जैविक सपने

बात उत्तराखण्ड के एक कृषि मेले की है। देश के कई राज्यों से किसान इस कृषि मेले में भाग लेने आए थे। उनमें एक था जम्मू के आरएस पुरा तहसील का किसान स्वर्ण लाल। स्वर्ण लाल मेले में प्रदर्शित जैविक खेती (ऑर्गेनिक फॉर्मिंग) से सम्बन्धित आधुनिकतम उपकरणों को काफी उत्सुकता और कौतूहल भरी नजरों से देख रहा था। वहाँ उसने जो कुछ भी देखा उससे उसे एक सुखद सपने की उम्मीद जगी। उसने भी अपने पंचायत क्षेत्र सुचेतगढ़ में इस नयी तकनीक को आजमाने का प्रण किया।

उसके मन में एक विश्वास जगा कि इस विधि को अपनाकर वह भी कुछ विशेष कर दिखाएगा। और सचमुच कुछ सालों बाद उसका यह सपना सच साबित हुआ।

जम्मू शहर से 35 किलोमीटर दूर, भारत-पाक सीमा के पास स्थित, सुचेतगढ़ क्षेत्र अपने उत्तम कोटि के चावल के लिए मशहूर रहा है। मगर पिछले दो दशकों से रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक उपयोग ने कृषि उत्पाद पर बुरा असर तो डाला ही है, साथ ही साथ किसानों पर अतिरिक्त खर्च का बोझ भी डाल दिया है। जैसाकि हम सभी जानते हैं कि आजकल अधिक उत्पादन के लिए किसान खाद और कीटनाशक दवाओं का उपयोग करते हैं। इसका सीधा असर कृषि में ज्यादा खर्च के रूप में तो महसूस किया जाता ही है साथ ही साथ उत्पाद की गुणवत्ता भी इससे प्रभावित होती है।

आरएस पुरा क्षेत्र की मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा (ओसीसी) घटकर 0.45, 0.50, 0.52 रह गई है जबकि इसकी मात्रा 0.60, 0.80 और 1 होनी चाहिए। इसी कमी को पूरा करने के लिए किसान अक्सर ज्यादा खादों का उपयोग करते हैं जिससे जल और पर्यावरण दोनों प्रदूषित होते हैं। स्वर्ण लाल की उत्तराखण्ड की यह यात्रा, जिसे कृषि उत्पाद विभाग ने कृषि जागरूकता कार्यक्रम के अन्तर्गत आयोजित किया था, ने उस क्षेत्र को जैविक कृषि के एक जैविक प्रयोगशाला के रूप में तब्दील कर दिया। स्वर्ण लाल के अनुसार 'इस यात्रा के दौरान जैविक कृषि ने उसके विचारों को काफी प्रभावित किया मगर सबसे बड़ी चुनौती इसे छोटे और गरीब किसानों के अनुकूल बनाना था।' उसी यात्रा के दौरान उसकी बातचीत उत्तराखण्ड के उन किसानों से हुई जिन्होंने इस विधि को अपनाया था। उन किसानों से उसने बहुत-सी जानकारियाँ एकत्र की और इस प्रकार की खेती करने का निश्चय किया। और यहीं से उसने एक नयी जिन्दगी की शुरुआत की जिससे उसके और उस क्षेत्र के करीब 80 किसानों की जिन्दगी ही बदल गई।

सबसे पहले उसने इस विधि का प्रयोग एक छोटे से भूखण्ड पर किया और उसकी खुशी का ठिकाना न रहा जब उसका यह प्रयोग सफल रहा। आज करीब डेढ़ साल के बाद स्वर्ण लाल ने 82 किसानों को इस विधि को अपनाने के लिए प्रेरित किया है। आज सुचेतगढ़ के कुल 1,100 एकड़ कृषि योग्य भूमि में से 350 एकड़ पर जैविक खेती की जाती है।

इस पहल के सफल होने के पीछे सबसे बड़ा कारण है इन किसानों के रहन-सहन का तरीका। इसमें से अधिकांश परिवार खेती के साथ-साथ पशु-पालन भी करते हैं। इन पशुओं के गोबर प्राकृतिक खाद का सबसे अच्छा स्रोत हैं। इसके अलावा ये किसान हरित खाद और वर्मी कम्पोस्ट का भी इस्तेमाल करते हैं जो जैविक खेती के अनुकूल है। अतः इन किसानों को यह विश्वास है कि अगले साल जैविक खेती करने वाले परिवारों की संख्या 300 के ऊपर हो जाएगी।

