहिमें फिजूल हैं। ज्यादातर औद्योगिक इकाइयां रसूख वाले लोगों की हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड औद्योगिक-राजनीतिक दबाव के चलते औद्योगिक इकाइयों पर कोई कार्रवाई नहीं करता। कार्रवाई होती भी है तो वे अपने सियासी रसूख की वजह से बच निकलते हैं।

इस पूरे मामले में दिल्ली सरकार भले ही हरियाणा सरकार को गुनहगार ठहराकर खुद को पाक-साफ साबित करे लेकिन वह खुद कितनी संजीदा है, यह किसी से छिपा नहीं है। प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर ही यमुना को बचाया जा सकता है।
 

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