जैवप्रौद्योगिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का युग्मक है, जो जीवन से संबंधित है। यह जीवन के मूल को जानने और प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा इसके प्रबंधन एवं/या अन्य प्रौद्योगिकियों में इसके उपयोग का विज्ञान है। जैवप्रौद्योगिकी एक ऐसा वैज्ञानिक विषय है जिसमें अन्य सभी विषय परस्पर मिश्रित होते हैं। विज्ञान की सभी शाखाएं मोलेक्यूलर स्तर पर अभिसरित होती हैं और इस तरह जैवप्रौद्योगिकी विज्ञान के सभी छात्रों जैव वैज्ञानिकों, कैमिस्ट्स, फिजिस्ट, डॉक्टरों और इंजीनियरों के लिए खुला है। यह व्यवस्था जहां एक ओर जैविकीय मोलेक्यूल्स को संघटित करती है वहीं दूसरी ओर भौतिकीय साधनों तथा प्रक्रियाओं को मिलाती है। इसकी अनेक अनुप्रयोगों के लिए व्यापक संभावनाएं हैं। इस तरह जैवप्रौद्योगिकी निश्चय ही विज्ञान के सभी विषयों को अंतरापृष्ठ करती है।
कोई भी व्यक्ति शिक्षा के विभिन्न चरणों पर जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जा सकता है। बी.टेक. के लिए आई.आई.टी. या एकीकृत एमएससी. में प्रवेश, 10+2 स्तर पर स्कूल की शिक्षा के बाद आई.आई.टी.-जे.ई.ई. के माध्यम से प्राप्त करना संभव है। कई संस्थाएं आईआईटी. –जेईईई में रैंकिंग के आधार पर भी अपने पाठ्यक्रमों में प्रवेश देती हैं। जैवप्रौद्योगिकी में स्नातक, स्नातकोत्तर एवं एकीकृत स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश, विभिन्न संस्थाओं द्वारा ली जाने वाली विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं के माध्यम से और अन्य राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय प्रवेश-परीक्षाओं के माध्यम से लिया जा सकता है। कई विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अखिल भारतीय स्तर पर एक प्रवेश परीक्षा लेता है। जैवप्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए उक्त प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन करने के लिए विज्ञान की किसी भी शाखा में न्यूनतम 55% अंक समकक्ष ग्रेड प्राप्त विज्ञान स्नातक पात्र होता है। एम.टेक.–जैव प्रौद्योगिकी में प्रवेश के लिए बी.टेक./बी.ई. या एमएससी में 60% अंक होना अपेक्षित है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी.) एवं कुछ इंजीनियरी कॉलेज छात्रों को बी.टेक तथा एकीकृत एमएससी पाठ्यक्रमों में भी प्रवेश देते हैं। कोई भी व्यक्ति विज्ञान की किसी भी शाखा में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद पी.जी. स्तर पर या पीएचडी स्तर पर भी जैवप्रौद्योगिकी चुन सकता है। कई राज्य, केंद्रीय तथा निजी विश्वविद्यालय जैवप्रौद्योगिकी में विभिन्न स्तरों पर पाठ्यक्रम चलाते हैं। आधुनिक युग में जैव प्रौद्योगिकी मनुष्य का एक व्यापक बौद्धिक उद्यम है तथा लोगों की भलाई के लिए अत्यधिक उपयोगी है। जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार का विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में एक अलग विभाग है, जिसे जैवप्रौद्योगिक विभाग (जैप्रौवि) कहा जाता है। यह विभाग इस तथा समवर्गी क्षेत्रों में उच्च शिक्षा, अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देता है। यह जैवप्रौद्योगिकी में औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा देता है। अधिक जानकारी के लिए इस विभाग की वेबसाइट www.dbtindia.nic.in देख सकते हैं। यह विभाग पूरे देश में अनेक विश्वविद्यालयों/संस्थाओं में जैवप्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों को समर्थन देता है, इसकी सूची जैवप्रौद्योगिकी विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध है। जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अग्रत मार्गों का पता लगाने हेतु कई स्वशासी संस्थाएं स्थापित की गई हैं और स्थापित की जा रही हैं। ये सभी संस्थाएं मोलेक्यूलर जीवविज्ञान, आनुवंशिकी, सेल जीवविज्ञान, जैवरसायन विज्ञान, पादप एवं पशुविज्ञान, खाद्य प्रौद्योगिकी, जीनोमिक्स एवं प्रोट्योमिक्स, जैव भौतिकी, संरचनात्मक जीवविज्ञान, जैवरसायन तथा जैव चिकित्सा इंजीनियरी, जैव-सूचनाविज्ञान, सूक्ष्मजीवविज्ञान, रोग प्रतिरक्षा विज्ञान तथा वायरोलोजी सहित जैवप्रौद्योगिकी के अनेक अग्रवर्ती क्षेत्रों में कार्य कर रहीं है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग से समर्थन प्राप्त कुछ संस्थान निम्नलिखित हैं :-
(i) सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी) हैदराबाद।
(ii) इंस्टीट्यूट ऑफ बायोरिसोर्सेस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईबीएसडी) इम्फाल
(iii) जीवनविज्ञान संस्थान (आईएलएस) भुवनेश्वर
(iv) राष्ट्रीय कृषि खाद्य जैवप्रौद्योगिकी संस्थान (एनएबीआई.) मोहाली।
(v) राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र (एन.बी.आर.सी.) मानेसर
(vi) राष्ट्रीय सेल विज्ञान केंद्र (एन.सी.सी.एस.)