कुछ साल पहले तक बुवाई के समय माँग बढ़ जाने के कारण यूरिया, डीएपी और पोटाश जैसे खादों की किल्लत हो जाती थी। एक स्थानीय किसान रमेश लाल का कहना है कि बुवाई के समय किसानों का ज्यादा समय पंजाब जैसे राज्यों से खाद लाने में ही बर्बाद हो जाता था। साथ ही साथ यह काफी महंगा भी साबित होता था। रमेश लाल का कहना है कि यह भी एक कारण था कि आरएस पुरा के लोगों ने जैविक खेती को अपनाया।

विश्व बाजार में जैविक उत्पादों की बढ़ती माँग को देखते हुए हमें विश्वास है कि जैविक खेती करने वाले किसानों को काफी फायदा होगा।हालाँकि जैविक खेती को बहुत से किसान अपना चुके हैं मगर फिर भी कुछ ऐसे किसान हैं जो अभी भी रासायनिक खादों का ही इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में जैविक खेती करने वाले किसानों की शिकायत है कि भारी बारिश के दौरान ऐसे खेतों से पानी बहकर अक्सर जैविक खेती वाले क्यारियों में आ जाता है जिससे जैविक फसलें भी प्रदूषित हो जाती है। अतः इनका फायदा पूर्णरूप से तभी मिल सकता है जब ज्यादा से ज्यादा किसान जैविक कृषि पद्धति का इस्तेमाल करें। इससे इन किसानों के उत्पाद को सरकार द्वारा शुद्धता का प्रमाण-पत्र भी मिलने में आसानी होगी। और अन्ततः सभी किसानों को इसका फायदा मिलेगा।

इस सम्बन्ध में कृषि उत्पाद विभाग के निदेशक अजय खजूरिया का कहना है कि आप कोई भी नया काम शुरू करें, परेशानियाँ तो आती ही हैं। मगर एक बार आप शुरुआत कर दें तो परिस्थितियाँ धीरे-धीरे अनुकूल होती जाती हैं।

शेरे कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञान और तकनीकी इकाई कृषि प्रणाली अनुसन्धान केन्द्र के विभागाध्यक्ष श्री दलीप काचरू ने कहा कि शुरुआत में तो जैविक कृषि में उत्पाद में कमी पाई गई है मगर ओसीसी की कमी को प्राकृतिक खादों के उपयोग से पूरा किया जाता है। हमलोग आशा करते हैं कि अगले छह वर्षों में ओसीसी स्तर में बढ़ोत्तरी होगी और उत्पादन भी ज्यादा होने लगेगा।श्री खजूरिया का कहना है कि हम लोगों ने छह कम्पनियों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके अन्तर्गत ये कम्पनियाँ विभिन्न प्रकार के फसलों को उपजाने में हमारी मदद करेंगी। ये कम्पनियाँ जैविक खेती करने वाले किसानों के उत्पादों की मार्केटिंग भी करेंगी। हमारा यह करार तीन सालों का है और हमने अभी-अभी दूसरे साल में प्रवेश किया है। तीन सालों में हमारे जैविक उत्पादों को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हो जाएगी। विश्व बाजार में जैविक उत्पादों की बढ़ती माँग को देखते हुए हमें विश्वास है कि जैविक खेती करने वाले किसानों को काफी फायदा होगा।

दलीप काचरू, जो कि शेरे कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञान और तकनीकी इकाई कृषि प्रणाली अनुसन्धान केन्द्र के विभागाध्यक्ष हैं, का कहना है कि जैविक कृषि शुरुआत में भले ही बहुत ज्यादा फायदेमन्द साबित न हो मगर एक निश्चित समय के बाद किसानों को इसकी महत्ता समझ में आएगी, और उनको इसका भरपूर लाभ मिलेगा। क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति और जलस्तर पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।

श्री काचरू ने चिन्ता जताई कि आरएस पुरा क्षेत्र की मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा (ओसीसी) घटकर 0.45, 0.50, 0.52 रह गई है जबकि इसकी मात्रा 0.60, 0.80, और 1 होनी चाहिए। इसी कमी को पूरा करने के लिए किसान अक्सर ज्यादा खादों का उपयोग करते हैं जिससे जल और पर्यावरण दोनों प्रदूषित होते हैं।

श्री काचरू ने कहा कि शुरुआत में तो जैविक कृषि में उत्पाद में कमी पाई गई है मगर ओसीसी की कमी को प्राकृतिक खादों के उपयोग से पूरा किया जाता है। हमलोग आशा करते हैं कि अगले छह वर्षों में ओसीसी स्तर में बढ़ोत्तरी होगी और उत्पादन भी ज्यादा होने लगेगा। अगर इन वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी सच निकली तो स्वर्ण लाल ने अपने राज्य जम्मू के लिए जो सपने देखे थे, वे जरूर सच साबित होंगे।

(चरखा फीचर्स)

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