(vii) राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान (एन.आई.पी.जी.आर), नई दिल्ली।
(viii) राष्ट्रीय पशु जैवप्रौद्योगिकी संस्थान (एन.आई.ए.बी) हैदराबाद
(ix) राष्ट्रीय जैवचिकित्सा जीनोमिक्स संस्थान (एन.आई.बी.एम.जी), कल्याणी।
(x) राष्ट्रीय रोग प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान (एन.आई.आई) नई दिल्ली
(xi) राजीव गांधी जैवप्रौद्योगिकी केंद्र (आर.जी.सी.बी) तिरुवनंतपुरम
(xii) क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आर.सी.बी.) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, गुड़गांव
(xiii) ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, (टी.एच.एस.टी.आई.) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, गुड़गांव।
(xiv) इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेमसेल बायोलोजी एंड रिजेनरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम), बंगलोर।
जैवप्रौद्योगिकी के विभिन्न पहलुओं में शिक्षा तथा अनुसंधान पर बल देने वाले कई संस्थानों को भी भारत सरकार के अन्य संगठन/विभाग/मंत्रालय जैसे वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर.), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई.सी.ए.आर), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डी.एस.टी), मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एम.एच.आर.डी), तथा परमाणु ऊर्जा विभाग समर्थन देते हैं। ये संस्थाएं जैव प्रौद्योगिकी में पीएचडी डिग्री हेतु अनुसंधान के उत्कृष्ठ अवसर देती हैं। इनमें से कुछ संस्थाएं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में भी प्रवेश देती हैं। पीएचडी पाठ्यक्रमों में प्रवेश विभिन्न संस्थाओं तथा संगठनों द्वारा संचालित की जाने वाली सीएसआईआर., यूजीसी नेट या अन्य राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं के माध्यम से दिया जाता है। कई संस्थाएं अपनी निजी प्रवेश परीक्षाएं लेती हैं तथा कई अन्य संस्थाएं अनुसंधान अध्येताओं को सीएसआईआर यूजीसी नेट के माध्यम से प्रवेश देती हैं।
जैव प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तन श्रृंखला में कई कदम शामिल होते हैं। खोज-आधारित मूलभूत अनुसंधान आपको ऐसे क्षेत्र में आगे बढ़ा सकता है, जिसमें प्रौद्योगिकी विकास की संभावना होती है। इस संभावना का पता लगाना तथा व्यवहार्य बौद्धिक सम्पदा में परिवर्तन करना अगला महत्वपूर्ण कार्य है। इन सभी कार्यों की अपनी जटिलताएं और विशेषताएं हैं। इसलिए सामाजिक उपयोग के लिए सार्थक परिवर्तन के लिए जैवप्रौद्योगिकी क्षेत्र को एक बहुविषयीय पर्यावरण में विविध क्षेत्रों में अद्वितीय कौशल रखने वाले मानव संसाधनों की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत कई अन्य औद्योगिक विकास में, जैव-प्रौद्योगिकी मुख्य रूप से मानव जीवन से संबंधित होती है और इसलिए इस क्षेत्र में विकास की बाधाएं व्यापक हैं। व्यक्तियों को नीतिपरक एवं नियामक पहलुओं में भी प्रशिक्षण दिए जाने की आवश्यकता है।
बौद्धिक सम्पदा के परिक्षण में प्रशिक्षण देना एक अन्य अपेक्षित क्षेत्र है। हमें ऐसे योजनाबद्ध रूप में तैयार किए गए पाठ्यक्रम तथा क्षेत्र-विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है जो नियामक विज्ञान विशेषज्ञ, प्रवर्तन नीति व्यवसायी, औद्योगिक गुणवत्ता आश्वासन विशेषज्ञ, फिजिशियन, कृषि, जलवायु परिवर्तन तथा ऊर्जा में वैज्ञानिक तथा व्यवसायी दे सके। जैवप्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा यूनेस्को के तत्वावधान में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान की एक संस्था-क्षेत्रीय जैवप्रौद्योगिकी केंद्र (आरसीबी) (www.rcb.res.in) की स्थापना करना इस संदर्भ में अत्यधिक प्रासंगिक है।
आरसीबी का अधिदेश एक अत्याधुनिक अनुसंधान वातावरण में जैवप्रौद्योगिकी के सभी पहलुओं में उद्योगों के अनुकूल मानव संसाधन का विकास करना है।
जैवप्रौद्योगिकी, विज्ञान का एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जो कॉपरेट क्षेत्र तथा परम्परागत विज्ञान के विकल्पों को खुला रखेगा। जैवप्रौद्योगिकी, जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग, कृषि तथा समवर्गीय उद्योगों, भेषज कंपनियों, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों एवं अनुसंधान में व्यापक करियर के अवसर देती है। रोजगार शीघ्र प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति स्नातक योग्यता के बाद रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति जैव प्रौद्योगिकी उद्योग, भेषज, रासायनिक या कृषि तथा समवर्गी उद्योगों में उत्पादन, विक्रय तथा प्रबंधन से जुड़े रोजगार में जा सकता है। यहां तक कि जैव प्रोसेस में आवश्यक मशीनरी तथा उपकरण निर्माता आधारित संरचना उद्योग भी जैवप्रौद्योगिकविदों को रोजगार देते हैं। जैवप्रौद्योगिकी उद्योग में जैव प्रौद्योगिकीय प्रक्रियाओं तथा उपकरणों के आधार पर उत्पादन कंपनियां शामिल होती हैं। इस उद्योग में जैव-प्रौद्योगिकी प्रक्रियाओं में अपेक्षित मशीनरी एवं उपकरण निर्माता कंपनियां भी शामिल की जाती हैं।
शैक्षिक संस्थाओं में सभी स्तरों पर अध्यापन जैव प्रौद्योगिकीविदों को अवसर देता है, क्योंकि यह क्षेत्र विकास के चरण में है और अभी भी विस्तारशील है। अनुसंधान एवं विकास एक ऐसा अन्य विकल्प है, जिसमें रोजगार के साथ-साथ ज्ञान प्राप्त करने के व्यापक अवसर हैं।
स्नातकोत्तर योग्यता डिग्री पूरी करने के बाद जैव प्रौद्योगिकी बहुविषयी क्षेत्रों में कोई भी व्यक्ति कनिष्ठ अनुसंधान अध्येता (जेआरएफ) के रूप में कार्य कर सकता है या पीएचडी डिग्री के लिए कार्य कर सकता है। जो व्यक्ति अपनी पीएचडी डिग्री पूरी कर चुके हैं वे भारत में या बाहर पोस्ट डॉक्टोरल अध्येतावृत्तियां प्राप्त कर सकते हैं और अनुसंधान तथा विकास के क्षेत्र में योगदान कर सकते हैं। उत्कृष्ट प्रकाशनों/पेटेंट रिकार्ड के साथ पोस्ट-डॉक्टोरल अध्येता के रूप में ¾ वर्ष के अनुभव के बाद उन्हें असीम अवसर मिल सकते हैं। उन्हें अनुसंधान तथा विकास में लगे किसी भी संस्थान में वैज्ञानिक का या संकाय का पद प्राप्त हो सकता है।
यह ध्यान रखते हुए कि जैवप्रौद्योगिकी में उच्च वैज्ञानिक कौशल निहित होता है, उच्च स्तर की शिक्षा में योग्यताप्राप्त व्यक्तियों के लिए करियर के बेहतर विकल्प उपलब्ध होते हैं, मांग अथवा अंतराल के क्षेत्रों में कुशलता प्राप्त व्यक्तियों की मांग विशेष रूप से अधिक होती है। जैव-प्रौद्योगिकी से जुड़े किसी क्षेत्र में पीएचडी पूरी कर चुके व्यक्तियों को औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास या शैक्षिक/अनुसंधान संस्थाओं में आसानी से समाहित कर लिया जाता है।
विशेष रूप से वे व्यक्ति, जो अनुसंधान का प्रामाणित रिकार्डधारी होने के साथ लगभग 3 वर्ष का डॉक्टरोत्तर अनुभव रखते हैं, वे अत्यधिक वरिष्ठ स्तर पर रोजगार प्रारंभ कर सकते हैं।
डॉ. दिनकर एम. सालुंके कार्यपालक निदेशक हैं और श्री बी.डी. वशिष्ठ क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी केंद्र, गुड़गांव के रजिस्ट्रार हैं।
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